अध्याय 4 न्यायपालिका | कक्षा 8 | सामाजिक विज्ञान | प्रश्नोत्तर
इस पोस्ट में NCERT द्वारा जारी नए पाठ्यक्रम के अनुसार कक्षा 8 की सामाजिक विज्ञान विषय की राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन 3 किताब के अध्याय 4 न्यायपालिका के सभी प्रश्नों को हल किया गया है।
उम्मीद करते है यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी होगी।
प्रश्न 1 आप पढ़ चुके हैं कि ‘कानून को कायम रखना और मौलिक अधिकारों को लागू करना’ न्यायपालिका का एक मुख्य काम होता है। आपकी राय में इस महत्त्वपूर्ण काम को करने के लिए न्यायपालिका का स्वतंत्र होना क्यों जरूरी है?
उत्तर – कानून को कायम रखने व मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए न्यायपालिका का स्वतन्त्र होना आवश्यक है।
स्वतंत्र न्यायपालिका विधायिका और कार्यपालिका द्वारा सक्तियों के गलत उपयोग को रोककर कानून के शासन को कायम रखती है।
स्वतंत्र न्यायपालिका देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा में भी अहम भूमिका निभाती है क्योंकि अगर किसी को लगता है कि उसके अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है तो वह अदालत में जा सकता है।
प्रश्न 2 अध्याय 1 में मौलिक अधिकारों की सूची दी गई है। उसे फिर पढ़ें। आपको ऐसा क्यों लगता है कि संवैधानिक उपचार का अधिकार न्यायिक समीक्षा के विचार से जुड़ा हुआ है?
उत्तर – संवैधानिक उपचार का अधिकार नागरिकों को मौलिक अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी देता है।
यदि किसी नागरिक को लगता है कि राज्य द्वारा उसके किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है तो इस अधिकार का सहारा लेकर वह अदालत में जा सकता है।
इस प्रकार इसके माध्यम से न्यायपालिका संसद द्वारा पारित कानूनों की इस आधार पर समीक्षा कर सकती है कि वे नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन तो नहीं करते हैं।
इससे स्पष्ट होता है कि संवैधानिक उपचारों का अधिकार न्यायिक समीक्षा के विचार से जुड़ा हुआ है।
अध्याय 3 संसद तथा कानूनों का निर्माण सभी प्रश्नों के उत्तर –
प्रश्न 3 नीचे तीनों स्तर के न्यायालय को दर्शाया गया है। प्रत्येक के सामने लिखिए कि उस न्यायालय ने सुधा गोयल के मामले में क्या फैसला दिया था? अपने जवाब को कक्षा के अन्य विद्यार्थियों द्वारा दिए गए जवाबों के साथ मिलकर देखें।
निचली अदालत, उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय
उत्तर – (1) निचली अदालत – निचली अदालत ने सुधा गोयल के मामले में बयानों व साक्ष्यों के आधार पर निचली अदालत ने लक्ष्मण, उसकी माँ शंकुतला और सुधा के जेठ सुभाष चन्द्र को दोषी करार किया और तीनों को मौत की सजा सुनाई।
(2) उच्च न्यायालय – वकीलों के तर्क सुनने के बाद उच्च न्यायालय ने सुधा की मौत को एक दुर्घटना मानते हुए लक्ष्मण, शंकुतला और सुभाषचंद्र तीनों को बरी (अपराध-मुफ्त) कर दिया।
(3) सर्वोच्च न्यायालय – सर्वोच्च न्यायालय ने लक्ष्मण और उसकी माँ को तो दोषी पाया, लेकिन सुभाष चन्द्र को आरोपों से बारी कर दिया क्योंकि उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे।
सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई।
प्रश्न 4 सुधा गोयल मामले को ध्यान में रखते हुए नीचे दिए गए बयानों को पढ़िए। जो वक्तव्य सही हैं उन पर सही का निशान लगाइए और जो गलत हैं उनको ठीक कीजिए।
(क) आरोपी इस मामले को उच्च न्यायालय लेकर गए क्योंकि वे निचली अदालत के फैसले से सहमत नहीं थे।
उत्तर – सही है।
(ख) वे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में चले गए।
उत्तर – वे निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उच्च नयायालय में गए।
(ग) अगर आरोपी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं तो दोबारा निचली अदालत में जा सकते हैं।
उत्तर – अगर आरोप सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं तो दोबारा निचली अदालत में नहीं जा सकते हैं।
अध्याय 5 हाशियाकरण की समझ सभी प्रश्नों के हल
प्रश्न 5 आपको ऐसा क्यों लगता है कि 1980 के दशक में शुरू की गई जनहित याचिका की व्यवस्था सबको इंसाफ दिलाने के लिहाज से एक महत्त्वपूर्ण कदम थी?
