मोहनदास करमचंद गाँधी
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महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 ई. को गुजरात के कठियावाड़ के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था।
13 वर्ष की आयु में उनका विवाह कस्तूरबा गाँधी से हो गया।
उच्च अध्ययन के लिए 1887 ई. में इंग्लैण्ड गए और 1891 में वहाँ से बैरिस्ट्री पास कर लौटे।
1893 ई. में दक्षिण अफ्रीका गए।
दक्षिण अफ्रीका में 20 वर्ष के प्रवास के दौरान महात्मा गाँधी ने रंगभेद के खिलाफ लड़ाई की और कई बार जेल गए।
गाँधीजी ने नेटाल में भारतीय कांग्रेस की स्थापना की। इनके प्रयासों से ही वहाँ की गोरी सरकार ने भारतीयों के खिलाफ बनाए गए कानूनों को 1914 ई. में रद्द कर दिया।
1915 ई. में महात्मा गाँधी वापस भारत आ गए।
9 जनवरी प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाते है।
मोहनदास करमचंद गाँधी ने गुजरात प्रांत के अहमदाबाद जिले में साबरमती नदी के किनारे साबरमती आश्रम की स्थापना की।
चम्पारन सत्याग्रह (1917 ई.)
उनका पहला अवज्ञा आंदोलन चम्पारन सत्याग्रह 1917 ई. में बिहार के चम्पारन जिले से आरम्भ हुआ। किसानों ने गाँधीजी को सहायता के लिए बुलाया।
चम्पारन किसानों को उनकी जमीन के 3/20वें भाग पर नील की खेती करने को विवश किया जाता था और उससे होने वाले उत्पाद को उन्हें सरकार द्वारा निर्धारित मूल्यों पर बेचना पड़ता था।
इसमें बाबू राजेन्द्र प्रसाद, मजहर उल हक, जे.बी.कृपलानी, नरहरी पारीख और महादेव देसाई ने गाँधीजी की मदद की।
सरकार द्वारा नियुक्त जांच समिति, जिसमें गाँधीजी भी एक सदस्य थे, तीन-कठिया व्यवस्था के उन्मूलन में सफल रही।
अहमदाबाद मिल हड़ताल (1918)
महात्मा गाँधी ने मिल मालिकों और श्रमिकों के बीच प्लेग बोनस के बंद किए जाने के मुद्दे पर हुए विवाद में हस्तक्षेप किया।
यह उनकी प्रथम भूख हड़ताल थी जिसके दबाव में अंततः मिल मलिक श्रमिकों का वेतन बढ़ाने को राजी हुए।
खेड़ा सत्याग्रह (1918 ई.)
1918 ई. में गुजरात के खेड़ा जिले में फसलें खराब हो गई थीं लेकिन सरकार पुरे भू-राजस्व की वसूली पर अडिग थी।
इसमें महात्मा गाँधी ने तब तक भू-राजस्व का भुगतान न करने की सलाह दी जब तक वे किसानों की मांगे नहीं मान लेते है।
सरकार ने केवल आर्थिक रूप से सक्षम किसानों से ही कर लेने की घोषणा की उसके बाद आंदोलन वापस ले लिया गया।
जलियांवाला बाग हत्याकांड
रॉलेक्ट एक्ट के विरुद्ध किया गया एक प्रदर्शन अंग्रेजी सेना द्वारा अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक नरसंहार में परिणत हुआ।
जहाँ 13 अप्रेल, 1919 को एक भारी और निरस्र भीड़ जमा हुई थी जो लोकप्रिय नेताओं सैफुद्दीन किचलू और सत्यपाल की गिरफ्तारी का विरोध कर रही थी।
जनरल डायर ने भीड़ पर गोलियां चलवाई जिसमें लगभग 1000 लोग मारे गए।
इस घटना की जाँच के लिए हंटर आयोग की नियुक्ति की गई लेकिन गाँधीजी ने आयोग की रिपोर्ट को नकार दिया।
रविन्द्र नाथ टैगोर ने इसके विरोध में अपनी नाइट की उपाधि लौटा दी।
इस हत्याकांड के विरोध में गाँधीजी ने केसर-ए-हिंद (भारत का सम्राट) की उपाधि लौटा दी जो प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों की सहायता करने के लिए उन्हें दी गई थी।
- 1919 ई. में खिलाफत आंदोलन का नेतृत्व किया।
- 1920 से 22 ई. तक असहयोग आंदोलन चलाया।
- 1922 ई. में चौरा-चौरी की घटना के बाद महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया।
