कक्षा 8 अध्याय 1 भारतीय संविधान
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किसी देश के लोगों द्वारा आम सहमति से निर्धारित किए गए वह नियम जिसके माध्यम से उस देश का शासन सुचारू रूप से संचालित किया जा सके, उसे उस देश का संविधान कहा जाता है। भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान हैं।
संविधान लिखित या अलिखित हो सकता है।
किसी देश को संविधान की जरुरत क्यों पड़ती हैं?
आमतौर पर सभी लोकतांत्रिक देशों के पास संविधान होता है।
लेकिन इसका यह मतलब यह नहीं है की जिन देशों के पास अपने संविधान होते हैं वे सभी लोकतांत्रिक देश ही होंगे।
संविधान के प्रमुख उद्देश्य –
पहला,
यह दस्तावेज़ उन आदर्शों को सूत्रबद्ध करता है जिनके आधार पर नागरिक अपने देश को अपनी इच्छा और सपनों के अनुसार रच सकते हैं।
अर्थात् संविधान ही बताता है कि हमारे समाज का मूलभूत स्वरूप क्या हो?
संविधान नियमों का एक ऐसा समूह होता है जिसको एक देश के सभी लोग अपने देश को चलाने की पद्धति के रूप में अपना सकते हैं।
इसके द्वारा वे सरकार चलाने के तरीके व उन आदर्शों पर भी एक साझी समझ विकसित करते हैं जिनकी हमेशा पुरे देश में रक्षा की जानी चाहिए।
इन बातों समझने के लिए नेपाल के राजनीतिक घटनाक्रम का देखते हैं। कुछ समय पहले तक नेपाल में राजतंत्र (राजा का शासन) था।
1990 में बना नेपाल का पिछला संविधान इस सिद्धांत पर आधारित था कि शासन की सर्वोच्च सत्ता राजा के पास रहेगी।
नेपाल के लोग कई दशक से लोकतंत्र की स्थापना के लिए जनांदोलन कर रहे थे।
इसी संघर्ष के परिणामस्वरूप 2006 में आखिरकार उन्हें राजा की सत्ता को ख़त्म करने में कामयाबी मिली।
नेपाल के लोग लोकतंत्र के रास्ते पर चलना चाहते थे।
इसके लिए उन्हें एक नया संविधान चाहिए था।
क्योंकि वे पिछले संविधान को नहीं अपनाना चाहते थे और जिसका कारण उसमें वे आदर्श नहीं थे जो नेपाल के लोग चाहते थे।
यहाँ के लोगों ने 2015 में अपने देश के लिए एक नया संविधान अपनाया।
दूसरा,
उद्देश्य देश की राजनीतिक व्यवस्था को तय करना।
नेपाल के पुराने संविधान में कहा गया था कि देश के शासन की बागडोर राजा और मंत्रिपरिषद के हाथ में रहेगी।
जिन देशों में लोकतांत्रिक शासन पद्धति या राज्य व्यवस्था अपनाई है वहाँ निर्णय प्रक्रिया के नियम तय करने में संविधान बहुत अहम् भूमिका अदा करता है।
लोकतंत्र में हम नेता खुद चुनते हैं ताकि हमारी ओर से वे सत्ता का जिम्मेदारी के साथ इस्तेमाल कर सकें।
फिर भी एस बात की संभावना हमेशा रहती है कि ये नेता सत्ता का दुरुपयोग कर सकते हैं।
लोकतांत्रिक समाजों में प्रायः संविधान ही ऐसे नियम तय करता है जिनके द्वारा राजनेताओं के हाथों सत्ता के इस दुरुपयोग को रोका जा सकता है।
भारतीय संविधान में बहुत सारे कानून मौलिक अधिकारों वाले खंड में दिए गए हैं।
संविधान में दिए गए नियमों से इस बात का ख्याल रखा जाता है कि अल्पसंख्यकों के लिए सामान्य रूप से उपलब्ध है।
अल्पसंख्यकों पर बहुसंख्यकों की इस निरंकुशता या दबदबे पर प्रतिबंध लगाना भी संविधान का महत्त्वपूर्ण कार्य है।
तीसरा,
संविधान हमें ऐसे फैसले लेने से भी रोकता है जिनसे उन बड़े सिद्धांतों को ठेस पहुँच सकती है जिनमें देश आस्था रखता है।
भारतीय संविधान – मुख्य लक्षण
(1) संघवाद (Federalism) –
इसका मतलब है देश में एक से ज्यादा स्तर की सरकारों का होना।
हमारे देश में राज्य स्तर पर भी सरकारें हैं और केंद्र स्तर पर भी।
