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अध्याय 4 इतिहास की समय-रेखा एवं उसके स्रोत कक्षा 6

इतिहास की समय-रेखा एवं उसके स्रोत | अध्याय 4 | कक्षा 6

इस लेख में हम कक्षा 6 की NCERT की सामाजिक विज्ञान विषय की नई पाठ्यपुस्तक के अध्याय 4 इतिहास की समय-रेखा एवं उसके स्रोत के सभी अभ्यास प्रश्नों को हल किया गया हैं

उम्मीद करते हैं कि लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा

Table of Contents

उत्तर – हम ऐतिहासिक काल की गणना ईसा मसीह के जन्म के समय से करते हैं। ईसा के जन्म के बाद के वर्षों की गणना अंग्रेजी में ए.डी. से किया जाता रहा है परन्तु अब विश्वभर में इसे अंग्रेजी में कॉमन ऐरा अथवा सी.ई. कहा जाता है। इसे हम 1947 ई., सन् 1947 अथवा 1947 सी.ई. लिख सकते हैं।

इसी प्रकार ईसा मसीह की पारंपरिक तिथि से पूर्व के वर्षों की गणना अवरोही (उलटे) क्रम में की जाती है।

इसे बी.सी. या बी.सी.ई. या सा.सं. पू. से इंगित किया जाता है।

उदाहरण के लिए 560 बी.सी.ई. (सामान्य संवत् पूर्व) गौतम बुद्ध के जन्म की अनुमानित तिथि है।

इसका अर्थ है – गौतम बुद्ध या जन्म 560 + 2024 – 1 = 2583 वर्ष पूर्व हुआ था।

उत्तर – हम ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में विभिन्न स्रोतों से जानकारी एकत्रित करते हैं। जब इतिहासकार 1500 वर्ष पूर्व के किसी राजा या रानी, प्राचीन स्मारक, युद्ध अथवा व्यापार की कुछ वस्तुओं के बारे में जानकारी जुटाने का प्रयास करते हैं, तो वे बड़े ध्यान से अधिक से अधिक स्रोतों से जानकारी संकलित करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार इतिहासकार जिस कालखंड का अध्ययन कर रहे होते हैं, वे उसके इतिहास का पुनर्निर्माण करने का प्रयास करते हैं।

इतिहासकारों के साथ-साथ ही पुरातत्व विज्ञानी मानव, पौधों एवं पशुओं द्वारा अपने द्वारा छोड़े गए अवशेषों का उत्खनन करके अतीत का अध्ययन करते हैं। इसी प्रकार पुरालेख शास्री प्राचीन अभिलेखों को पढ़कर, मानव विज्ञानी मानव समाजों व संस्कृतियों का अध्ययन कर तथा जीवाश्म विज्ञानी जीवाश्म के रूप में करोड़ों वर्ष पूर्व के पेड़ों, पशुओं और मानवों के अवशेषों का अध्ययन कर तथा भू-विज्ञानी पृथ्वी के भौतिक स्वरूपों का अध्ययन कर इतिहास को समझने में अपना योगदान देते हैं।

उत्तर – आदिमानव एक दूसरे की सहायता करने के लिए टोलियों अथवा समूहों में रहते थे। वे मुख्यतः आखेटक एवं खाद्य संग्राहक थे तथा भोजन और आश्रय की निरंतर खोज करते रहते थे। यह समूह अस्थायी शिविरों, शैलाश्रयों अथवा गुफाओं में रहते थे।

उन्होंने अग्नि का उपयोग किया तथा पत्थर की उन्नत कुल्हाड़ियों एवं ब्लेड्स, नुकीले तीरों एवं अन्य उपकरणों का निर्माण कर अपने जीवन को सरल बनाया। समय के साथ, आदि मानवों ने पत्थर एवं मनकों की माला, पशुओं के दाँतों के पेंडेंट आदि जैसे साधारण आभूषण बना लिए थे तथा कभी-कभी वे दूसरे समूहों के साथ इनका आदान-प्रदान करने लगे।

उत्तर – इतिहास अतीत एवं वर्तमान के मध्य एक अनवरत संवाद है।

यह आज के समाज और कल (बीते समय) के समाज के मध्य संवाद है।

अतः हम अतीत के आलोक में ही वर्तमान समाज को पूर्णतः समझ सकते हैं।

उत्तर – हाँ, हमने अपने घर पुराने सिक्कों, पुस्तकों, वस्रों, आभूषणों अथवा बर्तनों को देखा है। इन वस्तुओं अथवा पुराने घरों एवं भवनों से हम निम्न प्रकार की सूचनाएँ एकत्र कर सकते हैं।

