गोपाल कृष्ण गोखले
गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई, 1866 ई. को महाराष्ट्र के कोटलुक नामक स्थान पर एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
उनके पिता कृष्ण राव व माता वालुबाई थी।
ये महाराष्ट्र के सुकरात कहे जाने वाले महादेव गोविन्द रानाडे के शिष्य और महात्मा गाँधी के गुरु थे।
गरम दल के लोगों ने उन्हें दुर्बल ह्रदय का उदारवादी व छिपा हुआ राजद्रोही कहा।
उन्होंने बाम्बे के एल्फिन्स्टन कॉलेज से कला में स्नातक किया था और पूना में फर्गूसन कॉलेज में प्राध्यापक बने।
उन्होंने प्रथम बार 1889 ई. में इलाहाबाद कांग्रेस अधिवेशन के मंच से राजनीति में प्रवेश लिया।
चरित्र निर्माण की आवश्यकता से पूर्णतः सहमत होकर 12 जून, 1905 ई. को गोपाल कृष्ण गोखले ने भारत सेवा समिति (सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसायटी) स्थापना की ताकि नौजवानों को सार्वजनिक जीवन के लिए प्रशिक्षित किया जा सके।
गोखले का मानना था कि वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा भारत की महत्वपूर्ण आवश्यकता है।
उन्होंने त्रैमासिक पत्रिका सार्वजनिक का प्रकाशन किया।
1909 ई. में इन्होंने मार्ले-मिंटो सुधार अधिनियम के निर्माण में सजयोग किया।
गोपाल कृष्ण गोखले 1912-15 ई. तक भारतीय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष रहे।
महात्मा गाँधी ने कहा कि ‘सर फिरोज शाह मुझे हिमालय की तरह दिखाई दिए जिसे मापा नहीं जा सकता और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक महासागर की तरह हैं, जिसमें कोई आसानी से उतर नहीं सकता, पर गोखले तो गंगा के समान थे जो सबको अपने पास बुलाती है।’
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गोखले को भारत का हीरा, महाराष्ट्र का लाल व कार्यकर्ताओं का राजा कहा।
वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें भारत का ग्लेडस्टोन कहा जाता है।
19 फरवरी, 1915 ई. को उनका देहांत हो गया।
अपने चरित्र की सरलता, बौद्धिक क्षमता और देश के प्रति दीर्घकालीन स्वार्थहीन सेवा के लिए उन्हें सदा स्मरण किया जाएगा।