भारत का राष्ट्रपति
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भारतीय संविधान में वर्णन किया गया है कि भारत का एक राष्ट्रपति होगा। भारत का राष्ट्रपति राज्य प्रमुख होता है। राष्ट्रपति भारत का प्रथम नागरिक होता है और वह राष्ट्र की एकता, अखंडता व सशक्तता का प्रतीक है। हमारे संविधान के अनुसार संघ सरकार की कार्यपालिका संबंधी सभी शक्तियाँ भारत का राष्ट्रपति में निहित हैं, जिनका प्रयोग वह संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारीयों की सहायता से करेगा। वह देश की तीनों सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति होता है।
राष्ट्रपति पद की योग्यता
संविधान के अनु. 58 के अनुसार भारत का राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित होने के निम्नलिखित योग्यताएं निर्धारित की गई हैं-
- वह भारत का नागरिक हो।
- 35 वर्ष की आयु पूरी कर चूका हो।
- वह लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो।
- वह भारत सरकार, राज्य सरकार या किसी स्थानीय स्वशासी संस्था के अंतर्गत लाभ के पद पर न हो।
एक वर्तमान राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, किसी राज्य का राज्यपाल अथवा संघ या किसी राज्य का मंत्री लाभ के पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा और वह भारत का राष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित होने के लिए योग्य उम्मीदवार माना जाएगा।
राष्ट्रपति पद के लिए शर्तें (अनु.59 के अनुसार)
- भारत का राष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि ऐसा कोई व्यक्ति राष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित हो जाता है तो उसके राष्ट्रपति के रूप में पद ग्रहण की तारीख से उस सदन से उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त समझी जाएगी।
- राष्ट्रपति अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा।
- भारत का राष्ट्रपति के वेतन, भत्ते आदि उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किए जाएंगे।
- राष्ट्रपति बिना किराया दिए अपने शासकीय निवासों के उपयोग कर सकेगा।
राष्ट्रपति का निर्वाचन
अनुच्छेद 54 के अनुसार भारत का राष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचन मंडल द्वारा होगा। जिसमें-
- संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य।
- राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य।
- 70वें संवैधानिक संशोधन(1992) के अनुसार संघीय (दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र व पुदुच्चेरी संघराज्य) क्षेत्रों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य सम्मिलित होंगे।
संसद के दोनों सदनों व राज्यों की विधानसभाओं तथा दिल्ली व पुदुच्चेरी की विधानसभाओं के मनोनीत सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग नहीं लेते है।
राष्ट्रपति निर्वाचन की रीति (अनु. 55)
- राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय मत पद्धति से गुप्त मतदान द्वारा किया जाता है। चुनाव में सफलता प्राप्त करने के लिए उम्मीदवार के लिए ‘न्यूनतम कोटा’ प्राप्त करना आवश्यक होता है। ‘न्यूनतम कोटा’ निर्धारित करने के लिए निम्न सूत्र अपनाया जाता है-
- मत के मूल्यों की गणना-
राष्ट्रपति का कार्यकाल (अनु.56 व 57)
- भारत का राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण कर सकेगा तथा पुनर्नियुक्ति का पात्र होगा। यदि मृत्यु, त्यागपत्र या महाभियोग द्वारा पदच्युति के कारण राष्ट्रपति का पद इस अवधि के अंतर्गत ही रिक्त हो जाए तो इस स्तिथि में नए राष्ट्रपति का चुनाव पुनः पांच वर्ष की सम्पूर्ण अवधि के लिए होता है न कि शेष अवधि के लिए।
- राष्ट्रपति अपनी पदावधि समाप्त हो जाने पर भी नए राष्ट्रपति के पद ग्रहण करने तक पद धारण करेगा।
