राजपूताना अपनी कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में देश में एक अलग पहचान रखता है. उसी प्रकार राजस्थान में अनेक प्रसिद्ध मन्दिर भी स्थित है. आज हम इस लेख में राजस्थान के विभिन्न प्रसिद्ध मन्दिर के बारे में विस्तार से जानने का प्रयास करेंगे.
राजस्थान में मन्दिर आस्था के प्रमुख केंद्र माने जाते हैं। प्राचीनकाल से ही हमें मन्दिर, मस्जिद, मकबरे एवं छतरियों के रूप में राजस्थान की स्थापत्य कला एवं शिल्प कला के विकास के बारे में जानकारी मिलती है।
राजस्थान में गुप्त वंश के समय स्थापत्य एवं शिल्प का विकास शुरू हुआ।
राजपूताने में गुर्जर प्रतिहार वंश के राजाओं ने अनेक मन्दिरों का निर्माण गुर्जर प्रतिहार शैली या महामारू शैली में किया। राजस्थान में सबसे पहला समयांकित (जिसमें दिनांक अंकित हो) मन्दिर झालरापाटन में शितलेश्वर महादेव का है जिसका मूल भाग 689 ई. में बना।
7वीं शताब्दी के कालिका माता मन्दिर तथा कुम्भ स्वामी मन्दिर प्राप्त हुए जो मेवाड़ के प्रारम्भिक शासक बप्पा रावल से पहले के थे। जोधपुर में स्थित ओसिया के पुराने मन्दिर बौद्ध कला, जैन कला एवं गुप्त कला की त्रिवेणी स्थापत्य कला के उदाहरण माने जाते हैं।
ओसियां में गुर्जर प्रतिहार राजा वत्सराज द्वारा 8वीं शताब्दी में बनवाया गया महावीरजी का मन्दिर राजस्थान में अब तक ज्ञात प्राचीनतम जैन मन्दिर है।
कुम्भाकालीन मन्दिरों में कुम्भश्याम मन्दिर, शृंगारचँवरी मन्दिर, मीरा मन्दिर, बदनौर का कुशला माता मन्दिर व रणकपुर मन्दिर प्रमुख माने जाते हैं। उदयपुर के समीप नागदा में बना हुआ सास बहु (सहस्रबाहु) के मन्दिर में हमें तक्षण कला देखने को मिलती है।
बाड़मेर जिले के मन्दिर
Table of Contents
किराडू मन्दिर, सोमेश्वर मन्दिर, नाकोड़ा के जैन मन्दिर (मेवानगर में), ब्रह्माजी का दूसरा मन्दिर, नागणेची माता मन्दिर, चण्डिका मन्दिर, हल्देश्वर मन्दिर (पीपलूद नामक स्थान पर जिसे मारवाड़ प्रदेश का लघु माउंट कहा जाता है)
आलमजी मन्दिर, बालाजी मन्दिर, विरातरा माता मन्दिर, रणछोड़राय मन्दिर, मल्लिनाथजी का मन्दिर (तिलवाड़ा में), भूरिया बाबा व खेडिया बाबा के मन्दिर, कपालेश्वर महादेव मन्दिर, गरीबनाथ मन्दिर।
किराडू के मन्दिर –
बाड़मेर में हाथमा गाँव के पास एक पहाड़ी के नीचे किराडू मन्दिर बने हुए हैं।
किराडू को किरात कूप के नाम से भी जाना जाता हैं।
किराडू में सोमेश्वर महादेव मन्दिर व रणछोड़जी के मन्दिर विशेष महत्त्व के हैं।
इन मन्दिरों का निर्माण 11वीं व 13वीं शताब्दी में नागर शैली में निर्मित शैव, वैष्णव व जैन सम्प्रदायों के लिए हुआ। इन मंदिरों को प्राचीन मूर्तियों का खजाना कहा जाता है।
किराडू के मन्दिरों में कामशास्र की विशेष मूर्तियाँ होने के कारण इन्हें राजस्थान का खजुराहो कहा जाता है।
1178 ई. में मौहम्मद गौरी ने किराडू पर आक्रमण कर यहाँ के मन्दिरों को नुकसान पहुँचाया।
नाकोड़ा के मन्दिर –
बाड़मेर के बालोतरा में भांकरिया नामक पहाड़ी पर जैन धर्मावलम्बियों का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है।
नाकोड़ा को मेवा नगर के नाम से जाना जाता है।
इस स्थान पर 23वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ का प्रसिद्ध मन्दिर है।
सिरोही जिले के मन्दिर
देलवाडा जैन मन्दिर, विमलशाही मन्दिर, लूवणशाही मन्दिर, भगवान कुंथुनाथ का दिगम्बर जैन मन्दिर, सारणेश्वर महादेव मन्दिर, बाजणा गणेश मन्दिर, कालिकादेवी मन्दिर, कुँवारी कन्या मन्दिर (रसिया बालमजी का मन्दिर), अधरदेवी मन्दिर (अर्बुदा देवी मन्दिर), वशिष्ठ मुनि मन्दिर, करोड़ीध्वज मन्दिर, अरनेश्वर महादेव मन्दिर, पाटनारायण मन्दिर, आरासुरी अम्बा माता मन्दिर, वमाणसूर्य मन्दिर, ऋक्षेश्वर महादेव मन्दिर, ईशबोरजी मन्दिर।
