संख्या पद्धति Number System परिभाषा, प्रकार, उदाहरण
इस लेख में आप को संख्या पद्धति (Number System) की परिभाषा, उसके प्रकार व उदाहरण की सहायता से महत्वपूर्ण बिंदुओं को समझाया गया है।
एक या एक से अधिक अंकों के मिश्रण से बने समूह को संख्या कहते हैं। जैसे – 1, 9, 23, 439 इत्यादि।
संख्या पद्धति जिसका सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है, वह दशमलव अंकन पद्धति Decimal Number System) है। इसमें 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 और 9 इन दस अंकों का प्रयोग किया जाता है। दो या दो से अधिक अंकों की संख्या लिखने के लिए भी इन्ही अंकों का प्रयोग किया जाता है।
इसके अलावा भी कुछ और संख्या पद्धतियाँ भी हैं, जैसे – Binary Number System, Hexadecimal Number System इत्यादि।
बाइनरी नंबर सिस्टम में सिर्फ दो अंकों 0 और 1 का प्रयोग होता है। Binary Number System का प्रयोग ज्यादातर कम्प्यूटर और इलेक्ट्रोनिक्स में होता है।
किसी भी संख्या में प्रत्येक अंक का एक अंकमान (Face Velue) और एक स्थानीय मान (Place Value) होता है।
किसी भी अंक का अंकमान उस अंक के मान के बराबर ही होता है और इसका मान बदलता नहीं है, चाहे वह किसी संख्या में किसी भी स्थान पर हो। जैसे – 46, 54, 44, 401, 2456847 सभी में ‘4’ का अंक मान 4 ही है।
स्थानीय मान –
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किसी भी अंक का स्थानीय मान इस बात पर निर्भर करता है कि वह उस संख्या में किस स्थान पर है। जैसे 46 में ‘4’ का स्थानीय मान 40 है, क्योंकि ‘4’ दहाई (Ten’s Place) स्थान पर है। जबकि, 6472 में ‘4’ का स्थानीय मान 400 है क्योंकि इसमें ‘4’ सैकड़ा (Hundred’s Place) स्थान पर है।
इस प्रकार एक ही अंक का स्थानीय मान विभिन्न संख्याओं में अलग हो सकता है। इसके अलावा एक ही संख्या में भी एक अंक का स्थानीय मान अलग-अलग हो सकता है। जैसे 55 में इकाई स्थान वाले ‘5’ का स्थानीय मान 3 है जबकि दहाई स्थान वाले ‘5’ का स्थानीय मान 50 है।
किसी भी संख्या में अंकों का स्थानीय मान पता लगाने के लिए हम दाहिनी तरफ से गिनती शुरू करते हैं।
उदाहरण – 3546872159 को इस तरह लिखा जा सकता है –
अरब | दस करोड़ | करोड़ | दस लाख | लाख | दस हजार | हजार | सैकड़ा | दहाई | इकाई |
109 | 108 | 107 | 106 | 105 | 104 | 103 | 102 | 101 | 100 |
3 | 5 | 4 | 6 | 8 | 7 | 2 | 1 | 5 | 9 |
इसके अंकों का स्थानीय मान (Place Value) निम्नलिखित है –
अंक | स्थानीय मान |
9 | 9 x 100 = 9 |
5 | 5 x 101 = 50 |
1 | 1 x 102 = 100 |
2 | 2 x 103 = 2000 |
7 | 7 x 104 = 70000 |
8 | 8 x 105 = 800000 |
6 | 6 x 106 = 6000000 |
4 | 4 x 107 = 40000000 |
5 | 5 x 108 = 500000000 |
3 | 3 x 109 = 3000000000 |
संख्याओं का वर्गीकरण –
संख्याओं का वर्गीकरण निम्नानुसार किया जा सकता है –
प्राकृत संख्याएँ (Natural Numbers) –
गिनती की संख्या को प्राकृत संख्या कहते हैं। गिनती में प्रयोग होने वाली संख्याओं के समुच्चय को प्राकृत संख्याओं का समुच्चय कहा जाता है। इन्हें गिनती की संख्याएँ भी कहते हैं। इन्हें N से प्रकट किया जाता है।
उदाहरण – N : {1, 2, 3, 4…}
पूर्ण संख्याएँ (Whole Numbers) –
शून्य सहित प्राकृत संख्या को पूर्ण संख्या कहते हैं। जब प्राकृत संख्याओं के समुच्चय में शून्य (0) को शामिल कर लिया जाता है तो पूर्ण संख्याओं का समुच्चय बन जाता है। इन्हें W से प्रकट किया जाता है।
