सिन्धु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता)
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20वीं शताब्दी के आरंभ तक इतिहासकारों का मानना था कि वैदिक सभ्यता ही भारत की प्राचीनतम सभ्यता है। लेकिन 20वीं शताब्दी के तीसरे दशक (1921 ई.) में रायबहादूर दयाराम साहनी ने हड़प्पा नामक स्थान पर इसके अवशेष खोजे थे। इसे हड़प्पा सभ्यता या सिन्धु घाटी सभ्यता कहा गया। क्योंकि इसके प्रथम अवशेष हड़प्पा नामक स्थान से प्राप्त हुए थे तथा आरंभिक स्थानों में से ज्यादातर सिन्धु नदी के किनारे स्थित थे।
सिन्धु घाटी सभ्यता के निर्माता –
इस सभ्यता के निर्माता संभवतः द्रविड़ जाति के लोग थे। इतिहासकार डॉ. गुहा के अनुसार इस सभ्यता के निर्माता अग्नेय, अल्पाइन व मंगोल जाति के लोग थे।
सभ्यता का काल –
इस सभ्यता के काल निर्धारण के संबंध में भी इतिहासकारों के बीच मतभेद है।
(क) इतिहासकार व्हीलर के अनुसार 2500 ई.पू. से 1500 ई.पू. था।
(ख) डॉ. वी.ए. स्मिथ के अनुसार 2500 ई.पू. से 1500 ई.पू. था।
(ग) डॉ. आर.के. मुखर्जी के अनुसार 3250 ई.पु. से 2750 ई.पू. था।
(घ) डी.पी. अग्रवाल के अनुसार 2300 ई.पु. से 1750 ई.पु. था।
सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषताएँ –
विकसित अवस्था में इस सभ्यता के केन्द्रों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नानुसार थी –
नियोजित नगर –
नगर दुर्ग व निचली बस्तियों में आबादी का विभाजन, एक समान ईंट, लेखन-कला का ज्ञान, मनके, बाट-माप, काँसे के औजारों का उपयोग आदि।
नगर योजना –
विश्व प्रसिद्ध नगर-निर्माण योजना के कारण यह नगरीय सभ्यता कही जाती है। यहाँ के नगरों का निर्माण सुनियोजित ढंग से किया गया था तथा सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी।
भवन निर्माण –
भवनों का निर्माण एक पंक्ति में कच्ची व पक्की ईंटों द्वारा किया जाता था। प्रत्येक घर में रसोईघर, स्नानघर, आँगन व शौचालय की व्यवस्था थी। भवनों के दरवाजे राजमार्गों की तरफ न खुलकर गली में पीछे की तरफ खुलते थे। मकान छोटे-बड़े एक या दो मंजिले होते थे।
अन्नागार –
उत्खनन में मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा में विशाल अन्नागार के प्रमाण मिले हैं। ये अन्नागार इस तथ्य को दर्शाते हैं की सैन्धववासी काफी मात्रा में अन्न का भण्डारण कर उसे सुरक्षित कर लेते थे।
सामाजिक दशा –
इस काल में समाज चार वर्गों में विभाजित था, जैसे –
(क) विद्वान – इसके अंतर्गत पुरोहित, वैद्य व ज्योतिषी आते थे।
(ख) योद्धा – इसके अंतर्गत सैनिक व राजकीय अधिकारी आते थे।
(ग) व्यवसायी – इसके अंतर्गत व्यापारी वर्ग के लोग आते थे।
(घ) श्रमजीवी – इसके अंतर्गत मेहनत-मजदूरी करने वाले लोग आते थे।
भोजन –
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग शाकाहारी व माँसाहारी दोनों प्रकार के भोजन करते थे।
आभूषण –
विभिन्न धातुओं द्वारा निर्मित आभूषणों का प्रयोग स्त्री व पुरुषों द्वारा किया जाता था। आभूषण सोने, चाँदी, कीमती पत्थर, हाथी दाँत, ताम्बे व सीप आदि के बने होते थे।