- वह अपना त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को लिखित में दे सकेगा। त्यागपत्र की सूचना उप-राष्ट्रपति द्वारा तुरंत लोकसभा अध्यक्ष को दी जाएगी।
- संविधान का अतिक्रमण करने पर राष्ट्रपति को अनुच्छेद 61 में विहित प्रक्रिया से संसद में चलाए गए महाभियोग द्वारा हटाया जा सकेगा।
राष्ट्रपति द्वारा पद की शपथ (अनु. 60)
राष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करने से पूर्व भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा उसकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश के समक्ष पद की शपथ लेगा।
राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया (अनु. 61)
- महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है।
- जिस सदन में ऐसा प्रस्ताव लाया जा रहा है उसके कम से कम एक चौथाई सदस्यों द्वारा ऐसे प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करके प्रस्ताव लाने से 14 दिन पहले इसकी सूचना राष्ट्रपति को देनी आवश्यक है।
- उस सदन की कुल सदस्यों के कम से कम 2/3 सदस्यों द्वारा ऐसा प्रस्ताव पारित कर दुसरे सदन में प्रेषित किया जाएगा।
- दूसरा सदन आरोप की जाँच करेगा।
- यदि यह आरोप सिद्ध हो जाता है तथा वह सदन अपनी कुल सदस्य संख्या के 2/3 बहुमत से यह प्रस्ताव पारित कर दे तो ऐसा प्रस्ताव पारित होने की तारीख से राष्ट्रपति को उसके पद से हटाया जाएगा।
राष्ट्रपति का कार्यकाल पूर्ण होने पर नए राष्ट्रपति का निर्वाचन उसका कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही पूर्ण किया जाना आवश्यक है।(अनुच्छेद 62(1))
जब राष्ट्रपति अनुपस्थिति, बीमारी या अन्य किसी कारण से अपना कार्य करने में असमर्थ हो तो उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के पुनः पदभार संभालने तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा।
भारत के राष्ट्रपति की शक्तियाँ
राष्ट्रपति की शक्तियों का अध्ययन निम्नानुसार किया जा सकता है-
कार्यपालिका शक्ति-
अनुच्छेद 53 के अनुसार संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है। अनु. 77 के अनुसार भारत सरकार के समस्त कार्य राष्ट्रपति के नाम से होते है। राष्ट्रपति देश के सभी उच्चाधिकारियों की नियुक्ति करता है। प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री की सलाह के लिए अन्य मंत्री, उच्चतम व उच्च न्यायालयों के नयायाधीश, राज्यों के राज्यपाल, भारत के महान्यायवादी, नियंत्रण व महालेखा परीक्षक, मुख्य निर्वाचन आयुक्त व अन्य निर्वाचन आयुक्त, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य, वित्त आयोग के अध्यक्ष व सदस्य आदि की नियुक्ति व विमुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति को ही है। वह केंद्र के प्रशासनिक कार्यों व विधायिका के प्रस्तावों से संबंधित जानकारी की सूचना प्रधानमंत्री से ले सकता है।
सैनिक शक्तियाँ-
राष्ट्रपति देश के प्रतिरक्षा (सैन्य) बलों का सर्वोच्च सेनापति होता है। उसे मंत्रिमंडल की सलाह से युद्ध घोषित करने व शांति स्थापित करने की शक्ति प्राप्त है।
कूटनीतिक शक्तियां-
अन्तरराष्ट्रीय संधियाँ व समझौते राष्ट्रपति के नाम से किए जाते है। वह अंतरराष्ट्रीय मंचों व मामलों में भारत का प्रतिनिधित्व करता है।
विधायी शक्तियाँ-
राष्ट्रपति संसद के सत्र को आहूत करता है और सत्रावसान करता है। वह लोकसभा का विघटन कर सकता है। राष्ट्रपति लोकसभा के प्रत्येक साधारण निर्वाचन के बाद प्रथम सत्र के आरम्भ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरम्भ में दोनों सदनों के संयुक्त सत्र को संबोधित करता है। जिसमें वह सरकार की सामान्य नीतियों और भावी कार्यक्रमों का विवरण प्रस्तुत करता है। संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ही अधिनियम बनता है। धन विधेयक को छोड़कर अन्य विधेयकों को राष्ट्रपति स्वीकृत कर सकता है, अपनी स्वीकृति सुरक्षित रख सकता है या अपने सुझाव के साथ पुनर्विचारार्थ लौटा सकता है।