उदाहरण – W : {0, 1, 2, 3…}
पूर्णांक संख्याएँ (Integers) –
पूर्ण संख्या के संग्रह में ऋणात्मक प्राकृत संख्या को शामिल कर लें तो प्राप्त संख्याओं के संग्रह को पूर्णांक कहते हैं। इन्हें Z से प्रकट किया जाता है।
उदाहरण – Z : {…-4, -3, -2, -1, 0, 1, 2, 3, 4…}
सम संख्याएँ (Even Numbers) –
2 से विभाजित होने वाली प्राकृत संख्याओं को सम संख्याएँ कहा जाता है।
उदाहरण – E : {2, 4, 6, 8 …}
नोट – एक संख्या किसी दूसरी संख्या को पूर्ण रूप से विभाजित करती है तो वह उस संख्या का गुणनखंड कहलाती है।
उदाहरण 3 x 5 = 15; या, हम कह सकते हैं कि, ’15’, अब 5 से पूरी तरह से विभाजित होता है। अतः 5 और 3 संख्याएँ 15 की गुणनखंड हैं।
विषम संख्याएँ (Odd Numbers) –
2 से पूर्ण रूप से विभाजित नहीं होने वाली प्राकृतिक संख्याओं को विषम संख्याएँ कहते है।
दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जो प्राकृत संख्या सम संख्या नहीं है, वह विषम संख्या है।
उदाहरण – O : {1, 3, 5, 7 …}
चक्रीय संख्या (Cyclic Number) –
यह n अंकों की ऐसी संख्या है जिसे 1 से लेकर n तक की किसी संख्या से गुणा करने पर उनका गुणनफल उन्हीं n अंकों से बना होता है और ये अंक उसी क्रम में होते हैं।
उदाहरण – 142857
2 x 142857 = 285714; 3 x 142857 = 428571
भिन्न (Fractions) –
भिन्न वह संख्या है जो दो पूर्णांक संख्याओं का अनुपात या भाग के रूप में लिखा जाता है। इसे के रूप में लिखा जाता है जहाँ ‘p’ और ‘q’ पूर्णांक संख्याएँ हैं। ‘q’ शून्य नहीं होता है क्योंकि शून्य द्वारा भाग परिभाषित नहीं होता है जबकि शून्य को किसी पूर्णांक संख्या से विभाजित किया जाए तो भागफल शून्य होता है।
इसमें ‘p’ को अंश (Numerator) और ‘q’ को हर (Denominator) कहते है।
एक भिन्न संख्या जिसका ‘हर’ 1 हो, वह पूर्ण संख्या जैसा होता है और उसका मान उसके अंश के बराबर होता है।
उदाहरण – 6/1 = 6
तुल्य भिन्न (Equivalent fractions) –
दो भिन्नों को तब तुल्य कहा जाता है जब दोनों बराबर अनुपात या संख्या को दर्शाते हैं। इसलिए अगर हम किसी भिन्न के अंश और हर दोनों को बराबर पूर्णांक संख्या, जोकि शून्य नहीं है, से गुणा या भाग करते हैं, तो फलस्वरूप हमें दिए गए भिन्न का तुल्य भिन्न मिलता है।
उदाहरण –
भिन्न का सरलतम रूप (Simplest Form) –
एक भिन्न न्यूनतम रूप (Lowest form) या सरलतम रूप (Simplest form) में तब कहा जाता है, जब उसके अंश और हर में 1 के अतिरिक्त कोई अन्य उभयनिष्ठ गुणनखंड (common factor) न हो।
किसी भी भिन्न को उसके न्यूनतम रूप में लिखने के लिए उसके अंश और हर के सभी उभयनिष्ठ गुणनखंड को काट दिया जाता है।
उदाहरण – का सरलतम रूप है, जो कि अंश व हर को 5 से काटने पर प्राप्त हुआ है।
परिमेय संख्याएँ (Rational Numbers) –
ऐसी संख्या जिसे के रूप में व्यक्त किया जा सके, जहाँ p और q पूर्णांक हैं तथा q शून्य नहीं है, परिमेय संख्या कहलाती है। जैसे – -7 इत्यादि।
सभी पूर्णांक और भिन्न परिमेय संख्याएँ होती है।
संख्या 0 न तो एक धनात्मक परिमेय संख्या है और न ही ऋणात्मक परिमेय संख्या है।
परिमेय संख्याओं का दशमलव प्रसार या तो सांत (Terminating) होता है या अनवसानी आवर्ती होता (Non-terminating recurring) होता है।
अपरिमेय संख्याएँ (Irrational numbers) –
