राजस्थान के प्रमुख त्योहार
Table of Contents
राजस्थान के प्रमुख त्योहार निम्नानुसार हैं-
हिन्दुओं के प्रमुख त्योहार
श्रावणी तीज या छोटी तीज (श्रावण शुक्ला 3) –
यह त्योहार मुख्यतः नव विवाहिताओं व स्रियों द्वारा मनाया जाता है। जिसमें स्रियाँ अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत करती हैं। इस दिन जयपुर में तीज माता की भव्य सवारी निकाली जाती है जो विश्व प्रसिद्ध है। छोटी तीज पार्वती का प्रतीक मानी जाती है। इस त्योहार पर नव विवाहिताएँ पेड़ के झुला-झिलती है और गीत गाती हैं।
रक्षा बंधन (श्रावण पूर्णिमा) –
इस त्योहार के दिन बहनें भाइयों की कलाइयों पर राखियाँ बाँध कर रक्षा का वचन लेती हैं व उसके जीवन की मंगलकामना करती हैं।
बड़ी तीज/सातुड़ी तीज/कजली तीज (भाद्रपद कृष्णा 3) –
यह त्योहार महिलाओं द्वारा अपने पति की लम्बी उम्र व मंगलकामना के लिए मनाया जाता है, जिसमें महिलाएँ पुरे दिन निराहार रहकर रात्रि में चंद्रमा के दर्शन कर अर्ध्य देकर भोजन ग्रहण करती हैं। बूंदी में कजली तीज की भव्य सवारी निकाली जाती है।
ऊब छठ (भाद्रपद कृष्णा 6) –
इस व्रत को चंदन षष्ठी व्रत भी कहा जाता है। इस दिन उपवास किया जाता है व सायंकाल में स्नान करके सूर्य भगवान की चन्दन व फुल से पूजा कर अर्ध्य दिया जाता है। उसके बाद चंद्रोदय तक खड़े ही रहते हैं। चंद्रोदय के बाद चन्द्रमा को अर्ध्य देकर पूजा कर व्रत खोलते हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी (भाद्रपद कृष्णा 8) –
इस दिन कोभगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। पुरे दिन उपवास कर रात के बारह बजे कृष्ण जन्म होने पर श्रीकृष्ण की आरती व विशेष पूजा-अर्चना करके भोजन ग्रहण किया जाता है।
गोगा नवमी (भाद्रपद कृष्णा 9) –
इस दिन लोकदेवता गोगाजी की पूजा की जाती है। गोगामेड़ी (हनुमानगढ़) में इस दिन मेला भरता है।
गणेश चतुर्थी (भाद्रपद शुक्ला 4) –
श्री गणेश जी को देवताओं में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। इनका वाहन चूहा है व मोदक इनका प्रिय प्रसाद है। महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी का त्योहार विशिष्ट रूप से मनाया जाता है व जुलूस निकालकर गणपति की प्रतिमा को जल में विसर्जित किया जाता है। इस त्योहार को गणेश जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं। इसे चतरा चौथ भी कहते हैं।
नवरात्रा –
नवरात्रा साल में दो बार मनाए जाते हैं। प्रथम नवरात्रा चैत्र शुक्ला एकम से नवमी तक व द्वितीय आश्विन शुक्ला एकम से नवमी तक होते हैं। नौ दिन तक दुर्गा की पूजा की जाती है व रामायण का पाठ किया जाता है। चैत्र मास की नवरात्रि को वासंतीय नवरात्रि भी कहते हैं।
दुर्गाष्मी (आश्विन शुक्ला 8) –
इस दिन देवी दुर्गा की पूजा की जाती है एवं कन्याओं को भोजन कराया जाता है। इसे माता अष्टमी एवं वीर अष्टमी भी कहते हैं। इस दिन शस्त्र पूजा भी की जाती है। दुर्गाष्मी को महा अष्टमी भी कहते हैं।
दशहरा (आश्विन शुक्ला 10) –
