शाहजहाँ (Shahajahan)
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शाहजहाँ (खुर्रम) का जन्म 5 जनवरी, 1592 ई. को लाहौर में हुआ। उसकी माता मारवाड़ के शासक उदय की पुत्री जगतगोसाई थी। शाहजहाँ (Shahajahan) का विवाह 1612 ई. में आसफ खां की पुत्री अर्जुनमन्द बानो बेगम के साथ हुआ, जो बाद में मुमताज महल के नाम से विख्यात हुईं।
1627 ई.जब जहाँगीर की मृत्यु हुई, तब शाहजहाँ दक्षिण भारत में था। उसके श्वसुर आसफ खां और ख्वाजा अबुल हसन के कूटनीतिक चाल के तहत खुसरो के पुत्र दावर बक्श को सिंहासन पर बैठाया। शाहजहाँ के आदेश पर उसके सभी प्रतिद्वंद्वियों और दावर बक्श को समाप्त कर दिया गया।
24 फरवरी, 1628 ई. को शाहजहाँ आगरा में अबुल मुजफ्फर शाहबुद्दीन मुहम्मद साहिब किरन-ए-सानीर की उपाधि धारण कर गद्दी पर बैठा। उसने आसिफ खां को चाचा और महाबत खां को खान-ए-खाना की उपाधि दी।
1628-31 ई. में खान-ए-जहाँ लोदी के नेतृत्व में अफगानों का विद्रोह हुआ। मुगल बादशाह द्वारा पुर्तगालियों को नमक के व्यापार का एकाधिकार दिया गया, लेकिन उद्दण्डता के कारण शाहजहाँ ने 1632 ई. में झुगली के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
साम्राज्य विस्तार –
शाहजहाँ ने दक्षिण भारत में महाबत खां के नेतृत्व में अहमदनगर पर 1633 ई. में आक्रमण कर उसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया।
गोलकुंडा के शासक अब्दुल्ला क़ुतुबशाह ने 1636 ई. में मुगलों से संधि कर ली। इस संधि के बाद शाहजहाँ ने औरंगजेब को दक्षिण का सूबेदार बनाया और औरंगाबाद को मुगलों की दक्षिण के सूबे की राजधानी बनाया।
औरंगजेब दक्षिण का सूबेदार पहली बार 1636 ई. से 1644 ई. तक रहा और दूसरी बार 1552 से 1557 तक रहा।
मीर जुमला जो हीरे और कीमती पत्थरों का व्यापारी था, अपनी योग्यता से गोलकुंडा का प्रधानमंत्री बन गया। उसने भी मुगलों का संरक्षण स्वीकार कर लिया। मीर जुमला के सहयोग से ही बीजापुर ने औरंगजेब से संधि की थी और 1636 ई. में बीजापुर ने मुगल आधिपत्य स्वीकार कर लिया।
मुमताज महल –
शाहजहाँ की सभी प्रमुख संतानें मुमताज से ही उत्पन्न हुई थी। उसकी 14 संतानों में से 7 ही जीवित रही। इसमें 4 पुत्र व 3 पुत्रियाँ थी। इनमें से प्रत्येक ने उतराधिकार के युद्ध में भाग लिया।
जहानआरा, दाराशिकोह के पक्ष में थी, रोशनआरा औरंगजेब के पक्ष में और गोहनआरा ने मुरादबक्श का पक्ष लिया।
अर्जुमंद बानो बेगम (मुमताज महल) की मृत्यु 1633 ई. में प्रसव पीड़ा के दौरान बुरहानपुर में हुई। उसी की कब्र पर शाहजहाँ ने ताजमहल बनवाया।
स्थापत्य कला –
शाहजहाँ का काल स्थापत्य कला का स्वर्ण काल था। उसने दिल्ली का लाल किला और जामा मस्जिद, आगरा के किले में मोती मस्जिद, दीवाने आम, दीवाने खास और ताजमहल, लाहौर के किले में दीवाने-आम, मुसमम बुर्ज, शीशमहल, नौलक्खा और ख्वाबगाह बनवाया।
उसने रावी नहर लाहौर तक बनवाई और 3 नहर-ए-साहिब को ठीक करवाकर उसे 60 मिल लम्बा कराया और उसका नाम नहर-ए-शाह रखा। आगरा की जामा मस्जिद शाहजहाँ की पुत्री जहाँआरा ने बनवाई थी।
ताजमहल का निर्माण करने वाला मुख्य कलाकार उस्ताद अहमद लाहौरी था, जिसे शाहजहाँ (Shahajahan) ने नादिर-उज-असर की उपाधि प्रदान की थी। संसार का सबसे प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा शाहजहाँ के पास था।
साहित्यिक कार्य –
गंगाधर और जगन्नाथ पंडित (गंगा लहरी के लेखक) शाहजहाँ के राजकवि थे। आचार्य सरस्वती और सुन्दरदास (सुन्दर श्रृंगार और सिंहासन बत्तीसी के लेखक) को राजकीय संरक्षण प्राप्त था।
अब्दुल हमीद लाहौरी ने पादशाहनामा लिखा और इनायत खां की रचना की। दारा शिकोह संस्कृत, अरबी एवं फारसी का विद्वान् था। उसने अनेक पुस्तकों का फारसी में अनुवाद करवाया।
मुंशी बनवारीदास ने प्रबोध चंद्रोदय एवं इब्न हरिकरन ने रामायण का अनुवाद किया। दारा शिकोह ने 52 उपनिषदों का अनुवाद सिर्र-ए-अकबर के नाम से किया।
उत्तराधिकार का युद्ध और शाहजहाँ का अंत –
शाहजहाँ के पुत्रों में उत्तराधिकारी के लिए युद्ध हुआ, जिसमें औरंगजेब विजयी रहा। ये युद्ध हुए –
- बहादुरपुर का युद्ध (14 फरवरी, 1658 ई.) – इस युद्ध में शाहशुजा शाही सेना से पराजित हुआ।
- धरमत का युद्ध (8 जून, 1658 ई.) – औरंगजेब और मुराद की सेनाओं ने दारा को पराजित किया।
- सामूगढ़ का युद्ध (8 जून, 1658 ई.) – औरंगजेब और मुराद की सेनाओं ने दारा को पराजित किया। इस युद्ध के बाद शाहजहाँ कैदी बना लिया गया। कैद में 8 वर्ष रहने के बाद 1666 ई. में शाहजहाँ की मृत्यु हो गई।
- खजवा का युद्ध – औरंगजेब ने शाहशुजा को पराजित किया।
- देवराई का युद्ध – औरंगजेब ने अजमेर के निकट देवराई के दर्रे में दारा को परास्त कर कैद कर लिया और 30 अगस्त, 1659 ई. को उसका क़त्ल कर दिया।
अन्य तथ्य –
फ्रेंच यात्री बर्नियर एवं इटली का यात्री मनूची ने शाहजहाँ के शासन का वर्णन किया है। शाहजहाँ का रत्न जड़ित सिंहासन तख्ते ताऊस था, जिसमें कोहिनूर हीरा जड़ा था।
शाहजहाँ ने दारा को शाहुबलन्द इकबार की उपाधि प्रदान की थी। शाहजहाँ (Shahajahan) ने सिजदा और पायबोस की प्रथा को समाप्त कर उसके स्थान पर चहार तस्लीम की प्रथा शुरू करवाई।