मनोरंजन के साधन –
इस सभ्यता के लोग शतरंज, जुआं, नृत्य, संगीत आदि से मनोरंजन करते थे।
मृतक संस्कार –
इस सभ्यता के लोग शव को जमीन में दफनाते थे। कुछ लोग शव को जलाने के बाद उसकी राख को किसी पात्र में रखकर जमीन में गाड़ देते थे।
स्त्रियों की दशा –
इस सभ्यता के समाज में नारियों को स्थिति सम्मानजनक थी। समाज मातृ प्रधान था।
आर्थिक दशा
कृषि –
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग खेती में लकड़ी के हल व कटाई के लिए पत्थर की बनी हँसियों का प्रयोग करते थे। गेहूँ, जौ, मटर, अनार आदि की खेती करते थे। खेतों की सिंचाई तालाब, नदी, कुओं तथा वर्षा के जल से की जाती थी।
व्यवसाय –
इस सभ्यता के लोगों के व्यापारिक संबंध विदेशों से थे। उनका व्यापार थल व जल मार्ग से होता था। वस्त्र, आभूषण, पात्र, अस्त्र-शस्त्र आदि का व्यापार काफी मात्रा में होता था।
मापतौल –
मापतौल की इकाई आजकल की तरह सोलह थी। माप के लिए सीपी के टुकड़ों तथा तौल के लिए बाट का प्रयोग किया जाता था। अधिकांश बाट घनाकार होते थे।
पशुपालन –
इनका प्रमुख व्यवसाय पशुपालन भी था। ये लोग भेड़, बकरी, गाय, बैल, सूअर, हाथी आदि पालते थे।
धार्मिक दशा –
लोग केवल भौतिकवादी ही नहीं थे, बल्कि उनकी रुची धार्मिक क्षेत्र में भी थी। ये लोग मातृदेवी के उपासक थे। इसके पीछे उनकी कल्पना सृष्टि निर्मात्री नारी तत्व की थी। पुरुष देवों में भगवान शिव की पूजा करते थे। योनी पूजा का भी प्रमाण मिला है। वृक्षों में पीपल, महुआ, तुलसी व पशुओं में कूबड़ वाले बैल की पूजा की जाती थी।
लिपि –
सिन्धुवासी लिपि से परिचित थे। उनकी अपनी मौलिक लिपि थी। इसके अब तक 400 चिह्नों की पहचान की जा चुकी है। यह चित्रात्मक आधार पर निर्मित की गई थी।
हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल
क्र.सं. | प्रमुख स्थल | उत्खननकर्ता | वर्ष | वर्तमान स्थिति |
1. | हड़प्पा | दयाराम साहनी | 1921 | पंजाब प्रांत (पाकिस्तान) |
2. | मोहनजोदड़ो | राखलदास बनर्जी | 1922 | सिंध प्रांत (पाकिस्तान) |
3. | सुल्कागेंडोर | ऑरल स्टाइन | 1927 | बलूचिस्तान |
4. | सूतकाकोट | जॉर्ज डेल्स | 1962 | बलूचिस्तान |
5. | बालाकोट | जॉर्ज वेल्स | 1962 | बलूचिस्तान |
6. | अमरी | जे.एम. कजाक | 1959-61 | सिंध |
7. | लोथल | एस.एम. तलवार | 1953-56 | अहमदाबाद (गुजरात) |
8. | कालीबंगा | बी.बी. लाल व वी.के.थापर | 1961 | हनुमानगढ़ (राजस्थान) |
9. | बनवाली | रविन्द्र सिंह बिष्ट | 1923-24 | हिसार (हरियाणा) |
10. | कोटदीजी | फजल अहमद खान | 1955-57 | सिंध प्रांत (पाकिस्तान) |
11. | देसलपुर | पी.पी. पाण्डेय व एम.ए. ढाके | – | भुज जिला (गुजरात) |
(1) केन्द्रीय नगर –
सिन्धु घाटी सभ्यता के तीन केन्द्रीय नगर मोहनजोदड़ो,हड़प्पा तथा धौलावीरा थे, जो समकालीन बड़ी बस्तियाँ थी।
हड़प्पा –
हड़प्पा पहला नगर था, जहाँ खुदाई की गई। यह वर्तमान पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब प्रांत के मांटगोमरी जिले में रावी नदी के बाएं तट पर स्थित है। इसके बारे में जानकारी 1921 ई. में हुई थी। इस नगर के अवशेष लगभग 3 मिल के घेरे में फैले हुए हैं।
