सल्तनतकालीन प्रांतीय राज्य
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मुहम्मद बिन तुगलक की असफल योजनाओं और प्रशासनिक विफलता के कारण साम्राज्य का विघटन होने लगा। इसके परिणामस्वरूप सल्तनतकालीन भारत के विभिन्न क्षेत्रों में स्वतंत्र प्रांतीय राज्य का उदय हुआ। इनमें उत्तर भारत में जौनपुर, मालवा, कशमीर, मारवाड़ आदि एवं दक्षिण भारत में माबर, खानदेश, बहमनी एवं विजयनगर प्रमुख थे।
कश्मीर –
कश्मीर में हिन्दू राज्य की स्थापना सूहादेव ने 1301 ई. में की। यहाँ हिन्दुशाही वंश का शासन था। शाहमीर, शमसुद्दीन के नाम से कश्मीर का प्रथम मुस्लिम शासक बना और इन्द्राकोट में शाहमीर राज्य की स्थापना की।
कालांतर में जहाँ सिकंदर शाह नामक शासक हुआ, जिसके काल में तैमूर का भारत पर आक्रमण हुआ। उसने मार्तण्ड मंदिर सहित अनेक हिन्दू मंदिर और मूर्तियों का विनाश किया। उसे बुतशिकन की उपाधि दी गिया।
1420 ई. में सिकंदर शाह का पुत्र शाही खां, जैन-उल-अबीदीन के नाम से सिंहासन पर बैठा। उसे बुधशाह व महान सुलतान भी कहा जाता था। वह धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक सहिष्णु था। उसने महाभारत और राजतरंगिनी का फारसी में अनुवाद कराया था और उसने शिकायतनामा ग्रन्थ की रचना की।
1470 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। कश्मीर के लोगों ने उसे वुडशाह की उपाधि दी। उसकी उदार नीतियों के कारण उसे कश्मीर का अकबर और मूल्य नियंत्रण व्यवस्था के कारण कश्मीर का अलाउद्दीन कहा जाता है।
दिल्ली सल्तनत के किसी भी सुलतान ने कश्मीर पर अधिकार नहीं किया। बाद में अकबर ने उसे अपने राज्य में शामिल किया।
जैनपुर –
जैनपुर नगर को फिरोज तुगलक ने 1559 ई. में बसाया। यहाँ स्वतंत्र सत्ता का संस्थापक मलिक सरवर था, जिसे फिरोज शाह तुगलक के पुत्र सुलतान महमूद ने मलिक-उस-शर्क की उपाधि प्रदान की। उसके पद के कारण उसका वंश शर्की वंश कहलाया।
शर्की शासकों में सबसे उल्लेखनीय शासक इब्राहिम शाह था, जिसने सिराज-ए-हिन्द की उपाधि धारण की। अटाला मस्जिद जो जौनपुर ढंग की शिल्पा विद्या के देदीप्यमान नमूने के रूप में खड़ी है, इब्राहिम शाह के काल में पूरी हुई।
शर्की वंश का अंतिम शासक हुसैन शाह शर्की था, जिसे बहलोल लोदी ने 1579 ई. में हराया और 1484 ई. जौनपुर को अपने अधीन कर लिया।
महाकाव्य पद्मावत का रचयिता मलिक मोहम्मद जायसी जौनपुर का ही निवासी था।
बंगाल –
बंगाल को दिल्ली सल्तनत में सम्मिलित करने का श्रेय इख्तियारूद्दीन मुहम्मद बिन खिलजी को था। मुहम्मद तुगलक के समय 1338 ई.में बंगाल दिल्ली से स्वतन्त्र हो गया।
चार वर्ष बाद इलियास खां नामक एक अमीर ने लखनौती और सोनारगाँव पर कब्जा कर लिया और सुलतान शमसुद्दीन इलियास खां की उपाधि धारण कर बंगाल पर आक्रमण कर उसकी राजधानी पंडूआ पर कब्जा कर लिया। बाद में दोनों में संधि हुई।
इलियास खां के राजवंश का सबसे प्रसिद्ध सुलतान गयासुद्दीन आजम शाह (1389-1409 ई.) था। यह अपनी न्याय प्रियता के लिए जाना जाता था और प्रसिद्ध कवि हाजिफ शिरजी से उसका संपर्क था।
