लार्ड कर्जन का प्रशासन
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लार्ड कर्जन का प्रशासन के क्षेत्र में कार्य व सुधार निम्नानुसार हैं –
सचिवालय –
कर्जन ने सचिवालय की कार्यप्रणाली में व्यापक सुधार किए। उसका मानना था की नौकरशाही पुरानी व विलंबकारी हो चुकी है। टिप्पणी के लेखन व रिपोर्ट की संख्या इतनी बढ़ गई थी कि फाइलों का अंबार लग गया था।
एक केस की फाइल ढूँढने में ही अनावश्यक समय लग जाता था।
सचिवालय एक दलदल की भांति हो गया था।
जहाँ हर समस्या दब जाती थी। वास्तविक प्रश्न टिप्पणियों के ढेर में गायब हो जाता था।
एक प्रश्न कर्जन के पास 61 वर्षों के बाद पहुँचा था।
विभागीय सचिवों की एक समिति ने कर्जन की सिफारिशों के अनुसार नियम बनाए जो केन्द्रीय सचिवालय पर लागू किए गए।
इस नियमावली की प्रतियाँ प्रांतीय सरकारों को भी भेज दी गई।
व्यक्तिगत सम्पर्क से समस्या सुलझाने पर बल दिया गया ताकि अनावश्यक टिप्पणी लिखने से बचा जा सके।
सरकारी रिपोर्टों और आँकड़ों के प्रकाशन में भी कमी की गई परन्तु इससे जनता को आवश्यक सूचनाएं मिलना बंद हो गई।
पुलिस विभाग –
सर एंड्यू फ्रेजर की अध्यक्षता में 1902 में गठित पुलिस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर पुलिस विभाग में 1903 में व्यापक सुधार किए गए।
पुलिस विभाग में 1861 के बाद कोई सुधार नहीं किए गए थे।
लार्ड कर्जन ने आयोग की निम्न सिफारिशों को स्वीकार कर लिया –
- उच्च पदों पर विभागीय पदोन्नति की जगह सीधी भर्ती की जाए।
- एक आरक्षक का न्यूनतम वेतन उसके जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त हो तथा प्रतिमाह 8 रूपये से कम न हो।
- कमिश्नर ने प्रांतीय पुलिस बल बढ़ाने तथा ग्रामीण पुलिस सेवा का अधिक प्रयोग करने की सलाह दी।
- अधिकारियों व आरक्षकों के लिए प्रशिक्षण स्कूलों की आवश्यकता बताई गई।
- बिना औपचारिक वारंट के गिरफ्तारी अवैध घोषित कर दी गई। अधिकारियों को मौखिक साक्ष्य के बदले घटनास्थल पर जानकारी एकत्र करने की सलाह दी गई।
इन सुझावों पर अमल करने से पुलिस विभाग का खर्च 26 लाख पौण्ड बढ़ गया लेकिन अपेक्षित सुधार नहीं हो सका।
कृषि व्यवस्था में सुधार –
पंजाब भूमि अधिनियम –
कर्जन ने 1900 में पंजाब भूमि हस्तांतरण कानून बनाया।
इसके अनुसार – अकृषक किसी कृषक की भूमि नहीं खरीद सकते थे।
कृषक अपनी भूमि को 20 वर्ष से अधिक रहन नहीं रख सकता था।
ऋण की अदायगी में किसान की भूमि किसी भी अवस्था में नीलाम नहीं की जा सकती थी।
इस कानून ने कृषकों को महाजनों के पंजो से छुड़ाने का प्रयत्न किया तथा सेना पर पड़ने वाले दूषित प्रभाव को रोकने के लिए इससे सहायता मिली, क्योंकि पंजाब की सेना में यहाँ के कृषक ही थे।
कृषि बैंक –
कृषकों को साहूकारों से बचाने के उद्देश्य से तथा कम ब्याज पर ऋण दिलवाने के लिए कृषि बैंक स्थापित किए।
इन बैंको ने साहूकारों का स्थान ले लिया।
सहकारी समितियां –
किसान वर्ग में अपनी मदद स्वयं करने एवं आत्मविश्वास की भावना जागृत करने के विचार से सहकारी समितियों की स्थापना की गई।
कृषि विभाग –
भारत में 1901 में कृषि विभाग की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य यह था कि अब सरकार कृषि की तरफ भली प्रकार ध्यान दे सके। इस विभाग का सर्वोच्च अधिकारी कृषि इंस्पेक्टर जनरल था।
सिंचाई व्यवस्था –
भारतीय सिंचाई समस्या पर विचार करने हेतु 1901 में एक आयोग नियुक्त किया गया जिसकी सिफारिशों का क्रियान्वयन कर्जन के बाद हुआ और जिसके अनुसार अनेक नहरों के निर्माण की स्वीकृति दे दी गई।
