राजस्थानी साहित्य
Table of Contents
राजस्थानी साहित्य का इतिहास एवं परम्परा –
इसका प्रारम्भिक साहित्य हमें अभिलेखीय सामग्री के रूप में मिलता हैं, जिसमें शिलालेखों, अभिलेखों, सिक्कों तथा मुहरों में जो साहित्य उत्कीर्ण है उस राजस्थानी साहित्य को अभिलेखीय साहित्य कहा जा सकता है।
यद्यपि यह सामग्री अत्यल्प मात्रा में उपलब्ध होती है लेकिन जितनी भी सामग्री उपलब्ध होती है उसका साहित्यिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व है।
इस राजस्थानी साहित्य में लिखित साहित्य ‘वाणीनिष्ठता’ की विशेषता को लिए रहा है जिसे लोकसाहित्य कहा गया है।
इस साहित्य की इतिहास परम्परा को हम निम्न रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं –
क्र.सं. | काल-परक | प्रवृत्ति-परक | काल-क्रम |
1. | प्राचीन काल | वीरगाथा काल | 1050 से 1550 ई. |
2. | पूर्व मध्य काल | भक्ति काल | 1450 से 1650 ई. |
3. | उत्तर मध्य काल | शृंगार, रीति एवं नीति परक काल | 1650 से 1850 ई. |
4. | आधुनिक काल | विविध विषयों एवं विधाओं से युक्त | 1850 से अद्यतन |
राजस्थानी साहित्य की रचना गद्य व पद्य दोनों में की गई हैं। इसका लेखन मुख्यतः निम्न विधाओं में किया गया हैं – ख्यात, वंशावली, वात, प्रकास, वचनिका, मरस्या, दवावैत, रासौ, वेलि, झमाल, झुलणा, परची, साखी, सिलोका, विगत आदि।
विरुद छतहरी किरतार बावनौ (कवि दुरसा आढ़ा)
विरुद छहतरी महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा है और किरतार बावनौ में उस समय की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति का वर्णन मिलता हैं। दुरसा आढ़ा अकबर के दरबारी कवि थे। इनकी पीतल की बनी मूर्ति अचलगढ़ के अचलेश्वर मंदिर में विद्यमान है।
दयालदास री ख्यात (दयालदास)
दो खण्डों के इस ग्रन्थ में जोधपुर एवं बीकानेर के राठौड़ों के प्रारम्भ से लेकर बीकानेर महाराजा सरदार सिंह के राज्याभिषेक तक की घटनाओं का वर्णन मिलता हैं।
पद्मावत (मलिक मुहम्मद जायसी)
1540 ई. में रचित इस महाकाव्य में अलाउद्दीन खिलजी एवं मेवाड़ के शासक रावल रतनसिंह के मध्य हुए युद्ध (1301 ई.) का वर्णन किया गया हैं।
नागर समुच्चय (भक्त नागरीदास)
यह ग्रन्थ किशनगढ़ के शासक सांवत सिंह (नागरीदास) की विभिन्न रचनाओं संग्रह है। सावंत सिंह ने राधा-कृष्ण की प्रेमलीला विषयक शृंगार रसात्मक रचनाएं की थी।
हम्मीर महाकाव्य (नयनचन्द्र सूरि)
जैन मुनि नयनचन्द्र सूरि के संस्कृत भाषा में रचित इस ग्रन्थ में रणथम्भौर के चौहान शासकों का वर्णन किया है।
वेलि किसन रुक्मणि री (पृथ्वीराज राठौड़)
सम्राट अकबर के दरबारी कवि पृथ्वीराज बीकानेर शासक रायसिंह के छोटे भाई थे तथा पीथल नाम से साहित्य रचना करते थे। इन्होंने इस ग्रन्थ में श्री कृष्ण एवं रुक्मणि के विवाह की कथा का वर्णन किया है।
दुरसा आढ़ा ने इस ग्रन्थ को पाँचवा वेद कहा है।
कान्हड़दे प्रबन्ध (पद्मनाभ)
इस ग्रन्थ में जालौर के वीर शासक कान्हड़दे एवं अलाउद्दीन खिलजी के मध्य हुए युद्ध एवं कान्हड़दे के पुत्र व अलाउद्दीन खिलजी के मध्य हुए युद्ध व वीरमदे व अलाउद्दीन की पुत्री फिरोजा के प्रेम-प्रसंग का वर्णन किया गया है।
बिहारी सतसई (महाकवि बिहारी)
बिहारी जयपुर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे। ब्रजभाषा में रचित इनका यह प्रसिद्ध ग्रन्थ शृंगार रस की उत्कृष्ट रचना है।
बाँकीदास री ख्यात (बाँकीदास)
जोधपुर के शासक मानसिंह के काव्य गुरु बाँकीदास द्वारा रचित यह ख्यात राजस्थान के इतिहास का स्रोत है।
इनके ग्रंथों का संग्रह बाँकीदास ग्रंथावली के नाम से प्रकाशित है।
कुवलयमाला (उद्योतन सूरी)
इस प्राकृत ग्रन्थ की रचना उद्योतन सूरी ने जालौर में रहकर 778 ई. के आसपास की थी जो तत्कालीन राजस्थान के सांस्कृतिक जीवन की अच्छी झाँकी प्रस्तुत करता है।
ब्रजनिधि ग्रंथावली
यह जयपुर के महाराजा प्रतापसिंह द्वारा रचित काव्य ग्रंथों का संकलन है।
हम्मीर हठ, सुर्जन चरित
बूँदी शासक राव सुर्जन के आश्रित कवि चन्द्रशेखर द्वारा रचित।
प्राचीन लिपिमाला, राजपूताने का इतिहास (पं. गौरीशंकर ओझा)
पंडित गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने हिंदी में सर्वप्रथम भारतीय लिपि का शास्र लेखन कर अपना नाम गिनीज बुक में लिखवाया। उन्होंने राजस्थान के देशी राज्यों का इतिहास भी लिखा है। इनका जन्म सिरोही में 1863 ई. में हुआ था।
वीर विनोद (कविराज श्यामलदास)
कविराज श्यामलदास मेवाड़ महाराणा सज्जनसिंह के दरबारी कवि थे। चार खण्डों में रचित इस ग्रन्थ पर कविराज को ब्रिटिश सरकार द्वारा केसर-ए-हिन्द की उपाधि प्रदान की गई। इस ग्रन्थ में मेवाड़ के विस्तृत इतिहास वृत्त सहित अन्य संबंधित रियासतों के इतिहास का भी वर्णन है। मेवाड़ महाराणा सज्जनसिंह ने श्यामलदास को कविराज एवं महामहोपाध्याय की उपाधि से सम्मानित किया।
चेतावणी रा चूंगट्या (केसरीसिंह बारहठ)
इन दोहों के माध्यम से कवि केसरीसिंह बारहठ ने मेवाड़ के स्वाभिमानी महाराजा फतेहसिंह को 1903 ई. के दिल्ली दरबार में जाने से रोका था।
अन्य प्रमुख रचनाएँ –
मीराबाई के पद, पृथ्वीराज राठौड़ की वेलि किसण रूकमणि री, माधोदास दधवाडीया की रामरासो, किशोरदास का राजप्रकास, जोधराज का हम्मीर रास आदि।