राजस्थान प्रजामंडल आंदोलन

राजस्थान प्रजामंडल आंदोलन

1938 ई. के बाद वर्तमान राजस्थान की तत्कालीन रियासतों सहित विभिन्न राज्यों में प्रजामंडल या प्रजा परिषदों की स्थापना हुई तथा राजनीतिक अधिकारों और उत्तरदायी प्रशासन के लिए आंदोलन शुरू किए गए।

मेवाड़ में प्रजामंडल आन्दोलन –

माणिक्यलाल वर्मा ने 24 अप्रैल, 1938 को मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना व अध्यक्षता बलवंत सिंह मेहता ने की।

प्रजामंडल की स्थापना के समाचारों से मेवाड़ की जनता में अभूतपूर्व उत्साह का संचार हुआ, परन्तु जैसे ही मेवाड़ सरकार को इसकी सूचना मिली, सरदार ने श्री माणिक्यलाल वर्मा को मेवाड़ से निष्कासित कर दिया तथा बिना सरकार से आज्ञा लिए सभा, समारोह करने, संस्थाएं बनाने एवं जुलूस निकालने पर प्रतिबन्ध लगा दिया।

उदयपुर सरकार ने मेवाड़ प्रजामंडल को 24 सितम्बर, 1938 को गैर-क़ानूनी घोषित कर दिया गया। श्री भूरेलाल बया को सराडा किले (मेवाड़ का काला पानी) में नजरबंद कर दिया गया।

विजयादशमी के दिन प्रजामंडल कार्यकर्ताओं ने सत्याग्रह प्रारम्भ किया। क्रान्तिकारी रमेशचन्द्र व्यास को पहला सत्याग्रही बनकर गिरफ्तार होने का श्रेय प्राप्त हुआ।

लोगों में जागृति लाने हेतु मेवाड़ प्रजामंडल : मेवाड़वासियों से एक अपील नामक पर्चे भी बाँटे गए।

24 जनवरी, 1939 को श्री माणिक्यलाल वर्मा की पत्नी नारायणी देवी वर्मा एवं उनकी ज्येष्ठ पुत्री स्नेहलता व प्यारेलाल बिश्नोई की पत्नी भगवती देवी को प्रजामंडल आन्दोलन में भाग लेने के कारण राज्य से निष्कासित कर दिया गया।

बेगार एवं बलेठ प्रथा का विरोध –

इसके बाद प्रजामंडल ने बेगार एवं बलेठ प्रथा के विरुद्ध अभियान चलाया फलस्वरूप मेवाड़ सरकार को इन दोनों प्रथाओं पर रो लगानी पड़ी। यह मेवाड़ प्रजामंडल की पहली नैतिक विजय थी।

22 फरवरी, 1941 को मेवाड़ प्रजामंडल पर से प्रतिबन्ध हटने के बाद प्रजामंडल ने सदस्यता अभियान प्रारम्भ किया एवं 25-26 नवम्बर, 1941 को श्री माणिक्यलाल वर्मा की अध्यक्षता में पहला अधिवेशन आयोजित किया, जिसका उद्घाटन आचार्य जे.बी. कृपलानी ने किया।

अधिवेशन में अपार भीड़ के समक्ष राज्य ने उत्तरदायी शासन की स्थापना, सरकार द्वारा प्रस्तावित धारा सभा में संशोधन एवं नागरिक अधिकारों की बहाली आदि प्रस्ताव पारित किए गए।

माणिक्यलाल वर्मा ने मेवाड़ प्रजामंडल के प्रतिनिधि के रूप में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के 8 अगस्त, 1942 के ऐतिहासिक सत्र में भाग लिया।

31 दिसम्बर, 1945 एवं 1 जनवरी, 1946 को उदयपुर के सलोटिया मैदान में अखिल भारतीय देशी लोक राज्य परिषद का छठा अधिवेशन (‘थ्रू द एजेज’ के अनुसार 7वाँ) पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुआ जिसमें प्रस्ताव पारित कर देशी रियासतों के शासकों से बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के अनुरूप अविलंब उत्तरदायी शासन की स्थापना की अपील की गई।

6 मई, 1948 को महाराणा ने अंतरिम सरकार बनाने एवं विधानसभा निर्वाचन के बाद उत्तरदायी सरकार का गठन करने की घोषणा की परन्तु इसी दौरान 18 अप्रैल, 1948 को उदयपुर राज्य का राजस्थान में विलय हो गया।

