शेरशाह सूरी (Sherashah Soori)
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शेरशाह सूरी ने उत्तर भारत में सुर वंश के द्वितीय अफगान साम्राज्य की स्थापना की। (पहला अफगान साम्राज्य लोदी वंश का था।)
इसका जन्म 1472 ई. (डॉ. कानूनगो के अनुसार 1486 ई.) में हुआ था। उसके बचपन का नाम फरीद था। 1497 से 1518 ई. तक निरंतर 21 साल तक फरीद ने अपने पिता की जागीर की देखभाल की और शासन का अनुभव प्राप्त किया। बहार खां लोहानी ने फरीद को शेर को मारने के कारण शेर खां की उपाधि दी।
शेर खां ने हजरत-ए-आला की उपाधि धारण की और दक्षिण बिहार का वास्तविक शासक बना। 1530 ई. में शेरशाह ने चुनार के किलेदार ताज खां की विधवा पत्नी लाड मलिका से विवाह कर चुरार के किले पर अधिकार कर लिया।
1539 ई. में चौसा के युद्ध में हुमायूँ को पराजित करने के बाद शेर खां ने शेरशाह सुलतान-ए-आदिल की उपाधि धारण की और सुलतान बना।
22 मई, 1545 ई. को कालिंजर पर आक्रमण के समय, तोपखाना फट जाने से शेरशाह की मृत्यु हो गई।
शासन प्रबंध (केन्द्रीय शासन) –
शेरशाह सूरी स्वयं शासन का प्रधान था। उसके अंतर्गत निम्न विभाग थे-
क्र.सं. | विभाग व उसका प्रधान/मुख्य अधिकारी |
1. | दीवाने वजारत – वित्त विभाग, मुख्य अधिकारी- वजीर। |
2. | दीवाने आरिज – सैन्य विभाग, मुख्य अधिकारी-आरिजे मुमालिक। |
3. | दीवाने रसातल – विदेश मंत्री की भाँती कार्य। |
4. | दीवाने इंशा – सुलतान के आदेशों को लिखना, प्रधान- दबीरे मुमालिक। |
5. | दीवाने काजा – सुलतान के बाद मुख्य न्यायाधीश। |
6. | दीवाने बरीद – गुप्तचर विभाग। |
प्रांतीय प्रशासन –
सूबा – शेरशाह ने सम्पूर्ण सूबे को सरकारों में बाँटकर प्रत्येक को एक सैनिक अधिकारी की देखरेख में छोड़ दिया। उनकी सहायता के लिए सूबे में एक असैनिक अधिकारी अमीन-ए-बंगाल भी नियुक्त किया जाता था।
सरकार (जिला) – प्रत्येक सरकार में दो मुख्य अधिकारी थे, जिन्हें शिकदार-ए-शिकदारां (सैनिक अधिकारी) और मुंसिफ-ए-मुंसिफा (न्याय अधिकारी) कहा जाता था।
परगना – प्रत्येक सरकार कई परगनों में बाँटी थी। प्रत्येक परगने में एक शिकदार (सैनिक अधिकारी), एक मुंसिफ (दीवानी मुकदमों का निर्णय करना), एक फोतेदार (खजांची) और दो कानकुन (क्लर्क, जो हिसाब-किताब लिखते थे) होते थे।
अर्थव्यवस्था –
शेरशाह सूरी ने उत्पादन के आधार पर भूमि को तीन श्रेणियों में विभाजित किया- अच्छी, मध्यम और बुरी।
उसने भूमिकर निर्धारण के लिए राई (फसलदारों की सूचि) को लागू करवाया।
किसानों को संलग्न अधिकारियों के वेतन के लिए सरकार को जरीबना और महासीलाना नामक कर देना होता था, जो पैदावार का 2.5 प्रतिशत से 5 प्रतिशत तक होते थे।
उसने भूमि की माप के लिए सिकन्दरी गज (231 अंगूल या 32 ईंच) एवं सन की डंडी का प्रयोग करवाया।
शेरशाह सूरी ने लगान निर्धारण के लिए तीन प्रकार की प्रणालियाँ अपनाई – (i) गल्लाबक्सी (बटाई), (ii) नश्क (मुक्ताई) अथवा कनकूत, (iii) जब्ती (जमई) ।
किसानों से पैदावार का 1/3 भाग लगान के रूप में लिया जाता था।
मुद्रा –
शेरशाह सूरी ने घिसे-पिटे पुराने तथा पूर्ववर्ती शासकों के द्वारा चलाए गए सिक्कों का चलन बंद कर दिया।
उसकी मुद्रा व्यवस्था बहुत श्रेष्ठ थी। उसने चाँदी के रूपए (180 ग्रेन), ताँबे के सिक्के (दाम)(380 ग्रेन) चलाए। शेरशाह के समय सोने के सिक्के (167 ग्रेन) अशरफी कहलाते थे।
उसके समय 23 टकसालें थी। उसके सिक्कों पर उसका नाम फारसी के साथ-साथ नागरी लिपि में अंकित होता था।
सड़कें एवं सराय –
शेरशाह सूरी ने करीब 1700 सरायों का निर्माण करवाया, जिसकी देखभाल शिकदार करता था। उसने कई नई सडकों का निर्माण करवाया और पुरानी सड़कों की मरम्मत करवाई –
- बंगाल में सोनारगाँव से आगरा, दिल्ली होते हुए लाहौर तक यह सड़क-ए-आजम कहलाती थी। इसे अब ग्रांड ट्रक रोड़ कहा जाता है।
- आगरा से बुरहानपुर तक।
- आगरा से चित्तौड़ तक।
- लाहौर से मुलतान तक।
भवन एवं इमारतें –
शेरशाह सूरी रोहतासगढ़ किला दिल्ली का पुराना किला (दीनपनाह को तुड़वाकर) एवं उसके अंदर किला-ए-कुहना, सासाराम (बिहार) में स्वयं का मकबरा नगर बसाया और पाटलिपुत्र को पटना के नाम से पुनः स्थापित किया।
अन्य तथ्य –
मलिक मुहम्मद जायसी, शेरशाह सूरी कालीन थे।
शेरशाह का समकालीन इतिहासकार हसन अली खां था, जिसने तवारीख-ए-दौलते-शेरशाही की रचना की थी।