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सामाजिक विज्ञान मोडल पेपर 2025 कक्षा 8

सामाजिक विज्ञान मोडल पेपर 2025 कक्षा 8

इस लेख में हम सामाजिक विज्ञान मोडल पेपर 2025 कक्षा 8 हल करेंगे. जिसमें राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् , उदयपुर द्वारा विद्यार्थियों को परीक्षा की तैयारी व परीक्षा पेटर्न को समझाने के लिए यह मोडल पेपर जारी किया गया था. rbse class 8th class model paper 2025

Table of Contents

नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनें –

(अ) 1942 में

(ब) 1946 में

(स) 1947 में

(द) 1948 में    (   )

उत्तर : (ब) 1946 में

(अ) वर्ष में दो बार खेती करना

(ब) वर्ष में एक बार खेती करना

(स) जमीन को कुछ समय के लिए खाली छोड़ना

(द) इनमें से कोई नहीं    (   )

उत्तर : (स) जमीन को कुछ समय के लिए खाली छोड़ना

(अ) जैव पदार्थ

(ब) मृदा का गठन

(स) जलवायु

(द) उपर्युक्त सभी    (   )

उत्तर : (द) उपर्युक्त सभी

(अ) जन्म व मृत्यु दर दोनों ज्यादा है

(ब) जन्म दर ज्यादा व मृत्यु दर कम है

(स) जन्म दर कम व मृत्यु दर ज्यादा है

(द) जन्म व मृत्यु दर दोनों ही कम है     (   )

उत्तर : (अ) जन्म व मृत्यु दर दोनों ज्यादा है

(अ) जंगल पर

(ब) शिकार पर

(स) ‘अ और ‘ब दोनों पर

(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं     (   )

उत्तर : (स) अ और ब दोनों पर

(अ) 1925

(ब) 1950

(स) 1986

(द) 2001   (   )

उत्तर : (स) 1986

(अ) शिवाजी ने

(ब) बाजीराव ने

(स) माधवराव ने

(द) नाना फडनवीस ने     (   )

उत्तर : (अ) शिवाजी ने

(अ) जयपुर

(ब) जोधपुर

(स) सवाई माधोपुर

(द) उदयपुर    (   )

उत्तर : (स) सवाई माधोपुर

(जनसंख्या परिवर्तन, मृदा, अनुच्छेद 17, जन्मदर)

(अ) पृथ्वी के पृष्ठ पर दानेदार कणों के आवरण की पतली परत …………………कहलाती है।

(ब) प्रति 1000 व्यक्तियों पर जीवित जन्मों की संख्या ………….. कहलाती है।

(स) संविधान के ………… के अनुसार छुआछूत का उन्मूलन किया जा चुका है।

(द) निश्चित अवधि में जनसंख्या में आए बदलाव को …………. कहते है।

उत्तर : (अ) मृदा, (ब) जन्मदर, (स) अनुच्छेद 17, (द) जनसंख्या परिवर्तन

        स्तम्भ ‘अ                      स्तम्भ ‘ब

1. राष्ट्र के सबसे बड़े संसाधन          (A) जल

2. वन अधिकार मान्यता               (B) मानव संसाधन (लोग)

3. महत्वपूर्ण नवीकरणीय संसाधन   (C) 2006

4. जनजाति                               (D) भील

उत्तर : (1) – B, (2) – 2006, (3) – A, (4) – D

(1) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार पानी के अधिकार को जीवन के अधिकार का हिस्सा माना गया है।  [सत्य / असत्य]

(2) राजस्थान जन आधार योजना 2017 में प्रारम्भ की गई।  [सत्य / असत्य]

(3) बेटी बचाओं, बेटी पढाओं योजना का उद्देश्य बाल विवाह को रोकना है।  [सत्य / असत्य]

(4) भारतीय संविधान 6-14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को शिक्षा के अधिकार की गारन्टी देता है।  [सत्य / असत्य]

उत्तर : (1) सत्य, (2) असत्य, (3) असत्य व (4) सत्य

उत्तर : कम्पनी ने अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए कर प्रणाली में सुधार किए,  जैसे – स्थायी बंदोबस्त प्रणाली, महालवारी और रैयतवाडी व्यवस्था आदि लागू की।

उत्तर : प्लासी का युद्ध – यह युद्ध 23 जून, 1757 को बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध ने भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद की नींव रखी और भारतीय राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला।

1. राजनीतिक तनाव : बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों को उनके किलों के विस्तार और बिना अनुमति कर-चोरी करने के लिए चेतावनी दी।

2. ब्रिटिश हस्तक्षेप : अंग्रेजों की व्यापारिक गतिविधियाँ बंगाल की स्वायत्तता के लिए खतरा बन रही थीं।

3. मीर जाफर की साजिश : मीर जाफर, जो नवाब की सेना में उच्च पद पर था, अंग्रेजों से मिलकर सिराजुद्दौला को हराने की योजना में शामिल हुआ।

युद्ध स्थल नदिया जिले के प्लासी नामक स्थान पर था। सिराजुद्दौला की सेना संख्या में बड़ी थी, लेकिन उनकी सेना के भीतर गद्दारी और रणनीतिक कमजोरियाँ थीं। रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में अंग्रेजों ने मीर जाफर और अन्य विश्वासघातियों की मदद से युद्ध में जीत हासिल की।

