राजस्थान की जलवायु
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राजस्थान की जलवायु को इस प्रदेश की भौगोलिक स्थिति ने अधिक प्रभावित किया है, यहाँ अधिकांश भागों में मरुस्थलीय और शेष भागों में अर्ध्द नम जलवायु पाई जाती है। किसी स्थान विशेष की अल्पकालीन पर्यावरणीय दशाओं को मौसम कहा जाता है। किसी स्थान विशेष की मौसमी दशाओं के दीर्घकालीन औसत को उस स्थान की जलवायु कहा जाता है।
तापक्रम, वर्षा और आर्द्रता के आधार पर राजस्थान की जलवायु को पांच मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है :- 1. शुष्क प्रदेश 2. अर्ध्दशुष्क प्रदेश 3. उप आर्द्र प्रदेश 4. आर्द्र प्रदेश 5. अति आर्द्र प्रदेश
शुष्क प्रदेश–
इस प्रदेश में सम्पूर्ण जैसलमेर, उत्तरी बाड़मेर, जोधपुर का उत्तरी भाग, बीकानेर का पश्चिमी भाग और श्रीगंगानगर का दक्षिणी भाग सम्मिलित है। यह राज्य के लगभग एक चौथाई भाग में विस्तृत है। इस प्रदेश में गर्मियों में तेज गर्मी, लू, धूलभरी आंधियां और वर्षा की अनिश्चितता की दशाएँ पाई जाती है।
इस प्रदेश में गर्मियों में औसत तापमान 34˚ से 40˚ सेल्सियस और सर्दियों में 12˚ से 16˚ सेल्सियस रहता है।
वार्षिक वर्षा 0 – 20 से.मी. होती है।
इस क्षेत्र में मरुद्भिद वनस्पति पाई जाती है। यहाँ दैनिक व वार्षिक तापान्तर उच्च होता है।
अर्धशुष्क प्रदेश–
इस भाग में श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, जोधपुर, चूरु, झुंझुनूं, सीकर, नागौर, पाली व जालौर जिले सम्मिलित हैं। यहाँ वार्षिक वर्षा 20 – 40 से.मी. होती है। इस प्रदेश की जलवायु अत्यधिक ऊष्ण है, किन्तु वर्षा होने तथा भूमिगत जल मिलने से वायुमंडल में नमी रहती है।
इस प्रदेश में काँटेदार झाड़ियाँ, घास के मैदान और कुछ रेगिस्तानी पेड़-पौधे (स्टेपी तुल्य वनस्पति) पाए जाते है।
इस प्रदेश में गर्मियों में औसत तापमान 30˚ से 36˚ सेल्सियस और सर्दियों में 10˚ से 15˚ सेल्सियस रहता है।
उप आर्द्र प्रदेश-
इस प्रदेश में अलवर, भरतपुर, धौलपुर, जयपुर, अजमेर, भीलवाड़ा, टोंक, सवाईमाधोपुर, कोटा, बारां, बूंदी, प्रतापगढ़ व चित्तौड़गढ़ जिले शामिल हैं। यहाँ वार्षिक वर्षा का औसत 40 – 60 से.मी. होने के कारण वनस्पति भी सघन (मिश्रित पतझड़) पाई जाती है तथा नीम, पीपल, आंवला, खेजड़ी, बबूल आदि के वृक्ष मिलते हैं।
इस प्रदेश में गर्मियों में औसत तापमान 28˚ से 34˚ सेल्सियस और सर्दियों में 12˚ से 18˚ सेल्सियस रहता है।
आर्द्र प्रदेश-
इस प्रदेश में दक्षिणी राजस्थान के झालावाड, बांसवाडा, डूंगरपुर एवं दक्षिणी उदयपुर जिले शामिल हैं। इस भाग में मानसूनी सवाना प्रकार तथा देशी सागवान व चौड़ी पत्ती की वनस्पति मिलती हैं।
इस प्रदेश में गर्मियों में औसत तापमान 30˚ से 34˚ सेल्सियस और सर्दियों में 12˚ से 18˚ सेल्सियस रहता है।
यहाँ 60 से 80 सेमी. वर्षा होती है।
अति आर्द्र प्रदेश-
इस प्रदेश में बारां, झालावाड़, बांसवाडा व कुछ क्षेत्र सिरोही जिले का शामिल हैं।
इस प्रदेश में सवाना वनस्पति पाई जाती है।
यहाँ वार्षिक वर्षा 90 से.मी. से अधिक होती है।
राजस्थान की जलवायु को मरुस्थलीय जलवायु कहा जाता है। राज्य के पश्चिम में लगभग 61 प्रतिशत भाग में शुष्क और अर्ध्दशुष्क मरुस्थलीय जलवायु पायी जाती है। राजस्थान की अर्थव्यवस्था का स्थायी लक्षण अनवरत सूखा एवं असमान वर्षा है। राजस्थान की औसत वार्षिक वर्षा लगभग 57.51 सेमी. है, जबकि प्रदेश के मरुस्थलीय क्षेत्र में यह 50 सेमी. से कम है।
राजस्थान की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक-
- पश्चिम से आने वाली हवाएं शुष्क और गर्म होती है जो राजस्थान के वातावरण को अधिक गर्म कर देती है।
