तुगलक वंश (सल्तनत काल)
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गयासुद्दीन तुगलक (1320-1325 ई.) –
दिल्ली सल्तनत काल में गयासुद्दीन तुगलक ने तुगलक वंश की स्थापना की थी। गयासुद्दीन का नाम गाजी तुगलक अथवा गाजीबेग तुगलक था। इस कारण उसके उत्तराधिकारियों को भी तुगलक पुकारा जाने लगा।
गयासुद्दीन ने उदारता की नीति अपनाई जिसे बरनी ने रस्मोनियम अथवा मध्यम पंथी नीति कहा है।
उसने सिंचाई व्यवस्था दुरुस्त करवाई और नहरों का निर्माण करवाया। इससे किसानों और राज्य की आर्थिक नीति में सुधार हुआ। उसकी डाक व्यवस्था श्रेष्ठ थी। उसने न्याय व्यवस्था में सुधार किए।
उसने तुगलकाबाद नामक शहर की स्थापना की थी। गयासुद्दीन ने सरकारी कर्मचारियों को राजस्व वसूली में हिस्सा न देकर उन्हें कर मुक्त जागीरें दी।
चिश्ती संत निजामुद्दीन औलिया के साथ उसके संबंध कटुतापूर्व थे। जब गयासुद्दीन बंगाल अभियान से लौट रहा था, तो उसने दिल्ली आने से पहले ही औलिया को दिल्ली छोड़कर चले जाने को कहा था- हनूस-ए-दिल्ली दूरस्थ (अर्थात् दिल्ली अभी दूर है) ।
गयासुद्दीन जब अफगानपुर नामक गाँव में विश्राम कर रहा था, तो लकड़ी के महल की छत गिर जाने से उसकी मृत्यु हो गई। इब्नबतूता के अनुसार गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु का कारण मुहम्मद बिन तुगलक का षडयंत्र था।
मृत्यु के बाद उसके द्वारा तुगलकाबाद में बनवाई कई कब्र में दफनाया गया।
मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351 ई.) –
इसका मूल नाम जूना खां था तथा उसने उलूग खां की उपाधि धारण की थी। वह गयासुद्दीन का पुत्र था। उसके शासनकाल में 1333 ई. में मोरक्को का यात्री इब्नबतूता भारत आया था, जिसे दिल्ली का काजी नियुक्त किया गया।
1342 ई. में इब्नबतूता को अपना दूत बनाकर चीन भेजा। उसने अपने सिक्कों प् अल सुलतान जिल्ली-इल्लाह (सुलतान ईश्वर की छाया है) अंकित करवाया।
उसके शासनकाल में साम्राज्य 23 प्रान्तों में विभाजित था। कश्मीर और आधुनिक बलूचिस्तान को छोड़कर सारा हिन्दुस्तान दिल्ली सल्तनत के नियंत्रण में था।
प्रशासनिक परिवर्तन –
वह दिल्ली का प्रथम सुलतान था, जिसने योग्यता के आधार पर पद देना प्रारंभ किया और भारतीय मुसलमानों एवं हिन्दुओं को भी सम्मानित पद प्रदान किए।
उसने दोआब में कर वृद्धि की और कृषि की उन्नति के लिए एक नया विभाग खोला। जिसके लिए एक नया मंत्री अमीर-ए-कोही नियुक्त किया।
मुहम्मद बिन तुगलक ने दिल्ली से 1500 किमी दूर अपनी राजधानी देवगिरि स्थानांतरित की तथा देवगिरि का नया नाम दौलताबाद रखा। उसकी यह योजना असफल हुई, जिससे प्रशासन तंत्र के साथ राजस्व का भारी नुकसान हुआ।
इसकी एक और असफल योजना थी सांकेतिक (प्रतिक) मुद्रा का चलन प्रारंभ करना। उस समय चाँदी के सिक्कों को टंका एवं ताम्बे के सिक्कों को जीतल कहा जाता था। इस मुद्रा का चलन अंतरराष्ट्रीय स्टार पर चाँदी की कमी का सामना करने के लिए किया गया था।
उसने ताम्बे व पीतल के सिक्के चलवाए। इससे पहले चीन में कुबलई खां के समय सांकेतिक मुद्रा का चलन सफलतापूर्वक किया गया था।
मुहम्मद बिन तुगलक के अभियान –
इसके काल में एकमात्र मंगोल आक्रमण (1328-29 ई.) में अलाउद्दीन तार्माशीरीन के नेतृत्व में हुआ था। मुहम्मद बिन तुगलक ने खुरासान (अफगानिस्तान) को जीतने की योजना बनाई, जो कार्य रूप में परिणित नहीं की जा सकी और सुलतान ने सेना को भंग कर दिया।
इसने 1333-34 ई. में कुराचिल अभियान शुरू किया, जिसका उद्देश्य उन पहाड़ी राज्यों को अपनी अधीनता में लाना था, जहाँ अधिकांश विद्रोहियों को शरण प्राप्त होती थी। यह स्थान आधुनिक हिमाचल प्रदेश के कुमायूँ जिले में स्थित था।
मुहम्मद तुगलक के काल में प्रमुख विद्रोह –
(1) गुलबर्गा के निकट सागर के जागीरदार वहाबुद्दीन गुर्सास्प का विद्रोह।
(2) मुलतान के सूबेदार बहरान उर्फ़ किश्लू खां का विद्रोह।
