लोकोक्ति
संसार की सभी भाषाओं में लोकोक्ति का प्रचलन है। मनुष्य अपनी बात को और अधिक प्रभावपूर्ण बनाने के लिए लोकोक्ति का प्रयोग करता है। लोकोक्ति शब्द लोक+उक्ति के योग से बना है।
लोक में पीढ़ियों से प्रचलित इन उक्तियों में अनुभव का सार एवं व्यावहारिकता का निचोड़ ही लोकोक्ति होता है। अनेक लोकोक्तियों के निर्माण में किसी घटना विशेष का विशेष योगदान होता है और उसी कोटि की स्थिति परिस्थति के समय उस लोकोक्ति का प्रयोग किया जाता है, जो उस सम्प्रदाय या समाज को सहर्ष स्वीकार्य होता है।
लोकोक्ति व मुहावरे में अंतर-
लोकोक्ति का अपर नाम ‘कहावत’ भी है। जहाँ लोकोक्ति अपने आप में पूर्ण होती है और प्रायः प्रयोग में एक वाक्य के रूप में ही प्रयुक्त होती है, जबकि मुहावरा वाक्यांश मात्र होता है। लोकोक्ति का रूप प्रायः एक सा ही रहता है, जबकि मुहावरे के स्वरूप में लिंग, वचन एवं काल के अनुसार परिवर्तन अपेक्षित होता है।
प्रमुख लोकोक्ति व उनके अर्थ
| क्र.सं. | लोकोक्ति | अर्थ |
| 1. | अपना रख, पराया चख | अपना बचाकर दूसरों का माल हड़प करना |
| 2. | अपनी करनी पार उतरनी | स्वयं का परिश्रम ही काम आता है। |
| 3. | अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता | अकेला व्यक्ति शक्ति हीन होता है। |
| 4. | अधजल गगरी छलकत जाय | ओछा आदमी अधिक इतराता है। |
| 5. | अंधों में काना राजा | मूर्खों में कम ज्ञान वाला भी आदर पाता है। |
| 6. | अंधे के हाथ बटेर लगना | अयोग्य व्यक्ति को बिना परिश्रम संयोग से अच्छी वस्तु मिलना। |
| 7. | अंधा पीसे कुत्ता खाय | मूर्खों की मेहनत का लाभ अन्य उठाते हैं। |
| 8. | अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत | अवसर निकल जाने पर पछताने से कोई लाभ नहीं। |
| 9. | अंधे के आगे रोवै अपने नैना खोवैं | निर्दय व्यक्ति या अयोग्य व्यक्ति से सहानुभूति की अपेक्षा करना व्यर्थ है। |
| 10. | अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है | अपने क्षेत्र में कमजोर भी बलवान बन जाता है। |
| 11. | अंधेर नगरी चौपट राजा | प्रशासन की अयोग्यता से सर्वत्र अराजकता आ जाना। |
| 12. | अंधा क्या चाहे दो आँखे | बिना प्रयास वांछित वस्तु का मिल जाना। |
| 13. | अक्ल बड़ी या भैंस | शारीरिक बल बुद्धिबल श्रेष्ठ होता है। |
| 14. | अपना हाथ जगन्नाथ | अपना काम अपने ही हाथों ठीक रहता है। |
| 15. | अपनी-अपनी डपली अपना-अपना राग | तालमेल का आभाव/सबका अलग-अलग मत होना/एकमत का अभाव |
| 16. | अंधा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपनों को देय | स्वार्थी व्यक्ति अधिकार पाकर अपने लोगों की सहायता करता है। |
| 17. | अंत भला तो सब भला | कार्य का अंतिम चरण ही महत्त्वपूर्ण होता है। |
| 18. | आ बैल मुझे मार | जानबूझ कर मुसीबत में फंसना |
| 19. | आम के आम गुठली के दाम | हर प्रकार का लाभ/एक काम से दो लाभ |
| 20. | आँख का अंधा नाम नयन सुख | गुणों के विपरीत नाम होना। |
