संविधान में महत्वपूर्ण संशोधन

भारतीय संविधान में महत्वपूर्ण संशोधन (Important Amendments to the Indian Constitution)

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26 जनवरी, 1950 ई. को भारतीय संविधान लागू होने के बाद संविधान में कई महत्वपूर्ण संशोधन किए जा चुके हैं।

पहला संशोधन (18 जून, 1951) –

इस संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 15, 19, 31, 85, 87, १७४, 176, ३७२ तथा 376 में संशोधन किया गया और संविधान में 9वीं अनुसूची और जोड़ दी गई।

इस संशोधन द्वारा यह निश्चित कर दिया गया कि जमींदारी और जागीरदारी के अंत से संबंधित विधेयक मुआवजे की व्यवस्था के न होते हुए भी वैध समझे जायेंगे।

इस अधिनियम द्वारा सरकार को अधिकार दिया गया है कि वह राज्य की सुरक्षा तथा अन्य राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने के लिए नागरिकों के स्वतंत्रता संबंधी अधिकार पर उचित प्रतिबन्ध लगा दे और ऐसे व्यक्तियों को दण्ड दे जो न्यायालयों का अपमान करते हों या लोगों को अपराध करने के लिए प्रोत्साहित करते हों।

दूसरा संशोधन (15 मई, 1952) –

इस संविधान संशोधन द्वारा लोकसभा में प्रतिनिधित्व की व्यवस्था में परिवर्तन किया गया।

हमारे मूल संविधान में व्यवस्था की गई थी कि प्रति 7.50 लाख जनसंख्या के पीछे लोकसभा का एक सदस्य चुना जायेगा और लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 500 होगी।

देश की जनसंख्या में वृद्धि हो जाने के कारण इन सीमाओं का पालन संभव नहीं था।

अतः इस संशोधन द्वारा इस प्रकार की सीमा हटा दी गई।

तीसरा संशोधन (22 फरवरी, 1955) –

इस महत्वपूर्ण संशोधन द्वारा संविधान की राज्य सूची के कुछ विषयों- बाह्य सामग्री, पशुओं का चारा, रुई तथा पटसन आदि को समवर्ती सूची में कर दिया गया।

जिससे केन्द्रीय सरकार आवश्यकता के समय इन पर नियंत्रण रख सके।

चौथा संशोधन (27 अप्रैल, 1955) –

इस संविधान संशोधन के अनुसार केन्द्रीय सरकार अथवा राज्य सरकार लोक-कल्याण के लिए किसी की संपत्ति क्षतिपूर्ति देकर ले सकेगी।

क्षतिपूर्ति की मात्रा पर विचार करने का अधिकार न्यायालयों को न होगा।

सातवां संशोधन (19 दिसम्बर, 1956) –

इस संशोधन द्वारा राज्यों का अ, ब, स और द वर्गों में विभाजन समाप्त कर उन्हें 14 राज्यों और 6 केन्द्र-शासित क्षेत्रों में विभक्त कर दिया गया।

इनके द्वारा लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 520 निश्चित की गई।

यह निश्चित किया गया कि किसी राज्य की विधान परिषद की सदस्य संख्या विधानसभा की एक-तिहाई से अधिक नहीं होनी चाहिए।

नवां संशोधन (28 दिसम्बर, 1960) –

सितम्बर, 1958 में हुए नेहरू-नून समझौते के अनुसार, भारत और पाकिस्तान के बीच जो प्रदेशों की अदला-बदली होनी थी।

उसे प्रभावी रूप देने के लिए यह संशोधन किया गया।

ग्यारहवां संशोधन (1961) –

इस संशोधन के अनुसार अनुच्छेद 71 में एक नया खण्ड, खण्ड 4 जोड़ा गया है।

जो यह उपबंधित करता है कि राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव की वैधता को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है

कि अनुच्छेद 54 और अनुच्छेद 55 में वर्णित निर्वाचक-मण्डल पूर्ण नहीं है या उसमें कुछ स्थान रिक्त हैं।

बारहवां संशोधन (27 मार्च, 1962) –

इसके द्वारा गोआ, दमन और ड्यू का 20 दिसम्बर, 1961 से भारतीय संघ में एकीकरण कर दिया गया।

पन्द्रहवां संशोधन (1 मई, 1963) –

इस संशोधन द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष की आयु तक कर दिया गया।

अठारहवां संशोधन (27 अगस्त, 1966) –

इस संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 3 को संशोधित करते हुए उसमें दो स्पष्टीकरण जोड़े गए।

पहला यह कि अनुच्छेद 3 में जो राज्य शब्द का प्रयोग किया गया है, उसमें संघीय क्षेत्र भी शामिल है।

दूसरा यह कि अनुच्छेद 3 धारा 1 द्वारा संसद को जो शक्ति राज्यों का क्षेत्र बढ़ाने, घटाने, सीमाओं या नाम में परिवर्तन करने के संबंध में दी गई,