(3) 1327-28 में बंगाल का विद्रोह।
(4) सुनम और समाना, कड़ा, बीदर, अवध के विद्रोह।
(5) 1336 ई. में विजय नगर का विद्रोह।
मुहम्मद बिन तुगलक ने निजामुद्दीन औलिया की कब्र पर मकबरे का निर्माण कराया था। उसने तुगलकाबाद के पास आदिलशाह नामक दुर्ग बनवाया। इसके अलावा सतपलाह बाँध एवं बिजली महल भी निर्माण करवाया था।
एक विद्रोह के दमन के समय, थट्टा (सिंध) में मुहम्मद बिन तुगलक बीमार पड़ गया और 20 मार्च, 1351 ई. को उसकी मृत्यु हो गई। बदायूँनी के अनुसार सुलतान को उसकी प्रजा से और प्रजा को अपने सुलतान से मुक्ति मिल गई।
फिरोज शाह तुगलक (1351-1388 ई.) –
जिस समय मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु हुई तब फिरोज उसके साथ था। 20 मार्च, 1351 ई. को फिरोज सुलतान बना। फिरोज, मुहम्मद बिन तुगलक का चचेरा भाई था।
फिरोज का आतंरिक शासन –
फिरोज ने हर्ब-ए-शर्ब नामक सिंचाई कर लिया, जो उपज का 1/10 भाग होता था। उसने तकावी ऋण माफ़ कर दिया। उसके समय लगान पैदावार का 1/5 से 1/3 भाग था। उसने शशगनी नामक सिक्के चलवाए।
अफिक के अनुसार सुलतान ने अद्धा एवं बिख नामक ताँबा और चाँदी निर्मित सिक्के चलवाए।
सिंचाई व्यवस्था –
फिरोज ने पाँच बड़ी नहरों का निर्माण करवाया। इसमें यमुना नदी से हिसार तक 150 मिल लम्बी नहर है। उसने सिंचाई और यात्रियों की सुविधा के लिए 150 कुएं खुदवाए।
नगर और सार्वजनिक निर्माण कार्य –
फिरोज ने फतेहाबाद, हिसार, फिरोजपुर और फिरोजाबाद नगर बसायें।
उसे दिल्ली में फिरोजशाह कोटला कहलाने वाला नगर बहुत पसंद था।
इसने मुहम्मद बिन तुगलक (जूना खां) की याद में जौनपुर नगर की स्थापना की।
फिरोज ने ताश घड़ियाल एवं एक जलघड़ी का निर्माण कराया था।
उसने अशोक के दो स्तम्भों को दिल्ली में मँगाया। इनमें से एक मेरठ और दूसरा टोपरा (पंजाब) से लाया गया।
फिरोज ने कुतुबमीनार की चौथी मंजिल के स्थान पर दो और मंजिलों का निर्माण करवाया।
परोपकारी कार्य –
उसने दीवान-ए-खैरात विभाग स्थापित किया, जो मुसलमान अनाथ स्त्रियों एवं विधवाओं को आर्थिक सहायता देता था।
उसने दिल्ली के निकट एक खैराती अस्पताल दार-उल-शफा स्थापित किया।
फिरोज ने दीवान-ए-इश्तिहाक की स्थापना की जो मृत सैनिकों के आश्रितों को मदद देने से संबंधित था। उसने गुलामों के लिए पृथक विभाग दीवान-ए-बदगान बनाया।
शिक्षा –
फिरोज विद्वानों का सम्मान करता था।
उसके दरबार में बरनी एवं शम्स-ए-सिराज अफिक जैसे- विद्वान् निवास करते थे।
प्रमुख पुस्तकें व लेखक
क्र.सं. | पुस्तक | लेखक |
1. | फतवा-ए-जहाँदारी | बरनी |
2. | तारीख-ए-फिरोजशाही | बरनी |
3. | तारीख-ए-फिरोजशाही | शम्स-ए-सिराज अफिक |
4. | फतुहाल-ए-फिरोजशाही (आत्मकथा) | फिरोज शाह तुगलक |
उसने ज्वालामुखी मंदिर के पुस्तकालय से प्राप्त 138 ग्रंथों में से कुछ का फारसी में अनुवाद करवाया,
जिसमें से एक का नाम दलायले फिरोजशाही था,
जो नक्षत्र विज्ञान से संबंधित था।
धार्मिक नीति –
फिरोज ने राज्य के शासन व्यवस्था में इस्लाम के कानूनों और उलेमा वर्ग को प्रधानता दी।
वह सूफी संत बाबा फरीद का अनुयायी था।
उसका व्यवहार बहुसंख्यक हिन्दुओं के प्रति कठोर था।
इसने खलीफा से दो बार अपने सुलतान पद की स्वीकृति ली और अपने को खलीफा का नायब पुकारा।
अन्य तथ्य –
आधुनिक इतिहासकार एलफिन्सटन ने फिरोज को सल्तनत युग का अकबर कहा है। फिरोज की मृत्यु सितम्बर 1388 ई. में हुई।
नासिरुद्दीन महमूद (1394-1412 ई.) –
यह तुगलक वंश का अंतिम शासक था। उसका शासन दिल्ली तक ही सीमित था।
इसके शासनकाल में मंगोल तैमुर लंग ने 1398 ई. में भारत पर आक्रमण किया।
नासिरुद्दीन की मृत्यु 1412 ई. में हुई।
जिसके बाद सल्तनत काल तुगलक वंश का शासन समाप्त हो गया।
1412 ई. में दौलत खां लोदी सुलतान बना,
परन्तु खिज्र खां ने दिल्ली पर आक्रमण कर दिया और
उसे परास्त कर स्वयं 1414 ई. में दिल्ली सिंहासन पर बैठकर एक नवीन राजवंश सैयद वंश की स्थापना की