| 21. | आगे कुआँ पीछे खाई | दोनों/सब ओर से विपत्ति में फँसना। |
| 22. | आप भला जग भला | अपने अच्छे व्यवहार से सब जगह आदर मिलता है। |
| 23. | आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास | उद्देश्य से भटक जाना/श्रेष्ठ काम करने की बजाय तुच्छ कार्य करना/कार्य विशेष की उपेक्षा पर किसी अन्य कार्य में लग जाना। |
| 24. | आधा तीतर आधा बटेर | अनमेल मिश्रण/बेमेल चीजें जिनमें सामंजस्य का अभाव हो। |
| 25. | इन तिलों में तेल नहीं | किसी लाभ की आशा न होना। |
| 26. | आठ कनौजिए नौ चूल्हे | फूट होना। |
| 27. | उल्टा चोर कोतवाल को डांटे | अपना अपराध न मानना और पूछने वाले को ही दोषी ठहराना। |
| 28. | उल्टे बाँस बरेली को | विपरीत कार्य या आचरण करना। |
| 29. | ऊधो का न लेना, न माधो का देना | किसी से कोई मतलब न रखना/सबसे अलग। |
| 30. | ऊँची दुकान फीका पकवान | वास्तविकता से अधिक दिखावा/दिखावा ही दिखावा। |
| 31. | ऊँट के मुँह में जीरा | आवश्यकता की नगण्य पूर्ति |
| 32. | ऊखली में सिर दिया तो मूसल का क्या डर | जब दृढ़ निश्चय कर लिया तो बाधाओं से क्या घबराना। |
| 33. | ऊँट किस करवट बैठता है | परिणाम में अनिश्चितता होना। |
| 34. | एक पंथ दो काज | एक काम से दोहरा लाभ/एक तरकीब से दो कार्य करना/ एक साधन से दो कार्य करना। |
| 35. | एक अनार सौ बीमार | वस्तु कम, चाहने वाले अधिक/एक स्थान के लिए सैकड़ों प्रत्याशी |
| 36. | एक मछली सारा तालाब गन्दा कर देती है | एक की बुराई से साथी भी बदनाम होते हैं। |
| 37. | एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकती | दो प्रशासक एक ही जगह एक साथ शासन नहीं कर सकते। |
| 38. | एक हाथ से ताली नहीं बजती | लड़ाई का कारण दोनों पक्ष होते हैं। |
| 39. | एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा | बुरे से और अधिक बुरा होना/एक बुराई के साथ दूसरी बुराई का जुड़ जाना। |
| 40. | कागज की नाव नहीं चलती | बेइमानी से किसी कार्य में सफलता नहीं मिलती। |
| 41. | कला अक्षर भैंस बराबर | बिल्कुल निरक्षर होना। |
| 42. | कंगाली में आता गीला | संकट पर संकट आना। |
| 43. | कोयले की दलाली में हाथ काले | बुरे काम का परिणाम भी बुरा होता है। |
| 44. | का वर्षा जब कृषि सुखानी | अवसर बीत जाने पर साधन की प्राप्ति बेकार हैं। |
| 45. | कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा | अलग-अलग स्वभाव वालों को एक जगह एकत्र करना/इधर-उधर से सामग्री जूता कर कोई निकृष्ट वस्तु का निर्माण करना। |
| 46. | कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर | एक-दूसरे के काम आना |
| 47. | काबुल में क्या गधे नहीं होते | मूर्ख सब जगह मिलते हैं। |
| 48. | कहने पर कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता | कहने जिद्दी व्यक्ति काम नहीं करता। |
| 49. | कोउ नृप होउ हमें का हानि | अपने काम से मतलब रखना। |