उसके अंतर्गत किसी या संघीय क्षेत्र के किसी भाग को किसी अन्य राज्य या संघीय क्षेत्र के साथ मिलाकर नए राज्य या संघीय क्षेत्र का निर्माण करना भी शामिल है।

इक्कीसवां संशोधन (10 अप्रैल, 1967) –

इस संशोधन द्वारा मूल विधान की आठवीं अनुसूची में सिन्धी भाषा को भी भारतीय भाषाओं के अंतर्गत रख दिया गया।

चौबीसवां संशोधन (1971) –

इस संशोधन में संसद को यह अधिकार दिया गया कि संविधान के किसी भी उपबन्ध को जिसमें मौलिक अधिकार भी सम्मिलित हैं, संशोधित कर सके।

इस संशोधन ने यह भी स्पष्ट कर किया है कि जब संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित संविधान संशोधन विधेयक राष्ट्रपति के सम्मुख रखा जाएगा, तब वे उस पर अपनी स्वीकृति देने से मना नहीं करेंगे।

इकत्तिसवां  संविधान संशोधन अधिनियम (1974) –

इसके द्वारा लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 547 निश्चित की गई।

42वां संविधान संशोधन –

सरदार स्वर्णसिंह की अध्यकता वाली समिति की सिफारिशों के आधार पर 42वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 को लोकसभा में प्रस्तावित किया गया।

18 दिसम्बर, 1976 ई. को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद इसने 42वें संवैधानिक संशोधन का रूप प्राप्त हुआ।

इस संशोधन द्वारा संविधान के विभिन्न प्रावधानों में निम्न प्रकार से संशोधन किया गया हैं –

प्रस्तावना –

संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द जोड़े गए तथा राज्य की एकता के साथ और अखंडता शब्द जोड़े गए।

मूल कर्तव्यों की व्यवस्था –

इसके द्वारा मौलिक अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों की व्यवस्था करते हुए नागरिकों के 10 मूल कर्तव्य निश्चित किए गए।

नीति निदेशक तत्वों में कुछ नवीन तत्व जोड़े गए।

आपातकालीन उपबंध –

अनुच्छेद 352 के अंतर्गत आपातकाल समस्त देश में लागू किया जा सकता है या देश के किसी एक या कुछ भागों के लिए।

केन्द्र-राज्य संबंध –

इसके द्वारा शिक्षा, नाप-तौल, वन और जंगली जानवर तथा पक्षियों की रक्षा आदि विषय राज्य सूची से निकालकर समवर्ती सूची में रख दिए गए।

इसके साथ ही जनसंख्या नियंत्रण तथा परिवार नियोजन को समवर्ती सूची में जोड़ा गया।

44वां संविधान संशोधन (1979) –

30 अप्रैल, 1979 ई. को राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर किए जाने के बाद इसने 44वें संविधान संशोधन का रूप ले लिया।

इसके मुख्या प्रावधान निम्नलिखित हैं –

मौलिक अधिकार –

संपत्ति के मौलिक अधिकार को रद्द कर दिया गया।

इसके साथ ही 19वें अनुच्छेद की छठी स्वतंत्रता (संपत्ति की स्वतंत्रता) को समाप्त कर दिया गया।

व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 21) को शासन के द्वारा आपातकाल में भी स्थगित या सीमित नहीं किया जा सकता।

आपातकालीन प्रावधान –
  1. राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 352 के अंतर्गत आपातकाल की घोषणा तब की जा सकेगी, जबकि मंत्रिमंडल लिखित रूप में राष्ट्रपति को ऐसा परामर्श दे।
  2. यह आपातकाल युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्र विद्रोह की स्थिति में ही घोषित किया जा सकेगा।
  3. घोषणा के एक माह के अन्दर संसद के विशेष बहुमत से इसकी स्वीकृति आवश्यक होगी।
  4. लोकसभा में उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत से आपातकाल की घोषणा समाप्त की जा सकती है।
  5. आपातकाल पर विचार हेतु लोकसभा की बैठक लोकसभा के 1/10 सदस्यों की माँग पर अनिवार्य रूप से बुलाई जाएगी।
  6. अनुच्छे 356 के आधार पर राज्य में संवैधानिक व्यवस्थान भंग होने की स्थिति में जो आपातकाल घोषित किया जाएगा, उसे एक बार प्रस्ताव पास कर संसद 6 माह के लिए लागू कर सकेगी।
  7. संसद के द्वारा एक से अधिक वर्ष की अवधि के लिए राज्य में राष्ट्रपति शासन जारी रखने का प्रस्ताव तभी पारित किया जा सकता, जबकि इस प्रकार का प्रस्ताव पारित किए जाने के समय अनुच्छेद 352 के अंतर्गत संकट काल लागू हो और चुनाव आयोग यह प्रमाणित कर दे कि वर्तमान समय में राज्य में चुनाव करवाना संभव नहीं है।
राष्ट्रपति –