पुराने सिक्कों, पुस्तकों, वस्त्रों, आभूषणों एवं बर्तनों से हम ये सूचनाएँ एकत्र कर सकते हैं कि सिक्के किस समय के हैं और उस समय का शासक कौन था। पुस्तकों से हम प्राचीन समय के जीवन, रहन-सहन, खान-पान आदि की सूचनाएँ एकत्र कर सकते हैं तथा पुराने घरों एवं भवनों से हम यह सूचनाएँ एकत्र कर सकते हैं कि उस समय लोग किस प्रकार के घरों में निवास करते थे, घर बनाने की क्या तकनीकें थी, आदि।

पेज 68

उत्तर –

समुद्रगुप्त का सिक्का

यह चित्र गुप्तकालीन सम्राट समुद्रगुप्त के एक सिक्के का है, जिसमें उन्हें वीणा बजाते हुए दर्शाया गया है।

हीरो स्टोन या पत्थर

यह चित्र हीरो स्टोन/पत्थर का है। जो खूबसूरती से नक्काशीदार विरगल या हीरो पत्थर एक युद्ध में एक नायक की तरह एक व्यक्ति की बहादुरी और साहस को दर्शाता है।

यह चित्र सम्राट अशोक की विजय के स्मारक का प्रतीक है। इसमें सम्राट की शक्ति, साहस, आत्मविश्वास और गर्व को दर्शाता है, जो भारत के उत्तर प्रदेश के सारनाथ संग्रहालय में प्रदर्शित है।

उत्तर – चित्र में शैलाश्रय के आरंभिक मानव से संबंधित गतिविधियों की पहचान व उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है –

  1. संग्रहण – इस चित्र में कुछ लोग फल, बीज और अन्य प्राकृतिक संसधानों का संग्रह कर रहे है। जो उनके भोजन के प्रमुख स्रोत थे।
  2. शिकार – इसमें लोगों को पशुओं का शिकार करते हुए दिखाया गया हैं।
  3. आग जलाना – चित्र के एक तरफ कुछ लोग आग जलाते हुए दिख रहे है। आग का उपयोग गर्मी, खाना पकाने और शिकार करने के लिए किया जाता था।

उत्तर – पृष्ठ 72 पर दिए गए चित्र का अवलोकन करने पर कुछ सहस्त्राब्दी पूर्व के कृषक समुदाय द्वारा की जा रही गतिविधियाँ इस प्रकार हैं –

  1. कृषि कार्य – इस चित्र में कुछ लोग खेत में काम करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
  2. पशुपालन – खेती के अलावा गाय, भेड़ व अन्य जानवरों का पालन करते हुए दिखाया गया है।
  3. कृषि व अन्य औजारों का निर्माण – इस चित्र में विभिन्न प्रकार के औजार बनाते हुए व पशुपालक के पास भी औजार दिखाए गए हैं।
  4. जलाशय – इस चित्र में खेती, पशुओं व अन्य घरेलू कार्यो के लिए प्रयुक्त जलाशय को भी दिखाया गया है।

उत्तर – (नोट- इस प्रश्न का उत्तर शिक्षक की सहायता से विधार्थी स्वयं लिखेंगे)

अपने परिवार या गाँव का इतिहास लिखते समय निम्न परियोजना विधि का उपयोग कर सकते है –

  1. परिवार के बुजुर्गों से साक्षात्कार – सबसे पहले आप अपने परिवार के बुजुर्ग या जानकर व्यक्ति से बातचीत कर सकते हैं।
  2. पुराने दस्तावेज और पत्र का अवलोकन – यदि परिवार में या गाँव के अन्य व्यक्ति के पास कोई पुराने दस्तावेज उपलब्ध हो तो उनका अध्ययन करना।
  3. गाँव के इतिहास को जानना – यदि गाँव में कोई बुजुर्ग या अन्य व्यक्ति को गाँव की स्थापना, प्रमुख घटनाओं, प्रसिद्ध व्यक्ति और गाँव की सामाजिक संरचना की जानकारी हो तो उस पर चर्चा करना।
  4. स्थानीय मान्यता और परम्पराएँ – इनसे भी गाँव के इतिहास की जानकारी पाप्त की जा सकती हैं।

