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अमेरिका स्वतंत्रता संग्राम

अमेरिका स्वतंत्रता संग्राम

अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम

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1776 ई. से 1763 ई. तक अमेरिका में तेरह उपनिवेशों में आबाद भिन्न-भिन्न वर्गों के लोगों ने स्वयं को इंलैंड के आधिपत्य के विरुद्ध लड़ने वाले एक वर्ग के रूप में गठित कर एक दीर्घ कालीन स्वतंत्रता संग्राम छेड़ दिया।

अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख कारण –

1. दोष-पूर्ण शासन प्रणाली –

इंग्लैंड की सरकार उपनिवेशों की शासन व्यवस्था स्वयं के हितों के अनुसार चलाना चाहती थी। वह मानती थी कि ब्रिटेन की संसद अमेरिकी उपनिवेशों तथा इंग्लैंड के प्रदेशों पर कानून बनाने का अधिकार समान रूप से रखती है।

अमेरिकी उपनिवेशी यह मानते थे कि वे अपनी शासन व्यवस्था का निर्माण कर चुके हैं और

उसमें अंग्रेज सरकार का हस्तक्षेप अथवा राजनीतिक भेदभाव नहीं होना चाहिए।

अंग्रेज कुलीन वर्ग के सदस्यों को अमेरिकी उपनिवेशों में बड़े-बड़े प्रशासनिक पद प्राप्त थे तथा उन्हें वहीँ के विशाल भौगोलिक क्षेत्रों के उपयोग के अधिकार पत्र जारी किए जाते थे।

जार्ज तृतीय के स्वेच्छाचारी शासन, उसकी नीतियों, उसके मंत्रियों और मित्रों को भी उन परिस्ठितियों के विकास में सहयोगी माना जाता है जिनसे अमेरिका स्वतंत्रता संग्राम ने गति पकड़ी।

2. आर्थिक संघर्ष –

चार्ल्स ऑस्टिन बेयर्ड ने ब्रिटेन और अमेरिका के मध्य आर्थिक हितों के संघर्ष को अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम का केन्द्रीय बिंदु माना है। अमेरिकी उपनिवेशी व्यापार, वाणिज्य एवं उद्योगों का विकास स्वयं करना चाहते थे।

ब्रिटिश सरकार ने अपने वाणिज्यवादी हितों की पूर्ति के उद्देश्य से कई नए कानून एवं अधिनियम पारित किए जिनके प्रति उपनिवेशवासियों ने व्यापक प्रतिक्रिया जाहिर की।

1765 ई. में बिलेटिंग एक्ट पारित किया गया।

जिसके अनुसार राजकीय सैनिकों को आवास और जरूरत की वस्तुएँ उपनिवेशी प्रदान करेंगे।

1765 ई. में ग्रेनविल ने स्टाम्प एक्ट पारित करवा दिया जिसके अनुसार कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं, लाइसेंसों, पट्टे, रजिस्ट्री, क़ानूनी दस्तावेजों आदि पर स्टाम्प लगाना अनिवार्य कर दिया गया।

स्वतंत्रता हेतु संगठित दलों के मध्य ‘बिना प्रतिनिधित्व के कर नहीं’ का नारा गुंजायमान हो गया। न्यूयार्क में 9 उपनिवेशों के प्रतिनिधियों ने सामूहिक रूप से जबर्दस्त विरोध प्रकट किया तथा नगरीय मिस्रियों ने हिंसात्मक प्रदर्शन कर स्टाम्प एक्ट वसूल करने वाले अधिकारियों का जीवन दूभर कर दिया।

3. सामाजिक कारण –

इंग्लैंड के समाज में आनुवांशिक अभिजात्य वर्ग छाया हुआ था जिसे वहाँ के सामाजिक ढांचे में शीर्षस्थ स्थान प्राप्त था। ब्रिटेन का समाज प्राचीन, पेचीदा, जटिल और कृत्रिम रूप लिए हुए था।

उपनिवेशों की 90 प्रतिशत जनसंख्या अंग्रेजों की थी।

उनमें से अधिकतर स्टुअर्ट राजाओं के धार्मिक और सामाजिक शोषण को सहन करने में असमर्थ थे।

18वीं शताब्दी के अंत तक अमेरिका में जिस समाज का उदय हुआ वह नया सरल, सादा एवं समानता लिए हुए था।

इस समाज में पूर्व जटिलताओं का त्याग तथा नव संस्कृतियों का सम्मिश्रण था।

4. धार्मिक कारण –

अमेरिकी और अंग्रेजों के मध्य धार्मिक मतभेद था। इंग्लैंड के अधिक लोग एंग्लिकन चर्च के अनुयायी थे और उपनिवेशों की अधिकांश आबादी प्यूरिटन थी।