संसद द्वारा पुनः पारित विधेयक पर राष्ट्रपति अपनी अनुमति देने के लिए बाध्य है। यदि किसी विधेयक पर (धन विधेयक के आलावा) दोनों सदनों में कोई असहमति हो तो उसे सुलझाने के लिए राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है। नए राज्यों के निर्माण, वर्तमान राज्य के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों के बदलने के लिए कोई विधेयक राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना संसद में पेश नहीं किया जा सकता है। राष्ट्रपति राज्यसभा में साहित्य, कला, विज्ञान व सामाजिक सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या अनुभव रखने वाले 12 व्यक्तियों तथा लोकसभा में दो एंग्लो-इंडियन समुदाय के व्यक्तियों को मनोनीत करता है।
अध्यादेश जारी करने की शक्ति (अनु. 123)
संसद के एक या दोनों सदनों के सत्र में न होने पर आवश्यक होने पर राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर विधि निर्माण कर सकता है। प्रत्येक ऐसा अध्यादेश संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा और संसद के पुनः समवेत होने की तारीख से 6 सप्ताह की समाप्ति पर समाप्त समझा जाएगा। राष्ट्रपति अपने द्वारा जारी अध्यादेशों को किसी भी समय वापस ले सकता है। राष्ट्रपति उन्हीं विषयों पर अध्यादेश जारी कर सकता है जिन पर संसद को कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है।किसी अध्यादेश द्वारा मूल अधिकारों का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता। अध्यादेश कार्यपालिका को आकस्मिक परिस्थितियों से निपटने की शक्ति प्रदान करता है।
राज्य विधायिका द्वारा पारित किसी विधेयक को राज्यपाल जब राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखता है तब राष्ट्रपति- (1) विधेयक को अपनी स्वीकृति देता है या (2) विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रखता है या (3) राज्यपाल को इस विधेयक को राज्य विधायिका द्वारा पुनर्विचार हेतु लौटा सकता है। यदि राज्य विधायिका विधेयक को पुनः राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजती है तो राष्ट्रपति अपनी स्वीकृति देने के लिए बाध्य नहीं है।
राष्ट्रपति नियंत्रण व महालेखा परीक्षक, संघ लोक सेवा आयोग वित्त आयोग व अन्य आयोगों आदि की रिपोर्ट संसद के समक्ष रखता है।
वित्तीय शक्तियाँ-
धन विधेयक राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही संसद में प्रस्तुत किए जा सकते हैं। वह वार्षिक वित्तीय विवरण (केन्द्रीय बजट) को संसद के समक्ष रखवाता है। अनुदान की कोई भी माँग उसकी सिफारिश के बिना नहीं की जा सकती है। वह आकस्मिक निधि से, किसी अदृश्य व्यय हेतु अग्रिम भुगतान की व्यवस्था कर सकता है। वह राज्य व केंद्र के मध्य राजस्व के बँटवारे के लिए प्रत्येक पांच वर्ष में एक वित्त आयोग का गठन करता है।
न्यायिक शक्तियाँ-
वह उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। क्षमादान की शक्ति (अनुच्छेद 72) में राष्ट्रपति किसी दोषी व्यक्ति के दंड को क्षमा कर सकता है, निलम्बित कर सकता है तथा कम कर सकता है। राष्ट्रपति मृत्युदंड को भी क्षमा कर सकता है। भारत का राष्ट्रपति सैनिक न्यायालयों द्वारा दिए गए दंड के मामले में भी क्षमादान की शक्ति रखता है। जबकि राज्यपाल सेना न्यायालय द्वारा डाई गए दंड व मृत्युदंड को क्षमा या कम नहीं कर सकता है।
राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ-
