अध्याय 7 महिलाएँ जाति एवं सुधार | सभी प्रश्नों के हल
इस पोस्ट में NCERT द्वारा जारी किए गए नए पाठ्यक्रम के अनुसार सामाजिक विज्ञान विषय की हमारे अतीत-3 किताब के अध्याय 7 महिलाएँ, जाति एवं सुधार के सभी प्रश्नों को हल किया गया। हमें उम्मीद यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी होगी।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नों के उत्तर –
फिर से याद करें –
प्रश्न 1 निम्नलिखित लोगों ने किन सामाजिक विचारों का समर्थन और प्रसार किया –
राममोहन रॉय
दयानंद सरस्वती
वीरेशलिंगम पंतुलु
ज्योतिराव फुले
पंडिता रमाबाई
पेरियार
मुमताज अली
ईश्वरचंद्र विद्यासागर
उत्तर –
राममोहन रॉय (1772-1833) –
राजा राममोहन रॉय ने कलकत्ता में ‘ब्रह्मो समाज’ की स्थापना की। वे देश में अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार के समर्थक थे। रॉय महिलाओं के लिए और अधिक स्वतंत्रता तथा समानता के पक्षधर थे। इनके प्रयासों के परिणामस्वरूप ही 1829 ई. में ‘सती प्रथा’ पर रोक लगाई गई। इन्होंने जातिगत व्यवस्था की भी आलोचना की थी।
दयानंद सरस्वती –
स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में आर्य समाज की स्थापना की थी व विधवा विवाह का भी समर्थन किया।
वीरेशलिंगम पंतुलु –
इन्होंने मद्रास प्रेजिडेंसी के तेलुगू भाषी इलाकों में विधवा विवाह के समर्थन में एक संगठन बनाया था।
ज्योतिराव फुले –
इन्होंने बालिकाओं की शिक्षा का समर्थन किया। इनके द्वारा महाराष्ट्र में लड़कियों के लिए स्कूल खोले गए। इन्होंने जातिगत व्यवस्था समेत सभी प्रकार के भेदभावों का विरोध किया।
पंडिता रमाबाई –
इन्होंने पुरुषों के समान महिलाओं की समानता का समर्थन किया। इन्होंने ऊँची जाति की महिलाओं की दयनीय स्थिति का प्रतिकार किया। इन्होंने पुणे में एक ‘विधवा गृह’ की भी स्थापना की जहाँ पर ससुराल वालों द्वारा अत्याचार झेल रही महिलाओं को शरण दी जाती थी।
पेरियार –
पेरियार के नाम से प्रसिद्ध ई.वी. रामास्वामी नायकर ने सामाजिक समानता की वकालत की। नायकर ने ‘स्वाभिमान आंदोलन’ शुरू किया तथा सत्ता पर ब्राह्मणों के आधिपत्य को ललकारा।
मुमताज अली –
इन्होंने कुरान शरीफ की आयातों का हवाला देकर कहा की महिलाओं को भी शिक्षा का समर्थन किया।
ईश्वरचंद्र विद्यासागर –
विधवा विवाह व बालिकाओं की शिक्षा का इन्होंने समर्थन किया। इन्होंने लड़कियों के लिए विद्यालय भी खोले।
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प्रश्न 2 निम्नलिखित में से सही या गलत बताएँ –
(क) जब अंग्रेजों ने बंगाल पर कब्जा किया तो उन्होंने विवाह, गोद लेने, संपत्ति उत्तराधिकार आदि के बारे में नए कानून बना दिए।
उत्तर – सही
(ख) समाज सुधारकों को सामाजिक तौर-तरीकों में सुधार के लिए प्राचीन ग्रंथों से दूर रहना पड़ता था।
उत्तर – गलत
(ग) सुधारकों को देश के सभी लोगों का पूरा समर्थन मिलता था।
उत्तर – गलत
(घ) बाल विवाह निषेध अधिनियम 1829 में पारित किया गयाथा।
उत्तर – गलत
आइए विचार करें –
प्रश्न 3 प्राचीन ग्रंथों के ज्ञान से सुधारकों को नए कानून बनवाने में किस तरह मदद मिली?
