विकास को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affecting Development
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बालक की वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Development) प्रमुख रूप से शारीरिक बनावट, वंशानुगत कारक, पोष्टिक आहार, वातावरण, जनसंचार आदि हैं। इनका विस्तृत विवरण निम्नानुसार हैं –
जैविक या वंशानुक्रम संबंधी कारक | Biological or Hereditory Determinants –
शारीरिक रबनावट | Bodily construction –
बालक के विकास में शारीरिक संरचना का विशेष महत्त्व रहता है।
व्यक्ति की शारीरिक सुंदरता, आकर्षण, स्वास्थ्य आदि तत्व उत्तम व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं तथा श्रेष्ठ भावों को जन्म देते हैं।
अन्तःस्रावी ग्रंथियाँ | Endocrine Glands –
प्रत्येक बालक के शरीर में कुछ अन्तःस्रावी ग्रंथियाँ होती हैं जिससे आतंरिक स्राव होता है, जिसे हार्मोन्स कहा जाता हैं।
यह आतंरिक स्राव रक्त में मिलकर शरीर के विभिन्न अंगों में पहुँचाता है और संबंधित अंगों की कार्य-प्रणाली को गतिशील रखता है।
यहाँ कुछ अन्तःस्रावी ग्रंथियों की चर्चा की जाएगी जिनसे बालक का विकास प्रभावित होता है –
गलग्रंथि | Thyroid Gland –
इस ग्रन्थि का बालक पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है।
यह ग्रन्थि जीभ के मूल में और श्वास नलिका के सामने होती है।
इस ग्रन्थि से यदि स्राव अधिक होता है तो बालक चिन्ता, बेचैनी, तनाव, उत्तेजना आदि का अनुभव करता है और यदि कम होता है तो बालक थकावट, खिन्नता, मानसिक दुर्बलता आदि का अनुभव करता है।
इसलिए बालक के व्यक्तित्व को समुचित विकास के लिए गल ग्रन्थि की उचित क्रियाशीलता आवश्यक है।
अधिवृक्क ग्रन्थि | Adrenal Gland –
इस ग्रन्थि से जो स्राव होता है उसे एड्रिनल कहते हैं।
इससे बालक का संवेगात्मक व्यवहार प्रभावित होता है।
एड्रिनल स्राव की कमी बालक को चिड़चिड़ा, उदास तथा निर्बल बनाती है और अधिकता क्रियाशील, उत्तेजित तथा सशक्त बनाती है।
पीयूष ग्रंथि | Pituitary Gland –
यह ग्रन्थि बालक के मस्तिष्क के नीचे स्थित होती है, सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है।
इस ग्रन्थि की क्रियाशीलता अन्य अन्तःस्रावी ग्रंथियों के कार्य-व्यापार पर नियंत्रण रखती है।
पीयूष ग्रंथि से अधिक स्राव होने पर व्यक्ति आवश्यकता से अधिक लम्बा, झगड़ालू और आक्रमणकारी स्वभाव वाला होता है।
इसके विपरीत आवश्यकता से कम स्राव होने पर बालक का शारीरिक एवं यौन अंगों का सम्यक विकास नहीं हो पाता है।
यौन ग्रन्थि | Sex Glands –
इस ग्रन्थि की क्रियाशीलता की सही व्यवस्था स्रियों में स्रियोचित गुणों एवं लक्षणों तथा पुरुषों में पुरुषोचित गुणों एवं लक्षणों का विकास करती है।
इस ग्रन्थि के उचित विकास एवं क्रियाशीलता के अभाव में बालक प्रमुख स्री-पुरुष लक्षणों से रहित तटस्थ नैसर्गिक नमूने के रूप में विकसित होता है।
तंत्रिका तंत्र | Nervous System –
जिस बालक का तंत्रिका तंत्र जितना अधिक सुव्यवस्थित होगा उसका व्यक्तित्व उतना ही अधिक विकसित होगा।
तंत्रिका तंत्र के व्यवस्थित होने से मानसिक क्रियाएँ सुचारू रूप से चलती रहती हैं।
मानसिक क्रियाओं द्वारा बालक का व्यवहार नियंत्रित होता है, और व्यवहार से व्यक्तित्व का परिचय मिलता है।
इस प्रकार बालक के व्यक्तित्व के विकास में तंत्रिका तंत्र की सुव्यवस्था आवश्यक है।
बुद्धि | Intelligence –
बुद्धि का बालक के विकास पर अत्यधिक महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
तीव्र बुद्धि वाले बालक तत्परता से सीखते हैं एवं उनमें परिपक्वता शीघ्र आती है।
इसके विपरीत मंदबुद्धि बालकों का शारीरिक विकास भले ही हो जाए किन्तु उनमें सामाजिक, नैतिक, सांवेगिक तथा मानसिक विकास की गति काफी धीमी होती है।
वातावरणीय कारक | Environmental Factors –
भौगोलिक वातावरण –
उचित विकास के लिए शुद्ध हवा, जल तथा पर्याप्त प्रकाश की आवश्यकता होती है।
किसी भी स्थान की प्रकृति एवं जलवायु का प्रभाव वहाँ रहने वाले बालकों के व्यक्तित्व पर एक बहुत बड़ा प्रभाव डालता है।
गर्म जलवायु में रहने वाले बालकों का शारीरिक विकास ठण्डे जलवायु में रहने वाले बालकों की अपेक्षा शीघ्र होता है।।