- महात्मा गाँधी ने 1930 ई. के बेलगाँव में हुए अधिवेशन की अध्यक्षता की।
सविनय अवज्ञा आंदोलन
गाँधीजी के नेतृत्व में 1930 ई. में सविनय अवज्ञा आंदोलन आरम्भ किया गया।
इसकी शुरुआत 21 मार्च, 1930 ई. को डांडी मार्च से हुई जब अपने कुछ अनुयायियों के साथ वे अहमदाबाद से चल कर पश्चिमी तट पर स्थित डांडी गाँव पहुँचे।
उन्होंने 38.5 किमी. की यह यात्रा 25 दिनों में पूरी की और वे 6 अप्रैल, 1930 को डांडी पहुँचे।
वहाँ मोहनदास करमचंद गाँधी ने नमक कानून को तोड़ कर नमक बनाया और अंग्रेजी सरकार को चुनौती दी। इस यात्रा से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई।
5 मार्च, 1931 ई. में गाँधी-इरविन समझौता हुआ।
व्यक्तिगत सत्याग्रह –
महात्मा गाँधी के नेतृत्व में 17 अक्टूबर, 1940 ई. को व्यक्तिगत सत्याग्रह किया गया। इसके व्यक्तिगत सत्याग्रही विनोबा भावे थे।
गाँधीजी ने ग्राम उद्योग संघ, तालीमी संघ एवं गो रक्षा संघ की स्थापना की।
30 जनवरी, 1948 ई. को दिल्ली की एक प्रार्थना सभा में नाथूराम गोडसे नामक एक हत्यारे ने महात्मा गाँधी की गोली मारकर हत्या कर दी।
सत्य, अहिंसा, शाकाहार, ब्रह्मचर्य व सादगीपूर्ण जीवन गाँधीजी द्वारा किए गए पांच सिद्धांत थे।
भारत में 2 अक्टूबर को गाँधी जयंती के रूप में मनाया जाता है।
15 जून, 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा एक प्रस्ताव द्वारा 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।
पुस्तकें –
1. यंग इंडिया – 8 अक्टूबर, 1919 ई. को अहमदाबाद से इस समाचार पत्र का प्रकाशन किया। इसकी भाषा अंग्रेजी थी।
2. नवजीवन – इसका प्रकाशन 7 अक्टूबर, 1919 ई. को हिंदी एवं गुजराती भाषा में अहमदाबाद से हुआ।
3. हरिजन – इसका प्रकाशन हिंदी और गुजराती भाषा में 11 फरवरी, 1933 ई. को पूना में किया गया।
4. एन ऑटोबायोग्राफी – माई एक्सपेरिमेंट विद ट्रूथ – महात्मा गाँधी द्वारा लिखित अपने सत्य के प्रति अनुभवों पर आधारित पुस्तक।
महात्मा गाँधी के उपनाम –
क्र.सं. | लोकप्रिय नाम | किसके द्वारा दिया गया |
1. | राष्ट्रपिता | सुभाषचंद्र बोस |
2. | बापू | जवाहरलाल नेहरू |
3. | महात्मा | रविन्द्र नाथ टैगोर |
4. | One Man Boundary Force | माउन्ट बेटन |
5. | नंगा फकीर (मलंग बाबा) | खान अब्दुल गफ्फार खां |
6. | अर्ध नंगा फकीर | सेंट जेम्स पैलेस में फ्रैंक मॉरीश ने |
महात्मा गाँधी के प्रमुख कथन –
गवर्नर जनरल इरविन के द्वारा गाँधीजी के 11 सूत्री माँग पत्र को ठुकराए जाने पर कहा – “मैंने रोटी मांगी, लेकिन मुझे पत्थर मिला।”
भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरुआत करते समय गाँधीजी ने करो या मरो का नारा दिया।
द्वितीय गोलमेज सम्मलेन के विफल होने पर कहा – “सांप्रदायिक मतभेद की बर्फ का पहाड़ स्वतंत्रता के सूरज की गर्मी से पिघल जायेगा।”
“आजादी के बाद कांग्रेस के स्थान पर ‘लोक सेवक संघ’ की स्थापना होनी चाहिए।”
1931 ई. के करांची अधिवेशन में कहा कि – गाँधी मर सकता हैं परन्तु गाँधीवाद सदा जीवित रहेगा।
गाँधीजी की डांडी यात्रा के बारे में सुभाषचंद्र बोस ने कहा –
“महात्मा जी के डांडी मार्च की तुलना ‘इल्बा’ से लौटने पर नेपोलियन के पेरिस मार्च और राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने के लिए मुसोलिनी के रोम मार्च से की जा सकती है।”
उनके बारे में अल्बर्ट आइन्स्टाइन ने कहा –
“आने वाली पीढ़ियाँ शायद ही विश्वास करें कि इस प्रकार का हाड-मांस का मानव कभी पृथ्वी पर अवतरित हुआ था।”