नगरीय स्व-शासन

नगरीय स्व-शासन | Urban Local Government

भारत में नगरीय स्व-शासन का अर्थ शहरी क्षेत्र के लोगों द्वारा चुने प्रतिनिधियों से बनी सरकार से है।

नगरीय स्व-शासन का अधिकार क्षेत्र उन निर्दिष्ट शहरी क्षेत्रों तक सीमित है, जिसे राज्य सरकार द्वारा इस उद्देश्य के लिए निर्धारित किया गया है।

नगरीय निकायों का विकास –

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

आधुनिक भारत में ब्रिटिश काल के दौरान स्थानीय नगर प्रशासन की संस्थाएँ अस्तित्व में आई।

प्रमुख ऐतिहासिक घटनाएं निम्नवत है –

  1. 1688 में भारत का पहला नगर निगम मद्रास में स्थापित हुआ।
  2. 1726 में बम्बई तथा कलकत्ता में नगर निगम स्थापित हुए।
  3. 1870 का लार्ड मेयो का वित्तीय विकेंद्रीकरण का संकल्प नगरीय स्व-शासन की संस्थाओं के विकास में परिलक्षित हुआ।
  4. लार्ड रिपन का 1882 का संकल्प स्थानीय स्व-शासन के लिए मैग्नाकार्टा की हैसियत रखता है। उन्हें भारत में स्थानीय स्व-शासन का पिता कहा जाता है।
  5. 1907 ई. में रॉयल कमीशन ऑन डीसेंट्रलाइजेशन की नियुक्ति हुई, जिसने 1909 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस आयोग के अध्यक्ष हॉब हाउस थे।
  6. भारत सराकर अधिनियम, 1919 के द्वारा प्रान्तों में लागू की गई। द्विशासनीय योजना के अंतर्गत स्थानीय स्व-शासन एक अंतरित विषय बन गया और इसके लिए एक भारतीय मंत्री को प्रभारी बनाया गया।
  7. 1924 ई. में कैण्टोण्मेंट एक्ट केन्द्रीय विधायिका द्वारा पारित किया गया।
  8. भारत सरकार अधिनियम, 1935 द्वारा लागू प्रांतीय स्वायत्तता के अंतर्गत स्थानीय स्व-शासन को प्रांतीय घोषित किया गया।

समितियां एवं आयोग

क्र.सं.वर्षसमिति, आयोग का नामअध्यक्ष
1.1949-51स्थानीय वित्तीय जांच अमितिपी.के. वट्टाल
2.1953-54करारोपण जांच आयोगजॉन मथायी
3.1963-65नगर निगम कर्मचारियों के प्रशिक्षण पर गठित समितिनूरुद्दिन अहमद
4.1963-66ग्रामीण नगरीय संबंध समितिए.पी. जैन
5.1963स्थानीय नगर निकायों के वित्तीय संसाधनों के संवर्द्धन के लिए मंत्रियों की समितिरफीक जकारिया
6.1965-68नगर निगम कर्मचारियों की कार्यदशाओं पर समिति
7.1974नगर प्रशासन में बजटीय सुधार पर समितिगिरिजापति मुखर्जी
8.1982स्थानीय नगर निकायों तथा नगर निगमों के गठन, शक्तियों  तथा कानूनों पर गठित अध्ययन दलके.एन. सहाय
9.1985-88नगरीकरण पर राष्ट्रीय आयोगसी.एन. कुरिया

संवैधानिकरण

राजीव गाँधी सरकार ने अगस्त 1989 में लोकसभा में 65वां संविधान संशोधन विधेयक (नगरपालिका विधेयक) पेश किया।

यह विधेयक लोकसभा में पारित हुआ किन्तु अक्टूबर 1989 में यह राज्यसभा में गिर गया और निरस्त हो गया।

74वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992 –

74वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के द्वारा भारत के संविधान में नया भाग IXक शामिल किया।