भारतीय संविधान के भाग-18 में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकालीन प्रावधानों की व्यवस्था की गई है, किन्तु संविधान में कहीं भी ‘आपातकालीन स्थिति’ को परिभाषित नहीं किया गया है। भारतीय संविधान के आपातकालीन प्रावधान राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों के रूप में है, किन्तु भारत में संसदात्मक शासन व्यवस्था को अपनाने के कारण राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों के रूप में है, किन्तु भारत में संसदात्मक शासन व्यवस्था को अपनाने के कारण राष्ट्रपति नाममात्र का कार्यपालिका प्रधान है तथा प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिमंडल वास्तविक प्रधान है। अतः आपातकालीन शक्तियाँ कहने के लिए ही राष्ट्रपति की शक्तियाँ है, वस्तुतः ये शक्तियाँ तो प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिमंडल की शक्तियाँ है।
44वें संविधान संशोधन के बाद संकटकालीन प्रावधानों की स्थिति निम्नानुसार है-
(1) संविधान के अनुच्छेद 352 के अनुसार युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्र विद्रोह की स्तिथि में आपातकाल की घोषणा- भारत या उसके किसी भाग की शक्ति या व्यवस्था नष्ट होने का भय है तो यथार्थ रूप में ऐसी स्थिति उत्पन्न होने या होने की आशंका हो तो राष्ट्रपति सम्पूर्ण भारत या उसके किसी भाग में संकट काल की घोषणा कर सकता है, परन्तु राष्ट्रपति ऐसे संकट की घोषणा मंत्रिमंडल के लिखित में ऐसा परामर्श देने पर करेगा। संसद की स्वीकृति के बिना भी यह एक माह तक लागू रह सकती है अर्थात् संकट की घोषणा किये जाने के एक माह के अन्दर संसद के दोनों सदनों के पृथक-पृथक कल सदस्यों के बहुमत एवं उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से इसका अनुमोदन जरूरी है। अनुमोदन के बाद ऐसा आपातकाल 6 माह तक लागू रहेगा, इसे अधिक समय तक लागू रखने के लिए प्रति 6 माह बाद संसद की स्वीकृति जरूरी है।
(2) अनुच्छेद 356 के अनुसार राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल होने पर आपातकाल या राष्ट्रपति शासन की घोषणा- राज्यपाल के प्रतिवेदन या अन्य किसी प्रकार से समाधान हो जाए कि ऐसी परिस्तिथियाँ उत्पन्न हो गई हैं कि किसी राज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है, तो वह उस राज्य में संकटकाल (राष्ट्रपति शासन) की घोषणा कर सकता है। किसी भी परिस्थिति में राज्य में राष्ट्रपति शासन तीन वर्ष से अधिक अवधि के लिए लागू नहीं रखा जा सकेगा।
(3) वित्तीय संकट (अनुच्छेद 360) – यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिससे भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भी भाग का वित्तीय स्थायित्व एवं साख संकट में है तो वह संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत् वित्तीय संकट की घोषणा कर सकता है। वित्तीय संकट के दौरान राष्ट्रपति को अधिकार होगा कि वह वित्तीय दृष्टिकोण से किसी भी राज्य सरकार को आदेश दे सकता है। संघ और राज्य सरकारों के अधिकारीयों के वेतनों में, जिनमें सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों से न्यायाधीश भी सम्मिलित होगें, आवश्यक कमी की जा सकती है।
राष्ट्रपति के विशेषाधिकार (अनुच्छेद 361)
राष्ट्रपति अपने पद की शक्तियों के प्रयोग और कर्तव्य के पालन के लिए अपने द्वारा किए गए किसी कार्य के लिए किसी भी नयायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं होगा। राष्ट्रपति के विरुद्ध उसकी पदावधि में किसी प्रकार की दाण्डिक कार्यवाही किसी न्यायालय में न तो संस्थित की जाएगी और न ही चालू रखी जाएगी। भारत का राष्टपति की पदावधि में कोई न्यायालय उसे बंदी बनाने के आदेश जारी नहीं कर सकता।
भारत का राष्ट्रपति किसी विधेयक पर अनुमति देने या न देने के निर्णय लेने की समय सीमा का अभाव होने के कारण राष्ट्रपति जेबी वीटो का प्रयोग कर सकता है। राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने जेबी वीटो का प्रयोग 1988 में भारतीय डाकघर संशोधन विधेयक के संबंध में किया। उस पर उन्होंने कोई निर्णय नहीं लिया और अंततः लोकसभा के भंग होने पर वह समाप्त हो गया।