इसके अतिरिक्त उपनिवेशों में इंग्लैंड के क्वेकर एवं कैथोलिक, फ्रांस के हुजीनॉट, जर्मनी के मेंनोनाइट एवं पायटिस्ट आदि सम्प्रदायों के अनुयायी भी अमेरिका को सुरक्षित एवं प्रगतिशील शरण स्थल मानकर यहाँ बस गए थे।

इन लोगों को मुख्य असंतोष एवं रोश इस बात का था कि भिन्न धर्मावलम्बी होते हुए भी इन्हें प्रान्तों में एंग्लिकन बिशप संघवादी संघ चर्च के लिए कर देना पड़ता था।

5. सप्तवर्षीय युद्ध का प्रभाव –

1757 ई. से 1763 ई. तक इंग्लैंड व फ्रांस के मध्य सप्तवर्षीय युद्ध शुरू हुआ।

इस युद्ध में इंग्लैंड ने फ्रांस पर निर्णायक विजय प्राप्त की।

फ्रांसीसियों ने उत्तरी अमेरिका में अपने साम्राज्य का विस्तार किया हुआ था।

अब अमेरिकी उपनिवेशियों को उत्तरी अमेरिका (कनाडा) में रहने वाले फ्रांसीसियों से आक्रमण का भय समाप्त हो गया। इससे पूर्व अपनी सुरक्षा के लिए वे इंग्लैंड पर आश्रित थे।

फ्रांस ने भी अमेरिकी उपनिवेशों का समर्थन कर अंग्रेजों और अमेरिकी मतभेदों को बढ़ावा दिया।

6. बौद्धिक जागृति –

उपनिवेशवासियों में आजादी का जज्बा जागृत करने में वही के प्रभुद्ध वर्ग की भूमिका महत्वपूर्ण रही।

पेनसिल्वेनिया के बेंजामिन फ्रेंकलिन ने यह सिद्धांत दिया कि उपनिवेशों को स्वायत्त शासन का अधिकार होना चाहिए।

वर्जिनिया के टॉमस जेफरसन ने उपनिवेशों की स्वतंत्रता की मांग लो उचित व न्यायोचित्त ठहराया।

जॉन एडम्स ने मौलिक अधिकारों के सिद्धांतो के लिए जनता में जागृति पैदा की।

7. प्रेस का योगदान –

स्वतंत्रता की मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि तैयार करने में अमेरिकी प्रेस का योगदान भी महत्वपूर्ण था।

बोस्टन, न्यूजलेटर, अमेरिकन मरकरी, न्यूयार्क गजट, अमेरिकन क्राइसिस आदि 25 से अधिक समाचार पत्र अमेरिका के विभिन्न प्रेसों से प्रकाशित हो रहे थे।

प्रमुख घटनाएँ –

न्यूयार्क की विधानसभा का निलम्बन और बोस्टन हत्याकांड –

जून 1767 ई. में ब्रिटिश संसद ने न्यूयार्क की विधानसभा पर आरोप लगाया कि उसने ब्रिटिश सैनिकों के आवास की उचित व्यवस्था नहीं की है और कठोर कदम उठाते हुए उसे निलंबित कर दिया।

सरकार के विरुद्ध तीव्र प्रतिक्रिया हुई और 5मार्च 1770 ई. में बोस्टन नगर में सात अंग्रेजों और जनता के मध्य संघर्ष की स्थिति पैदा हो गई।

बर्फ और मुक्कों से लड़कर जनता ने सैनिकों का उपहास किया।

ब्रिटिश सैनिकों द्वारा चलाई गई गोलियों से तीन अमेरिकी मारे गए।

इस घटना को ‘बोस्टन हत्याकांड’ कहा गया।

बोस्टन टी पार्टी –

ब्रिटिश सरकार ने 1773 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी को अमेरिका में चाय निर्यात का एकाधिकार दे दिया।

उपनिवेशियों ने इस एकाधिकार का घोर विरोध किया।

जब कम्पनी के चाय से लदे जहाज अमेरिका पहुंचे तो उन्हें खरीदने वाला कोई नहीं था।

अधिकांश जहाजों को वापिस लौटना पड़ा।

बोस्टन बंदरगाह में रुके हुए कुछ जहाजों पर 16 दिसम्बर, 1773 ई. की रात्रि को सेमुअल एडम्स के नेतृत्त्व में 50-60 लोगों ने इकट्ठे होकर हमला कर दिया और 343 चाय की पतियों को समुद्र में फैंक दिया।