उत्तर – 1980 के दशक में शुरू की गई जनहित याचिका की व्यवस्था सबको इंसाफ दिलाने के लिहाज से एक महत्त्वपूर्ण कदम थी क्योंकि अब गरीब लोग भी इंसाफ पाने के लिए अदालत में जा सकते हैं।
इसका कारण यह है कि इसके तहत न्यायालय ने किसी भी व्यक्ति या संस्था को ऐसे लोगों की ओर से जनहित याचिका दायर करने का अधिकार दिया है जिनके अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।
अब सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के नाम भेजे गए पत्र या तार को भी जनहित याचिका माना जा सकता है।
जनहित याचिकाओं के माध्यम से बहुत सारे मुद्दों पर लोगों को न्याय दिलाया जा चुका है।
इस प्रकार हम कह सकते है कि जनहित याचिका की व्यवस्था आम आदमी को अदालत तक पहुँचाकर न्याय दिलाने में महत्त्वपूर्ण कदम रही है।
प्रश्न 6 ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई नगर निगम मुकदमे में दिए गए फैसले के अंशों को दोबारा पढ़िए।
इस फैसले में कहा गया है कि आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा है।
अपने शब्दों में लिखिए कि इस बयान से जजों का क्या मतलब था?
उत्तर – ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई नगर निगम मुकदमे में अदालत ने आजीविका के अधिकार को जीवन के अधिकार का हिस्सा बताया है। इस फैसले से न्यायाधीशों का अभिप्राय यह है कि जीवन का मतलब केवल जैविक अस्तित्व बनाए रखने से कहीं ज्यादा होता है।
इसका मतलब केवल यह नहीं है कि कानून के द्वारा तय की गई प्रक्रिया
जैसे – मृत्युदण्ड देने और उसे लागू करने के अलावा और किसी तरीके से किसी की जान नहीं ली जा सकती।
जीवन के अधिकार का यह एक पक्ष है।
इस अधिकार का दूसरा पक्ष आजीविका का अधिकार भी है
क्योंकि कोई भी व्यक्ति जीने के साधनों अर्थात् आजीविका के बिना जीवित नहीं रह सकता।
अध्याय 1 भारतीय संविधान हल सभी प्रश्न
प्रश्न 7 ‘इंसाफ में देरी यानी इंसाफ का कत्ल’ इस विषय पर एक कहानी बनाइए।
उत्तर – न्याय तक आम लोगों की पहुँच को प्रभावित करने वाला एक मुद्दा यह है कि मुकदमे की सुनवाई में अदालतें कई साल लगा देती हैं। ऐसी देरी को ध्यान में रखते हुए प्रायः यह कहा जा सकता है कि ‘इंसाफ में देरी यानी इंसाफ का कत्ल।’
उदाहरण के लिए, 22 मई, 1987 को मरे गए हाशिमपुरा के 43 मुसलमानों की कुछ लोगों ने हत्या कर दी।
इसमें पी.ए.सी. के 19 लोगों पर हत्या और अन्य आपराधिक मामलों के आरोप में मिकदमे चल रहे थे।
इस मुकदमे में 20 साल में 2007 तक केवल तीन गवाहों के बयान दर्ज किए गए थे।
हाशिमपुरा के 43 मुसलमानों के परिजन पिछले 31 साल से न्याय के लिए संघर्ष करते रहे।
मुकदमा शुरू होने में अत्यधिक विलम्ब के कारण
सितम्बर, 2002 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह मामला उत्तर प्रदेश से दिल्ली हस्तांतरित कर दिया था।
अन्त में, 31 अक्टूबर, 2018 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने आरोपियों को दोषी करार दिया।
इस घटना के आधार पर हम कह सकते है कि 31 वर्षों की लम्बी समयावधि के बाद
परिजनों को न्याय मिलना न्याय की हत्या के समान ही है।
