औरंगजेब (Aurangajeb)

औरंगजेब (Aurangajeb)

औरंगजेब का जन्म 3 नवम्बर, 1618 ई. को उज्जैन के निकट दोहद नामक स्थान पर हुआ था। 18 मई, 1637 ई. को औरंगजेब (Aurangajeb) का विवाह राबिया बीबी से हुआ था।

उसका राज्याभिषेक दो बार हुआ – पहला राज्याभिषेक 31 जुलाई, 1658 ई. को आगरा में हुआ और दूसरा दिल्ली में 15 जून, 1659 ई. को हुआ। वह अब्दुल मुज्जफर मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब बहादुर आलमगीर पादशाह गाजी की उपाधि धारण कर मुगल सिंहासन पर बैठा।

जनता के आर्थिक कष्टों के निवारण के लिए शहदारी (आतंरिक पारगमन शुल्क) और पानदारी (व्यापारिक चुंगियों) आदि करों को समाप्त कर दिया।

औरंगजेब ने कुरान को अपने शासन का आधार बनाया और उसने देश को दार-उल-हर्ब के स्थान पर दार-उल-इस्लाम में परिवर्तित करना चाहा। उसने अपने सिक्कों पर कलमा खुदवाया, नौरोज का आयोजन किया।

सार्वजनिक संगीत समारोह, भांग उत्पादन, शराब पीने तथा जुआ खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया। औरंगजेब ने 1663 ई. में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया, हिन्दुओं पर तीर्थयात्रा कर लगाया और 1668 ई. में हिन्दू त्योहारों को मनाए जाने पर रोक लगा दी।

औरंगजेब ने अपने शासन के 11 वें वर्ष झरोखा दर्शन और 12वें वर्ष तुलादान प्रथा को भी समाप्त कर दिया। उसने 1679 ई. में जजिया कर पुनः लगा दिया, लेकिन 1704 ई. में दक्कन से यह कर हटा दिया गया।

उसके काल में सर्वाधिक रूपए की ढलाई हुई और उसने अंतिम काल में ढाले गए सिक्कों पर मीर अब्दुल बाकी शाहबाई द्वारा रचित एक पद्य अंकित करवाया। औरंगजेब को जिन्दा पीर व शाही दरवेश भी कहा जाता है।

औरंगजेब ने सर्वाधिक हिन्दू अधिकारियों की नियुक्ति की थी और उसी के समय मुगल प्रान्तों की संख्या सबसे अधिक 21 थी।

औरंगजेब के समय के प्रमुख विद्रोह –

अफगान विद्रोह, 1667 ई.

जाट विद्रोह, 1669 ई.

सतनामी विद्रोह, 1672 ई.

बुंदेला विद्रोह, 1661 ई.

शहजादा अकबर का विद्रोह, 1681 ई.

अंग्रेजों का विद्रोह, 1686 ई.

राजपूतों का विद्रोह, 1679-1709 ई.

औरंगजेब की दक्कन नीति –

औरंगजेब, शाहजहाँ के काल में दो बार दक्षिण का सूबेदार रह चूका था। 1682 ई. में अपने पुत्र शहजादा अकबर का पीछा करते हुए वह दक्षिण भारत पहुँचा और फिर कभी उत्तर भारत नहीं आ सका। यही दक्षिण भारत औरंगजेब का कब्रिस्तान सिद्ध हुआ।

इसने 1685 ई. में बीजापुर 1687 ई. में गोलकुंडा को मुगल साम्राज्य में मिलाया था।

अन्य तथ्य –

औरंगजेब के काल में मथुरा का केशव मंदिर, बनारस का विश्वनाथ मंदिर और पाटन का सोमनाथ मंदिर तोड़ा गया। उसने तिलपट के युद्ध में जाटों को परास्त किया और उनके नेतृत्वकर्ता गोकुल को पकड़कर मार डाला।

उसने दिल्ली के लाल किला में मोती मस्जिद का निर्माण कराया था। उसने अपनी पत्नी राबिया उद-दौरानी का मकबरा औरंगाबाद में बनवाया, जिसे बीबी का मकबरा भी कहा जाता है।

औरंगजेब (Aurangajeb) ने केवल एकमात्र ग्रन्थ को संरक्षण प्रदान किया, वह था – फतवा-ए-जहाँदारी। उसने न्याय और कानून पर एक पुस्तक फतवा-ए-आलमगीर की रचना कराई।

औरंगजेब ने मराठों पर अपने प्रभुत्व की स्थापना की। राजा जयसिंह और उसका पुत्र शंभाजी, औरंगजेब से मिलने आगरा गए, ओत औरंगजेब ने उन्हें बंदी बना लिया, किन्तु शिवाजी वहाँ से भागने में सफल रहे।