| 50. | कौवा चला हंस की चाल, भूल गया अपनी भी चाल | दूसरों के अनुसार अनुकरण से अपने रीति रिवाज भूल जाना। |
| 51. | कभी घी घना तो कभी मुट्ठी चना | परिस्थितियाँ हमेशा एक सी नहीं रहतीं। |
| 52. | करले सो काम भजले सो राम | एक निष्ठ होकर कर्म और भक्ति करना |
| 53. | काज परै कछु और है, काज सरै कछु और | दुनिया बड़ी स्वार्थी है काम निकाल कर मुँह फेर लेते हैं। |
| 54. | खोदा पहाड़ निकली चुहिया | अधिक परिश्रम से थोड़ा लाभ होना |
| 55. | खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। | स्पर्धावश काम करना/ साथी को देखकर दूसरा साथी भी वैसा ही व्यवहार करता है। |
| 56. | खग जाने खग की ही भाषा | मूर्ख व्यक्ति मूर्ख की बात समझता है। |
| 57. | खिसियानी बिल्ली खम्भा खोंसे | शक्तिशाली पर वश न चलने के कारण कमजोर पर क्रोध करना |
| 58. | गागर में सागर भरना | थोड़े में बहुत कुछ कह देना। |
| 59. | गुरु तो गुड़ रहे चेले शक्कर हो गए | चेले का गुरु से अधिक ज्ञानवान होना |
| 60. | गवाह चुस्त मुद्दई सुस्त | स्वयं की अपेक्षा दूसरों का उसके लिए अधिक प्रयत्नशील होना |
| 61. | गुड़ खाए और गुलगुलों से परहेज | झूठा ढोंग रचना। |
| 62. | गाँव का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध | अपने स्थान पर सम्मान नहीं होता। |
| 63. | गरीब तेरे तीन नाम-झूठा,पापी, बेईमान | गरीब पर ही सदैव दोष मढ़े जाते हैं। |
| 64. | गुड़ दिए मरे तो जहर क्यों दे | प्रेम से कार्य हो जाए गो दण्ड क्यों। |
| 65. | गंगा गए गंगादास यमुना गए तो यमुनादास | अवसरवादी होना। |
| 66. | गोद में छोरा शहर में ढिंढोरा | पास की वस्तु को दूर खोजना। |
| 67. | गरजते बादल बरसते नहीं | कहने वाले कुछ करते नहीं |
| 68. | गुरु कीजै जान, पानी पीवै छान | अच्छी रहर समझ बुझकर काम करना |
| 69. | घर-घर मिटटी के चूल्हे हैं | सबकी एक सी स्थिति का होना सभी समान रूप से खोखले हैं। |
| 70. | घोड़ा घास से दोस्ती करे तो क्या खाए | मजदूरी लेने में संकोच कैसा? |
| 71. | घर का भेदी लंका ढाहे | घरेलू शत्रु प्रबल होता है। |
| 72. | घर की मुर्गी दाल बराबर | अधिक परिचय से सम्मान कम/घरेलू साधनों का मूल्यहीन होना |
| 73. | घर बैठे गंगा आना | बिना प्रयत्न के लाभ,सफलता मिलना |
| 74. | घर में नहीं दाने बुढ़िया चली भुनाने | झूठा दिखावा करना |
| 75. | घर आये नाग न पूजे, बॉबी पूजन जाए | अवसर का लाभ न उठाकर उसकी खोज में जाना |
| 76. | घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध | विद्वान् का अपने घर की अपेक्षा बाहर अधिक सम्मान/परिचित की अपेक्षा अपरिचित का विशेष आदर |
| 77. | चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाए | बहुत कंजूस होना |
| 78. | चलती का नाम गाड़ी | काम का चलते रहना/बनी बात के सब साथी होते हैं। |
| 79. | चंदन की चुटकी भली | अच्छी वस्तु तो थोड़ी भी भली |
| 80. | चार दिन की चाँदनी भीर अँधेरी रात | सुख का समय थोड़ा ही होता है। |