1. ब्रिटिश वर्चस्व की स्थापना : पलासी के युद्ध के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बंगाल की सत्ता पर अधिकार कर लिया।

2. भारतीय रियासतों का पतन : भारतीय रियासतें कमजोर पड़ने लगी और ब्रिटिश शक्ति धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गई।

3. आर्थिक शोषण की शुरुआत : बंगाल के संसाधनों का भारी दोहन किया गया, जिससे वहाँ की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

4. राजनीतिक प्रभाव : प्लासी की जीत ने अंग्रेजों को भारती राजनीति में दखल देने का मार्ग प्रशस्त किया।

उत्तर : वर्नाकुलर शब्द का अर्थ होता है स्थानीय या जनप्रिय भाषा जो किसी विशेष क्षेत्र, समुदाय या समूह के द्वारा बोली जाती है। यह शब्द आमतौर पर मानक भाषा से अलग किसी स्थानीय भाषा या बोली के लिए इस्तेमाल किया जाता है। भारत जैसे औपनिवेशिक देशों में अंग्रेज रोजमर्रा इस्तेमाल की स्थानीय भाषाओं और साम्राज्यवादी शासकों की भाषा अंगेजी के बीच फर्क को चिह्नित करने के लिए इस शब्द का इस्तेमाल करते थे।

उत्तर : भारत के प्रसिद्ध चार समाज सुधारक निम्नलिखित हैं जिन्होंने महिलाओं की स्थिति में सुधार के प्रयास किए – 1. राजा राममोहन राय, 2. स्वामी दयानंद सरस्वती, 3. पंडित रमाबाई व 4. ईश्वरचन्द विद्यासागर ।

उत्तर : मृदा निम्नीकरण का अर्थ है मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट या उसकी वहन क्षमता और संरचना का बिगड़ना, जिसके कारण वह अपनी मूल प्राकृतिक कार्यक्षमता को खो देती है । यह प्रक्रिया प्राकृतिक कारणों के साथ-साथ मानवीय गतिविधियों के कारण भी हो सकती है।

1. मल्च बनाना : इस विधि के अंतर्गत पौधों के बीच अनावरित भूमि जैव पदार्थ जैसे प्रवाल से ढक दी जाती है । इस विधि से मृदा की आर्द्रता रुकी रहती है ।

2. वेदिका फार्म : इस विधि में चौड़े, समतल सोपान अथवा वेदिका तीव्र ढालों पर बनाए जाते हैं ताकि सपाट सतह फसल उगाने के लिए उपलब्ध हो जाए। इनसे पृष्ठीय प्रवाह और मृदा अपरदन कम होता है।

3. समोच्चरेखीय जुताई : मृदा अपरदन रोकने की इस विधि में एक पहाड़ी ढाल पर समोच्च रेखाओं के समान्तर जुताई ढाल से नीचे बहते जल के लिए एक प्राकृतिक अवरोध का निर्माण करती है।

4. रक्षक मेखलाएँ : मृदा संरक्षण की इस विधि में तटीय प्रदेशों और शुष्क प्रदेशों में पवन गति रोकने के लिए वृक्ष कतारों में लगाए जाते हैं ताकि मृदा आवरण को बचाया जा सके।

5. समोच्चरेखीय रोधिकाएँ : समोच्च रेखाओं पर रोधिकाएँ बनाने के लिए पत्थरों, घास, मृदा का उपयोग किया जाता है। रोधिकाओं के सामने जल एकत्र करने के लिए खाइयाँ बनाई जाती हैं।

6. चट्टान बाँध : यह जल के प्रवाह को कम करने में मदद करते हैं। यह नालियों की रक्षा करते हैं तथा मृदा की क्षति को रोकते हैं।

7. बीच की फसल उगाना : इस विधि के अंतर्गत वर्षा दोहन से मृदा को सुरक्षित रखने के लिए अलग-अलग समय पर भिन्न-भिन्न फसलें एकांतर कतारों में उगाई जाती हैं।

उत्तर : नवीकरणीय संसाधन – नवीकरणीय संसाधन वे संसाधन होते हैं जो शीघ्रता से नवीकृत अथवा पुनः पूरित हो जाते हैं। प्रायः नवीकरणीय संसाधन असीमित मात्रा में होते हैं।

उदाहरण –

1. सौर ऊर्जा – सूर्य से प्राप्त ऊर्जा असीमित और हमेशा उपलब्ध है। इसे सौर पैनलों के माध्यम से उपयोग किया जाता है।

2. पवन ऊर्जा – हवा की गति से ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। पवन चक्कियों का उपयोग करके इसका दोहन किया जाता है।

3. जल ऊर्जा – बहते पानी से ऊर्जा उत्पन्न होती है, जैसे कि बाँधों के पानी से बिजली बनाना।

4. जैविक पदार्थ – पेड़-पौधे, कृषि अपशिष्ट और अन्य जैविक पदार्थों का उपयोग ऊर्जा के लिए किया जा सकता है।

5. भूतापीय ऊर्जा – पृथ्वी के अंदर से निकलने वाली गर्मी का उपयोग ऊर्जा उत्पादन के लिए किया जाता है।

(बीकानेर, जैसलमेर, कोटा, बाँसवाड़ा, हनुमानगढ़)

उत्तर :

उत्तर : उद्योग – उद्योग का सम्बन्ध उन समस्त आर्थिक गतिविधियों से है जो कि वस्तुओं के उत्पादन, खनिजों के निष्कर्षण अथवा सेवाओं की व्यवस्था से सम्बन्धित हैं।