इस घटना को ‘बोस्टन दी पार्टी’ कहा गया।

प्रथम महाद्वीपीय कांग्रेस –

5 सितम्बर, 1774 ई. को फिलाडेल्फिया में प्रथम महाद्वीपीय कांग्रेस का अधिवेशन आयोजित किया गया।

इसमें ब्रिटिश सरकार के नृशंस कानूनों के विरोध में जार्जिया के अतिरिक्त सभी उपनिवेशों के 56 प्रतिनिधि एकत्रित हुए।

जिनमें मैसाचुसेट्स के जॉन एडम्स और सैम्युल एडम्स, वर्जिनिया के जार्ज वाशिंगटन और पैट्रिक हैनरी,

दक्षिणी कैरोलाइना के जॉन रूटलेज और क्रिस्टोफर गेडसडेन और पेन्सिल्वेनिया के जोसेफ गैलाव आदि प्रमुख थे।

इस सम्मलेन में उपनिवेशियों के अधिकार, स्वतंत्रता, इंग्लैंड के साथ व्यापार-बहिष्कार, सुरक्षा एवं निरिक्षण समिति की स्थापना आदि पर विचार-विमर्श किया गया।

कनकार्ड एवं लेक्सिंगटन की घटनाएँ –

उग्र उपनिवेशी ‘स्वयंसेवकों’ तथा ‘संस ऑफ लिबर्टी’ के सदस्यों के द्वारा हैनकाक और सैमुअल एडम्स के नेतृत्व में कनकार्ड में गोला बारूद एवं अस्र शस्रों का संग्रह किया गया।

इन घटनाओं में ब्रिटिश सेना को हजारों स्वयं सेवकों, औपनिवेशिक सैनिकों तथा नागरिकों से टक्कर लेनी पड़ी और लगभग 200 ब्रिटिश सैनिक मारे गए।

द्वितीय महाद्वीपीय कांग्रेस –

10 मई, 1775 ई. को फिलाडेल्फिया में ही द्वितीय महाद्वीपीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ।

इस अधिवेशन की अध्यक्षता बोस्टन के जॉन हैनकान ने की।

टॉमस जेफरसन, जॉन एडम्स और बेंजामिन फ्रैकलिन आदि नेता इस अधिवेशन में उपस्थित थे।

यह कांग्रेस प्रथम महाद्वीपीय कांग्रेस से अधिक उग्र थी,

जिनमें उपस्थित नेताओं के बीच वाद विवाद के पश्चात् एक घोषणा पत्र तैयार किया गया।

इस पत्र में उपनिवेशों के न्यायोचित्त उद्देश्य, आतंरिक साधनों की प्रचुरता, विदेशी सहायता की लब्धता, सशस्र संघर्ष की विवशता, दासत्व की अपेक्षा स्वतंत्र मृत्यु का संकल्प इत्यादि सिद्धांतों की घोषणा एवं उल्लेख किया गया।

4 जुलाई, 1776 ई. को स्वतंत्रता का घोषणा पत्र पढ़ा गया।

घोषणा पत्र को टॉमस जेफरसन के नेतृत्व में पांच सदस्यों की एक समिति ने तैयार किया।

इस पत्र में स्पष्ट घोषित किया गया की सभी मनुष्य समान पैदा हुए हैं,

उन्हें स्वतंत्र जीवन जीने तथा सुख तलाश करने का अधिकार है।

अमेरिका में स्वतंत्रता की घोषणा का देश भक्तों ने उत्साह से स्वागत किया।

न्यूयार्क में इंग्लैंड के राजा जॉर्ज की मूर्ति को गिरा दिया गया।

यह टोरी दल के सदस्यों तथा राजा के स्वमिभक्तों के मनोबल पर करारा प्रहार था।

जॉर्ज तृतीय और ब्रिटिश संसद ने उपनिवेशियों को देशद्रोही घोषित कर दिया।

अमेरिका का स्वतंत्रता दिवस 4 जुलाई, 1776 ई. को ही माना जाता है।

स्वतंत्रता संघर्ष के विभिन्न युद्ध –

1776 ई. से 1781 ई. तक विभिन्न मोर्चों पर उपनिवेशों एवं इंलैंड सैनिको के मध्य संघर्ष चलता रहा।

3 दिसम्बर, 1783 ई. को दोनों देशों ने ‘पेरिस की संधि’ पर हस्ताक्षर कर दिए जिसके अनुसार इंलैंड ने अमेरिका के तेरह उपनिवेश को संप्रभुता संपन्न और स्वतंत्र ‘संयुक्त राज्य अमेरिका’ के नाम से मान लिया।