इसमें व्यवस्था है कि मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रपति को जो भी परामर्श किया जाएगा राष्ट्रपति मंत्रिमंडल को उस पर दोबारा विचार करने के लिए कह सकेंगे।

लेकिन पुनर्विचार के बाद मंत्रिमंडल राष्ट्रपति को जो भी परामर्श देगा राष्ट्रपति उस परामर्श को अनिवार्यतः स्वीकार करेंगे।

लोकसभा और विधानसभा –

लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल पुनः 5 वर्ष कर दिया गयाहै।

52वां संविधान संशोधन (फरवरी, 1985) –

इस संशोधन अधिनियम द्वारा राजनीतिक दल-बदल पर कानूनी रोक लगाने के लिए निम्न प्रावधान किए गए हैं –

  1. संसद या विधानसभा के सदस्य की सदस्यता समाप्त हो जाएगी – (i) यदि वह स्वेच्छा से अपने दल से त्यागपत्र दे देगा। (ii) यदि वह अपने दल या उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति की अनुमति के बिना सदन में उसके किसी निर्देश के प्रतिकूल मतदान करे या मतदान में अनुपस्थित रहे। लेकिन यदि पन्द्रह दिन के अन्दर दल उसे इस उल्लंघन के लिए क्षमा कर दे तो उसकी सदस्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। (iii) यदि कोई निर्दलीय रूप से निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाए। (iv) यदि कोई मनोनीत सदस्य शपथ लेने के बाद 6 माह की अवधि में किसी राजनीतिक दल में संम्मिलित हो जाए।
  2. किसी राजनीतिक दल के विघटन पर सदस्यता समाप्त नहीं होगी यदि मूल दल के कम से कम एक तिहाई सांसद/विधायक दल छोड़ दें।
  3. इसी प्रकार विलय की स्थिति में भी दल-बदल नहीं माना जाएगा, यदि किसी दल के कम-से-कम दो-तिहाई सदस्य विलय की स्वीकृति दे दें।
  4. दल-बदल पर उठे किसी भी प्रश्न पर अंतिम निर्णय सदन के अध्यक्ष का होगा और किसी भी न्यायालय को उसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होगा।
  5. सदन के अध्यक्ष को इस कानून की क्रियान्वितति के लिए नियम बनाने का अधिकार होगा।

58वां संविधान संशोधन (1987) –

इस महत्वपूर्ण संशोधन द्वारा संविधान में एक नया अनुच्छेद 394-क जोड़कर संविधान के अधिकृत हिंदी पाठ को मान्यता प्रदान की गई।

इसके अंतर्गत यह भी व्यवस्था थी कि संविधान के हिंदी पाठ और प्रत्येक संशोधन का वही अर्थ लगाया जाएगा, जो उसके मूल अंग्रेजी पाठ का है।

61वां संविधान संशोधन (1989) –

इसके अनुसार मताधिकार के लिए न्यूनतम आवश्यक आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई है।

65वां संविधान संशोधन (1990) –

इसके अनुसार संविधान के अनुच्छेद 338 के अंतर्गत एक उच्च-स्तरीय 7-सदस्य अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग की स्थापना की गई।

जिसमें एक आध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होगा।

इस आयोग को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।

73वां संविधान संशोधन अधिनियम (1993) –

इस संशोधन द्वारा संविधान में एक नया भाग, भाग 9 तथा एक नई अनुसूची ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ी गई।

जिसमें पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।

74वां संविधान संशोधन अधिनियम (1993) –

इस महत्वपूर्ण संशोधन द्वारा संविधान में एक नया भाग, भाग 9-क तथा एक नई अनुसूची बारहवीं अनुसूची जोड़ी गई।

जिसमें नगरीय क्षेत्र की स्थानीय स्वशासन संस्थाओं (नगरपालिका आदि) जो संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।

84वां संविधान सशोधन (2002) –

लोकसभा व विधान सभाओं में स्थानों (सीटों) की संख्या 2026 तक यथावत् रखने का निर्णय लिया गया।

86वां संविधान संशोधन (दिसम्बर, 2002) –

इस महत्वपूर्ण संशोधन के आधार पर प्रारम्भिक शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में संविधान में शामिल कर लिया गया है।

अब अनुच्छेद 21 के बाद एक नया अनुच्छेद 21 ए के रूप में जोड़ दिया गया है।

जिसके अनुसार राज्य 6 लेकर 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को अनिवार्य एवं निःशुल्क प्रारम्भिक शिक्षा देने को बाध्य होगा।

103वां संविधान संशोधन –

इसके द्वारा जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया।

108वां संविधान संशोधन –

इसके अनुसार महिलाओं के लिए लोकसभा व विधानसभा में 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया।

114वां संविधान संशोधन –

इस संशोधन के द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की आयु 62 वर्ष से 65 वर्ष कर दी गई।

115वां संविधान संशोधन –

GST (वस्तु एवं सेवा कर)

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