- शीत ऋतू में पश्चिमी हवाओं (शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात) से उत्तरी राजस्थान में अधिक एवं अन्य भागों में कम वर्षा होती है।
- राज्य का अधिकांश भाग कर्क रेखा के उत्तर में उपोष्ण कटिबंध में स्थित है। केवल डूंगरपुर एवं बाँसवाड़ा जिले का कुछ भाग ही उष्ण कटिबंध में स्थित है।
- राजस्थान की स्थिति समुद्र से दूर तथा उपमहाद्वीप के आंतरिक भाग में होने के कारण यहाँ की जलवायु में महाद्वीपीय जलवायु के लक्षण पाए जाते है।
- अरावली पर्वत शृंखलाओं की दिशा मानसूनी हवाओं के समानांतर होने के कारण राज्य में बहुत कम वर्षा होती है और पश्चिमी भाग में तो बहुत ही कम।
- राज्य में आर्द्रता सबसे कम अप्रेल माह में और सबसे अधिक अगस्त माह में होती है।
राजस्थान की जलवायु के आधार पर ऋतुएँ-
ग्रीष्म ऋतू-
यह ऋतू मार्च से जून तक रहती है। गर्मी के मौसम में राज्य के उत्तर-पश्चिम में तापमान 45˚ से 48˚ सेल्सियस तक पाया जाता है। थार का मरुस्थल भारत का अत्यधिक गर्म प्रदेश है, जिसका कारण है रेत (बलुई मिट्टी) । क्योंकि रेत जल्दी गर्म होती है और जल्दी ठंडी होती है। अतः मरुस्थल में इस ऋतू में दिन का तापमान बहुत बढ़ जाता है और रात में कम हो जाता है। जिससे दैनिक एवं वार्षिक तापान्तर भी अधिक रहता है। सबसे ज्यादा गर्मी मई-जून में पड़ती है। मई-जून महीनों में जब सूर्य की प्रखर किरणें राज्य के भू-भाग को अत्यधिक गर्म कर देती है तब वायुमंडल में संवाहनिक धाराओं की उत्त्पति हो जाती है। परिणामतः वायु भंवर (चक्रवात) उत्पन्न हो जाते हैं जिन्हें भभुल्या कहते है।
पश्चिमी राजस्थान में अप्रेल से जून माह तक तेज गर्म हवाएं व आंधियां चलती है इन्हें लू कहा जाता है। राज्य में सबसे गर्म स्थान फलोदी व सबसे गर्म जिला चुरू है। सिरोही जिले के पर्वतीय भागों में ऊँचाई अधिक होने के कारण औसत तापमान कम रहता है।
वर्षा ऋतू-
राजस्थान में 90 से 95 प्रतिशत तक वर्षा इस ऋतू में होती है, जो मानसूनी पवनों से जुलाई से सितम्बर के मध्य होती है। यहाँ अरब सागर और बंगाल की खाड़ी दोनों शाखाओं के मानसून से वर्षा होती है। लेकिन बंगाल की खाड़ी के मानसून से राजस्थान में अधिक वर्षा होती है, जो अधिकांशतः पूर्वी राजस्थान में होती है। अरब सागर के मानसून से अधिकांश वर्षा दक्षिणी राजस्थान में होती है। सर्वाधिक वर्षा झालावाड जिले में होती है। सबसे कम वर्षा जैसलमेर जिले में होती है। राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी भाग से उत्तरी-पश्चिमी भाग की ओर वर्षा लगातार कम होती जाती है। अरावली के सहारे 50 सेमी. समवर्षा रेखा राजस्थान को दो भागों में विभाजित करती है।
शीत ऋतू-
पश्चिमी राजस्थान में रेत के अत्यधिक ठंडी हो जाने से तापमान 0˚ सेंटीग्रेट तक चला जाता है। इस ऋतू में आकाश साफ रहता है और मंद-मंद गति से पवनें चलती हैं। हिमाचल कि ओर से आने वाली ठंडी पवनों को ‘शीत लहर’ कहा जाता है। शीत ऋतू में होने वाली वर्षा को ‘मावठ’ या ‘पश्चिमी विक्षोभ’ कहा जाता है। ये चक्रवात भूमध्य सागर से आकर राजस्थान सहित उत्तरी-पश्चिमी भारत में वर्षा करते हैं। इस वर्षा से गेंहूं की फसल को लाभ मिलता है।
कोपेनहेगन के अनुसार राजस्थान की जलवायु का वर्गीकरण-
- शुष्क उष्ण मरुस्थलीय जलवायु प्रदेश (BWhw)- जैसलमेर, उत्तरी-पश्चिमी जोधपुर, पश्चिमी बीकानेर तथा गंगानगर ।
- अर्ध्द शुष्क जलवायु प्रदेश (BShw)- बाड़मेर, नागौर, चूरू, जालौर, जोधपुर तथा दक्षिण-पूर्वी गंगानगर ।
- शुष्क शीत जलवायु प्रदेश (Cwg)- अरावली पर्वत के दक्षिणी-पूर्वी तथा पूर्वी भाग (हाड़ौती, मेवात एवं डांग क्षेत्र) ।
- उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु प्रदेश (Aw)- डूंगरपुर के दक्षिण में तथा बाँसवाड़ा जिला ।