केंद्रीय मंत्रिपरिषद | Central Council of Ministers
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हमारी राजनैतिक और प्रशासनिक व्यवस्था की मुख्य कार्यकारी अधिकारी मंत्रिपरिषद होती है, इस केंद्रीय मंत्रिपरिषद का नेतृत्व प्रधानमंत्री करता है।
संविधान में संसदीय व्यवस्था के सिद्धांत विस्तार से नहीं लिए गए हैं परंतु अनुच्छेद 74 व 75 में इसके बारे में संक्षिप्त और सामान्य वर्णन है।
संवैधानिक प्रावधान –
अनुच्छेद-74 राष्ट्रपति को सहायता एवं परामर्श और सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद –
- राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होगा।
- यदि राष्ट्रपति चाहे तो वह एक बार मंत्रिपरिषद से पुनर्विचार के लिए कह सकता है लेकिन मंत्रिपरिषद द्वारा दुबारा भेजने पर राष्ट्रपति उसकी सलाह या परामर्श के अनुसार कार्य करेगा।
- मंत्रियों द्वारा राष्ट्रपति को दी गई सलाह की जाँच किसी न्यायालय द्वारा नहीं की जा सकती।
अनुच्छेद-75 मंत्रियों के बारे में अन्य उपबंध –
- प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा तथा अन्य मंत्रियों को नियुक्ति में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह कर कटेगा।
- प्रधानमंत्री सहित केंद्रीय मंत्रिपरिषद के सदस्यों की कुल संख्या, लोकसभा की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। इस उपबंध का समावेश 91वें संविधान संशोधन विधेयक, 2003 द्वारा किया गया है।
- संसद के किसी भी सदन का किसी भी राजनीतिक दल का सदस्य, यदि दल-बदल के आधार पर संसद की सदस्यता के अयोग्य घोषित कर दिया जाता है तो ऐसा सदस्य मंत्री पद के लिए भी अयोग्य होगा।
- मंत्री, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद पर बना रहेगा।
- मंत्रिपरिषद, लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी।
- राष्ट्रपति, मंत्रियों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाएगा।
- कोई मंत्री जो निरंतर छह माह की किसी अवधि तक संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं है। उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा।
- मंत्रियों के वेतन एवं भत्ते, संसद द्वारा निर्धारित किए जायेंगे।
अनुच्छेद 78 प्रधानमंत्री के कर्तव्य –
- प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को संघ के प्रशासन से संबंधित मामलों के बारे में मंत्रिपरिषद द्वारा लिए गए निर्णयों तथा विधायन के प्रस्तावों के बारे में सूचित करें।
- संघ के प्रशासन आदि के संबंधित मामलों तथा प्रस्तावित विधायनों के बारे में राष्ट्रपति द्वारा मांगी गई सूचनाएं प्रेषित करे।
- यदि राष्ट्रपति चाहें तो किसी ऐसे मामले पर जिसमें की किसी मंत्री द्वारा निर्णय लिया जा चुका है लेकिन जिस पर मंत्रीपरिषद ने विचार नहीं किया है, उसे मंत्रिपरिषद के विचारार्थ भेज दे।
अनुच्छेद 88 – सदन में मंत्रियों के अधिकार –
प्रत्येक मंत्री को किसी भी सदन में बोलने तथा कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार होगा।
उसे दोनों सदनों की संयुक्त बैठक तथा संसदीय समिति जिसका उसे सदस्य बनाया गया हो, की बैठक में भी भाग लेने का अधिकार होगा।
लेकिन उसे मत देने का अधिकार केवल उसी सदन में होगा जिसका वह सदस्य है।
मंत्रियों की नियुक्ति –
प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं तथा प्रधानमंत्री की सलाह से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करते हैं।
अर्थात् राष्ट्रपति केवल उन्ही व्यक्तियों को मंत्री नियुक्त कर सकते है, जिनकी सिफारिश प्रधानमंत्री करता है।
सामान्यतः लोकसभा/राज्यसभा से ही संसद सदस्यों की मंत्रिपद पर नियुक्ति होती है।
कोई व्यक्ति संसद की सदस्यता के बिना मंत्रिपद धारण करता है तो उसे छह माह के भीतर संसद के किसी भी सदन की सदस्यता लेनी होगी अन्यथा उनका मंत्री पद रद्द कर दिया जाता है।
मंत्रियों द्वारा ली जाने वाली शपथ –
अपनी शपथ में वह कहता है कि मैं –
- भारत के संविधान में सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा।
- भारत की अखंडता और संप्रभुता को अक्षुण्ण रखूँगा।
- अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूंगा।
- भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि अनुसार न्याय करूंगा।
मंत्रिपरिषद की संरचना –
मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की तीन श्रेणियां होती हैं – कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री व उपमंत्री।
उनके बीच पदक्रम, वेतन तथा राजनैतिक महत्त्व संबंधी अंतर होते हैं।
कैबिनेट मंत्री –
इनके पास केंद्र सरकार के महत्वपूर्ण मंत्रालय, जैसे- गृह, रक्षा, वित्त, विदेश व अन्य मंत्रालय होते हैं।
वे कैबिनेट के सदस्य होते हैं और इसकी बैठकों में भाग लेते हैं तथा नीति-निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
राज्य मंत्री –
इनको मंत्रालय/विभागों का स्वतंत्र प्रभार दिया जा सकता है अथवा उन्हें कैबिनेट मंत्री के साथ सहयोगी बनाया जा सकता है।
सहयोग के मामलों में, उन्हें कैबिनेट मंत्री के मंत्रालय के विभागों का प्रभार दिया जा सकता है अथवा मंत्रालय से संबंधित कोई विशेष कार्य दिया जा सकता है।
दोनों ही मामलों में वे कैबिनेट मंत्री की देखरेख, सलाह तथा उसकी जिम्मेदारी पर कार्य करते हैं।
ये कैबिनेट के सदस्य नहीं होते है तथा उनकी बैठकों में भाग नहीं लेते है।
उपमंत्री –
इन्हें स्वतंत्र प्रभार नहीं सौंपा जाता है।
उन्हें कैबिनेट अथवा राज्य मंत्रियों को उनके प्रशासनिक, राजनैतिक और संसदीय कार्यों में सहायता के लिए नियुक्त किया जाता है।
राज्य मंत्री की तरह ये भी कैबिनेट के सदस्य नहीं होते है तथा उनकी बैठकों में भाग नहीं लेते है।