अध्याय 4 कृषि (Agriculture)
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कृषि (Agriculture) – एग्रीकल्चर शब्द की उत्पत्ति, लैटिन शब्दों एगर या एग्री (अर्थ – मृदा) और कल्चर (अर्थ – कृषि) करने से हुई है।
पौधे से परिष्कृत उत्पाद तक के रुपान्तरण में तीन प्रकार की (प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक) आर्थिक क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं।
प्राथमिक क्रियाओं के अंतर्गत उन सभी क्रियाओं को शामिल किया जाता है जिनका संबंध प्राकृतिक संसाधनों के उत्पादन और निष्कर्षण से है। कृषि (Agriculture), मत्स्यन और संग्रहण इनके उदाहरण हैं।
द्वितीयक क्रियाएँ इन संसाधनों के प्रसंस्करण से संबंधित हैं। इस्पात विनिर्माण, डबलरोटी पकाना और कपड़ा बुनना इन क्रियाओं के उदाहरण हैं।
तृतीयक क्रियाएँ प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्र को सेवा कार्यों द्वारा सहयोग प्रदान करती हैं। यातायात, व्यापर, बैंकिग, बीमा और विज्ञापन तृतीयक क्रियाओं के उदाहरण हैं।
कृषि एक प्राथमिक क्रिया है। फसलों, फलों, सब्जियों, फूलों को उगाना और पशुधन पालन इसमें शामिल हैं।
विश्व में पचास प्रतिशत लोग कृषि (Agriculture) से संबंधित क्रियाओं में संलग्न हैं। भारत को दो- तिहाई जनसंख्या अब तक कृषि पर निर्भर है।
जिस भूमि पर फसलें उगाई जाती है, कृषिगत भूमि कहलाती है। अनुकूल स्थलाकृति, मृदा और जलवायु कृषि क्रियाकलाप के लिए अनिवार्य हैं।
क्या आप जानते हैं?
एग्रीकल्चर (कृषि) – मृदा की जुताई, फसलों को उगाना और पशुपालन का विज्ञान एवं कला है। इसे खेती भी कहते हैं।
सेरीकल्चर (रेशम उत्पादन) – रेशम के कीटों का वाणिज्यिक पालन। यह कृषक की आय में पूरक हो सकता है।
पिसीकल्चर (मत्स्य पालन) – विशेष रूप में निर्मित तालाबों और पोखरों में मत्स्य पालन।
विटिकल्चर (द्राक्षा कृषि) – अंगूरों की खेती।
हार्टिकल्चर (उद्यान कृषि) – वाणिज्यिक उपयोग के लिए सब्जियों, फूलों और फलों को उगाना।
कृषि तंत्र –
खेती को एक तंत्र के रूप में देखा जा सकता है। इसके महत्त्वपूर्ण मानवीय निवेश बीज, उर्वरक, मशीनरी, भण्डारण, रसायन और श्रमिक हैं। भौतिक निवेश सूर्य प्रकाश, वर्षा, तापमान, मृदा, ढाल आदि हैं। जुताई, बुआई, सिंचाई, निराई और कटाई इसकी कुछ संक्रियाएँ (प्रक्रम) हैं। इस तंत्र के निर्गतों के अंतर्गत फसल, ऊन, डेयरी और कुक्कुट उत्पाद आते हैं।
कृषि के प्रकार –
कृषि के मुख्य रूप से दो प्रकार हैं – (1) निर्वाह कृषि व (2) वाणिज्यिक कृषि।
(1) निर्वाह कृषि –
अपने परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किसान द्वारा की कृषि, निर्वाह कृषि कहलाती है। इसको भी दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(i) गहन निर्वाह कृषि – इसमें किसान एक छोटे भूखंड पर साधारण औजारों और अधिक श्रम से खेती करता है। उपयुक्त जलवायु और उर्वर मृदा वाले खेतों में एक साल में एक से अधिक फसलें उगाई जा सकती हैं। मुख्य फसल चावल व अन्य फसलों में गेहूँ, मक्का, दलहन और तिलहन शामिल हैं।
(ii) आदिम निर्वाह कृषि – इसमें स्थानांतरी कृषि और चलवासी पशुचारण शामिल हैं।
स्थानांतरी कृषि में वृक्षों को काटकर और जलाकर भूखंड को साफ किया जाता है। तब राख को मृदा में मिलाया जाता है तथा मक्का, रतालू, आलू और कसावा जैसी फसलों को उगाया जाता है। भूमि की उर्वरता की समाप्ति के बाद वह भूमि छोड़ कर किसान नए भूखंड पर चला जाता है।
स्थानांतरी कृषि को कर्तन एवं दहन कृषि के रूप में भी जाना जाता है। इसको विश्व के विभिन्न भागों में विभिन्न नामों से जानी जाती है। जैसे (1) झुमिंग – उत्तर-पूर्वी भारत, (2) मिल्पा – मैक्सिको, (3) रोका – ब्राजील, (4) लदांग – मलेशिया।
चलवासी पशुचारण में पशुपालक अपने पशुओं के साथ चारे और पानी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर निश्चित मार्गों से घूमते हैं। इस प्रकार की गतिविधि जलवायु संबंधी बाधाओं और भूभाग की प्रतिक्रिया के उत्पन्न होती है।
यह सहारा के अर्धशुष्क और शुष्क प्रदेशों में, मध्य एशिया और भारत के कुछ भागों जैसे राजस्थान तथा जम्मू और कश्मीर में प्रचलित है।
(2) वाणिज्यिक कृषि –
इस कृषि में फसल उत्पादन और पशुपालन बाजार में विक्रय हेतु किया जाता है। अधिकांश कार्य मशीनों से किया जाता है। वाणिज्यिक कृषि में वाणिज्यिक अनाज कृषि, मिश्रित कृषि और रोपण कृषि शामिल हैं।
वाणिज्यिक अनाज कृषि में गेहूं और मक्का सामान्य रूप से उगाई जाने वाली फसलें हैं। उत्तर अमेरिका, यूरोप और एशिया के शीतोष्ण घास के मैदानों यह कृषि की जाती है।
