लोकसभा | LOK SABHA | संरचना | सदस्य | अवधि | योग्यताएं
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1954 में जनता का सदन के स्थान पर लोकसभा (LOK SABHA) शब्द को अपनाया गया। लोकसभा, निचला सदन (पहला चैम्बर या चर्चित सभा) भी कहलाता है।
लोकसभा की संरचना –
लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 552 निर्धारित की गई है। इनमें से 530 राज्यों के प्रतिनिधि, 20 संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैं।
एंग्लो-इंडियन समुदाय के दो सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत या नाम निर्देशित करता है।
वर्तमान में लोकसभा में 545 सदस्य हैं। इनमें से 530 सदस्य राज्यों से, 13 सदस्य संघ राज्य क्षेत्रों से और दो सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत या नाम निर्देशित एंग्लो-इंडियन समुदाय से हैं।
राज्यों व संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों के लोगों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होते हैं।
भारत के हर नागरिक को जिसकी उम्र 18 वर्ष या इससे अधिक है और जिसे संविधान या विधि के उपबंधों के अनुसार अयोग्य नहीं ठहराया गया हो, मत देने का अधिकार है।
लोकसभा की अवधि कितनी होती हैं –
सामान्यतः लोकसभा की अवधि आम चुनाव के बाद हुई पहली बैठक से पांच वर्ष के लिए होती है, इसके बाद यह खुद विघटित हो जाती है।
राष्ट्रपति को पांच साल से पहले किसी भी समय लोकसभा (LOK SABHA) को विघटित करने का अधिकार है।
इसके खिलाफ न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
इसके अलावा लोकसभा की अवधि आपातकाल की स्थिति में एक बार में एक वर्ष तक बढाई जा सकती है।
लेकिन इसका विस्तार किसी भी स्ठिती में आपातकाल समाप्त होने के बाद छह महीने की अवधि से अधिक नहीं हो सकता।
सदस्यों की योग्यताएं –
- वह भारत का नागरिक हो।
- उसकी आयु 25 वर्ष से कम न हो।
- वह किसी लाभ के पट पर न हो, विकृत मस्तिष्क का न हो।
- ऐसी अन्य योग्यताएं रखता हो, जो संसद के किसी कानून द्वारा निश्चित की जावें
अनुच्छेद 102 के अनुसार संघ अथवा राज्यों के मंत्री पद लाभ के पद नहीं समझे गए हैं।
यदि कभी यह प्रशन उठता है कि संसद के किसी सदन का कोई सदस्य उपर्युक्त योग्यताएं रखता है अथवा नहीं तो यह प्रश्न निर्णय के लिए राष्ट्रपति को सौंपा जाएगा तथा राष्ट्रपति चुनाव आयोग की राय के आधार पर जो निर्णय देगा, अंतिम होगा।
स्थानों का रिक्त होना –
दोहरी सदस्यता –
कोई भी व्यक्ति एक समय में संसद के दोनों सदनों का सदस्य नहीं हो सकता।
यदि कोई व्यक्ति संसद के दोनों सदनों में चुन लिया जाता है तो उसे 10 दिनों के भीतर यह बताना होगा कि उसे किस सदन में रहना है।
सूचना न देने पर, लोकसभा में उसकी सीट खाली हो जाएगी।
अगर कोई व्यक्ति एक ही सदन में दो सीटों पर चुन लिया जाता है, तो उसे स्वेच्छा से किसी एक सीट को खाली करने का अधिकार है।
अन्यथा, दोनों सीटें रिक्त हो जाती हैं।
कोई व्यक्ति एक ही समय में संसद या राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं हो सकता।
अगर कोई व्यक्ति निर्वाचित होता है तो उसे 14 दिनों के अंदर राज्य के विधानमंडल की सीट को खाली करना होता है, अन्यथा संसद में उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है।
निरर्हता –
यदि कोई व्यक्ति संविधान में दी गई विनिर्दिष्ट निरर्हता से ग्रस्त पाया जाता है, तो उसका स्थान रिक्त हो जाता है।
विनिर्दिष्ट निरर्हता में संविधान की दसवीं अनुसूची में दर्ज निरर्हता में दल-बदल भी शामिल है।
पदत्याग –
कोई सदस्य, यथा स्थिति, राज्यसभा के सभापति या लोकसभा के अध्यक्ष को संबोधित त्याग-पत्र द्वारा अपना स्थान त्याग सकता है।
त्याग-पत्र स्वीकार हो जाने पर उसका स्थान रिक्त हो जाता है।
अनुपस्थिति –
यदि कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना 60 दिन की अवधि से अधिकसमय के लिए सदन की सभी बैठकों में अनुपस्थित रहता है तो सदन उसका पद रिक्त घोषित कर सकता है।
60 दिनों की अवधि की गणना में, सदन के स्थगन या सत्रावसान की लगातार चार दिनों से अधिक अवधि, को शामिल नहीं किया जाता है।
अन्य स्थितियां –