एक औद्योगिक प्रक्रिया है, जिसमें कच्चे माल और संसाधनों को उपयोग करके नई वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। इसमें मशीनों, श्रमिकों और तकनीकी उपकरणों का उपयोग किया जाता है। जैसे – लुगदी कागज के रूप में और कागज अभ्यास पुस्तिका के रूप में।

1. कच्चा माल – कच्चे माल को संसाधित किया जाता है (जैसे, लोहा, लकड़ी या प्लास्टिक) ।

2. मशीनरी और उपकरण – इनका उपयोग करके माल को वांछित रूप में ढाला जाता है।

3. तैयार उत्पाद – अंतिम उत्पाद तैयार होकर बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध होता है।

उत्तर : पटसन को सुनहरा रेशा के रूप में जाना जाता है।

पटसन की फसल को उगाने के लिए आवश्यक मौसमी परिस्थितियाँ निम्नानुसार हैं –

1. उच्च तापमान, भारी वर्षा और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है।

2. यह फसल उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाती है।

3. यह जलोढ़ मृदा में अच्छे ढंग से विकसित होता है।

भारत व बांग्लादेश पटसन के अग्रणी उत्पादक हैं।

उत्तर : समानता का अधिकार – भारतीय संविधान का एक मौलिक अधिकार है, जो प्रत्येक व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता और किसी भी प्रकार के भेदभाव से मुक्त रहने की गारंटी देता है। यह अधिकार संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 14 से 18 तक उल्लिखित है।

1. अनुच्छेद 14 – कानून के समक्ष समानता – सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समान माना जाएगा। सरकार या अन्य किसी भी प्राधिकरण द्वारा भेदभाव नहीं किया जाएगा।

2. अनुच्छेद 15 – भेदभाव का निषेध – राज्य धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान या भाषा के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं कर सकता। महिलाओं और बच्चों के उत्थान के लिए विशेष प्रावधान बनाए जा सकते हैं।

3. अनुच्छेद 16 – सार्वजनिक रोजगार में समानता – सभी नागरिकों को सरकारी नौकरियों में समान अवसर मिलेगा। किसी भी प्रकार के भेदभाव को प्रतिबंधित किया गया है। सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष आरक्षण की अनुमति है।

4. अनुच्छेद 17 – अस्पृश्यता का उन्मूलन – अस्पृश्यता को पूरी तरह समाप्त किया गया है। अस्पृश्यता का पालन करना दंडनीय अपराध है।

5. अनुच्छेद 18 उपाधियों का उन्मूलन – राज्य द्वारा नागरिकों को किसी भी प्रकार की अनुचित उपाधियाँ (जैसे “सर”, “महाराजा”) नहीं दी जाएगी। केवल शैक्षणिक और सैन्य उपाधियों की अनुमति है।

उत्तर : भारतीय संविधान में धर्म निरपेक्षता – भारतीय संविधान में कहा गया है कि भारतीय राज्य धर्म निरपेक्षत होगा। भारत के संविधान के अनुसार, केवल धर्मनिरपेक्षत राज्य ही निम्नलिखित बातों का ख्याल रख सकता है –

1. कोई एक धार्मिक समुदाय किसी दूसरे धार्मिक समुदाय को न दबाए।

2. कुछ लोग अपने ही धर्म के अन्य सदस्यों को न दबाएँ।

3. राज्य न तो किसी खास धर्म को थोपेगा और न ही लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता छिनेगा।

उत्तर : हथकरघा उद्योग बहुत कम पूँजी के पर व अधिकांश कार्य हाथों से या छोटी-छोटी मशीनों एवं उपकरणों द्वारा किया जाता है। ऊनी शॉल, कोटा डोरिया साड़ियाँ, दरियाँ, निवार आदि का निर्माण हथकरघा से किया जाता है।

राजस्थान में ऊनी खादी में जैसलमेर की बरडी, बीकानेर के कम्बल, जैसलमेर और जोधपुर की मेरिनो खादी प्रसिद्ध हैं। इनके अलावा मधुमक्खी पालन, अगरबत्ती निर्माण, चर्म उद्योग के अंतर्गत जूते, चप्पल, पर्स, थेले आदि वस्तुओं का निर्माण किया जाता है।

हमारी सराकर हथकरघा उद्योगों के विकास के लिए अनेक योजनाएँ संचालित कर रही हैं।

उत्तर : फिशिंग – यह एक प्रकार का ठगी का तरीका है जिसमें लोगों को प्रतिष्ठित या विश्वस्त संस्थानों के नाम से फर्जी ई-मेल भेजे जाते हैं जिससे उसको यह लगे कि ये मेल किसी अच्छी संस्था से आया है। इस तरह के मेल का उद्देश्य जरूरी डाटा को चुराना होता है जैसे – क्रेडिट कार्ड या नेट बैंकिंग की जानकारी आदि।

उत्तर: बंगाल विभाजन – सन 1905 में तत्कालीन वायसराय लार्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन कर दिया। उस वक्त बंगाल ब्रिटिश भारत का सबसे बड़ा प्रान्त था। अंग्रेजों के अनुसार बंगाल विभाजन का उद्देश्य प्रशासनीय सुविधा था।