मिश्रित कृषि में भूमि का उपयोग भोजन व चारे की फसलें उगाने और पशुपालन के लिए किया जाता है।
रोपण कृषि वाणिज्यिक कृषि का एक प्रकार है जहाँ चाय, कहवा, काजू, रबड़, केला और कपास की एकल फसल उगाई जाती है। इसमें वृहद् पैमाने पर श्रम और पूँजी की आवश्यकता होती है। इस कृषि में परिवहन जाल के विकास की अनिवार्यता होती है।
रोपण कृषि के मुख्य क्षेत्र विश्व के उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में पाए जाते हैं। मलेशिया में रबड़, ब्राजील मर कहवा, भारत और श्रीलंका में चाय इसके कुछ उदाहरण है।
मुख्य फसलें –
बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विविध प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं।
चावल –
यह विश्व की मुख्य खाद्य फसल है। यह उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय प्रदेशों का मुख्य भोजन है। चावल के लिए उच्च तापमान, अधिक आर्द्रता एवं वर्षा की आवश्यकता होती है। इसके लिए चिकायुक्त जलोढ़ मृदा जो जल रोकने की क्षमता रखती हो उचित रहती है।
चीन चावल उत्पादन में अग्रणी है। इसके बाद क्रमशः भारत, जापान, श्रीलंका और मिस्र हैं।
गेहूँ –
इसके वर्धनकाल में मध्यम तापमान व वर्षा और कटाई के समय तेज धूप की आवश्यकता होती है। इसके लिए दुमट मृदा उत्तम रहती है। गेहूँ संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, अर्जेन्टीना, रूस, युक्रेन, आस्ट्रेलिया और भारत में विस्तृत रूप से उगाया जाता है। भारत में यह शीत ऋतू में उगाया जाता है।
मिलेट –
ये मोटे अनाज के रूप में भी जानी जाती हैं और कम उपजाऊ तथा बलुई मृदा में उगाई जा सकती हैं। कम वर्षा, उच्च से मध्यम तापमान तथा पर्याप्त सूर्य प्रकाश की आवश्यकता होती है।
ज्वार, बाजरा और रागी भारत में उगाए जाते हैं। नाइजीरिया, चीन और नाइजर इसके अन्य उत्पादक देश हैं।
मक्का –
इसके लिए मध्यम तापमान, वर्षा और अधिक धूप की आवश्यकता होती है।
मक्का उत्तर अमेरिका, ब्राजील, चीन, रूस, कनाडा, भारत और मैक्सिको में उगाई जाती है। विश्व में इसकी विभिन्न रंग की प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
कपास –
इसकी वृद्धि के लिए उच्च तापमान, हल्की वर्षा, दो सौ से दो सौ दस पाला रहित दिन और तेज चमकीली धूप की आवश्यकता होती है। यह काली और जलोढ़ मृदा में सर्वोच्च उगती हैं।
चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, पाकिस्तान, ब्राजील और मिस्र कपास के अग्रणी उत्पादक हैं।
पटसन –
इसको सुनहरा रेशा के रूप में भी जाना जाता है। यह जलोढ़ मृदा में अच्छे ढंग से विकसित होता है और इसे उच्च तापमान, भारी वर्षा और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है।
यह फसल उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाती है।
भारत और बांग्लादेश पटसन के अग्रणी उत्पादक हैं।
कॉफी –
इसके लिए गर्म एवं आर्द्र जलवायु और दोमट मृदा की आवश्यकता होती है।
इस फसल की वृद्धि के लिए पर्वतीय ढाल अधिक उपयुक्त होती है।
ब्राजील कॉफी का अग्रणी उत्पादक है। इसके पश्चात् कोलंबिया और भारत हैं।
चाय –
बागानों में उगाई जाने वाली एक पेय फसल है। इसकी कोमल पत्तियों की वृद्धि के लिए ठंडी जलवायु और वर्ष भर समवितरित उच्च वर्षा की आवश्यकता होती है।
इसके लिए दोमट मृदा और मंद ढाल की आवश्यकता होती है।
पत्तियों को चुनने के लिए अधिक संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता होती है।
कृषि का विकास –
इसका संबंध बढ़ती जनसंख्या की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए कृषि (Agriculture) के उत्पादन को बढ़ाने की दिशा में किए जाने वाले प्रयासों से है। जैसे – बोए गए क्षेत्र में विस्तार करके, बोई जाने वाली फसलों की संख्या बढ़ाकर, बोई जाने वाली फसलों की संख्या बढ़ाकर, सिंचाई सुविधाओं में सुधार करके, उर्वरकों और उच्च उपज देने वाले बीजों के प्रयोग द्वारा।
कृषि (Agriculture) का मशीनीकरण भी कृषि के विकास में सहायक हैं।
कृषि के विकास का चरम लक्ष्य खाद्य सुरक्षा को बढ़ाना हैं।
खाद्य सुरक्षा तभी बनी रहती है जब सभी व्यक्तियों को क्रियाशील और
स्वस्थ जीवन जीने के लिए आहार की आवश्यकता और
प्राथमिकता के आधार पर हर समय पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक खाद्य पदार्थ की सुविधा उपलब्ध हो।
ये व्याख्या मुझे बहुत पसंद आई। इसे पढ़ने से मुझे कृषी के बारे में बहुत जानकारी मिली ।
धन्यवाद🙏