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उच्च न्यायालय (High Court)

उच्च न्यायालय (High Court)

उच्च न्यायालय (High Court)

राज्यों में न्यायपालिका के सर्वोच्च स्तर पर उच्च न्यायालय (High Court) होता है। भारत में उच्च न्यायालय की स्थापना सर्वप्रथम 1862 में कलकत्ता, बंबई और मद्रास में हुई। 1866 में चौथे उच्च न्यायालय की स्थापना इलाहबाद में की गई।

भारतीय संविधान के भाग छह में अनुच्छेद 214 से 231 तक में  उच्च न्यायालयों के गठन, स्वतंत्रता, न्यायिक क्षेत्र, शक्तियां, प्रक्रिया आदि के बारे में वर्णन किया गया है।

संविधान के अनुच्छेद 214 के अधीन प्रत्येक राज्य में न्यायिक सत्ता के सर्वोच्च स्तर पर एक उच्च न्यायालय के गठन की व्यवस्था की गई है। लेकिन 7वें संविधान संशोधन अधिनियम 1956 द्वारा अनुच्छेद 231 में प्रावधान कर किया है की संसद विधि द्वारा दो या अधिक राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक ही उच्च न्यायालय का गठन कर सकती है, बशर्ते कि वे सभी राज्य ऐसा चाहें।

वर्त्तमान में देश में 24 उच्च न्यायालय कार्यरत हैं जिनमें 17 उच्च न्यायालयों का क्षेत्राधिकार केवल एक ही संबंधित राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश है तथा शेष 7 के क्षेत्राधिकार में दो या अधिक राज्य व केंद्र शासित प्रदेश आते है। केवल दिल्ली ही एकमात्र ऐसा केंद्र शासित प्रदेश जिसक अपना उच्च न्यायालय (1966 से ) है।

उच्च न्यायालय का संगठन-

प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश और आवश्यकता के अनुसार समय-समय पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त अन्य न्यायाधीश होते है।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति-

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 217(1) के अनुसार उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा अपने हस्ताक्षरों व मुहर से जारी वारंट द्वारा की जाती है। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श के उपरान्त की जाती है।

उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु राष्ट्रपति को सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, संबंधित राज्य के राज्यपाल एवं संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश स परामर्श लेना होता है।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यताएँ-

(1) भारत का नागरिक हो।

(2) कम से कम 10 वर्षों तक न्यायिक पद पर कार्य किया हो। अथवा कम से कम लगातार 10 वर्षों तक किसी एक या एक से अधिक उच्च न्यायालय में अधिवक्ता रह चुका हो।

शपथ अथवा प्रतिज्ञान-

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उस राज्य का राज्यपाल शपथ दिलाता है, जिस राज्य में वह उच्च न्यायालय स्तिथ है।

कार्यकाल-

उच्च न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश (मुख्य न्यायाधीश सहित) 62 वर्ष की आयु तक पद पर बना रह सकता है।

त्यागपत्र-

उच्च न्यायालय का कोई भी न्यायाधीश राष्ट्रपति को लिखित व स्वयं द्वारा हस्ताक्षरित त्यागपत्र देकर सेवानिवृत्ति से पहले अपने पद से मुक्त हो सकता है।

पदमुक्ति-

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की तरह ही उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उसी प्रक्रिया और आधारों पर हटाया जा सकता है। हटाने के दो आधार हो सकते है-(1) सिद्ध कताचार, और (2) अक्षमता।

सेवानिवृत्त न्यायाधीश-

 किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के बाद उच्चतम न्यायालय या अन्य उच्च न्यायालयों को छोड़कर उसी उच्च न्यायालय में या अधीनस्थ न्यायालय में वकालात नहीं कर सकते है एवं न ही सरकार के अधीन कोई लाभ का पद ग्रहण कर सकते हैं।

उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार-

(1) प्रारंभिक क्षेत्राधिकार-

अपने न्यायिक क्षेत्राधिकार की दृष्टि से प्रेसिडेंसी टाउन के उच्च न्यायालय (कलकत्ता, बंबई और मद्रास) को प्रारंभिक तथा अपीलीय दोनों प्रकार के क्षेत्राधिकार है, जबकि अधिकांश अन्य उच्च न्यायालयों को कुछ विवादों में ही प्रारंभिक क्षेत्राधिकार है। उन्हें शेष विवादों में अपीलीय क्षेत्राधिकार है।

प्रारंभिक क्षेत्राधिकार में निम्न विवाद आते हैं-

(i) नागरिकों के मूल अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित विवाद।

(ii) संसद सदस्यों एवं राज्य विधानमंडल के सदस्यों के निर्वाचन से संबंधी विवाद।

(iii) राजस्व संबंधी या राजस्व संग्रहण के लिए बनाए गए किसी अधिनियम अथवा आदेश से संबंधी विवाद।

(2) अपीलीय क्षेत्राधिकार-

उच्च न्यायालय (High Court) मुख्य रूप से एक अपीलीय न्यायालय है। यहाँ इसके राज्य क्षेत्र में आने वाले अधीनस्थ न्यायालयों के आदेशों के विरुद्ध अपील की सुनवाई होती है। इन न्यायालयों में सिविल एवं आपराधिक विवादों के बारे में अपील होती है।

(3) रिट क्षेत्राधिकार-

संविधान के अनुच्छेद 226 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के विपरीत उच्च न्यायालयों को न सिर्फ मूल अधिकारों के प्रवर्तन हेतु, वरन् अन्य उद्देश्यों के लिए भी राज्य में रिट या आदेश जरी करने की शक्ति प्रदान की गई है।

(4) अभिलेख न्यायालय-

संविधान के अनुच्छेद 215 के अनुसार प्रत्येक उच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय होता है और उसके निर्णय एवं कार्यवाही राज्य के सभी अधीनस्थ न्यायालयों में साक्षी के रूप में प्रयुक्त किये जाते हैं और उनमें इन निर्णयों या कार्यवाहियों पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता।

(5) अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण एवं निरिक्षण की शक्तियाँ-

संविधान के अनुच्छेद 235 के अनुसार राज्य के उच्च न्यायालय (High Court) को अपने अधीन कार्यरत जिला न्यायालयों एवं अन्य अधीनस्थ न्यायालयों का नियंत्रण एवं निरिक्षण करने एवं न्यायिक सेवा के अधिकारियों के पदस्थापन, स्थानान्तरण एवं पदोन्नति तथा अवकाश स्वीकृति आदि करने की शक्तियां की गई है। साथ ही राज्यपाल को जिला न्यायाधीश की नियुक्ति के समय राज्य के उच्च न्यायालय से परामर्श लेने का प्रावधान अनुच्छेद 233 में किया गया है।

राजस्थान उच्च न्यायालय की वेबसाइट देखने के यहाँ Click करें।

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