उत्तर – प्राचीन ग्रंथों के ज्ञान से सुधारकों को नए कानून बनवाने की रणनीति को पहले राजा राममोहन रॉय तथा बाद में अन्य सुधारकों ने अपनाया। जब कभी वे किसी ऐसे रीति-रिवाज, जो कि नुकसानदायक थे, पर प्रहार करना चाहते थे तो वे प्राचीन ग्रंथों में किसी ऐसे श्लोक या वाक्य की खोज करते थे जो उनके विचारों की पुष्टि करते हों। उसके बाद वे लोगों से बताते थे कि वर्तमान रीति-रिवाज किस तरह परम्परा के विरुद्ध थे।
प्रश्न 4 लड़कियों को स्कूल न भेजने के पीछे लोगों के पास कौन-कौन से कारण होते थे?
उत्तर – लड़कियों को स्कूल न भेजने के पीछे लोगों के पास निम्न कारण होते थे –
(1) लोगों को डर था कि स्कूल जाने से लड़कियाँ घरों से दूर होने लगेंगी।
(2) इससे वे अपना परम्परागत घरेलू काम नहीं कर पाएँगी।
(3) इससे उनके आचरण पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
(4) उन्हें स्कूल जाने के लिए सार्वजनिक जगहों से होकर गुजरता होगा, जिससे वे बिगड़ जाएगी।
(5) देश के कई भागों में लोगों का मानना था कि यदि कोई लड़की शिक्षित होगी तो वह बहुत जल्दी विधवा हो जाएगी।
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प्रश्न 5 ईसाई प्रचारकों की बहुत सारे लोग क्यों आलोचना करते थे? क्या कुछ लोगों ने उनका समर्थन भी किया होगा? यदि हाँ तो किस कारण?
उत्तर – ईसाई प्रचारकों की कई लोग आलोचना करते थे क्योंकि वे रूढ़िवादी थे तथा उन्हें डर था कि ये प्रचारक जनजातीय समूहों तथा निम्न जाति के लोगों का धर्म परिवर्तित कर देंगे।
हाँ, कुछ लोगों ने ईसाई प्रचारकों का समर्थन भी किया होगा।इसके निम्न कारण हो सकते हैं –
(1) ईसाई प्रचारक जनजातीय लोगों तथा निम्न जाति के लोगों के लिए विद्यालयों की स्थापना कर रहे थे।
(2) इन लोगों के बालकों के पास इससे कुछ ज्ञान एवं निपुणताएँ आ रही थी, जिसके सहारे वे बदलती दुनिया में अपने लिए रास्ता बना सकते थे।
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प्रश्न 6 अंग्रेजों के काल में ऐसे लोगों के लिए कौन-से नए अवसर पैदा हुए जो “निम्न” मानी जाने वाली जातियों से संबंधित थे?
उत्तर- अंग्रेजो के शासन काल में ऐसे अनेक अवसर पैदा हुए जो ‘निम्न’ मानी जाने वाली जातियों से संबंधित थे –
(1) ईसाई प्रचारकों ने जनजातीय तथा निम्न मानी जाने वाली जातियों के बच्चों के लिए विद्यालयों की स्थापना की। परिणामस्वरूप इन बच्चों में कुछ ऐसे ज्ञान एवं निपुणताओं का विकास हो रहा था जिसकी सहायता से बदलती दुनिया में अपने लिए रास्ता बना सकते थे।
(2) नगरों में नौकरी के नए-नए अवसर सामने आ रहे थे। नए लगाए जा रहे कारखानों में तथा नगरपालिकाओं में नौकरियाँ मिल रही थी।
(3) मजदूरों, कुलियों, खुदाई करने वालों, बोझा ढोने वालों, ईंट बनाने वालों, नालों की सफाई करने वालों, सफाईकर्मियों, रिक्शा खींचने वालों आदि की माँग दिनों-दिन बढ़ती जा रही थी।
(4) असम, मोरिशस, त्रिनिदाद तथा इंडोनेशिया के बागानों में भी नौकरी के अवसर बन रहे थे।
(5) सेना में भी नौकरियों की माँग बढ़ गई थी। दलित माने जाने वाले महार समुदाय के अनेक लोगों को महार रेजिमेंट में नौकरी मिल गई थी।
(6) नए स्थानों पर कार्य प्रायः बहुत कठोर था परन्तु गरीबों, दलितों को यह गाँवों में जमींदारों के चंगुल से छुट निकलने का एक मौका था।
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प्रश्न 7 ज्योतिराव और अन्य सुधारकों ने समाज में जातीय असमानताओं की आलोचनाओं को किस तरह सही ठहराया?