मोहनजोदड़ो –
वर्तमान में यह स्थान पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के किनारे स्थित प्रमुख नगर था। यह सिन्धु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा और प्रमुख नगर था। मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ है, मृतकों का टीला।
धौलावीरा –
हड़प्पाकालीन नगरों के क्रम में धौलावीरा एक नवीनतम खोज है। यह नगर गुजरात के रन के मध्य कच्छ जिले में स्थित है। यह नगर तीन भागों में विभाजित था, जबकि इस सभ्यता के अन्य नगर दो भागों में विभाजित थे। इस स्थान की जानकारी सन 1990-91 में हुई थी।
(2) तटीय नगर या पतन –
सिन्धु घाटी सभ्यता के अनेक नगर जो बंदरगाह के रूप में कार्य करते थे, अरब सागर के तट पर विकसित हुए थे।
लोथल –
गुजरात राज्य के अहमदाबाद जिले के धोलका तालुका में भोगवा नदी के समीप स्थित लोथल, हड़प्पाकालीन सभ्यता का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था। यह पूरा नगर ही दीवारों से घिरा था। यहाँ के निवासी चावल भी उगाने थे।
सुत्कागेंडोर –
मकरान तट पर स्थित यह नगर शुष्क व बंजर क्षेत्र होकर भी प्राकृतिक बंदरगाह के कारण सिन्धु सभ्यता का प्रमुख नगर था।
अल्लाहदिनों –
यह स्थान सिन्धु व अरब सागर के संगम से लगभग 16 किमी पूर्वोत्तर पाकिस्तान में कराची से लगभग 40 किमी पूर्व में स्थित है। इस नगर के भवनों के भीतर और बाहर दोनों ओर बड़ी समरूपता है।
बालाकोट –
यह स्थान पाकिस्तान के लासबेला घाटी व सोमानी खाड़ी के दक्षिण पूर्व में खुटकेड़ा के मैदानों के मध्य स्थित है। उत्खनन में पूर्व से पश्चिम की ओर दो अन्य छोटी गलियों के साथ इस क्षेत्र को समकोण पर काटती हुई एक चौड़ी सड़क मिली है।
(3) अन्य प्रमुख नगर –
कालीबंगा –
राजस्थान राज्य के हनुमानगढ़ जिले में घग्घर नदी के दक्षिण किनारे पर स्थित है। यहाँ पर हड़प्पा पूर्व-संस्कृति के अवशेष मिले हैं। उत्खनन के दौरान एक जोता हुआ खेत भी मिला है।
चन्हुदड़ो –
यह वीरान क़स्बा पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित था। इस स्थल से प्राप्त अवशेषों में यह स्पष्ट होता है कि यह सीलों या मुद्राओं के उत्पादन का मुख्य केंद्र था।
बनवली –
यह हरियाणा राज्य के हिसार जिले में स्थित है। इस स्थल की सभ्यता का द्वितीय युग हड़प्पाकालीन था। इसकी नगर योजना हड़प्पाकालीन नगरों से भिन्न थी।
रोजदी –
यह हड़प्पाकालीन नगर रोजदी के आधुनिक गाँव से 2 किमी पश्चिम में भादरा नदी के किनारे और राजकोट से 50 किमी दक्षिण में है। इस स्थल पर उत्खनन से इस सभ्यता के अवशेष मिले हैं।
देसलपुर –
यह नगर गुजरात राज्य के भुज जिले में भादर नदी के किनारे स्थित था। यहाँ पर हड़प्पाकालीन किलेबंदी का प्रमाण मिला है।
स्थल व नदी तट
क्र.सं. | स्थल | नदी तट |
1. | हड़प्पा | रावी |
2. | मोहनजोदड़ो | सिन्धु |
3. | लोथल | भोगवा |
4. | कालीबंगा | घग्घर |
5. | सुतकागेंडोर | दाश्क |
6. | चन्हुदड़ो | सिंध |
7. | सुतकाकोट | शादोकौरा |
8. | बनवाली | घग्घर |