राज्य विधानसभा (State assembly)
प्रत्येक राज्य विधानमंडल में एक या दो सदन हो सकते हैं। एक सदन होने पर वह राज्य विधानसभा एवं दो सहन होने पर विधानसभा (निम्न सदन) और विधानपरिषद (उच्च सदन) कहलाते हैं।
अनुच्छेद 169 के अनुसार भारतीय संसद को शक्ति है कि वह किसी राज्य की विधानसभा द्वारा विशेष बहुमत से इस आशय का प्रस्ताव पारित करने पर उस राज्य में विधानपरिषद का गठन या विघटन कर सकती है।
विधानसभा सदस्यों की संख्या-
संविधान के अनुच्छेद 170 के तहत् प्रत्येक राज्य की विधानसभा (निम्न सदन) में न्यूनतम 60 सदस्य और अधिकतम 500 सदस्य हो सकते हैं। लेकिन अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम एवं गोवा के मामले में यह संख्या 30 तय की गई है और मिजोरम व नागालैंड के मामले में क्रमशः 40 एवं 46 ।
यह सदस्य राज्य के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों से पंजीकृत वयस्क मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से सार्वभौम वयस्क मताधिकार के गुप्त मतदान से बहुमत के आधार पर निर्वाचित होते हैं।विधानसभा के निर्वाचित सदस्य विधानसभा सदस्य (MLA) कहलाते हैं।
नामित सदस्य-
अगर विधानसभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रयाप्त प्रतिनिधि नहीं हो तो राज्यपाल एक आंग्ल-भारतीय सदस्य को नामित कर सकता है। मूलतः यह प्रावधान दस वर्षों (1960 तक) के लिए था, लेकिन इसे हर बार 10 वर्षों के लिए बढ़ा दिया जाता हैं।
विधानसभा सदस्यों की योग्यताएँ-
(1) वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
(2) उसकी आयु कम से कम 25 वर्ष होनी चाहिए।
(3) संसद विधि द्वारा निर्धारित सभी योग्यताएँ होनी चाहिए।
(4) विधानसभा सदस्य बनने वाला व्यक्ति संबंधित राज्य के निर्वाचित क्षेत्र का मतदाता भी होना चाहिए।
(5) वह केंद्र या राज्य सरकार के तहत किसी लाभ के पद पर नहीं हो।
विधानसभा का कार्यकाल-
आम चुनाव के बाद प्रथम अधिवेशन की तिथि से लेकर 5 वर्ष तक का कार्यकाल होता है। लेकिन राज्यपाल इसे पहले भी विघटित कर सकता है। राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान संसद द्वारा विधानसभा का कार्यकाल एक समय में एक वर्ष तक के लिए बढ़ाया जा सकता है, इसके साथ ही यह विस्तार आपातकाल ख़त्म होने के बाद छह महीने से अधिक का नहीं हो सकता है।
विधानसभा अध्यक्ष-
विधानसभा की कार्यवाही के संचालन के लिए एक विधानसभा अध्यक्ष होता है। जिसका निर्वाचन विधानसभा सदस्यों द्वारा अपने में से ही बहुमत द्वारा किया जाता है। आवश्यकता होने पर विधानसभा अध्यक्ष विधानसभा सत्र को स्थगित कर सकता है। विधानसभा अध्यक्ष विधानसभा भंग होने के साथ ही अपना पद रिक्त नहीं करता बल्कि नई विधानसभा द्वारा नया अध्यक्ष चुन लिए जाने तक अपने पद पर आसीन रहता है।
विधानसभा उपाध्यक्ष-
उपाध्यक्ष का निर्वाचन भी विधानसभा सदस्य अपने में से करते हैं, जो अध्यक्ष की अनुपस्थिति में सदन की अध्यक्षता व कार्यवाही का संचालन करता है।