उत्तर- ज्योतिराव फुले ने ब्राह्मणों के इस दावे पर चौट की कि चूँकि वे आर्य थे, अतः वे ही सर्वश्रेष्ठ थे। उन्होंने तर्क दिया कि आर्य लोग विदेशी थे जो इस उपमहाद्वीप के बाहर से आए थे तथा इस देश के वास्तविक वारिसों को पराजित कर यहाँ की भूमि पर उन्होंने अधिकार कर लिया था। इन विजेता आर्यों ने पराजित लोगों को निम्न लोगों के रूप में हीन दृष्टि से देखना शुरू कर दिया। ज्योतिराव फुले का मानना था कि इस धरती पर तथाकथित निम्न जाति के देशी लोगों का ही अधिकार है, ऊँची जातियों का उनकी जमीन और सत्ता पर कोई अधिकार नहीं है।
प्रश्न 8 फुले ने अपनी पुरस्तक गुलामगीरी को गुलामों की आजादी के लिए चल रहे अमेरिकी आंदोलन को समर्पित क्यों किया?
उत्तर – ज्योतिराव फुले ने सन 1873 में ‘गुलामगीरी’ नामक किताब लिखी थी।
गुलामगीरी का अर्थ है गुलामी।
इस घटना से लगभग 10 साल पहले अमेरिकी गृहयुद्ध हुआ था,
जिसमें अंततः अमेरिका में गुलामी प्रथा का अन्त हुआ। यही कारण था कि फुले ने अपनी पुरस्तक ‘गुलामगीरी’ को अमेरिका में गुलामी प्रथा के खिलाफ आंदोलन करने वालों को समर्पित किया। इस तरह से उन्होंने भारत की तथाकथित ‘निम्न’ जातियों और अमेरिका के काले गुलामों की दुर्दशा को एक-दूसरे से जोड़ दिया था।
प्रश्न 9 मन्दिर प्रवेश आंदोलन के जरिए अम्बेडकर क्या हासिल करना चाहते थे?
उत्तर – सन 1927 में डॉ.अम्बेडकर ने ‘मन्दिर प्रवेश आंदोलन’ की शुरुआत की।
1927 से 1935 तक मंदिर प्रवेश के लिए उन्होंने तीन आन्दोलनों का नेतृत्व किया जिनमें उनके महार समुदाय के लोगों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया।
बी.आर.अम्बेडकर पूरे देश को समाज के अंदर जाति संबंधी पूर्वाग्रहों की जकड़ को दिखलाना चाहते थे।
अध्याय 8 राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन 1870 के दशक से 1947 तक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 10 ज्योतिराव फुले और रामास्वामी नायकर राष्ट्रीय आंदोलन की आलोचना क्यों करते थे? क्या उनकी आलोचना से राष्ट्रीय संघर्ष में किसी तरह की मदद मिली?
उत्तर – ज्योतिराव फुले तथा रामास्वामी नायकर उच्च जाति के लोगों की अगुवाई मर चलाए जा रहे राष्ट्रीय आंदोलन की आलोचना के पीछे उनका मानना था कि अंततः यह आंदोलन उच्च जाति के लोगों के उद्देश्यों की ही पूर्ति करेगा।
आंदोलन की समाप्ति के पश्चात् ये लोग फिर से ‘भेदभाव’ की बात करेंगे।
एक बार फिर से ये लोग कहेंगे – मैं यहाँ और तुम वहाँ।
हाँ, उनकी आलोचना ने राष्ट्रीय संघर्ष में एकता पैदा की। इन नेताओं के भाषणों, लेखन तथा आंदोलनों ने उच्च जाति के राष्ट्रवादी नेताओं को आत्म-मंथन व आत्मालोचना तथा इस मुद्दे पर फिर से विचार करने के लिए प्रेरित किया।
अध्याय 7 महिलाएँ जाति एवं सुधार से संबंधित FAQ’s
उत्तर – सत्यशोधन समाज के संस्थापक ज्योतिराव फुले थे.