आर्थिक सुधार –
लार्ड कर्जन ने प्रशासन में केन्द्रीयकरण की नीति के विपरीत आर्थिक सुधारों में विकेंद्रीकरण की नीति अपनाई तथा इसके अनुसार प्रान्तों की बचतों को उनके ही पास छोड़ने का निश्चय किया गया।
एक एक्ट पारित कर अंग्रेजी पौण्ड को भारत में चलाया गया तथा उसकी विनिमय दर 15 रूपये निश्चित की गई।
इसके बाद आयकर सीमा भी 500 रूपये से बढ़ाकर 1 हजार रूपये कर दी गई।
अकाल –
लार्ड कर्जन ने प्रायः प्रत्येक सूखाग्रस्त क्षेत्र का दौरा किया तथा अकाल पीड़ियों के लिए सहायता जुटाई।
फिर भी शासन पर कंजूसी के आरोप लग रहे थे तथा लगान व करों में माफी की मांग की जा रही थी।
कर्जन ने लार्ड मैकडोनाल के नेतृत्त्व में एक आयोग गठित किया।
इसने अकाल के लिए पूरी तैयारी करने, जनता का मनोबल बनाए रखने, गैर सरकारी क्षेत्रों से सहायता लेने, रेलवे सुविधाओं में वृद्धि करने तथा कृषि बैंक स्थापित करने, सिंचाई की सुविधाओं में वृद्धि करने पर जोर दिया।
लार्ड कर्जन ने कमीशन के समस्त सुझावों को स्वीकार करते हुए कृषि, सिंचाई और लगान सम्बन्धी सुधारों को कार्यान्वित किया।
रेलवे व्यवस्था –
रेलवे के लोक सेवा विभाग को समाप्त कर दिया गया।
अब रेलवे विभाग का सारा कार्य तीन सदस्यीय रेलवे बोर्ड को सौंप दिया गया।
नई रेलों का निर्माण कराया गया जिससे यातायात के साधनों में काफी वृद्धि हो गई।
पुरानी रेलवे लाइनों की मरम्मत करवाई गई।
पुरातत्व विभाग –
लार्ड कर्जन ने इतिहास और पुरातत्व सामग्री की सुरक्षा तथा संग्रह के लिए 1904 में पुरातत्व विभाग की स्थापना की तथा अनेक स्थानों पर उत्खनन कार्य भी करवाए। इससे इतिहास की विस्तृत अथवा विलुप्त कड़ियों को प्राप्त करना संभव हो सका।
शिक्षा व्यवस्था –
वुड्स डिस्पेच में विश्वविद्यालय को तथा उसकी सीनेट और सिंडिकेट को पर्याप्त अधिकार दिए गए थे।
शैक्षिक सुधारों के अंतर्गत लार्ड कर्जन ने 1902 ई. में विश्वविद्यालय आयोग का गठन किया तथा भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम (1904 ई.) पास किया।
परीक्षा, पाठ्यक्रम तथा धन आदि की व्यवस्था सीनेट को करनी थी व सीनेट में मनोनीत और निर्वाचित प्रतिनिधियों में निर्वाचितों की संख्या अधिक थी।
इस प्रकार विश्वविद्यालयों को स्वशासी संस्था के रूप में विकसित किया गया था।
हंटर आयोग के आधार पर रिपन ने भी इस स्वरूप और कार्य को आगे बढ़ाया लेकिन लार्ड कर्जन ने इस व्यवस्था को बदल दिया।
लार्ड कर्जन ने सीनेट के आकार को छोटा करके उसमें निर्वाचित सदस्यों की संख्या घटा दी और मनोनीत सदस्यों की संख्या बढ़ा दी जिसके परिणामस्वरूप विश्वविद्यालय पूरी तरह सरकारी संस्था बन गए।
महाविद्यालय की मान्यता के कठोर नियम बनाकर महाविद्यालय की स्थापनाओं को रोका गया।
उसने अनेक कॉलेजों को (इंटर) द्वितीय श्रेणी के आधार पर बंद करवा दिया।
कॉलेजों में फीस बहुत अधिक बढ़ा दी।
सैनिक सुधार –
लार्ड कर्जन के समय 1900 में सेना का भारतीय कमांडर इन-चीफ लार्ड किचनर को नियुक्त किया गया।
इसने देशी सेनाओं को फिर अस्र-शस्र से सुसजित किया।
तोपखाने के सैनिकों को पहले से ज्यादा अच्छी बंदूकें दी गई।
1901 ई. में इम्पीरियल केडिट कोर की स्थापना की गई जो देशी राज्यों के राजकुमारों और कुलीन सैनिकों की फौज थी।
कर्जन के समय भारतीय सेनाओं का विदेशों में प्रयोग किया गया।
लार्ड कर्जन ने समुद्र तट की समुचित सुरक्षा की तरफ भी ध्यान दिया।