देलवाड़ा जैन मन्दिर –
11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच आबू पर्वत पर 5 श्वेताम्बर मन्दिर व 1 दिगम्बर जैन मन्दिर हैं इन मन्दिरों में सोलंकी कला की झलक देखने को मिलती है।
विलमशाही मन्दिर –
देलवाड़ा में स्थित विमलशाही मन्दिर का निर्माण गुजरात के चालुक्य शासक भीमदेव के मंत्री विमलशाही ने 1031 ई. में शिल्पकार कीर्तिधर के निर्देशन में करवाया। यह मन्दिर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) को समर्पित है।
इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने इन मन्दिरों के लिए लिखा था कि “भारतवर्ष के भवनों में ताजमहल के बाद यदि कोई भवन (मन्दिर) है, तो वह विमलशाही जैन मन्दिर है।”
लूवणशाही मन्दिर –
लुवणशाही मन्दिर को नेमिनाथ मन्दिर के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यह मन्दिर 22वें जैन तीर्थंकर नेमिनाथ को समर्पित है।
इस मन्दिर का निर्माण चालुक्य शासक विरधवल के मंत्री वास्तुपाल तेजपाल द्वारा शिल्पी शोभनदेव की देखरेख में 1230 ई. में करवाया गया। इस मन्दिर में नेमिनाथ की काले पत्थर की प्रतिमा स्थित है।
भिमाशाह मन्दिर –
इस मन्दिर का निर्माण भिमाशाह ने करवाया, यह मन्दिर जैन तीर्थंकर आदिनाथ की 108 मन की पीतल की प्रतिमा के कारण प्रसिद्ध है।
इसलिए इसे पित्तलहर मन्दिर कहा जाता है।
कुंथुनाथ मन्दिर –
इन मन्दिरों का निर्माण 1449 ई. में मेवाड़ के शासक महाराणा कुम्भा ने कराया। इस मन्दिर को भगवान कुंथुनाथ का दिगम्बर जैन मन्दिर कहा जाता है।
इस मन्दिर के पास ही पार्श्वनाथ मन्दिर तथा मंशादेवी का मन्दिर भी बना हुआ है।
अचलेश्वर मन्दिर –
माउंट आबू में स्थित यह मन्दिर भगवान महादेव को समर्पित है।
इस मन्दिर में शिवलिंग के स्थान पर ब्रह्मखड्ड स्थित है जहाँ शिवजी के पैर के अँगूठे का पूजन होता है।
अजमेर जिले के मन्दिर
ब्रह्मा मन्दिर –
अजमेर के पुष्कर में विश्व का एकमात्र ब्रह्माजी का मन्दिर, चतुर्मुखी मूर्ति के रूप में स्थापित है। इस मन्दिर का निर्माण गोकुलचन्द पारीक ने करवाया।
भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने ब्रह्माजी के मन्दिर को राष्ट्रीय महत्त्व का मन्दिर घोषित किया है।
सावित्री मन्दिर –
ब्रह्माजी की पत्नी सावित्रीजी का मन्दिर पुष्कर के दक्षिण में रत्नागिरी पर्वत पर स्थित है। इस मन्दिर की भी मान्यता है कि भारत में यह एकमात्र मन्दिर है।
इस मन्दिर का निर्माण भी गोकुल चन्द पारीक ने करवाया।
सोनीजी की नसियाँ –
अजमेर शहर के बीचोबीच स्थित सोनीजी की नसियाँ अपनी कलात्मक सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध हैं। इसी स्थान पर सम्पूर्ण सोने से बनी हुई अयोध्या स्थित है।
यहाँ जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथजी का मन्दिर स्थित है जिसका निर्माण 1864-65 ई. में मूलचंद सोनी व उसके पुत्र टीकचंद सोनी ने करवाया।
यह मन्दिर सम्पूर्ण लाल रंग से निर्मित है जिसके कारण इसे लाल स्थित है, जो दिगम्बर जैन मन्दिर के नाम से जाना जाता है।
वराह मन्दिर –
इस मन्दिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चौहान शासक अर्नोराज ने करवाया।
रंगनाथजी का मन्दिर –
यह राजस्थान का सबसे बड़ा दक्षिण भारतीय शैली में बना मन्दिर है। इस मन्दिर में भगवान विष्णु, लक्ष्मी एवं नृसिंह भगवान की मूर्ति स्थापित है।
