भारतीय संघीय कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका
भारत के संविधान के अनुसार भारत एक सार्वभौमिक, लोकतांत्रिक, समाजवादी गणराज्य है।
जिसका शासन द्विसदनीय संसदीय प्रणाली द्वारा शासित होता है।
इसके शासन में तीन प्रमुख अंग है- भारतीय संघीय कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका-
कार्यपालिका-
संघीय कार्यपालिका में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद को शामिल किया गया है। कार्यपालिका संसद के प्रति उत्तरदायी होती है। इस व्यवस्था में शासन का संवैधानिक अध्यक्ष राष्ट्रपति होता है, किन्तु वास्तव में राष्ट्रपति की शक्तियों का प्रयोग कार्यपालिका अर्थात् मंत्रिपरिषद के द्वारा किया जाता है।
कार्यपालिका में सरकारी कर्मचारी और अधिकारी शामिल होते हैं।
जिन्हें स्थायी कार्यकारी के रूप में संदर्भित किया जाता है और जिन्हें जनता द्वारा चुना या नामित किया जाता है उन्हें एक अस्थायी कार्यकारी के रूप में जाना जाता है।
व्यपस्थापिका-
भारतीय संघीय व्यवस्थापिका या विधायिका को ‘संसद’ कहा जाता है। इस संसद का गठन राष्ट्रपति, लोकसभा एवं राज्यसभा से मिल कर होता है।
देश में संघसूची एवं समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने की शक्ति संसद के पास है।
हालाँकि समवर्ती सूचि के विषयों पर राज्य विधायिका भी कानून बना सकती है लेकिन इक ही विषय पर राज्य विधायिका और संसद दोनों ने कानून बनाया हो तो संसद द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है।
हमारी संसद द्विसदनात्मक है, अर्थात् हमारी संसद के दो सदन है- 1. लोकसभा और 2. राज्यसभा।
न्यायपालिका-
भारत देश में कानूनों की व्याख्या एवं संविधान के अनुसार न्याय प्रधान के लिए स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है।
जिसमें सबसे नीचे के स्तर पर स्थानीय एवं जिला अदालतें होती है।
राज्य स्तर पर उच्च न्यायालय या कुछ राज्यों में संयुक्त रूप से उच्च न्यायालय हैं।
सबसे ऊपर राष्ट्रीय स्तर पर एक सर्वोच्च या उच्चतम न्यायालय है।
दिया गया है इस प्रकार हम देखते है कि भारतीय संघीय कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका का संगठन, सिद्धांत और कार्यप्रणाली का विवरण संविधान में विस्तृत रूप से किया है।