| 81. | चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता | निर्लज्ज पर किसी बात का असर नहीं होता। |
| 82. | चिराग तले अँधेरा | दूसरों को उपदेश देना स्वयं अज्ञान में रहना |
| 83. | चींटी के पर निकलना | बुरा समय आने से पूर्व बुद्धि का नष्ट होना |
| 84. | चील के घोंसले में मांस कहाँ? | भूखे के घर भोजन मिलना असंभव होता है। |
| 85. | चुपड़ी और दो-दो | लाभ में लाभ होना |
| 86. | चोरी का माल मोरी में | बुरी कमाई बुरे कार्यों में नष्ट होती है। |
| 87. | चोर की दाढ़ी में तिनका | अपराधी का सशंकित होना/ अपराधी के कार्यों से दोष प्रकट हो जाता है। |
| 88. | चोर-चोर मौसेरे भाई | दुष्ट लोग प्रायः एक जैसे होते हैं/एक से स्वभाव वाले लोगों में मित्रता होना। |
| 89. | छछूंदर के सिर में चमेली का तेल | अयोग्य व्यक्ति के पास अच्छी वस्तु होना |
| 90. | छोटे मुँह बड़ी बात | हैसियर से अधिक बातें करना |
| 91. | जहाँ काम आवै सुई का करे तलवारि | छोटी वस्तु से जहाँ काम निकलता है वहाँ बड़ी वस्तु का उपयोग नहीं होता है। |
| 92. | जल में रहकर मगर से बैर | बड़े आश्रयदाता से दुश्मनी ठीक नहीं |
| 93. | जब तक साँस तब तक आस | जीवन पर्यन्त आशान्वित रहना |
| 94. | जंगल में मोर नाचा किसने देखा | दूसरों के सामने उपस्थित होने पर ही गुणों की कद्र होती है। गुणों का प्रदर्शन उपयुक्त स्थान पर। |
| 95. | जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी | मातृभूमि का महत्त्व स्वर्ग से भी बढ़कर है। |
| 96. | जहाँ मुर्गा नहीं बोलता वहाँ क्या सवेरा नहीं होता | किसी के बिना कोई काम नहीं रुकता कोई अपरिहार्य नहीं है। |
| 97. | जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि | कवि दूर की बात सोचता है। |
| 98. | जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई | जिसने कभी दुःख नहीं देखा वह दूसरों का दुःख क्या अनुभव करे |
| 99. | जान बची और लाखों पाए | प्राण सबसे प्रिय होते हैं। |
| 100. | जाको राखे साइयां मार सके ना कोय | ईश्वर रक्षक हो तो फिर कर किसका, कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। |
| 101. | जिस थाली में खाए उसी में छेड़ करना | विश्वासघात करना/ कृतघ्न होना |
| 102. | जिसकी लाठी उसकी भैंस | शक्तिशाली की विजय होती है। |
| 103. | जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी बैठ | प्रयत्न करने वाले को सफलता/लाभ अवश्य मिलता है। |
| 104. | जादू वही जो सिर चढ़कर बोले | उपाय वही अच्छा जो कारगर हो |
| 105. | झटपट की घानी आधा तेल आधा पानी | जल्दबाजी का काम ख़राब ही होता है। |
| 106. | झूठ कहे सो लड्डू खाय साँच कहे सो मारा जाय | आजकल झूठे का बोलबाला है। |
| 107. | जैसी बहे बयार पीठ तब वैसी दीजै | समयानुसार कार्य करना। |
| 108. | टके का सौदा नौ टका विदाई | साधारण वस्तु हेतु खर्च अधिक |
| 109. | टेढ़ी उँगली कियेबिना घी नहीं निकलता | सीधेपन से काम नहीं निकलता। |