पारिवारिक वातावरण | Family Environment –
- माता-पिता का कठोर अनुशासन
- माता-पिता का पक्षपातपूर्ण व्यवहार
- माता-पिता की अत्यधिक ममता
- माता-पिता द्वारा ऊँचे आदर्शों को थोपना
- माता-पिता का असंतोषजनक वैवाहिक जीवन
- परिवार में बच्चे का स्थान/जन्म-क्रम
विद्यालयी वातावरण | School Environment –
- अनुचित पाठ्यक्रम
- दोषपूर्ण शिक्षण विधियाँ
- दोषपूर्ण परीक्षा प्रणाली
- शिक्षक के व्यक्तित्व का प्रभाव
- पर्याप्त सुविधाओं का अभाव
- अध्यापकों द्वारा छात्रों की खुली निन्दा
- भीड़ भरी कक्षाएँ
मनोवैज्ञानिक वातावरण | Psychological Environment –
- प्रारम्भिक आवश्यकताएं, प्रेम-स्नेह-सहानुभूति का न मिल पाना
- मानसिक आद्यात
- निर्देशन व परामर्श का अभाव
सामाजिक वातावरण | Social Environment –
बालक से भावी समाज का निर्माण होता है। जन्म से मृत्यु तक बालक किसी समाज में रहता है।
उस समाज के व्यक्तियों और परिस्थितियों का प्रभाव उस बालक पर पड़ता रहता है।
बालक के माता-पिता, परिवार, पास-पड़ोस, इष्टमित्र, समूह, विद्यालय आदि का प्रभाव उसके व्यक्तित्व पर पड़ता रहता है।
अच्छे सामाजिक वातावरण में व्यवस्थित व्यक्तित्व एवं बुरे सामाजिक वातावरण में विकृत व्यक्तित्व का निर्माण होता है।
ऐसे वातावरण में बालक जो कुछ सीखता है उसका प्रभाव उसके व्यक्तित्व पर पड़ता है।
सांस्कृतिक पर्यावरण | Cultural Environment –
सामान्यतया बालक के खान-पान, रहन-पहन, आचार-विचार, चिन्तन, रीति-रिवाज, कार्य शैली आदि के समुच्चय को संस्कृति की संज्ञा दी जाती है।
बालक का जैसा सांस्कृतिक वातावरण होगा उसका व्यक्तित्व बहुत कुछ उसी के अनुकूल होगा।
जहाँ की संस्कृति तर्क प्रधान है वहाँ के बालक अधिक तार्किक होंगे किन्तु जहाँ आस्था, विश्वास, प्रथाओं, रूडियों, लोक रीतियों आदि का बोलबाला है वहाँ के बालकों में तर्क की अपेक्षा आस्था के दर्शन होंगे।
पौष्टिक आहार | Nutritious Food –
बालक के सामान्य विकास के लिए उपयुक्त पालन-पोषण तथा पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है।
प्रायः सभी परिवारों में समान रूप से बालकों के भोजन पर ध्यान नहीं जाता है, की उसमें स्वास्थ्य के लिए आवश्यक चीजें है या नहीं।
शारीरिक विकास के लिए प्रोटीन, कैल्सियम तथा विटामिन आदि बहुत आवश्यक हैं।
जिनके अभाव में बच्चे अस्वस्थ हो जाते हैं।
जनसंचार माध्यम का प्रभाव | Effect of Media
जनसंचार के साधनों जैसे- समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं, पुस्तकों, रेडियो, सिनेमा, टेलीवीजन, वी.सी.दी. एवं इंटरनेट सुविधा आदि सूचना तथा मनोरंजन के साधनों का बालक के विकास की दृष्टि से काफी महत्त्व है।
जनसंचार के ये साधन जीवन मूल्यों, मान्यताओं, आदर्शों, रहन-सहन, खान-पान, बोल-चाल के तरीकों से बालकों को परिचित कराते हैं।
इसका उनके लिए अनुकरण करना आसान हो जाता है। उनमें परिवर्तन आने का कार्य लगातार चलता रहता है।
ये संचार माध्यम ही सामाजिक कुरीतियों, बुराइयों तथा कुसंस्कार के प्रति घृणा पैदा करने में सहायक हैं जिससे इनके उन्मूलन के प्रयासों में सहायता मिलती है।
छोटे पर्दे तथा सिनेमा के नायक और नायिकाओं का नई पीढ़ी के बालक बहुत शीघ्रता से अनुकरण करते हैं।
आधुनिक शिक्षा का अटूट संबंध बनता जा रहा है।
कम्प्यूटर शिक्षा के साथ-साथ वीडियो कान्फ्रेंस के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में तो एक नई क्रांति का आगमन हो गया है।
इंटरनेट की सुविधा ने तो बालक को विश्व के साथ प्रत्यक्ष रूप से जोड़ दिया है।
जनसंचार के साधनों का उचित तरीके से उपयोग होना चाहिए।
इसके द्वारा किसी प्रकार का अवांछनीय प्रभाव बालकों पर नहीं पड़े इसका पूरा-पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए।
संक्षेप में सूचना क्रांति के इस युग में जनसंचार माध्यम बालकों के विकास में विशेष योगदान अदा करते हैं।
निष्कर्ष –
इस प्रकार कहा जा सकता है कि बालक के विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Development) अनेक प्रकार से बच्चे को प्रभावित करते हैं।
कुछ कारक बालक के विकास को बढ़ावा देते है या कह सकते है कि सहयोग प्रदान करते है जबकि कुछ कारक उसके विकास को कम कर देते है।
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