इसे नगरपालिकाएं नाम दिया गया और अनुच्छेद 243त से 243यछ के उपबंध शामिल किए गए।

इस अधिनियम के कारण संविधान में 12वीं अनुसूची को जोड़ा गया।

इस अधिनियम ने नगरपालिकाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया।

12वीं अनुसूची में नगरपालिकाओं की 18 कार्यकारी विषय-वस्तुओं का उल्लेख है।

जो इस प्रकार हैं –

  1. नगरीय योजना जिसमें नगर की योजना भी है।
  2. भूमि उपयोग का विनियमन और भवनों का निर्माण।
  3. आर्थिक एवं सामाजिक विकास योजना।
  4. सड़कें एवं पुल।
  5. घरेलू, औद्योगिक एवं वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए जल प्रदाय।
  6. लोक स्वास्थ्य स्वच्छता, सफाई और कूड़ा करकट प्रबंधन।
  7. अग्निशमन सेवाएँ।
  8. नगर वानिकी, पर्यावरण सरंक्षण एवं पारिस्थितकी आयोमों की अभिवृद्धि।
  9. समाज के कमजोर वर्गों के हितों का संरक्षण, जिनमें मानसिक रोगी व विकलांग शामिल हैं।
  10. गंदी-बहती सुधार और प्रोन्नयन।
  11. नगरीय निर्धनता उन्मूलन।
  12. नगरीय सुख-सुविधाओं जैसे- पार्क, उद्यान, खेल के मैदानों की व्यवस्था।
  13. सांस्कृतिक, शैक्षिक व सौंदर्य पक्ष आयामों की अभिवृद्धि।
  14. शव गाड़ना तथा शवदाह, दाहक्रिया व श्मशान और विद्युत शवदाह गृह।
  15. कांजी हाउस पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण।
  16. जन्म एवं मृत्यु से संबंधित महत्वपूर्ण सांख्यिकी।
  17. जन-सुविधाएं जिनमें मार्गों पर विद्युत व्यवस्था, पार्किंग स्थल, बस स्टैंड तथा जन सुविधाएं सम्मिलित हैं।
  18. वधशालाओं और चर्म शोधनशालाओं का विनियमन।

तीन प्रकार की नगरपालिकाएं –

यह अधिनियम प्रत्येक राज्य में निम्नलिखित तीन प्रकार की नगरपालिकाओं की संरचना का उपबंध करता है –

  1. नगर पंचायत (किसी भी नाम से) परिवर्तित क्षेत्र के लिए।
  2. नगरपालिका परिषद छोटे शहरी क्षेत्रों के लिए।
  3. बड़े शहरों के लिए नगरपालिका निगम।

इसके अपवाद स्वरूप यदि कोई शहरी क्षेत्र है जहाँ की शहरी सुविधाएं किसी औद्योगिक प्रतिष्ठान द्वारा मुहैया कराई जा रही हैं, तब राज्यपाल उस क्षेत को एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विनिर्दिष्ट कर सकते है।

इस स्थिति में नगरपालिका का गठन नहीं किया जा सकता है।

नगरपालिकाओं का कार्यकाल –

यह अधिनियम प्रत्येक नगरपालिका का कार्यकाल 5 वर्ष की अवधि के लिए निर्धारित करता है।

इसे इसकी अवधि पूर्व समाप्त किया जा सकता है।

उसके बाद एक नई नगरपालिका का गठन किया जाएगा – (अ) इसकी 5 वर्ष की अवधि समाप्त होने के पूर्व या, (ब) विघटन होने की दशा में इसे विघटन होने की तिथि से 6 माह की अवधि तक।

ऐसी स्थिति जहाँ भंग नगरपालिका का बचा हुआ समय छह महीने से कम हो, उस अवधि के लिए नई नगरपालिका के लिए किसी चुनाव की आवश्यकता नहीं होगी।

समयपूर्व भंग के पश्चात् पुनः गठित नगरपालिका केवल बची हुई अवधि के लिए ही कार्य करेगी।

शहरी शासकों के प्रकार –

भारत में निम्नलिखित आठ प्रकार के स्थानीय निकाय नगर क्षेत्रों के प्रकाशन के लिए सृजित किए गए हैं –

  1. नगर निगम
  2. नगरपालिका
  3. अधिसूचित क्षेत्र समिति
  4. नगर क्षेत्रीय समिति
  5. छावनी बोर्ड
  6. नगरीय क्षेत्र
  7. न्यास पत्तन
  8. विशेष उद्देश्य हेतु अभिकरण

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