उत्तर – हाँ, हम इतिहासकारों की तुलना जासूसों से कर सकते हैं

क्योंकि जिस प्रकार जासूस विभिन्न स्थानों की छिपी हुई जानकारी लाकर देते हैं,

उसी प्रकार इतिहासकार विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों से जानकारी प्राप्त कर किसी देश के अतीत के इतिहास को उजागर करते हैं।

उत्तर –

उत्तर – सम्राट चन्द्रगुप्त का जन्म चौथी शताब्दी सा.सं.पू. में हुआ,

बुद्ध का जन्म 560 सा.सं.पू. हुआ और सम्राट चन्द्रगुप्त का जन्म 320 सा.सं.पू. में हुआ।

अतः सम्राट चन्द्रगुप्त का जन्म बुद्ध के जन्म से (560-320) 240 वर्ष पश्चात् हुआ।

उत्तर – झाँसी की रानी के जन्म का संबंध 19वीं शताब्दी से है।

उनका जन्म भारत की स्वतंत्रता (1947) से 119 वर्ष पहले हुआ।

उत्तर – 12000 वर्ष पूर्व से अभिप्राय है, आज से 12000 वर्ष पहले।

आज 2025 का वर्ष है तो 12000 में से 2025 घटाएंगे तथा उसमें 1 जोड़ेंगे।

इस प्रकार 12000 – 2025 + 1 = 9976 सा.सं.पू. आएगा।

अतः 12000 वर्ष पूर्व की तिथि होती 9977 सा.सं.पू. ।

उत्तर – मैं अपने पास स्थित बागौर की हवेली नामक संग्रहालय का भ्रमण करने की योजना बना रहा हूँ।

यह संग्रहालय उदयपुर शहर में जगदीश मंदिर के पीछे की तरफ गणगौर घाट के पास है।

इस संग्रहालय में विभिन्न ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और कलात्मक प्रदर्शनी प्रदर्शित की जाती हैं।

इस संग्रहालय में प्राचीन वस्तुएँ, चित्रकला, शिल्पकला, पुरानी मूर्तियाँ और संग्रहित ऐतिहासिक दस्तावेज हैं।

बागौर की हवेली संग्रहालय में मुख्य रूप से राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक वस्तुएँ प्रदर्शित की गई हैं।

जो इस प्रकार हैं –

  1. राजस्थानी चित्रकला – संग्रहालय में राजस्थानी चित्रकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं, जिसमें मेवाड़ी, मारवाड़ी और मिनिएचर चित्रकला शैलियाँ शामिल हैं। इन चित्रों में राजस्थान के ऐतिहासिक और धार्मिक दृश्यों को दर्शाया गया है।
  2. हस्तशिल्प व शिल्पकला – यहाँ राजस्थानी हस्तशिल्प और शिल्पकला का संग्रह है, जिसमें बारीक नक्काशी, राजस्थानी ऊनी कालीन, पीतल और कांसे के बर्तन और विभिन्न शिल्पकृतियाँ शामिल हैं। विश्व की सबसे बड़ी पगड़ी (शाफ़ा) सहित विभिन्न शासको की पगड़ियाँ भी इस संग्रहालय में प्रदर्शित की गई है।
  3. मूर्तियाँ और धार्मिक कला – हवेली के संग्रहालय में प्राचीन हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ और मंदिर से जुड़ी अन्य धार्मिक कृतियाँ प्रदर्शित की गई है।
  4.  लोक कला और संस्कृति – यहाँ राजस्थान के लोक संगीत, नृत्य और पारम्परिक पहनावे के बारे में भी जानकारी मिलती है। संग्रहालय में विभिन्न जनजातियों और समुदायों की पारंपरिक वस्तुएँ भी देखने को मिलती हैं।

प्रश्न 5. अपने विद्यालय में किसी पुरातत्व विज्ञानी अथवा इतिहासकार को आमंत्रित कीजिए और उनसे स्थानीय इतिहास एवं उसे जानना क्यों महत्वपूर्ण है, इस विषय में व्याख्यान देने का आग्रह कीजिए।

उत्तर – इसका उत्तर विद्यार्थी स्वयं हल करेंगे

प्रश्न. पृथ्वी के भौतिक स्वरूपों का अध्ययन करने वाले विज्ञानी को किस नाम से जाना जाता है?

उत्तर – भू-विज्ञानी.

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