इस विभाजन द्वारा सरकार ने गैर-बंगाली इलाकों को अलग करने की बजाय उसके पूर्वी भागों को अलग करके असम में मिला दिया। इसके पीछे अंग्रेजों का मुख्य उद्देश्य बंगाली राजनेताओं के प्रभाव पर अंकुश लगाना और बंगाली जनता को बाँटना था।

बंगाल के विभाजन से देश भर में गुस्से की लहर फैल गई। मध्यमार्गी और आमूल परिवर्तनवादी, कांग्रेस के सभी धड़ों ने इसका विरोध किया। विशाल जनसभाओं का आयोजन किया गया और जुलूस निकाले गए। जनप्रतिरोध के नए-नए रास्ते ढूंढे गए। इससे जो संघर्ष उपजा उसे स्वदेशी आंदोलन के नाम से जाना जाता है।

अंग्रेजी कपड़े, शक्कर तथा अन्य विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर जगह-जगह विदेशी कपड़ों की होलियाँ जलाई गई। अपने देश में ही बनी वस्तुओं के लिए जनजागरण किया गया।

उत्तर : 1857 की क्रांति के पश्चात् भारतीय शासन प्रणाली में निम्नलिखित बदलाव किए गए –

1. ब्रिटिश संसद ने 1858 में एक कानून पारित किया जिसके द्वारा ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सभी अधिकार ब्रिटिश सरकार के हाथ में आ गए। इस प्रकार ब्रिटिश सरकार का भारत पर प्रत्यक्ष नियंत्रण हो गया। ब्रिटिश मंत्रिमंडल के एक सदस्य को भारत मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया और उसे भारत के शासन से संबंधित मामलों को संभालने का जिम्मा सौंपा गया। भारत के गवर्नर जनरल को वायसराय का ओहदा दिया गया।

2. भारतीय शासकों को ब्रिटिश शासन के अधीन उनके क्षेत्र पर शासन करने के अधिकार को सुनिश्चित किया गया।

3. उत्तराधिकारी के रूप में पुत्र को गोद लेने की प्रथा को मंजूरी दी गई।

4. ब्रिटिश सेना में भारतीय सिपाहियों के अनुपात को कम कर दिया गया, जबकि यूरोपीय सिपाहियों के अनुपात को बढाया गया।

5. सेना में अब गोरखा, सिख एवं पठानों के अनुपात को बढ़ाया गया।

6. मुसलमानों की जमीन व संपत्ति बड़े पैमाने पर जब्त की गई। उन्हें संदेह एवं शत्रु की दृष्टि से देखा जाने लगा।

7. अंग्रेजों ने भारतीय रिवाज,धर्म तथा सामाजिक प्रथाओं का सम्मान करने का फैसला किया।

8. जमींदार एवं भूस्वामियों की रक्षा करने तथा जमीन पर उनके अधिकारों को सुरक्षित करने वाली नीतियाँ बनाई गई।

उत्तर : रॉलट एक्ट – 1919 में औपनिवेशिक सरकार ने रॉलट कानून को पारित कर दिया। यह कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मूलभूत अधिकारों पर अंकुश लगाने और पुलिस को और ज्यादा अधिकार देने के लिए लागू किया गया था।

इस कानून से भारतीयों में तीव्र आक्रोश उत्पन्न हुआ। महात्मा गाँधी, मोहम्मद अली जिन्ना तथा अन्य नेताओं का मानना था कि सरकार के पास लोगों की बुनियादी स्वतंत्रताओं पर अंकुश लगाने का कोई अधिकार नहीं है।

उन्होंने इस कानून को “शैतान की करतूत” और निरंकुशवादी बताया। गाँधीजी ने रॉलट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह का आह्वान किया। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि इस कानून का विरोध दिवस के रूप में, “अपमान व याचना” दिवस के रूप में मनाया जाए और हड़तालें की जाएँ। आंदोलन शुरू करने के लिए सत्याग्रह सभाओं का गठन किया गया।

रॉलट सत्याग्रह ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पहला अखिल भारतीय संघर्ष था हालांकि यह मोटे तौर पर शहरों तक ही सीमित था। अप्रैल, 1919 में पूरे देश में जगह-जगह जुलूस निकाले गए और हड़तालों का आयोजन किया गया।

सरकार ने इन आंदोलनों को कुचलने के लिए दमनकारी रास्ता अपनाया। सरकार द्वारा अनेक स्थानों पर आंदोलनकारियों पर लाठियाँ, गोलियाँ चलाई गईं। अनेक लोगों को गिरफ्तार किया गया।

19 अप्रैल, 1919 बैसाखी के दिन अमृतसर में जनरल डायर द्वारा जलियांवाला बाग में किया गया। हत्याकांड इसी दमन का हिस्सा था। इस जनसंहार पर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी पीड़ा और गुस्सा जताते हुए नाईटहुड की उपाधि वापस लौटा दी।

उत्तर : अवध के बागी भू-स्वामियों से समर्पण करवाने के लिए अंग्रेजों ने निम्नलिखित कार्य किए –

1. अंग्रेजों ने वफादार भू-स्वामियों के लिए इनामों की घोषणा की। अंग्रेजों ने घोषणा की कि जो भू-स्वामी ब्रिटिश राज के प्रति स्वामिभक्त बने रहेंगे, उन्हें अपनी जमीन पर पारम्परिक अधिकार का उपभोग करने की स्वतंत्रता बनी रहेगी।