बंगाल के अमीरों ने 1498 ई. में अलाउद्दीन हुसैन शाह को बंगाल का शासक बनाया। चैतन्य महाप्रभु, अलाउद्दीन के समकालीन थे। उसने सतदिरे नामक आंदोलन की शुरुआत की।
उसके बाद उसका पुत्र नसीब खां, नसीरूद्दीन नुसरत शाह की उपाधि धारण की। गौड़ में बड़ा सोना एवं कदम रसूल मस्जिद का निर्माण करवाया।
इस वंश का अंतिम शासक गयासुद्दीन महमूद शाह था, जिसे शेरशाह ने हराकर सम्पूर्ण बंगाल पर कब्जा कर लिया।
गुजरात –
गुजरात को दिल्ली सल्तनत में मिलाने का कार्य अलाउद्दीन खिलजी ने राजा कर्ण (रायकरण) को 1297 ई. में परास्त करके किया। मुहम्मद तुगलक ने जफर खां को गुजरात का सूबेदार नियुक्त किया, जिसने 1407 ई. में अपने को गुजरात का स्वतंत्र शासक बना लिया। जफर खां को मुजफ्फर शाह की उपाधि दी गई थी।
मुजफ्फर शाह की मृत्यु के बाद उसका पौत्र अहमद शाह सुलतान बना। उसने नवस्थापित अहमदाबाद को अपनी राजधानी बनाया। उसने अहमदाबाद में एक जामा मस्जिद का निर्माण कराया।
महमूद बेगड़ा (1485-1511 ई.) अपने वंश का महानतम शासक था। उसने चम्पानेर एवं गिरनार के किलों को जीता। उसने मुस्तफाबाद नगर की स्थापना की। उसने सिद्धपुर मंदिर का विनाश किया और गुजरात में पहली बार हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया।
1572 ई. में मुग़ल बादशाह अकबर ने गुजरात को अपने साम्राज्य में मिला लिया।
मालवा –
अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा को दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बनाया। तैमूर के आक्रमण के बाद दिलावर खां गोरी ने मालवा के स्वतंत्रता की घोषणा की।
दिलावर खां का पुत्र होशंग अगला शासक बना, जिसने नर्मदा नदी के किनारे होशंगाबाद शहर बसाया। उसने मांडू को अपनी राजधानी बनाया।
महमूद शाह (1436-1449 ई.) ने मालवा में खिलजी वंश की नींव डाली। मेवाड़ के राणा कुम्भा से हुए युद्ध में दोनों शासकों ने अपनी-अपनी विजय का दावा किया। राणा कुम्भा ने चित्तौड़ में विजय स्तम्भ बनवाया और महमूद खिलजी ने मांड में सात मंजिलों वाला स्तम्भ स्थापित किया।
अकबर ने मालवा को मुग़ल साम्राज्य में सम्मिलित किया।
मेवाड़ (आधुनिक उदयपुर) –
अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ई. में मेवाड़ को जीतकर दिल्ली सल्तनत में मिलाया था।
उस समय मेवाड़ का शासक राणा रतन सिंह, गुहिलौत राजपूत वंश का था।
गुहिलौत वंश की एक शाखा सिसौदिया वंश के हम्मीरदेव ने मेवाड़ राज्य की पुनः स्थापना की।
इस राजवंश का एक महान शासक राणा कुम्भा था।
उसने मालवा के विरुद्ध सफलता प्राप्त करने के उपलक्ष्य में 1448 ई. में चित्तौड़ में कीर्ति स्तम्भ बनवाया, जिसे हिन्दू देवशास्त्र का चित्रित कोश कहा गया है। उसने जसदेव कृत गीत गोविंद पर रसिकप्रिया नामक टीका लिखा।
1527 ई. में खानवा के युद्ध में बाबर ने राणा सांगा को पराजित किया एवं 1576 ई. में अकबर ने हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा प्रताप को पराजित किया।
अंत में जहाँगीर के समय मेवाड़ ने मुग़ल आधिपत्य को स्वीकार कर लिया।
सल्तनतकालीन प्रांतीय राज्य