मारवाड़ के शासक जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद राठौरों ने वीर दुर्गादास राठौड़ के नेतृत्व में युद्ध जारी रखा। दुर्गादास राठौरों के युद्ध का जीवन और आत्मा सिद्ध हुआ। टॉड ने दुर्गादास को राठौरों का यूलिसेस कहा है।

औरंगजेब (Aurangajeb) ने सिखों के नौवें गुरु तेगबहादुर की 1675 ई. में हत्या कर दी। औरंगजेब ने मुहतसिन नामक अधिकारी नियुक्त किए, ताकि वह जान सके कि शरियत का पालन ठीक प्रकार से हो रहा है।

औरंगजेब की मृत्यु 4 मार्च, 1707 ई. में हो गई। उसे दौलताबाद के पास शेख-जैम-उल-हक की मजार के निकट दफनाया गया।

केंद्रीय शासन –

मुगल शासन व्यवस्था नियंत्रण व संतुलन पर आधारित थी। उसके बाद वकील-ए-मुतलक का पद था।

प्रमुख अधिकारी –

मीर बक्शी – यह सेवा विभाग का प्रधान था। उसके द्वारा सरखत नामक पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद ही सेना का मासिक वेतन निर्धारित होता था।

सद्र-उस-सद्र – वह धार्मिक मामलों में बादशाह का सलाहकार था। इसे शेख-उल-इस्लाम भी कहा जाता था। जब कभी इसे मुख्य काजी का पद प्राप्त हो जाता था, तो उसे काजी-उल-कुजात कहा जाता था। यह लगान मुक्त भूमि का भी निरीक्षण करता था। इस भूमि को सयुरगाल या मदद-ए-माश कहा जाता था।

मुहतसिब – लोक आचरण का निरीक्षणकर्ता।

मीर-ए-सामां – वह बादशाह के परिवार, उसके महल और उसकी व्यक्तिगत और दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति की देखभाल करता था।

मीर आतिश – वह शाही तोपखाने का प्रधान था।

दरोगा-ए-डाकचौकी – इसके अधीन राज्य के गुप्तचर और संवादवाहक थे।

मीर मुंशी – वह शाही पत्रों को लिखता था। मीर बहार –आतंरिक जलमार्गों एवं नौसेना का अधिकारी।

प्रांतीय प्रशासन –

सूबेदार – प्रांतीय शासन का सर्वोच्च अधिकारी।

दीवान – सूबे का वित्त अधिकारी।

बक्शी – सूबे की सेना की देखभाल करना।

वाकिया-ए-नवीस – सूबे के गुप्तचर विभाग का प्रधान।

कोतवाल – सूबे की घटनाओं को नियंत्रित करना।

सदर और काजी – सूबे का न्याय अधिकारी।

सरकार (जिले) का शासन –

फौजदार – कानून व्यवस्था की देखभाल।

अमलगुजार – लगान वसूल करना।

खजानदार – खजाँची

परगना का शासन –

शिकदार – सैनिक अधिकारी।

आमिल – वित्त अधिकारी।

फौतदार – खजाँची

कानूनगो – पटवारियों का प्रधान

नगर का प्रशासन –

कोतवाल नगर के शासन का प्रधान होता था।

गाँव का शासन –

गाँव का मुख्य अधिकारी ग्राम प्रधान होता था, जिसे खुत, मुक्कदम या चौधरी कहा जाता था।

भूमि के प्रकार –

पोजल – वह भूमि जिस पर हर साल खेती होती थी।

परती – उर्वरता प्राप्त करने के लिए एक दो साल बिना बोये छोड़ दिया जाता था।

चाचर – इसे तीन-चार साल तक बिना बोये छोड़ दिया जाता था।

बंजर – यह खेती योग्य भूमि नहीं थी।

कृषक वर्ग – कृषकों को तीन वर्ग में बाँटा गया था – (i) खुदकाश्त – खेतिहर किसान, (ii) पाहीकाश्त – बंटाईदार के रूप में काम करने वाले, (iii) मुजारियान – इनके पास बहुत ही कम भूमि होती थी।

भूमिकर के आधार पर भूमि का विभाजन –

इस प्रणाली का वास्तविक प्रणेता टोडरमल था। इसके अंतर्गत अलग-अलग-अलग फसलों के पिछले दस साल के उत्पादन और उसी समय के प्रचलित मूल्यों का औसत निकालकर, उस औसत का 1/3 हिस्सा राजस्व के रूप में वसूला जाता था, जो नकद रूप में होता था।

इस प्रणाली में 1/10 भाग हर वर्ष वसूला जाना था, जिसे माल-ए-हरसाला कहा जाता था।

सैन्य व्यवस्था –

मुगल सेना को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया –

  1. अधीनस्थ राजाओं की सेनाएँ।
  2. मनसबदारों की सैन्य टुकड़ियाँ।
  3. अहदी सैनिक (बादशाह के सैनिक) ।
  4. दाखिली सैनिक (पूरक सैनिक) ।

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