2. जिन भूस्वामियों ने विद्रोह किया था, उनसे कहा गया कि यदि उन्होंने किसी अंगेज की हत्या न की हो और वे आत्मसमर्पण करना चाहते हों तो उनकी सुरक्षा की गारंटी दी जाएगी तथा जमीन पर उनके दावे तथा अधिकार का विरोध नहीं किया जाएगा। इसके बावजूद सैकड़ों सिपाहियों, विद्रोहियों, नवाबों और राजाओं पर मुकदमे चलाए गए और उन्हें फाँसी पर लटका दिया गया।

उत्तर : भारत में अदालतों की संरचना – भारत में तीन अलग-अलग स्तर पर न्यायपालिकाएं होती हैं। यथा –

सबसे निचले स्तर पर बहुत सारी अदालतें है। उन्हें अधीनस्थ न्यायालय या जिला अदालतें कहा जाता है। ये अदालतें जिले या तहसील स्तर पर किसी शहर में होती हैं। इन्हें अलग-अलग नाम से संबोधित किया जाता है। इन्हें ट्रायल कोर्ट या जिला न्यायालय, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, प्रधान न्यायिक मजिस्ट्रेट, मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट, सिविल जज न्यायालय आदि नाम से बुलाया जाता है। ये न्यायालय बहुत तरह के मामलों की सुनवाई करते है।

मध्य स्तर पर उच्च न्यायालय है। प्रत्येक राज्य का एक उच्च न्यायालय होता है। यह अपने राज्य की सबसे ऊँची अदालत होती है।

उच्च न्यायालयों से ऊपर सर्वोच्च न्यायालय होता है। यह देश की सबसे बड़ी अदालत है जो नई दिल्ली में स्थित है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले देश की बाकी सारी अदालतों को मानने होते हैं।

इस प्रकार निचली अदालत से ऊपरी अदालत तक भारत की न्यायपालिका की संरचना एक पिरामिड जैसी लगती है। भारतीय न्यायपालिका एकीकृत न्यायिक व्यवस्था है। इसमें ऊपरी अदालतों के फैसले नीचे की सारी अदालतों को मानने होते हैं तथा नीचे की अदालतों के निर्णयों के विरुद्ध ऊपर की अदालतों में न्याय हेतु अपील की जा सकती है।

उत्तर : भारतीय संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया एक सुनियोजित और चरणबद्ध प्रक्रिया है। संसद द्वारा कानून बनाने का कार्य विधेयक के माध्यम से किया जाता है। यह प्रक्रिया भारतीय संविधान के अनुच्छेद 107 से 111 के तहत विनियमित है।

संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया निम्नानुसार है –

  • विधेयक दो प्रकार के होते हैं – (i) सार्वजनिक विधेयक – इसे सरकार (मंत्री) द्वारा पेश किया जाता है। (ii) सदस्यीय विधेयक – इसे किसी गैर-मंत्री सांसद द्वारा पेश किया जाता है।
  • विधेयक का प्रारूप संबंधित मंत्रालय द्वारा तैयार किया जाता है।
  • सरकार के विधेयक के लिए मंत्रिमंडल की मंजूरी आवश्यक होती है।
  • विधेयक को लोकसभा या राज्यसभा, किसी भी सदन में पेश किया जा सकता हैं। धन विधेयक केवल लोकसभा में पेश किया जाता है।
  • इसे पहली पठन कहा जाता है, जहाँ केवल विधेयक का उद्देश्य और मुख्य बिंदु पढ़े जाते हैं।
  • सदन विधेयक को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है।

दूसरी पठन – यह विधेयक के सबसे महत्वपूर्ण चरणों में से एक है।

इसमें तीन भाग होते है : (i) सामान्य चर्चा – विधेयक के उद्देश्य और सिद्धांतो पर चर्चा होती है। (ii) विस्तृत जाँच – विधेयक को एक स्थायी समिति या किसी विशेष समिति को भेजा जा सकता है। समिति विधेयक का विस्तार से अध्ययन करती है और अपनी सिफारिशें देती है। (iii) धारा-दर-धारा जाँच – विधेयक के प्रत्येक प्रावधान पर चर्चा की जाती है। आवश्यक होने पर संशोधन प्रस्तावित किए जा सकते हैं।

  • जब चर्चा पूरी हो जाती है, तो विधेयक को मतदान के लिए प्रस्तुत किया जाता है।
  • यदि बहुमत से विधेयक पारित हो जाता है, तो इसे दूसरे सदन में भेजा जाता है।

दूसरे सदन में भी विधेयक पर उसी प्रक्रिया का पालन किया जाता है।

दूसरे सदन के पास निम्न विकल्प होते हैं –

  1. विधेयक को स्वीकार करना।
  2. विधेयक में संशोधन करना।
  3. विधेयक को अस्वीकार करना।
  4. विधेयक पर 6 महीने तक कोई निर्णय न लेना।

यदि दोनों सदनों में मतभेद हो, तो इसे संसद के संयुक्त सत्र में प्रस्तुत किया जाता है।

  • संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।
  • राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प होते हैं – (i) स्वीकृति देना – विधेयक कानून बन जाता है। (ii) पुनर्विचार के लिए वापस भेजना – यदि विधेयक पुनः संसद से पारित हो जाता है, तो राष्ट्रपति को इसे मंजूरी देनी होती है। (iii) अस्वीकृति करना – केवल सामान्य विधेयक को अस्वीकार कर सकते हैं।
  • राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद विधेयक राजपत्र में प्रकाशित होता है।
  • इसके साथ ही विधेयक एक कानून (Act) का रूप ले लेता है।