डूंगरपुर में प्रजामंडल आंदोलन –

26 जनवरी, 1944 को श्री भोगीलाल पांड्या की अध्यक्षता में डूंगरपुर प्रजामंडल की स्थापना की गई। श्री गौरीशंकर उपाध्याय, श्री हरिदेव जोशी, श्री शिवलाल कोटडिया, श्री माणिक्यलाल वर्मा आदि इसके संस्थापक सदस्य बने।

रियासती शासन ने सेवासंघ द्वारा संचालित पाठशालाओं को बंद करने की नीति के तहत मई, 1947 में ग्राम पूनावाडा में संचालित पाठशाला भवन को ध्वस्त कर अध्यापक श्री शिवराम भील को निर्ममता से पीटा तथा घायल शिवराम को पल्टन के सिपाही उठाकर कहीं ले गए।

डूंगरपुर रियासत में राष्ट्रीय चेतना के प्रवाह की स्रोत बनी रास्तापाल की सेवा संघ द्वारा संचालित पाठशाला को राज्य द्वारा बंद कराने का विरोध करने पर शिक्षा प्रेमी नानाभाई खांट 19 जून, 1947 को व 13 वर्षीय बालिका कालीबाई 21 जून, 1947 को अध्यापक श्री सेंगाभई को बचाने की खातिर शहीद हुए।

डूंगरपुर महारावल ने श्री वीरभद्रसिंह के मुख्यमंत्रित्व में 1 दिसम्बर, 1947 को एक अंतरिम सरकार का गठन किया।

जनवरी, 1948 में श्री गौरीशंकर उपाध्याय के मुख्यमंत्रित्व में एक लोकप्रिय मंत्रिमंडल का निर्माण किया गया।

बांसवाड़ा में जन आन्दोलन

दिसम्बर , 1945 को बांसवाड़ा प्रजामंडल की स्थापना हुई और श्री मणिशंकर नागर अध्यक्ष तथा धूलजी भाई भावसार मंत्री नियुक्त हुए।

बाँसवाड़ा निवासी श्री भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी ने बम्बई में एक प्रेस स्थापित किया था और

सन 1939 में संग्राम नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया था।

जनता की जागृति देखकर धारासभा के चुनाव हुए जिसमें कुल 45 सीटों में से 35 सीटों पर प्रजामंडल के उम्मीदवार निर्वाचित हुए।

श्री भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी के मुख्यमंत्रित्व में फरवरी, 1948 में बाँसवाड़ा का प्रथम लोकप्रिय मंत्रिमंडल व रियासत में उत्तरदायी शासन की स्थापना हुई।

मारवाड़ प्रजामंडल आंदोलन –

सन 1934 में भंवरलाल सर्राफ की अध्यक्षता में मारवाड़ प्रजामंडल (जोधपुर प्रजामंडल) का गठन किया गया।

अभयमल जैन को इसका मंत्री बनाया गया।

मारवाड़ प्रजामंडल की जन जागृति की कार्यवाहियों को देखते हुए 20 नवम्बर, 1937 को जोधपुर राज्य प्रजामंडल,

सिविल लिबर्टीज यूनियन व उनकी विभिन्न शाखाओं को अवैधानिक संगठन घोषित कर दिया गया।

कांग्रेस अध्यक्ष सुभाषचंद्र बोस 23 जनवरी, 1938 को जोधपुर पहुँचे और

उसी दिन शाम को गिरदीकोट, जोधपुर की वृहद् जनसभा में उनका ओजस्वी भाषाण हुआ,

जो जोधपुर के नागरिकों और राजनैतिक कार्यकर्ताओं के लिए बहुत ही प्रेरणादायक व उत्साहवर्धक रहा।

16मई, 1938 ई. को मारवाड़ लोक परिषद्  नामक संगठन की स्थापना की

जिसमें रणछोड़दास गट्टानी को अध्यक्ष व अभयमल जैन को सचिव चुना गया।

मारवाड़ लोक परिषद् के महासचिव अभयमल जैन ने मारवाड़ लोक परिषद् क्या है? नामक एक पुस्तिका प्रकाशित की। परिषद के तत्वावधान में गरीबों की बौखलाहट, अमानत का हिसाब ,

उत्तरदायी शासन की स्थापना, जोधपुर नौकरशाही का अत्याचार आदि पर्चे और पुस्तिकाएँ वितरित की गई।

