पिछड़े बालक Backward Child

पिछड़े बालक: पहचान, कारण, विशेषताएँ

पिछड़े बालक | Backward Child –जो बालक शिक्षा प्राप्त करने में सामान्य बालकों से पिछड़ जाते है। अतः जो बालक अपनी कक्षा में अन्य बालकों से अध्ययन की दृष्टि से पिछड़ जाते है, उन्हें पिछड़ा बालक ( Backward Child) कहते है।

पिछड़े बालक का मंद-बुद्धि होना आवश्यक नहीं है।

यदि प्रतिभाशाली बालक की शैक्षिक योग्यता अपनी आयु के छात्रों से कम है, तो इसे भी पिछड़ा बालक कहा जाएगा।

बर्ट के अनुसार – “पिछड़ा हुआ बालक वह है जो अपने विद्यालय जीवन के मध्य में असमर्थ होता है।”

शौलन के अनुसार – “पिछड़ा हुआ बालक वह है जो अपनी आयु के अन्य बालकों की तुलना में अत्यधिक शैक्षणिक दुर्बलता का परिचय देता है।”

ज्यादातर मनोवैज्ञानिक 85 से कम बुद्धि-लब्धि वाले बालक को पिछड़ा हुआ बालक मानते हैं।

यदि कक्षा 6 का बालक 12 वर्ष का है और कक्षा 5 की योग्यता नहीं रखता, तो वह पिछड़ा बालक है।

पिछड़ेपन की पहचान | Identification of backwardness –

पिछड़ेपन की पहचान दो प्रकार से हो सकती है – (1) परीक्षण द्वारा (Identification by Testing), (2) निरिक्षण द्वारा (By Observation)

(1) परीक्षण द्वारा (Identification by Testing) –

पिछड़ेपन की पहचान के लिए हमें छात्रों की शैक्षिक लब्धि को मापना पड़ेगा।

शैक्षिक लब्धि छात्र की आयु के अनुरूप सभी विषयों में उसकी उपलब्धि का औसत है।

शैक्षिक लब्धि ज्ञात करने का सूत्र = शैक्षिक आयु/वास्तविक आय×100

बालक की शैक्षिक आयु से तात्पर्य यह है कि परीक्षण में कोई बालक जितने अंक प्राप्त करता है उतने अंक जिस आयु के विद्यार्थी के आने चाहिए, वही उसकी शैक्षिक आयु कहलाएगी।

(2) निरिक्षण द्वारा (By Observation) –

निरिक्षण द्वारा निम्नलिखित बातों की तरफ ध्यान देना चाहिए, तभी पिछड़े बालकों की पहचान आसानी से हो सकती है।

  • बालक का ध्यान पाठ पर है या कहीं अन्य स्थान पर है?
  • शिक्षक द्वारा पूछे गए प्रश्न तथा उसके सामने रखी समस्याओं का समाधान कौन बालक किस सीमा तक करता है।
  • पढ़ाई में रूचि लेता है।
  • कक्षा कार्य करने में असमर्थ।
  • हीन भावना से दबा रहता है।
  • किसी भी परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त नहीं करता है।
  • शिक्षक की बात देर से समझ में आती है।
  • कक्षा में किसी बात का उत्तर देने में उत्साहित होता है या नहीं।
  • साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक एवं वार्षिक परीक्षाओं में उसे सामान्य से अधिक अंक मिले हैं या कम।
  • कक्षा में अनुशासनहीनता उत्पन्न करता है।
  • कक्षा में व्यर्थ का वाद-विवाद करता है।

शिक्षक को कक्षा निरिक्षण में यदि उपर्युक्त लक्षण मिलें तो समझ लेना चाहिए कि वह बालक पिछड़ा हुआ है।

पिछड़ेपन के कारण | Causes of backwardness –

शारीरिक कारण –

शारीरिक कारणों में नेत्र दोष, हकलाना, तुतलाना, कम सुनना, बीमारी आदि के कारण बालक सुचारू रूप से शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं।

वंशानुक्रम –

कुछ बालक वंशानुक्रम से ही मंदबुद्धि होने के कारण शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं।

मानसिक कारण –

इन बालकों की बुद्धि-लब्धि सामान्य से बहुत कम होती है। इसलिए वे सुचारू रूप से शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं।

संवेगात्मक कारण –

बालकों में क्रोध, चिन्ता, व्याकुलता, तनाव, उदासीनता, सुस्ती आदि के कारण पिछड़ापन आ जाता है।

रूचि का आभाव –

कई बार पाठ्यक्रम के विषयों में रुचि न होने के कारण भी बालक कक्षा में पिछड़ जाता है। वह बार-बार असफल होता रहता है। रुचि के आभाव में बालक किसी प्रकार की प्रगति नहीं कर सकता है।