ऐसी संख्या जिसे के रूप में निरूपित नहीं किया जा सके, जहाँ p और q कोई पूर्णांक संख्या हो, और q शून्य नहीं हो, अपरिमेय संख्या कहलाती है।
उदाहरण – इत्यादि। यह भिन्न या दशमलव संख्या के रूप में सन्निकट उत्तर देता है। इसमें दशमलव के बाद का अंक अनंत तथा अनावर्ती होता है। यही = = 3.14159…. के लिए भी होता है जो फिर एक अपरिमेय संख्या है।
दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि अपरिमेय संख्याएँ एक अनवसानी अनावर्ती दशमलव संख्याएँ हैं।
रूढ़ संख्याएँ/ अभाज्य संख्याएँ (Prime Numbers) –
ऐसी संख्याएँ जिनका 1 और स्वयं संख्या के अलावा और कोई गुणनखंड नहीं हो, रूढ़ या अभाज्य संख्याएँ कहलाती है।
उदाहरण – 2, 3, 5, 7, 11, 17 …इत्यादि।
नोट :
- केवल 2 एक ऐसी सम संख्या है जो रूढ़/अभाज्य संख्या भी है और 2 से ही रूढ़ संख्या शुरू होती है।
- 2 के अलावा सभी रूढ़ संख्याएँ विषम संख्याएँ हैं लेकिन सभी विषम संख्याएँ रूढ़ संख्या नहीं होती है।
उदाहरण – 9 एक विषम संख्या है लेकिन यह रूढ़ संख्या नहीं हैं क्योंकि यह 3 से विभाजित होती है।
यौगिक संख्याएँ (Composite Numbers) –
1 के अतिरिक्त वे सभी संख्याएँ, जो रूढ़ नहीं हैं, यौगिक संख्याएँ कहलाती है। अर्थात् 1 से बड़ी वे संख्याएँ जिसके गुणनखंड 1 और स्वयं के अलावा भी हों, यौगिक संख्याएँ कहलाती है।
उदाहरण – 4, 6, 8, 9, 10 इत्यादि।
नोट –
- ‘1’ न तो रूढ़ संख्या है और न ही यौगिक संख्या है।
- यौगिक संख्या सम या विषम हो सकती है।
पूर्णकालिक संख्या (Perfect Number) –
अगर किसी संख्या N के सभी भजकों का योग (N को छोड़कर) दिए गए संख्या N के बराबर हो, तो ऐसी संख्या को पूर्णकालिक संख्या कहते हैं।
उदाहरण – 6, 28, 496, 8128 इत्यादि।
संख्या 6 के भाजक है 1, 2 और 3
6 : 1+2+3 = 6
28 : 1+2+4+7+14 = 28
नोट – यदि संख्या पूर्णकालिक संख्या है तो स्वयं सहित इसके सभी भजकों के विलोम का योग हमेशा 2 होता है।
दशमलव संख्या (Decimal Number) –
ऐसे अंक जो दशमलव बिंदु (.) के बाद शुरू होते है, दशमलव भिन्न कहलाते हैं।
उदाहरण – 0.235, 0.68, 0.0351 इत्यादि।
0.68 को पढ़ा जाता है ‘शून्य दशमलव छः, आठ’ और न कि ‘शून्य दशमलव अड़सठ’।
प्रत्येक दशमलव भिन्न को एक भिन्न की तरह लिखा जा सकता है। इनके हर (Denominators) 10 के घात (Power) में होते हैं।
उदाहरण – 0.63 =
मिश्रित संख्या / भिन्न (Mixed Number/Fraction) –
मिश्रित संख्या पूर्ण संख्या और भिन्न से मिलकर बना होता है।
उदाहरण : 4 एक मिश्रित संख्या है। इसे इस प्रकार भी लिखा जा सकता है, 4
यहाँ 4 एक पूर्ण संख्या है और एक भिन्न है।
मिश्रित संख्या को एक समतुल्य भिन्न में व्यक्त करना –
मिश्रित संख्या को समतुल्य भिन्न में निम्नलिखित तरीके से व्यक्त किया जा सकता है –
- इसकी पूर्ण संख्या को इसके भिन्न के हर से गुणा करें।
- ऊपर पाए गुणनफल में भिन्न के अंश को जोड़ दें।
- ऊपर पाया गया योग, समतुल्य भिन्न का अंश होता है और इसका हर दिए गए संख्या के भिन्न के हर के बराबर ही होता है।
जैसे – ऊपर दिए गए उदाहरण में; 4 =
ये भी पढ़ें –
संख्या पद्धति FAQ’s
उत्तर – किसी संख्या N के सभी भजकों का योग (N को छोड़कर) दिए गए संख्या N के बराबर हो, तो ऐसी संख्या को पूर्णकालिक संख्या कहते हैं।
उत्तर – संख्या 0 न तो एक धनात्मक परिमेय संख्या है और न ही ऋणात्मक परिमेय संख्या है।