28 मार्च, 1940 को मारवाड़ लोक परिषद व उसकी सब शाखाओं को गैर क़ानूनी घोषित कर दिया गया।

जयपुर प्रजामंडल आंदोलन

1931 ई. में श्री कपूरचंद पाटनी एवं श्री जमनालाल बजाज के प्रयासों से जयपुर प्रजामंडल की स्थापना की गई।

जयपुर राज्य प्रजामंडल का पुनर्गठन 1936 ई. में सेठ जमनालाल बजाज के प्रयासों से व

श्री हीरालाल शास्री के सहयोग से हुआ। जयपुर के श्री चिरंजीलाल मिश्रा को इसका अध्यक्ष तथा

श्री शास्रीजी को उसका मंत्री (महासचिव) बनाया गया।

5 फरवरी, 1939 से सरकार की दमनकारी नीति के विरोध में प्रजामंडल ने सत्याग्रह प्रारम्भ किया।

सत्याग्रहियों का प्रथम जत्था श्री चिरंजीलाल मिश्रा के नेतृत्व में निकाला।

जयपुर सत्याग्रह कौंसिल के संयोजक हीरालाल शास्री की घोषणा के अनुसार 12 मार्च, 1939 को जयपुर दिवस मनाया गया।

बीकानेर में प्रजामंडल आंदोलन

4 अक्टूबर, 1936 को पंडित मघाराम वैद्य की अध्यक्षता में बीकानेर राज्य प्रजामंडल का गठन किया गया। प्रजामंडल के प्रमुख कार्यकर्ता मघाराम वैद्य, लक्ष्मीदास स्वामी, सत्यनारायण सर्राफ व उनके चाचा खुबराम सर्राफ, बाबू मुक्ताप्रसाद वकील आदि थे।

बीकानेर राज्य में प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं के निर्वासन के कारण यहाँ बीकानेर प्रजामंडल अवैध संस्था हो गई थी।

1937 ई. में कलकत्ता में (वर्तमान राजस्थान से बाहर) निवास करने वाले बीकानेर राज्य के

निवासियों ने मघाराम वैद्य, लक्ष्मीदेवी आचार्य और श्रीराम आचार्य आदि कार्यकर्ताओं के सहयोग से

कलकता में बीकानेर राज्य प्रजामंडल की स्थापना कर प्रजामंडल आंदोलन को गति प्रदान की गई।

कलकत्ता में स्थापित बीकानेर प्रजामंडल ने सर्वप्रथम बीकानेर के संबंध में एक पुस्तिका बीकानेर की थोथी पोथी छपवाई।

भरतपुर प्रजामंडल आंदोलन

भरतपुर राज्य में लोकतांत्रिक प्रशासन की स्थापना के उद्देश्य से 4 मार्च, 1938 ई. को

श्री किशनलाल जोशी के प्रयासों से भरतपुर राज्य प्रजामंडल की स्थापना की गई।

इसके अध्यक्ष श्री गोपीलाल यादव को, किशनलाल जोशी को सचिव, ठाकुर देशराज को उपाध्यक्ष तथा

कोषाध्यक्ष मास्टर आदित्येन्द्र को बनाया गया।

प्रजामंडल द्वारा सत्याग्रह से संबंधित कई पुस्तकें जैसे – जनता की माँगे, प्रजामंडल क्या चाहता है? आदि वितरित की गई।

कोटा राज्य प्रजामंडल

प्रथमतः हाड़ौती प्रजामंडल के नाम से 1934 में पं. नयनूरम शर्मा एवं प्रभुलाल विजय द्वारा स्थापना की गई।

1938 ई. में पं. नयनूरम शर्मा, अभिन्न हरि एवं तनसुखलाल मित्तल के प्रयत्नों से पुनः स्थापित किया गया।

सिरोही प्रजामंडल

22 जनवरी, 1939 ई. को सिरोही में श्री गोकुलभाई भट्ट (अध्यक्ष), श्री धर्मचंद सुराणा,

घीसालाल चौधरी, रामेश्वरदयाल अग्रवाल, पूनमचंद आदि द्वारा स्थापित।

(वर्तमान राजस्थान से बाहर) पूर्व में मुंबई में 19 अप्रैल, 1935 को प्रवासी सिरोही प्रजामंडल की स्थापना की गई।

इस प्रजामंडल आंदोलन का नेतृत्व गोकुल भाई भट्ट को सौंपा गया था।

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