भाषा में शुद्ध उच्चारण के साथ शुद्ध वर्तनी का भी महत्त्व होता है। अशुद्ध वर्तनी से भाषा का सौन्दर्य तो नष्ट होता ही है, कहीं कहीं तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। वर्तनी अशुद्धि के कई कारण हो सकते हैं। जैसे-
(1)
स्वरागम के कारण-
निम्न
शब्दों में किसी वर्ण के साथ अनावश्यक स्वर प्रयुक्त हो जाने से वर्तनी अशुद्ध हो
जाती है अतः उसे हटा कर वर्तनी शुद्ध की जा सकती है।
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
आधीन
अधीन
अत्याधिक
अत्यधिक
अनाधिकार
अनधिकार
अभ्यार्थी
अभ्यर्थी
अहिल्या
अहल्या
दुरावस्था
दुरवस्था
शमशान
श्मसान
गत्यावरोध
गत्यवरोध
प्रदर्शिनी
प्रदर्शनी
द्वारिका
द्वारका
वापिस
वापस
घुटुना
घुटना
व्यौपारी
व्यापारी
भागीरथ
भगीरथ
(2)
स्वरलोप के कारण-
उचित
स्वर के अभाव के कारण
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
आखरी
आखिरी
आप्लवित
आप्लावित
कुटम्ब
कुटुम्ब
दुगनी
दुगुनी
जलूस
जुलूस
बदाम
बादाम
मैथली
मैथिलि
विपन्नवस्था
विपन्नावस्था
अगामी
आगामी
सतरंगनी
सतरंगिनी
गोरव
गौरव
युधिष्ठर
युधिष्ठिर
महात्म्य
माहात्म्य
अन्त्यक्षरी
अन्त्याक्षरी
आजीवका
आजीविका
फिटकरी
फिटकिरी
कुमुदनी
कुमुदिनी
विरहणी
विरहिणी
स्वस्थ्य
स्वास्थ्य
वाहनी
वाहिनी
वयवृद्ध
वयोवृद्ध
पारितोषक
पारितोषिक
मुकट
मुकुट
भगीरथी
भागीरथी
अजानु
आजानु
अष्टवक्र
अष्टावक्र
उन्नतशील
उन्नतिशील
जमाता
जामाता
अतिश्योक्ति
अतिशयोक्ति
नृत्यगना
नृत्यांगना
मुकन्द
मुकुन्द
लोकिक
लौकिक
(3)
व्यंजनागम के कारण-
शब्द
में अनावश्यक व्यंजन के प्रयुक्त हो जाने से भी वर्तनी अशुद्ध हो जाती है।
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
अवन्नति
अवनति
प्रज्ज्वलित
प्रज्वलित
बुद्धवार
बुधवार
पूज्यनीय
पूजनीय
सदृश्य
सदृश
अन्तर्ध्यान
अन्तर्धान
निश्च्छल
निश्छल
श्राप
शाप
समुन्द्र
समुद्र
निन्द्रित
निद्रित
केन्द्रीयकरण
केन्द्रीकरण
कुत्तिया
कुतिया
शुभेच्छुक
शुभेच्छु
गोवर्द्धन
गोवर्धन
कृत्य-कृत्य
कृत-कृत्य
षष्ठं
षष्ठ
(4)
व्यंजन लोप के कारण-
किसी
वर्तनी में व्यंजन के न लिखने पर वर्तनी अशुद्ध हो जाती है।
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
अध्यन
अध्ययन
ईर्षा
ईर्ष्या
उमीदवार
उम्मीदवार
तदन्तर
तदनन्तर
व्यंग
व्यंग्य
सामर्थ
सामर्थ्य
द्वन्द
द्वंद्व
उद्देश
उद्देश्य
उत्पन
उत्पन्न
महत्व
महत्त्व
समुनयन
समुन्नयन
मिष्टान
मिष्टान्न
इन्द्रा
इन्दिरा
उलंघन
उल्लंघन
उपलक्ष
उपलक्ष्य
चार दीवारी
चहार दीवारी
तरुछाया
तरुच्छाया
स्तनपान
स्तन्य पान
आर्द
आर्द्र
तत्वाधान
तत्त्वावधान
निरलम्ब
निरवलम्ब
श्रेयकर
श्रेयस्कर
राजाभिषेक
राज्याभिषेक
स्वालम्बन
स्वावलम्बन
स्वातन्त्र
स्वातन्त्रय
योधा
योद्धा
(5)
वर्णक्रम भंग के कारण-
वर्तनी
में किसी वर्ण का क्रम बदलने पर अर्थात् वर्ण का क्रम आगे पीछे होने पर वर्तनी
अशुद्ध हो जाएगी।
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध वर्तनी
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
अथिति
अतिथि
चिन्ह
चिह्न
मध्यान्ह
मध्याह्न
ब्रम्हा
ब्रह्मा
आव्हान
आह्वान
जिव्हा
जिह्वा
आन्नद
आनन्द
गव्हर
गह्वर
आल्हाद
आह्लाद
प्रसंशा
प्रशंसा
अलम
अमल
मतबल
मतलब
(6)
वर्ण परिवर्तन के कारण-
किसी
वर्तनी में किसी वर्ण के स्थान पर दूसरा वर्ण लिख देने पर वर्तनी अशुद्ध हो जाती
है।
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