इस दिन भगवान राम ने रावण का वध कर बुराई पर विजय पाई थी। इसलिए इसे विजयादशमी भी कहते हैं। इस दिन सूर्यास्त होते ही रावण, कुम्भकरण व मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। राजस्थान में कोटा शहर में तथा भारत के मैसूर शहर में दशहरे का बहुत बड़ा मेला लगता है। दशहरे पर शमी वृक्ष (खेजड़ी) की पूजा की जाती है और लीलटास पक्षी का दर्शन शुभ माना जाता है।
शरद पूर्णिमा (आश्विन पूर्णिमा) –
इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। ज्योतिषियों के अनुसार पुरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा षोडश कलाओं से परिपूर्ण होता है।
करवा चौथ (कार्तिक कृष्णा 4) –
यह त्योहार महिलाओं का सर्वाधिक प्रिय त्योहार है। इस दिन सुहागिन स्त्रियाँ व्रत करती हैं व सांयकाल में चंद्रोदय के बाद चन्द्रमा को अर्ध्य देकर भोजन करती हैं व पति के स्वास्थ्य, दीर्घायु एवं मंगल की कामना करती हैं।
धनतेरस (कार्तिक कृष्णा 13) –
इस दिन धनवन्तरी वैद्य का पूजन किया जाता है। इस दिन नए बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है।
दीपावली (कार्तिक अमावस्या) –
यह हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है। इस दिन भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण करके सीता व लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे। यह पर्व लक्ष्मी का उत्सव है। इस दिन घर, दुकानों व शहर को खूब सजाया सँवारा जाता है। राजस्थान में लक्ष्मी पूजन किया जाता है व पटाखे छोड़े जाते हैं।
गोवर्धन पूजा व अन्नकूट (कार्तिक शुक्ला 2) –
इस दिन सुबह के समय गाय की गोबर से गोवर्धन की पूजा की जाती है व छप्पन प्रकार के पकवानों से बने अन्नकूट से मंदिर में भोग लगाया जाता है। नाथद्वारा, कांकरोली व कोटा के अन्नकूट महोत्सव प्रसिद्ध हैं।
देवउठनी ग्यारस (कार्तिक शुक्ला 11) –
इसे देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने तक निद्रावस्था में रहने के बाद जागते हैं। इस दिन से विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि समस्त मांगलिक कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं।
मकर संक्रांति –
यह त्योहार प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है। इस संक्रांति में मकर राशि पर सूर्य होने के कारण इसका विशेष महत्त्व है। इस दिन दान-पूण्य करने का विशेष महत्त्व होता है। राजस्थान में इस दिन पतंग उड़ाने का भी प्रचलन है।
बसंत पंचमी (माघ शुक्ला 5) –
यह दिन बसंत के आगमन का पहला दिन माना जाता है। बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन लोग पीले वस्र पहनते हैं व घरों में पीले मीठे चावल बनाकर खाते हैं।
माघ पूर्णिमा –
माघ महीने की पूर्णिमा का धार्मिक महत्त्व है। इस दिन गंगा स्नान/पुष्कर स्नान करने का भी विशेष महत्त्व है। बेणेश्वर धाम (बाँसवाड़ा) में इस दिन विशाल मेला भरता है।
शिवरात्रि (फाल्गुन कृष्णा 13) –
यह भगवान शिव का जन्मोत्सव है। इस दिन श्रद्धालुगण व्रत रखते हैं व शिव पुराण का पाठ करते हैं।
ढूँढ (फाल्गुन शुक्ला 11) –
लड़के के जन्म होने पर ढूँढ होली से पहले वाली ग्यारस को पूजते हैं। जब किसी के घर में लड़का जन्म लेता है तो उसी वर्ष ढूँढ पूजी जाती है।
होली (फाल्गुन पूर्णिमा) –
इस दिन हिरण्यकश्यप की आज्ञा से उसकी बहिन होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट होती है लेकिन प्रह्लाद बच जाते है व होलिका जल जाती है। अतः भक्त प्रह्लाद की स्मृति में इस त्योहार को मनाया जाता है।