उत्तर : भारतीय संविधान में संसद को कार्यपालिका पर नियंत्रण रखने के लिए कई शक्तियाँ और अधिकार प्रदान किए गए हैं। चूँकि भारत एक संसदीय लोकतंत्र है, यहाँ कार्यपालिका संसद के प्रति उत्तरदायी होती है। यह उत्तरदायित्व मुख्यतः प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के माध्यम से निभाया जाता है। संसद कार्यपालिका को कई तरीकों से नियंत्रित करती है, जिन्हें नीचे विस्तार से समझाया गया है:

संसद का प्रत्येक सत्र प्रश्नकाल से शुरू होता है, जहाँ सदस्य कार्यपालिका (सरकार) से विभिन्न विषयों पर सवाल पूछ सकते हैं। प्रश्नकाल के माध्यम से सरकार की नीतियों और कार्यो पर पारदर्शिता सुनिश्चित की जाती है।

  • यदि कोई अत्यधिक महत्वपूर्ण मुद्दा सामने आता है, तो सदस्य स्थगन प्रस्ताव लाकर चर्चा की माँग कर सकते हैं।
  • यह कार्यपालिका को किसी विशेष मामले में जवाबदेह बनाने का एक तरीका है।
  • लोकसभा में कार्यपालिका की बहुमत परखने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है।
  • यदि कार्यपालिका बहुमत खो देती है, तो सरकार को इस्तीफा देना पड़ता है।
  • यह संसदीय प्रणाली में कार्यपालिका पर नियंत्रण का एक सशक्त साधन है।

संसद का प्रमुख अधिकार यह है कि सरकार बजट को तभी लागू कर सकती है, जब उसे संसद की मंजूरी मिले। सरकार को संसद के माध्यम से बजट पास कराना होता है। केवल संसद से मंजूरी के बाद ही सरकार धन खर्च कर सकती है। लोकसभा में विभिन्न मंत्रालयों की अनुदान माँगों पर चर्चा और स्वीकृति होती है।

महाभियोग प्रकिया – संसद राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग चला सकती है।

संसद की विशेष समितियाँ – इनका कार्य सरकारी नीतियों की समीक्षा करना और कार्यपालिका को निर्देश देना है।

संसद विभिन्न कानूनों के माध्यम से कार्यपालिका को नियंत्रित करती है।

कोई भी नया कानून या संशोधन कार्यपालिका की मंजूरी के बिना लागू नहीं हो सकता।

संसद कार्यपालिका द्वारा लगाए गए आपातकाल (राष्ट्रीय, राज्य या वित्तीय) को अनुमोदित या रद्द कर सकती है।

उत्तर : स्वतन्त्र न्यायपालिका की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. स्वतंत्र न्यायपालिका विधायिका और कार्यपालिका द्वारा शक्तियों के दुरूपयोग को रोककर कानून के शासन को कायम रखती है।

2. देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा में स्वतंत्र न्यायपालिका की अहम भूमिका निभाती है क्योंकि अगर किसी को लगता है कि उसके अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है तो वह अदालत में जा सकता है।

उत्तर : 1857 की क्रांति की असफलता के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –

1. अधिकांश राजा-महाराजाओं द्वारा अंग्रेजों को भरपूर सहयोग प्रदान किया गया।

2. क्रांति निर्धारित समय से पूर्व ही प्रारंभ हो गई थी।

3. क्रांति की शुरुआत कुछ सीमित स्थानों पर ही हुई।

4. कोटा, नसीराबाद, भरतपुर, धौलपुर, टोंक आदि में विद्रोह अलग-अलग समय पर शुरू हुए।

5. क्रांतिकारियों के मध्य कुशल एवं संगठित नेतृत्व का अभाव था।

6. राजस्थान के क्रांतिकारियों में परस्पर तालमेल का अभाव था। साथ ही इनके पास साधनों का भी अभाव था।

7. मारवाड़, मेवाड़ व जयपुर आदि के शासकों ने तांत्या टोपे का सहयोग नहीं किया।

राजस्थान में चित्रकला की विभिन्न शैलियाँ अपनी अलग पहचान बनाती हैं। विभिन्न रियासतों में विकसित चित्रकला अपनी स्थानीय विशेषताओं के कारण वहाँ की शैली बन गई। इन विभिन्न शैलियों को रंग, पृष्ठभूमि, विभिन्न पशु-पक्षियों आदि की दृष्टि से पहचाना जा सकता है।

जयपुर-अलवर शैली के चित्रों की विशेषताएँ हैं – हरे रंग का विशेष प्रयोग, चित्रों की पृष्ठभूमि में पीपल अथवा वटवृक्षों का अधिक मिलना तथा पशु-पक्षियों में मोर व घोड़े का अधिक चित्रण किया गया है।

उदयपुर चित्र-शैली के चित्रों में लाल रंग का विशेष रूप से प्रयोग हुआ है तथा चित्रों की पृष्ठभूमि में कदम्ब वृक्ष अधिक मिलते हैं। उदयपुर शैली में हाथी और चकोर पक्षी अधिक चित्रित किए गए हैं।