बतक
बतख
दस्तकत
दस्तखत
जुखाम
जुकाम
ऊँगना
ऊँघना
संगटन
संघटन
मेगनाद
मेघनाद
संघठन
संगठन
रिमजिम
रिमझिम
यथेष्ठ
यथेष्ट
संतुष्ठ
सन्तुष्ट
मिष्ठान्न
मिष्टान्न
परिशिष्ठ
परिशिष्ट
संश्लिष्ठ
संश्लिष्ट
बलिष्ट
बलिष्ठ
कटहरा
कठहरा
युधिष्टिर
युधिष्ठिर
कुष्ट
कुष्ठ
धनाड्य
धनाढ्य
रामायन
रामायण
ऋन
ऋण
पुन्य
पुण्य
सुश्रूषा
शुश्रूषा
अवकास
अवकाश
आशीश
आशीष
शोडशी
षोडशी
कैलाश
कैलास
निसिद्ध
निषिद्ध
विध्यालय
विद्यालय
(7)
पंचम् वर्ण/अनुस्वार एवं चन्द्रबिन्दु(अनुनासिक) के कारण-
किसी
वर्ग के अंतिम नासिक्य वर्ण के स्थान पर अन्य नासिक्य वर्ण लगाने या सही स्थान पर
अनुस्वार नहीं लगाने तथा उचित स्थान पर चन्द्रबिन्दु का उपयोग न करने से भी वर्तनी
अशुद्ध हो जाती है।
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
चन्चल
चंचल
मन्डल
मण्डल
सन्यासी
संन्यासी
एंकाकी
एकांकी
इन्होनें
इन्होंने
उन्निंसवी
उन्नीसवीं
करेगें
करेंगे
स्वयम्वर
स्वयंवर
सम्वर्धन
संवर्धन
क्रांन्ति
क्रान्ति
आंख
आँख
हंसी
हँसी
ऊंट
ऊँट
आंधी
आँधी
पहुंच
पहुँच
सांझ
साँझ
ऊंचाई
ऊँचाई
जाऊंगा
जाऊँगा
दांत
दाঁत
कुঁआ
कुआँ
दिनाঁक
दिनांक
पांच
पाঁच
(8)
रेफ सम्बन्धी-
र् (रेफ) के रूप में उचित वर्ण पर न लगाने से भी
वर्तनी अशुद्ध हो जाती है।
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
आर्शीवाद
आशीर्वाद
उर्त्तीण
उत्तीर्ण
आकषर्ण
आकर्षण
प्रार्दुभाव
प्रादुर्भाव
दशर्नीय
दर्शनीय
गर्वनर
गवर्नर
अर्न्तभाव
अन्तर्भाव
अर्न्तगत
अन्तर्गत
मुर्हरम
मुहर्रम
आर्युवेद
आयुर्वेद
दुव्यर्सन
दुर्व्यसन
शार्गीद
शागिर्द
पुर्नजन्म
पुनर्जन्म
प्रर्वतक
प्रवर्तक
(9)
ऋ के स्थान पर र के प्रयोग के कारण-
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
स्रष्टि
सृष्टि
द्रश्य
दृश्य
अनुग्रहित
अनुगृहित
पैत्रिक
पैतृक
द्रष्टि
दृष्टि
ग्रहिणी
गृहिणी
प्रक्रति
प्रकृति
भ्रंग
भृंग
भ्रगु
भृगु
जाग्रति
जागृति
संग्रहित
संगृहीत
ग्रहित
गृहित
सम्रद्ध
समृद्ध
भ्रत्य
भृत्य
(10)
‘र’ के स्थान पर ‘ऋ’ के प्रयोग के कारण-
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
बृज
ब्रज
जागृत
जाग्रत
दृष्टा
द्रष्टा
अनुगृह
अनुग्रह
(11)
र के स्थान पर ऋ के प्रयोग के कारण-
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
सहस्त्र
सहस्र
स्त्रोत
स्रोत
अजस्त्र
अजस्र
स्त्राव
स्राव
(12) संयुक्ताक्षर सम्बन्धी-
सही
संयुक्ताक्षर का प्रयोग न करने से वर्तनी अशुद्ध हो जाती है।
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
कब्बडी
कबड्डी
गद्धा
गद्दा
प्रसिद्व
प्रसिद्ध
महत्व
महत्त्व
विध्यालय
विद्यालय
ज्योत्सना
ज्योत्स्ना
द्वंद्ध
द्वंद्व
पध्य
पद्य
(13)
सन्धि सम्बन्धी-
सही
सन्धि न होने पर वर्तनी अशुद्ध हो जाती है।
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
अशुद्ध
वर्तनी
शुद्ध
वर्तनी
उपरोक्त
उपर्युक्त
उज्जवल
उज्ज्वल
अत्योक्ति
अत्युक्ति
निरोग
नीरोग
पुनरोक्ति
पुनरुक्ति
तदोपरान्त
तदुपरान्त
सदोपदेश
सदुपदेश
शरदोत्सव
शरदुत्सव
लघुत्तर
लघूत्तर
महेश्वर्य
महैश्वर्य
मनहर
मनोहर
अनुसंग
अनुषंग
मरुद्यान
मरूद्यान
अन्तर्चेतना
अन्तश्चेतना
पयोपान
पयःपान
विसाद
विषाद
रविन्द्र
रवीन्द्र
निरावलम्ब
निरवलम्ब
(14) समास सम्बन्धी-
सामासिक प्रक्रिया में पदों के मेल पर उनके रूप में परिवर्तन भी होता है। अतः सही समास न होने से वर्तनी अशुद्ध हो जाती है।