धुलंडी (चैत्र कृष्णा 1) –
होली के दूसरे दिन धुलंडी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन होली की अवशिष्ट राख की वंदना की जाती है व रंग गुलाल आदि से सभी होली खेलते हैं। ब्यावर में इस दिन बादशाह का मेला व शाहपुरा (भीलवाड़ा) में फूलडोल महोत्सव बड़े हर्सोल्लास के साथ मनाए जाते हैं।
श्रीमहावीरजी की लट्ठमार होली, भिनाय की कौड़ामार होली, ब्यावर की देवर-भाभी होली, बाड़मेर की पत्थरमार होली व इलोजी की सवारी तथा मेवाड़ के आदिवासियों की भगोरिया होली आदि प्रसिद्ध हैं।
शीतला अष्टमी (चैत्र कृष्णा 8) –
इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है व ठंडा भोजन किया जाता है। भोजन सप्तमी की संध्या को ही बनाकर रखा जाता है।
गणगौर (चैत्र शुक्ला 3) –
यह त्योहार शिव व पार्वती के अखंड प्रेम का प्रतीक है। गणगौर में गण महादेव का व गौर पार्वती का प्रतीक है। इस दिन कुँवारी कन्याएँ मनपसंद वर प्राप्ति की तथा विवाहित स्रियाँ अपने अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। जयपुर व उदयपुर की गणगौर प्रसिद्ध है। यह राजस्थान में प्रमुख रूप मनाया जाने वाला त्योहार है।
रामनवमी (चैत्र शुक्ला 9) –
भगवान श्री राम के जन्म दिवस के रूप में यह त्योहार मनाया जाता है। इस दिन रामायण का पाठ किया जाता है।
आखा तीज या अक्षय तृतीय (वैशाख शुक्ला 3) –
राज्य में कृषक सात अन्न तथा हल का पूजन करके शीघ्र वर्षा की कामना के साथ यह पर्व मनाते हैं। साल भर में यह एकमात्र अबूझ सावा होता है। यह बीकानेर का स्थापना दिवस भी है।
गुरु पूर्णिमा (आषाढ़ पूर्णिमा) –
इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन गुरु-पूजन होता है व यथाशक्ति गुरुजी को भेंट दी जाती है।
जैन पर्व
पर्युषण पर्व –
जैन धर्म में पर्युषण पर महापर्व कहलाता है। इसका सात्विक अर्थ है- निकट बसना। पर्युषण पर्व पर जैन धर्मावलम्बी सभी लोगों से अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करते हैं।
महावीर जयन्ती –
24वें तीर्थंकर महावीर का जन्म दिन चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को महावीर जयन्ती के रूप में मनाते हैं। श्री महावीर जी (करौली) में इस दिन मेला भरता है।
सिक्ख समाज के पर्व
लोहड़ी –
मकर संक्रांति की पूर्व संध्या 13 जनवरी को लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है।
वैशाखी –
13 अप्रेल, 1699 ई. को 10वें गुरु गोविन्द सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। उसी दिन से 13 अप्रेल को यह त्योहार मनाया जाता है।
गुरुनानक जयन्ती –
सिक्ख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक थे। इनकी जयंती कार्तिक पूर्णिमा को मनाई जाती है।
मुस्लिम समाज के त्योहार
मोहर्रम –
यह मुसलमानों के हिजरी सन का पहला महीना है। इस दिन ताजिए निकले जाते हैं।
बारावफात –
यह त्योहार पैगंबर मुहम्मद के जन्म दिन की याद में मनाया जाता है।
इद-उल-फितर –
इसे सिवैयों की ईद भी कहा जाता है। मुस्लिम लोग रमजान के पवित्र माह में 30 रोज तक रोजे करने के बाद शुक्रिया के तौर पर इस त्योहार को मनाते हैं।