किशनगढ़ चित्र शैली के चित्रों में सफेद या गुलाबी रंग का विशेष प्रयोग हुआ है। यहाँ के चित्रों की पृष्ठभूमि में केले के पौधे को अधिक चित्रित किया गया है।

कोटा-बूंदी शैली के चित्रों में नीले-सुनहरे रंगों का विशेष प्रयोग हुआ है। चित्रों की पृष्ठभूमि में लम्बे खजूर के वृक्ष अधिक दर्शाए गए हैं।

नगरीय प्रशासन का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अंतर्गत किया गया है –

नगरीय प्रशासन की संस्थाएँ तीन प्रकार की होती हैं – (1) नगर निगम, (2) नगर परिषद तथा (3) नगरपालिका बोर्ड। ऐसे सभी शहर जहाँ जनसंख्या 5 लाख से ज्यादा हो तथा वार्षिक आय एक करोड़ से ज्यादा होने पर, वहाँ नगर निगम बनाया जाता है।

जिन शहरों की जनसंख्या एक लाख से ज्यादा व 5 लाख से कम होती है, वहाँ नगर परिषद की स्थापना की जाती है और ऐसे शहर जहाँ जनसंख्या 15 हजार से एक लाख तक के बीच होती है, वहाँ पर नगरपालिका बोर्ड बनाए जाते हैं।

शहर को अलग-अलग क्षेत्रों में बाँटा जाता है, जिसे वार्ड कहते हैं।

हर वार्ड से वहाँ की जनता एक प्रतिनिधि (जिसे पार्षद कहा जाता है) चुनकर इन संस्थाओं में भेजती है।

इनका दायित्व अपने वार्ड के विकास को देखना होता है।

ये पार्षद मिलकर अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को चुनते हैं जिनको अलग-अलग नामों से जाना जाता है। नगर निगम का अध्यक्ष महापौर, नगर परिषद का अध्यक्ष सभापति और नगरपालिका का अध्यक्ष नगरपालिकाध्यक्ष कहलाता है।

3. इन शहरी संस्थाओं के चुनाव में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग व महिलाओं की हिस्सेदारी को बढ़ाने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। जिसका उद्देश्य इन वर्गों का प्रतिनिधित्व बढे।

(अ) अनिवार्य कार्य – शहर के लिए शुद्ध पानी की व्यवस्था करना, सड़कों पर रोशनी व सफाई की व्यवस्था, जन्म-मृत्यु का पंजीकरण करना तथा दमदल की व्यवस्था करना है। (ब) ऐच्छिक कार्य – सार्वजनिक बाग, स्टेडियम, वाचनालय, पुस्तकालय आदि का निर्माण करना, वृक्षारोपण करना, आवारा पशुओं से नगर को छुटकारा दिलाना, मेले-प्रदर्शनियों का आयोजन करना तथा रैन बसेरों की व्यवस्था करना।

(i) ये केंद्र और राज्य सरकारों से राशि प्राप्त करती हैं।

(ii) ये विभिन्न शुल्क लगाकर और जुर्माने के द्वारा पैसा प्राप्त करती हैं।

(iii) ये अपने शहरवासियों पर विभिन्न कर लगाकर उससे पैसा प्राप्त करती हैं।

उत्तर : 1857 की क्रांति का राजस्थान में प्रसार निम्नानुसार हुआ –

28 मई, 1857 ई. को नसीराबाद छावनी में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। इन भारतीय सैनिकों ने, तोपखाने के सैनिकों को अपनी तरफ मिलाकर तोपों पर अधिकार कर लिया। विद्रोही सैनिकों ने छावनी को लूट लिया। मेजर स्फोटिस वुड एवं न्यूबरी की हत्या कर, सैनिकों ने दिल्ली की ओर प्रस्तान किया।

3 जून 1857 ई. को नीमच-छावनी में, सैनिकों ने मोहम्मद अली बेग के नेतृत्व में विद्रोह कर शस्रागार में आग लगा दी। नीमच छावनी के कप्तान मैकडोनाल्ड ने किले की रक्षा का प्रयास किया, परन्तु किले में तैनात सेना ने भी संघर्ष शुरू कर दिया। विद्रोही सैनिक चित्तौड़, हमीरगढ़, बनेड़ा में अंग्रेजी बंगलों को लुटते हुए शाहपुरा पहुँचे। शाहपुरा के जागीरदार ने विद्रोही सैनिकों के लिए रसद की आपूर्ति की। नीमच में क्रांति की सूचना पाते ही, शावर्स ने मेवाड़ की एक पलटन को क्रांतिकारियों को निकालने भेजा और स्वयं नीमच की ओर बढ़ा। शावर्स ने कोटा, बूंदी तथा मेवाड़ की सेनाओं की सहायता से नीमच पर पुनः अधिकार कर लिया।

21 अगस्त, 1857 ई. को एरिनपुरा में विद्रोह प्रारंभ हो गया। जोधपुर लिजियन ने मोती खां, सूबेदार शीतल प्रसाद एवं तिलक राम के नेतृत्व में विद्रोह का बिगुल बजा दिया। वे क्रांति के नेताओं के आदेशानुसार “चलो दिल्ली, मारो फिरंगी” के नारे लगाते हुए दिल्ली की ओर चल पड़े। आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह इन सैनिकों से मिले और उन्हें अपने साथ आउवा ले गया।