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प्रश्न 8 अगले पन्ने पर शब्द संकलन में दिए गए प्रत्येक शब्द से वाक्य बनाइए।
उत्तर – उक्त शब्दों का वाक्य में प्रयोग –
बरी करना – अदालत ने निर्दोष साबित होने पर आरोपी को बरी कर दिया।
अपील करना – रमेश ने निचली अदालत के निर्णय के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दायर की।
मुआवजा – सरकार ने जनहित में लोगों से सड़क के लिए जमीन हस्तगत की और इसके बदले में लोगों को मुआवजा दिया।
बेदखली – बस्तियों/झुग्गियों को बेदखल करने के मामलों में अदालतों के फैसले बदलते रहे हैं।
उल्लंघन – किसी कानून को तोड़ना उस कानून का उल्लंघन माना जाता है।
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प्रश्न 9 पाठ्यपुस्तक में पृष्ठ 59 पर दिया गया पोस्टर भोजन अधिकार अभियान द्वारा बनाया गया है।
इस पोस्टर को पढ़ कर भोजन के अधिकार के बारे में सरकार के दायित्वों की सूची बनाइए।
इस पोस्टर में कहा गया है कि “भूखे पेट भरे गोदाम! नहीं चलेगा, नहीं चलेगा!!”
इस वक्तव्य को पृष्ठ 55 पर भोजन के अधिकार के बारे में दिए गए चित्र निबंध से मिला कर देखिए।
उत्तर – पृष्ठ संख्या 59 पर दिए गए पोस्टर में भोजन के अधिकार ले बारे में सरकार के निम्नलिखित दायित्वों को बताया गया है –
- सरकार का कर्त्तव्य है कि प्रत्येक इन्सान को रोटी मिले।
- सरकार का यह भी कर्त्तव्य है कि कोई भी व्यक्ति भूखा न सोए।
- सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि भूख की मार सबसे ज्यादा झेलने वाले बेसहारा, बुजुर्ग, विकलांग, विधवा आदि पर विशेष ध्यान दिया जाए।
- सरकार का यह दायित्व भी है कि कुपोषण एवं भूख से किसी की मृत्यु न हो।
- सरकार अपने कर्त्तव्य न निभाए तो राज्य सरकार एवं केन्द्र-शासित प्रदेशों के मुख्य सचिव/प्रशासक अदालत में जवाबदेह होंगे।
“भूखे पेट भरे गोदाम! नहीं चलेगा, नहीं चलेगा!!”
पोस्टर का वक्तव्य पृष्ठ 59 पर भोजन के अधिकार के बारे में दिए गए चित्र निबंध को साकार करता है।
इस चित्र निबंध में यह दर्शाया गया है कि सन 2001 में राजस्थान और उड़ीसा में पड़े सूखे के कारण लाखों लोगों के सामने भोजन का भारी अभाव पैदा हो गया था
जबकि सरकारी गोदाम अनाज से भरे पड़े थे तथा उन गोदामों का बहुत सारा गेहूँ चूहे खा गए थे,
लेकिन उसे उन भूखे लोगों को मुहैया नहीं कराया जा रहा था।
परिणामस्वरूप पी.यू.सी.एल. नामक संगठन ने सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा
कि संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए जीवन के मौलिक अधिकारों में भोजन का अधिकार भी शामिल है।
साथ ही मुकदमे में राज्य की इस दलील को भी गलत साबित कर दिया गया
कि उसके पास संसाधन नहीं हैं क्योंकि सरकारी गोदाम अनाज से भरे हुए थे।
तब सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि सबको भोजन उपलब्ध करवाना राज्य का दायित्व है।
इसी तथ्य को यह पोस्टर इस नारे के साथ दिखाता है कि “भूखे पेट भरे गोदाम! नहीं चलेगा, नहीं चलेगा!!”
अध्याय 4 न्यायपालिका FAQ’s –
भारत में सबसे पहले उच्च न्यायालय की स्थापना कलकत्ता, बम्बई व मद्रास में की गई.