माता-पिता की अशिक्षा –

अशिक्षित माता-पिता शिक्षा के महत्त्व को नहीं समझते हैं तथा शिक्षा को बालकों के लिए बेकार समझते हैं।

माता-पिता का दृष्टिकोण –

कुछ माता-पिता अपने बालकों के प्रति आवश्यकता से अधिक कठोर तथा कुछ बहुत लाड़-प्यार करने वाले होते हैं। इस कारण बालकों में स्वतंत्रता तथा आत्मविश्वास जैसे गुणों का विकास नहीं होता है। इन गुणों के अभाव में शिक्षा की किसी प्रकार की प्रगति करना मुश्किल होता हैं।

माता-पिता की बुरी आदतें –

कुछ माता-पिता में आलस्य, कामचोरी, लापरवाही जैसी बुरी आदतें होती हैं। बुरी आदतों का बालकों पर काफी प्रभाव पड़ता है। इस कारण वे विद्यालय कार्य में लापरवाही बरतते हैं तथा पढ़ने से जी चुराते हैं और कक्षा-कार्य नहीं करते हैं।

विद्यालय में अनुपस्थिति –

कई बालक विद्यालय में नियमित रूप से उपस्थित नहीं रहते हैं। इसके अनेक कारण हो सकते हैं, जैसे- बीमारी, पिता का तबादला, विद्यालय में देर से प्रवेश, अनुपस्थिति रहने के कारण विद्यालय में पढ़ाई जाने वाली बातों में वे पिछड़ जाते हैं।

परिवार का पर्यावरण –

यदि परिवार का पर्यावरण सही नहीं है, तो बालक पिछड़ जाते हैं। परिवार का बड़ा आकार, आर्थिक संकट, पढ़ने-लिखने की सुविधा का न होना, घर में माँ-बाप में लड़ाई-झगडा, कठोर अनुशासन, अधिक लाड़-प्यार, आपस में कलह, मारपीट, असंतुलित भोजन आदि बच्चे के पिछड़ेपन के कारण हैं।

विद्यालय का वातावरण –

विद्यालय की परिस्थितियां भी बालक के पिछड़ेपन को बढ़ा देती हैं। विद्यालय के दोषपूर्ण पर्यावरण में निम्नलिखित कारण आते हैं –

  • फर्नीचर, हवा, प्रकाश तथा शिक्षण सामग्री की कमी या न होना।
  • बड़ी कक्षाएँ।
  • विद्यालय में अनुशासनहीनता।
  • विद्यालय में अनुपस्थित रहना।
  • विद्यालय में दोषपूर्ण पाठ्यक्रम और शिक्षण-विधियों का प्रयोग।
  • विद्यालय में छात्रों के साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार।

सामाजिक कारण –

सामाजिक कारणों का बालक की पगति व अवनति पर काफी प्रभाव पड़ता है। अवांछनीय बालकों के साथ रहने-सहने से बालक की प्रगति पर बुरा प्रभाव पड़ता है। उसकी रुचि पढ़ने में समाप्त हो जाती है।

पिछड़े बालकों की विशेषताएँ | Characteristics of backward children –

  1. पिछड़े बालक (Backward Child) मंद गति से सीखते हैं।
  2. अपनी उम्र के बालकों की तुलना में ये शैक्षिक क्षेत्र में काफी पिछड़े हुए होते हैं तथा एक ही कक्षा में कई-कई वर्ष लगा देते हैं।
  3. पिछड़े हुए बालकों की शैक्षणिक उपलब्धि उसकी योग्यताओं को देखते हुए बहुत कम प्रतीत होती है।
  4. ऐसे बालक जीवन में निराशा का अनुभव करते हैं।
  5. पिछड़े बालकों की I.Q. 75-90 के मध्य होती है।
  6. इन बालकों की रूचि व ध्यान थोड़े समय तक ही रहता है। ज्यादा समय तक अपनी एकाग्रता नहीं रख पाते है।
  7. ऐसे बालक समस्या का सामना नहीं कर सकते हैं तथा उसमें फँस जाते है।
  8. ऐसे बालक अपनी आलोचना सहन नहीं कर पाते हैं।
  9. इन वालकों में तर्क व विवेक शक्ति निम्न स्तर की होती है।
  10. पिछड़े बालक (Backward Child) शीघ्र निर्णय नहीं ले पाते हैं।
  11. ऐसे बालकों में दूरदर्शिता की कमी होती है।
  12. ये बच्चे अन्तर्मुखी होते हैं तथा इनमें मित्रों की संख्या सीमित होती है।
  13. ऐसे बालक माता-पिता तथा शिक्षक की सहानुभूति तथा स्नेह चाहते हैं।

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