ब्रह्म समाज (Brahma Samaj)
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ब्रह्म समाज– राजा राममोहन राय द्वारा 20 अगस्त, 1828 ई. को कलकता में ब्रह्म सभा की नींव रखी जो बाद में ब्रह्म समाज (Brahma Samaj) के नाम से प्रचलित हुई। राजा राममोहन राय ने अपने बंगला पत्र सम्बाद कौमुदी में इस नए समाज के सिद्धांतो के विषय में विस्तार से चर्चा की।
कट्टरपंथियों ने उनका घोर विरोध किया। ब्रह्म समाज के द्वार सभी के लिए खोल दिए गए। धर्म, संप्रदाय, वर्ण, लिंग और शिक्षा या आर्थिक स्थिति का कोई भी बंधन आस्तिकों के लिए नहीं रखा गया।
ईश्वर के निर्गुण-निराकार रूप की उपासना और आध्यात्मिक उन्नति के लक्ष्य को ही इसमें प्रधानता दी गई। इस समाज में भगवान और भक्त के बीच में किसी मध्यस्थ जैसे किसी पुजारी या किसी का कोई स्थान नहीं था।
इसमें ईश्वर भक्ति का सर्वश्रेष्ठ रूप प्राणीमात्र के प्रति प्रेम और मानव सेवा को स्वीकार किया गया।
देवेन्द्रनाथ टैगोर का योगदान –
देवेन्द्रनाथ टैगोर ने तत्वबोधिनी सभा (1839) की स्थापना की। इस सभा में ब्रह्म धर्म का संकलन किया।
इसमें ब्रह्मोपासना की विधि पर भी प्रकाश डाला गया।
इसके प्रमुख सदस्य ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, राजेन्द्रलाल मित्र, ताराचन्द्र चक्रवर्ती और प्यारेचन्द्र मित्र थे।
देवेन्द्रनाथ टैगोर ने एलेक्जेंडर डफ प्रभूत ईसाई मिशनरियों द्वारा भारतीय संस्कृति और धर्मों पर किए गए प्रहारों का निर्भीकतापूर्वक सामना किया।
केशवचंद्र सेन व ब्रह्म समाज –
केशवचंद्र सेन ने ब्रह्म समाज (Brahma Samaj) की लोकप्रियता में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
उन्होंने समाज के कार्यों में समाज सुधार कार्यक्रम को भी सम्मिलित किया गया।
उनके द्वारा स्थापित संगत सभा का उद्देश्य आध्यात्मिक और सामाजिक समस्याओं का समाधान करना था।
संगत सभा में जाति के बन्धनों और यज्ञोपवीत धारण करने, जन्मोत्सव, नामकरण, अंत्येष्टि जैसे
संस्कारों के परित्याग पर बल दिया गया।
उन्होंने मूर्तिपूजा का विरोध किया। उनका अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित पत्र इण्डियन मिरर ब्रह्म समाज का मुख्य पत्र बन गया।
उनकी प्रेरणा से बम्बई में प्रार्थना समाज और मद्रास में वेद समाज की स्थापना की गई।
केशवचन्द्र ने धर्म में समानता और स्वतंत्रता को अत्यधिक महत्त्व दिया।
केशव चन्द्र सेन धीरे-धीरे रहस्यवाद की ओर उन्मुख होने लगे।
ब्रह्म समाज का विभाजन –
1878 ई. में ब्रह्म समाज आदि और साधारण ब्रह्म समाज में विभाजित हो गया।
साधारण ब्रह्म समाज की स्थापना में आनंदमोहन बोस और शिवनाथ शास्री की प्रमुख भूमिका रही।
ब्रह्म समाज (Brahma Samaj) में मूलतः मानवधर्म को ही प्राथमिकता दी और परम्पराओं तथा मान्यताओं के स्थान पर बुद्धि और विवेक को महत्त्व दिया।