| 110. | टके की हांड़ी गई पर कुत्ते की जात पहचान ली | थोड़ा नुकसान उठाकर धोखेबाज को पहचानना। |
| 111. | डूबते को तिनके का सहारा | संकट में थोड़ी सहायता भी लाभप्रद/पर्याप्त होती है। |
| 112 | ढाक के तीन पात | सदा एक सी स्थिति बनी रहे। |
| 113. | ढोल में पोल | बड़े-बड़े भी अंधेर करते हैं। |
| 114. | तीन लोक से मथुरा न्यारी | सबसे अलग विचार बनाये रखना |
| 115. | तीर नहीं तो तुक्का ही सही | पूरा नहीं तो जो मिल जाए उसी में संतोष करना। |
| 116. | तू डाल-डाल मैं पात-पात | चालाक से चालाकी से पेश आना/एक से बढ़कर एक चालाक होना। |
| 117. | तेल देखो तेल की धार देखो | नया अनुभव करना धैर्य के साथ सोच समझ कर कार्य करो परिणाम की प्रतीक्षा करो। |
| 118. | तेली का तेल जले मशालची का दिल जले | खर्च कोई करे बुरा किसी और को ही लगे। |
| 119. | तेते पाँव पसारिये जेती लाम्बी सौर | हैसियातानुसार खर्च करना/अपने सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना। |
| 120. | तन पर नहीं लत्ता पान खाए अलबत्ता | अभावग्रस्त होने पर भी ठाठ से रहना/ झूठा दिखावा करना। |
| 121. | तीन बुलाए तेरह आए | अनिमन्त्रित व्यक्ति का आना। |
| 122. | तीन कनौजिए तेरह चूल्हे | व्यर्थ की नुक्ता-चीनी करना/ढोंग करना। |
| 123. | थोथा चना बाजे घना | गुणहीन व्यक्ति अधिक डींगे मारता है/आडम्बर करता है। |
| 124. | दूध का दूध पानी का पानी | सही सही न्याय करना। |
| 125. | दमड़ी की हांडी भी ठोक बजाकर लेते हैं | छोटी चीज को भी देखभाल कर लेते हैं। |
| 126. | दान की बछिया के दांत नहीं गिने जाते | मुफ्त की वस्तु के गुण नहीं देखे जाते। |
| 127. | दाल भात में मुसल चंद | किसी के कार्य में व्यर्थ में दखल देना। |
| 128. | दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम | संदेह की स्थिति में कुछ भी हाथ नहीं लगना। |
| 129. | दूध का जला छाछ को फूँक-फूँक कर पीता है | एक बार धोखा खाया व्यक्ति दुबारा सावधानी बरतता है। |
| 130. | दूर के ढोल सुहाने लगते हैं | दूरवर्ती वस्तुएँ अच्छी मालूम होती हैं दूर से ही वस्तु का अच्छा लगना पास आने पर वास्तविकता का पता लगना |
| 131. | दैव दैव आलसी पुकारा | आलसी व्यक्ति भाग्यशाली होता है। |
| 132. | धोबी का कुत्ता घर का न घाट का | किधर का भी न रहना न इधर का न उधर का |
| 133. | न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी | ऐसी अनहोनी शर्त रखना जो पूरी न हो सके/ बहाने बनाना। |
| 134. | न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी | झगड़े को जड़ से ही नष्ट करना। |
| 135. | नक्कार खाने में टूटी की आवाज | अराजकता में सुनवाई न होना, बड़ों के समक्ष छोटों की कोई पूछ नहीं। |
| 136. | न सावन सुखा न भादों हरा | सदैव एक सी तंग हालत रहना। |
| 137. | नाच न जाने आँगन टेढ़ा | अपना दोष दूसरों पर मढ़ना |
| 138. | नाम बड़े और दर्शन खोटे | बड़ों में बड़प्पन न होना गुण कम किन्तु प्रशंसा अधिक। |