किसी सदस्य को संसद की सदस्यता रिक्त करनी होती है –
- यदि न्यायालय उस चुनाव को अमान्य या शून्य करार देता है।
- यदि उसे सदन द्वारा निष्कासित कर दिया जाता है।
- यदि वह राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति चुन लिया जाता है।
- यदि उसे किसी राज्य का राज्यपाल बनाया जाता है।
लोकसभा अध्यक्ष का निर्वाचन व पदावधि –
पहली बैठक के पश्चात् उपस्थित सदस्यों के बीच से अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है।
जब अध्यक्ष का स्थान रिक्त होता है तो लोकसभा इस रिक्त स्थान के लिए किसी अन्य सदस्य को चुनती है।
राष्ट्रपति लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव की तारीख निर्धारित करते हैं।
सामान्यतः अध्यक्ष लोकसभा (LOK SABHA) के जीवनकाल तक पद धारण करता है।
लेकिन उसका पद निम्नलिखित तीन मामलों में से इससे पहले भी समाप्त हो सकता है-
- यदि वह सदन का सदस्य नहीं रहता।
- यदि वह उपाध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा पद त्याग करे।
- यदि लोकसभा के तत्कालीन सभी सदस्य बहुमत से पारित संकल्प द्वारा उसे उसके पद से हटाएं। ऐसा संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जाएगा जब तक कि उस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम-से-कम 14 दिन पूर्व सूचना न दे दी गई हो।
जब लोकसभा (LOK SABHA) विघटित होती है, तो अध्यक्ष अपना पद नहीं छोड़ता है।
वह नई लोकसभा की बैठक तक पद धारण करता है।
लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका, शक्ति व कार्य –
अध्यक्ष, लोकसभा व उसके प्रतिनिधियों का मुखिया होता है। उसकी शक्तियां व कर्तव्य निम्नलिखित हैं –
- सदन की कार्यवाही व संचालन के लिए वह नियम व विधि का निर्वहन करता है। यह उसका प्राथमिक कर्तव्य है। उसका निर्णय अंतिम होता है।
- सदन के भीतर वह भारत के संविधान, लोकसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियम तथा संसदीय पूर्वादाहरणों का अंतिम व्याख्याकार होता है।
- अध्यक्ष का कर्तव्य है कि गणपूर्ति (कोरम) के अभाव में सदन को स्थगित कर दे।
- सामान्य स्थिति में वह मत नहीं देता है लेकिन बराबरी की स्थिति में वह निर्णायक मत दे सकता है।
- अध्यक्ष, संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है।
- लोकसभा अध्यक्ष यह तय करता है कि विधेयक, धन विधेयक है या नहीं और उसका निर्णय अंतिम होता है।
- दसवीं अनुसूची के तहत दल-बदल उपबंध के आधार पर अध्यक्ष लोकसभा के किसी सदस्य की निरर्हता के प्रश्न का निपटारा करता है।
- वह लोकसभा की सभी संसदीय समितियों के सभापति नियुक्त करता है और उनके कार्यों का पर्यवेक्षक करता है।
- वह मंत्रणा समिति, नियम समिति व सामान्य प्रयोजन समिति का अध्यक्ष होता है।
लोकसभा उपाध्यक्ष –
अध्यक्ष की तरह, उपाध्यक्ष भी लोकसभा के सदस्यों द्वारा चुना जाता है।
उपाध्यक्ष के चुनाव अध्यक्ष के चुनाव के बाद होता है व चुनाव की तारीख भी अध्यक्ष द्वारा निर्धारित की जाती है।
जब उपाध्यक्ष का स्थान रिक्त होता है तो लोकसभा दूसरे सदस्य को इस स्थान के लिए चुनती है।
उपाध्यक्ष भी सदन के जीवनपर्यन्त अपना पद धारण करता है।
लेकिन वह निम्नलिखित स्थितियों द्वारा अपना पर छोड़ सकता है –
- उसके सदन के सदस्य न रहने पर।
- अध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित त्याग-पत्र द्वारा।
- लोकसभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा उसे अपने पद से हटाए जाने पर। ऐसा संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जाएगा, जब तक कि उस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम-से-कम 14 दिन पूर्व सूचना न दी गई हो।
अध्यक्ष का पद रिक्त होने पर उपाध्यक्ष, उनके कार्यों को करता है।
संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष पीठासीन होता है।
उपाध्यक्ष को जब कभी भी किसी संसदीय समिति का सदस्य बनाया जाता है तो वह स्वाभाविक रूप से उसका सभापति बन जाता है।
जब अध्यक्ष सदन में पीठासीन होता है तो उपाध्यक्ष सदन के अन्य दूसरे सदस्यों की तरह होता है।
उसे सदन में बोलने, कार्यवाही में भाग लेने और किसी प्रश्न पर मत देने का अधिकार है।