अमेरिका की सफलता के कारण –

भौगोलिक कारण –

अमेरिकी सैनिक अपने छदम वन्य क्षेत्रों से छापामार युद्ध प्रणाली का प्रयोग करते थे।

ब्रिटिश सैनिकों के लिए अमेरिकी क्षेत्र अज्ञात जंगल की भांति थे एवं उपनिवेशवासी इन क्षेत्रों से सुपरिचित थे।

अमेरिका के विशाल क्षेत्र में सैकड़ों मील फासले पर स्थित भिन्न-भिन्न युद्ध स्थलों में इंग्लैंड के सैन्य संचालन को और मुश्किल कर दिया।

जातीय समानता एवं उदारवाद –

अमेरिका की अधिकांश जनता अंग्रेज थी।

यह युद्ध प्रायः दो सजातीय वर्गों के मध्य था जो एक ही मूल के थे।

इनकी परस्पर सहानुभूति रहती थी।

अमेरिका में बहुत से अंग्रेजों की स्वामिभक्ति ब्रिटेन के साथ थी तथा

ब्रिटेन में कई निवासी अमेरिकन भाईयों को कुचलने के विरुद्ध थे।

उपनिवेशियों का दृढसंकल्प –

अमेरिकी सैनिकों के संगठन, प्रशिक्षण, पोषाक, जूते, आहार आदि में अनेक खामियाँ रहती थी

किन्तु युद्ध क्षेत्र में वे उत्साह, कर्त्तव्य निष्ठा, स्वतंत्रता की अभिलाषा तथा देश भक्ति की भावना के साथ उतरते थे।

स्वतंत्रता प्राप्ति का उनका दृढ संकल्प उनके सैनिक जीवन में सब कुछ बलिदान कर देने की प्रेरणा देता था।

ब्रिटिश सेना में कई बार भाड़े के सैनिक होते थे जिनसे युद्ध क्षेत्र में विशेष वफादारी अथवा

जीवट प्रदर्शन की संभावना नहीं रहती थी।

कुशल अमेरिकी नेतृत्व –

अमेरिकी सेना को जॉर्ज वाशिंगटन के रूप में एक उत्साही एवं जुझारू सेनापति का नेतृत्व प्राप्त हुआ था।

उसकी नैतिकता, ईमानदारी, साहस एवं संकल्प के गुणों ने उसकी सेना को उसका आज्ञाकारी बनाया।

उपनिवेशों की शक्ति का न्यून आंकलन –

ब्रिटिश सेनानायकों ने अमेरिकी सेना के पराक्रम का अंदाज सहीं नहीं लगाया।

जनरल गेज का मानना था कि अमेरिका को जीतने के लिए केवल चार ब्रिटिश रेजिमेंट्स की जरुरत है।

ब्रिटिश सेनापतियों ने अमेरिकी सैनिकों को असंगठित, अप्रशिक्षित, अनुशासनहीन तथा कायर समझा।

विदेशी सहायता –

फ्रांस, स्पेन, नीदरलैंड, हॉलैण्ड आदि विदेशी राष्ट्रों ने ब्रिटेन के खिलाफ अमेरिका को सैनिक एवं

आर्थिक सहयोग प्रदान किया। इससे अमेरिकी सेना की शक्ति में इजाफा हुआ।

अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम के परिणाम –

  • स्वतंत्रता संग्राम की सफलता ने राजतंत्र एवं कुलीनतंत्र के स्थान पर लोकतंत्र की स्थापना की।
  • अमेरिकी उपनिवेशों के स्वातंत्र संघर्ष की सफलता ने प्राचीन वाणिज्यवादी सिद्धांत को गहरा धक्का पहुँचाया। अमेरिका ने कृषि विकास के क्षेत्र में भी नव आयाम पैदा किए।
  • उद्योगों की दिशा में भी प्रगति हुई। जहाजरानी, वस्र, घड़ी, काँच, लोहा, कागज एवं टिन से संबंधित उद्योग उत्पादों का उल्लेखनीय विकास हुआ।
  • क्रांति से पूर्व धर्म एवं राज्य का संबंध था किन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् चर्च एवं राज्य का एक दूसरे से एक न्यायसंगत पृथक्करण कर दिया गया।
  • क्रांति के बाद अमेरिका में शिक्षा के विकास पर जोर दिया गया ताकि शिक्षित एवं प्रबुद्ध मतदाताओं से लोकतंत्र को सबल बनाया जा सके। सार्वजनिक शिक्षा की व्यवस्था की गई।

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