| 139. | नीम हकीम खतरे जान, नीम मुल्ला खतरे ईमान | अध कचरे ज्ञान वाला अनुभवहीन व्यक्ति से अधिक हानिकारक होता है। |
| 140. | नेकी और पूछ-पूछ | भलाई करने में भला पूछना क्या? |
| 141. | नेकी कर कुए में डाल | भलाई का भूल जाना चाहिए। |
| 142. | नौ नगद, न तेरह उधार | भविष्य की बड़ी आशा से तत्काल का थोड़ा लाभ अच्छा/व्यापार में उधार की अपेक्षा नगद को महत्त्व देना। |
| 143. | नौ दिन चले अढाई कोस | बहुत धीमी गति से कार्य का होना |
| 144. | नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली | बहुत पाप करके पश्चाताप करने का ढोंग करना। |
| 145. | पढ़े पर गुने नहीं | अनुभवहीन होना। |
| 146. | पढ़े फारसी बेचे तेल, देखो यह विधाता का खेल | शिक्षित होते हुए भी दुर्भाग्य से निम्न कार्य करना। |
| 147. | पराधीन सपनेहु सुख नाहीं | परतंत्र व्यक्ति कभी सुखी नहीं होता। |
| 148. | पाँचों उंगलियाँ बराबर नहीं होती | सभी समान नहीं हो सकते। |
| 149. | प्रभुता पाय काहि मद नाहीं | अधिकार प्राप्ति पर किसे गर्व नहीं होता। |
| 150. | फटा मन और फटा दूध फिर नहीं मिलता। | एक बार मतभेद होने पर पुनः मेल नहीं हो सकता। |
| 151. | बारह बरस में घूरे के दिन भी फिरते हैं | कभी न कभी सबका भाग्योदय होता है। |
| 152. | बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद | मूर्ख को गुण की परख न होना, अज्ञानी किसी के महत्त्व को आँक नहीं सकता। |
| 153. | बद अच्छा, बदनाम बुरा | कलंकित होना बुरा होने से भी बुरा है। |
| 154. | बकरे की माँ कब तक खेर मनायेगी | जब संकट आना ही है तो उससे कब तक बचा जा सकता है। |
| 155. | बावन तोले पाव रत्ती | बिल्कुल ठीक या सही सही होना |
| 156. | बाप न मारी मेंढ़की बेटा तीरंदाज | बहुत अधिक बातूनी या गप्पी होना |
| 157. | बाँबी में हाथ तू डाल मन्त्र मैं पढूँ | खतरे का कार्य दूसरों को सौंपकर स्वयं अलग रहना। |
| 158. | बापू भला न भैया, सबसे बड़ा रुपया | आजकल पैसा ही सब कुछ है। |
| 159. | बिल्ली के भाग का छींका टूटना | संयोग से किसी कार्य का अच्छा होना/अनायास अप्रत्याशित वस्तु की प्राप्ति होना। |
| 160. | बिन माँगे मोती मिले माँगे मिले न भीख | भाग्य से स्वतः मिलता है इच्छा से नहीं। |
| 161. | बिना रोए माँ भी दूध नहीं पिलाती | प्रयत्न के बिना कोई कार्य नहीं होता |
| 162. | बैठे से बेगार भली | खाली बैठे रहने से तो किसी का कुछ काम करना अच्छा। |
| 163. | बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से खाए | बुरे कर्म कर अच्छे फल की इच्छा करना व्यर्थ है। |
| 164. | भई गति साँप छछूंदर जैसी | दुविधा में पड़ना। |
| 165. | भूखे भजन न होय गोपाला | भूख लगने पर कुछ भी अच्छा नहीं लगता। |
| 166. | भागते भूत की लंगोट भली | कुछ नहीं से जो कुछ भी मिल जाए वह अच्छा। |
| 167. | भैंस के आगे बीन बजाना | मूर्ख को उपदेश देना व्यर्थ है। |
| 168. | मन चंगा तो कठोटी में गंगा | मन पवित्र तो घर में तीर्थ है। |