आउवा में क्रांति का नेतृत्व ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत द्वारा किया गया। आउवा, आसोप, आलनियावास, लाम्बिया आदि परगनों के सैनिकों ने, 8 सितम्बर 1857 ई. को बिठौड़ा (पाली) में कैप्टन हिथाकोट व जोधपुर महाराजा तख्तसिंह की संयुक्त सेना को पराजित किया। 18 सितम्बर 1857 ई. को क्रांतिकारियों तथा जोधपुर के पॉलिटिकल एजेन्ट मोकमैसन के बीच चेलावास का युद्ध हुआ। इस युद्ध में मोकमैसन का सिर काटकर आउवा किले के दरवाजे पर लटका दिया। ब्रिगेडियर होम्स के नेतृत्व में सभी ने जनवरी 1858 ई. में आउवा पर आक्रमण कर किले पर अधिकार कर लिया।

कोटा में क्रांति की शुरुआत, 15 अक्तूबर 1857 ई. को लाला जयदयाल व मेहराब अली के द्वारा की गई। राजस्थान में सबसे ज्यादा सुनियोजित व सुनियन्त्रित क्रांति कोटा में हुई। विद्रोही सैनिकों ने, कैप्टन बर्टन का सिर काटकर पूरे शहर में घुमाया। कोटा के महाराव रामसिंह (द्वितीय) को, क्रांतिकारियों के द्वारा कोटा दुर्ग में कैद कर दिया गया।

उपर्युक्त स्थानों के अलावा भी राजस्थान में कई ऐसे स्थल थे,

जहाँ से क्रांति का शंखनाद हो रहा था

जैसे बनेड़ा, कोठारिया आदि क्रांतिकारियों के शरण स्थल बने हुए थे।

ग्राम पंचायत ग्रामीण स्थानीय लोकतांत्रिक स्वशासन की पहली राजनीतिक इकाई है। ग्राम पंचायत को अलग-अलग क्षेत्रों में बाँटा जाता है, जिसे वार्ड कहते हैं। यह वार्ड पंचों, उपसरपंच एवं सरपंच से मिलकर गठित होती है। ये ग्राम पंचायत क्षेत्र के लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधि है।

प्रतिनिधियों का चुनाव –

वार्ड पंच का चुनाव वार्ड के वयस्क मतदाता द्वारा किया जाता है ।

ग्राम पंचायत के सभी वार्ड पंच मिलकर अपने में से ही उपसरपंच का चुनाव करते है ।

ग्राम पंचायत के वयस्क मतदाता सरपंच का चुनाव करते है ।

इन पंचायतों के चुनाव ‘राज्य चुनाव आयोग’ द्वारा संपन्न किया जाता है।

कार्यकाल –

  • ग्राम पंचायत का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
  • इसकी प्रत्येक माह कम से कम दो बैठकें आवश्यक होती हैं।
  • ग्राम पंचायत में ग्राम सचिव होता है जो सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।

गुप्तयुगीन मूर्तिकला-परम्परा का प्रभाव राजस्थान में भी रहा है।

राजस्थान में वैष्णव, शैव, शाक्त आदि के साथ जैन धर्म को भी राजकीय संरक्षण प्राप्त था।

अतः इनके मंदिर एवं मूर्तियाँ प्रसिद्ध हैं। यथा –

1. शैव मूर्तियाँ – शैव धर्म की प्राचीन परम्परा में शिव के लिंग-विग्रह व मानवीय प्रतिमाएँ पर्याप्त मात्रा में बनाई गई। इन मूर्तियों में महेश मूर्ति, अर्द्धनारीश्वर, उमा-महेश्वर, हरिहर, अनुग्रह मूर्तियों को अधिक उत्कीर्ण किया है। इन सभी प्रतिमाओं की सुन्दरता अनुपम है।

2. वैष्णव मूर्तियाँ – वैष्णव मूर्तियों में दशावतार, लक्ष्मीनारायण, गजलक्ष्मी, गरुडासीन विष्णु आदि की मूर्तियों में वैकुण्ठ, अनन्त त्रैलोक्य मोहन को खूबसूरती से उत्कीर्ण किया गया है।

3. शाक्त मूर्तियाँ – शाक्त देवालयों में महिषासुर मर्दिनी की मूर्तियों की प्रधानता है।

ओसियाँ, वरमाण (सिरोही), झालरापाटन, चित्तौड़गढ़ आदि में सूर्य प्रतिमाएँ देखी जा सकती हैं।

4. जैन मूर्तियाँ – सिरोही क्षेत्र में बसंतगढ़ और आहड़ क्षेत्र से प्राप्त धातु की जैन प्रतिमाएँ, मीरपुर, आबू, देलवाड़ा जैन मंदिर, रणकपुर, चित्तौड़गढ़, ओसियाँ की जैन मूर्तियाँ विशेष उल्लेखनीय हैं।

मूर्तियों में परिधान, आभूषण, केश-विन्यास तथा विभिन्न मुद्राओं में उत्कीर्णता इस युग की मूर्तिकला की विशेषताएँ हैं।

प्रश्न : क्या इस मॉडल पेपर में दिए गए प्रश्न बोर्ड परीक्षा में आएँगे ?

उत्तर – मॉडल पेपर में दिए गए प्रश्न आने की संभावना कम है. लेकिन इस पेपर में दिए गए पैटर्न के अनुसार ही प्रश्नों के अंक और उतने प्रश्न आने की संभावना है.

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