भारत के सभी राज्यों को कुछ मुद्दों पर फैसले लेने का स्वायत्त अधिकार है।
राष्ट्रीय महत्त्व के सवालों पर सभी राज्यों को केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों को मानना पड़ता है।
(2) संसदीय शासन पद्धति –
सरकार के सभी स्तरों पर प्रतिनिधियों का चुनाव लोग खुद करते हैं।
भारत का संविधान अपने सभी वयस्क नागरिकों को वोट डालने का अधिकार देता हैं।
सार्वभौमिक मताधिकार का मतलब है कि अपने प्रतिनिधियों के चुनाव में देश के सभी लोगों की सीधी भूमिका होती है।
(3) शक्तियों का बँटवारा –
संविधान के अनुसार सरकार के तीन अंग है – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका।
विधायिका में हमारे निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं।
कार्यपालिका ऐसे लोगों का समूह है जो कानूनों को लागू करने और शासन चलाने का काम देखते हैं।
न्यायालयों की व्यवस्था को न्यायपालिका कहा जाता है।
(4) मौलिक अधिकार –
मौलिक अधिकारों वाला खंड भारतीय संविधान की अंतरात्मा भी कहलाता है।
यह अधिकार देश के सभी नागरिकों को राज्य की सत्ता के मनमाने और निरंकुश इस्तेमाल से बचाते हैं।
इस तरह संविधान राज्य और अन्य व्यक्तियों के समक्ष व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है।
भारतीय संविधान में उल्लिखित मौलिक अधिकार –
(1) समानता का अधिकार –
कानून की नजर में सभी लोग समान हैं।
मतलब है कि सभी लोगों को देश का कानून बराबर सुरक्षा प्रदान करेगा।
इस अधिकार में यह भी कहा गया है कि धर्म, जाति या लिंग के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता।
(2) स्वतंत्रता का अधिकार –
इस अधिकार के अंतर्गत अभिव्यक्ति और भाषण की स्वतंत्रता, देश के किसी भी भाग में आने-जाने और रहने तथा
कोई भी व्यवसाय, पेशा या कारोबार करने का अधिकार शामिल है।
(3) शोषण के विरुद्ध अधिकार –
संविधान में कहा गया है की मानव व्यापार, जबरिया श्रम और 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मजदूरी पर रखना अपराध है।
(4) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार –
सभी नागरिकों को पूरी धार्मिक स्वतंत्रता दी गई है।
प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छा का धर्म अपनाने, उसका प्रचार-प्रसार करने का अधिकार है।
(5) सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार –
संविधान में कहा गया है कि धार्मिक या भाषाई, सभी अल्पसंख्यक समुदाय अपनी संस्कृति की रक्षा और
विकास के लिए अपने-अपने शैक्षणिक संस्थान खोल सकते हैं।
(6) संवैधानिक उपचार का अधिकार –
यदि किसी नागरिक को लगता है कि राज्य द्वारा उसके किसी मौलिक अधिकार का सहारा लेकर वह अदालत में जा सकता है।
(5) धर्मनिरपेक्षता –
धर्मनिरपेक्ष राज्य वह होता है जिसमें राज्य अधिकृत रूप से किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में बढ़ावा नहीं देता।
महत्त्वपूर्ण तथ्य –
1934 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने संविधान सभा के गठन की माँग को पहली बार अपनी अधिकृत नीति में शामिल किया।
दिसम्बर 1946 में संविधान सभा का गठन किया गया।
बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर को भारतीय संविधान का जनक कहा जाता है।
राज्य एक ऐसी राजनीतिक संस्था होती है जो निश्चित भूभाग में रहने वाले संप्रभु लोगों का प्रतिनिधित्व कराती है।