| 169. | मरता क्या न करता | मुसीबत में गलत कार्य करने को भी तैयार होना पड़ता है। |
| 170. | मान न मान मैं तेरा मेहमान | जबरदस्ती गले पड़ना। |
| 171. | मानो तो देवता नहीं तो पत्थर | विश्वास फलदायक होता है। |
| 172. | मार के आगे भूत भागे | दंड से सभी भयभीत होते हैं। |
| 173. | मियाँ बीबी राजी तो क्या करेगा काजी? | यदि आपस में प्रेम है तो तीसरा क्या करेगा? |
| 174. | मुख में राम बगल में छुरी | ऊपर से मित्रता अन्दर से शत्रुता/धोखेबाजी करना। |
| 175. | मेरी बिल्ली मुझे ही म्याऊँ | आश्रयदाता का ही विरोध करना। |
| 176. | मेंढ़की को जुकाम होना | नीच आदमियों द्वारा नखरे करना। |
| 177. | मन के हारे हार है मन के जीते जीत | साहस बनाये रखना आवश्यक है। |
| 178. | यथा राजा तथा प्रजा | जैसा स्वामी वैसा सेवक। |
| 179. | यह मुँह और मसूर की दाल | योग्यता से अधिक पाने की इच्छा करना। |
| 180. | मुफ्त का चन्दन, घिस मेरे नंदन | मुफ्त में मिली वस्तु का दुरुपयोग करना |
| 181. | रस्सी जल गई पर ऐंठ न गई | सर्वनाश होने पर भी घमण्ड में रहना। |
| 182. | रंग में भंग पड़ना | आनन्द में बाधा उत्पन्न होना। |
| 183. | राम नाम जपना, पराया माल अपना | मक्कारी करना। |
| 184. | रोग का घर खाँसी, झगड़े का घर हँसी | हँसी मजाक झगड़े का कारण बन जाती है। |
| 185. | रोज कुआँ खोदना रोज पानी पीना | प्रतिदिन कमाकर खाना, रोज कमाना रोज खा जाना। |
| 186. | लकड़ी के बल बंदरी नाचे | भयवश ही कार्य संभव है। |
| 187. | लातों के भूत बातों से नहीं मानते | नीच व्यक्ति दण्ड से/भय से कार्य करते हैं कहने से नहीं। |
| 188. | लोहे को लोहा ही काटता है | बुराई को बुराई से ही जीता जाता है। |
| 189. | वक्त पड़े जब जानिए को बैरी को मीत | विपत्ति/अवसर पर ही शत्रु व मित्र की पहचान होती है। |
| 190. | विनाश काले विपरीत बुद्धि | विपत्ति आने पर बुद्धि भी नष्ट हो जाती है। |
| 191. | शबरी के बेर | प्रेममय तुच्छ भेंट |
| 192. | शुभस्य शीघ्रम | शुभ कार्य में शीघ्रता करनी चाहिए |
| 193. | साँच को आँच नहीं | सच्चा व्यक्ति कभी नहीं डरता। |
| 194. | सब धान बाईस पंसेरी | अविवेकी लोगों की दृष्टि में गुणी और मूर्ख सभी व्यक्ति बराबर होते हैं। |
| 195. | समरथ को नहीं दोष गुसाईं | गलती होने पर भी सामर्थ्यवान को कोई कुछ नहीं कहता। |
| 196. | सिर मुंडाते ही ओले पड़ना | कार्य प्रारम्भ करते ही बाधा उप्तन्न होना। |
| 197. | सोने में सुगन्ध | अच्छे में और अच्छा |
| 198. | सौ सुनार की एक लुहार की | सैंकड़ों छोटे उपायों से एक बड़ा उपाय अच्छा। |
| 199. | हथेली पर दही नहीं जमता | हर कार्य के होने में समय लगता है। |
| 200. | हल्दी लगे न फिटकरी रंग लागे चोखा | आसानी से काम बन जाना, कम खर्च में अच्छा कार्य। |
| 201. | हाथ कंगन को आरसी क्या | प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता क्या? |

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Sukha het mausi kare……..