इनके अलावा बैकुंठनाथ मन्दिर, काचरिया मद्निर, नौग्रह मन्दिर, आतेड़ माता का मन्दिर, कोटेश्वर महादेव मन्दिर, विष्णु मन्दिर, निम्बार्क मन्दिर, सर्वेश्वरजी का मन्दिर, दादाबाड़ी, पिपलाज माता का मन्दिर (ब्यावर), मथुराधीश मन्दिर (सरवाड़), नौसठ माता का मन्दिर, गायत्री देवी का मन्दिर अजमेर जिले में स्थित है।
जयपुर जिले के मन्दिर
गोविन्द देवजी मन्दिर –
इस मन्दिर का निर्माण कछवाह शासक सवाई जयसिंह ने 1735 ई. में जयपुर में कराया। यह मन्दिर गौडीय सम्प्रदाय का प्रमुख मन्दिर है।
गोविन्द देवजी की मूर्ति सवाई जयसिंह द्वारा वृंदावन से लाकर जयपुर में प्रतिस्थापित करवाई थी।
जगत शिरोमणि मन्दिर –
आमेर में स्थित इस मन्दिर का निर्माण कछवाह राजा मानसिंह प्रथम की पत्नी कनकावती ने अपने पुत्र जगतसिंह की स्मृति में कराया।
इस मन्दिर में भगवान श्रीकृष्ण की काले पत्थर की मूर्ति है। यह वही मूर्ति है जिसकी आराधना मेवाड़ में भक्त मीराबाई करती थी।
इस मूर्ति को मानसिंह चित्तौड़ विजय के पश्चात् यहाँ लाए थे।
शीलादेवी मन्दिर –
आमेर में स्थित यह मन्दिर कछवाह राजवंश की कुलदेवी के रूप में प्रसिद्ध है। इस मन्दिर का निर्माण कछवाह राजा मानसिंह प्रथम ने करवाया।
शीलादेवी की मूर्ति को मानसिंह 1604 ई. में बंगाल विजय के पश्चात् बंगाल के राजा केदार से लाए थे। इस में संगमरमर का कार्य सवाई मानसिंह द्वितीय ने करवाया।
इस मन्दिर की प्रमुख विशेषता मदिरा एवं जल का चरणामृत भक्तजनों को दिया जाता है। इस देवी के मन्दिर को अन्नपूर्णा देवी मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है।
गलताजी –
जयपुर में स्थित यह मनोरम तीर्थ रामानुज सम्प्रदाय से संबंधित है। इसे उत्तर तोताद्री, मंकी वैली तथा जयपुर का बनारस के नाम से जाना जाता है।
यह स्थान गालव ऋषि का प्रमुख आश्रम था।
शीतला माता मन्दिर –
चाकसू में स्थित इस मन्दिर का निर्माण महाराजा माधोसिंह ने किया। इस मन्दिर के पुजारी कुम्हार होते है तथा देवी का वाहन गधा होता है।
यह एकमात्र देवी है, जो खण्डित रूप में पूजी जाती है।
बिड़ला मन्दिर –
प्रसिद्ध उद्योगपति गंगाप्रसाद बिड़ला के हिंदुस्तान चेरीटेबल ट्रस्ट द्वारा इस मन्दिर का निर्माण कराया गया। इस मन्दिर को लक्ष्मीनारायण मन्दिर के नाम से जाना जाता है।
इस मन्दिर में बिड़ला संग्रहालय भी स्थित हिया जहाँ औद्योगिक विकास एवं राजस्थानी वेशभूषा के विकास की सजीव झाँकी देखी जा सकती है।
नकटी माता मन्दिर –
जयपुर के भवानीपुरा में स्थित यह मन्दिर गुर्जर-प्रतिहार कालीन है। इस मन्दिर में प्रतिहार शैली की झलक देखने को मिलती है।
त्र्यंबकेश्वर मन्दिर –
राजस्थान का यह प्राचीन मन्दिर जयपुर के निकट चाकसू में स्थित है। इस मन्दिर में प्रतिहार राज्य का प्रथम मन्दिर है।
अन्य प्रमुख मन्दिर – गढ़गणेश मन्दिर (मोती डूंगरी मन्दिर), गंगा गोपालजी का मन्दिर, राज राजेश्वर शिवालय, मदन मोहन मन्दिर, परनामी मन्दिर, बिहारीजी मन्दिर, ताड़केश्वर मन्दिर, चन्द्र मनोहरजी मन्दिर, बलदाऊ मन्दिर, जमुवा माता मन्दिर, लक्ष्मी जगदीश मन्दिर, सूर्य मन्दिर आदि।
उदयपुर जिले के मन्दिर
एकलिंगजी मन्दिर –
मेवाड़ के महाराणाओं के इष्टदेव एकलिंगजी मन्दिर का निर्माण 734 ई. में मेवाड़ के गुहिल शासक बप्पा रावल ने कराया।
यह मन्दिर उदयपुर के नजदीक कैलाशपुरी नामक स्थान पर स्थित है। इस मन्दिर को वर्तमान स्वरूप महाराणा रायमल ने प्रदान किया।
एकलिंगजी मन्दिर के पास भगवान लकुलीशजी का मन्दिर भी स्थित है। इन्हें पाशुपत सम्प्रदाय का प्रणेता माना जाता है।
महाराणा कुम्भा ने इसी स्थान पर विष्णु मन्दिर बनवाया। इसे मीराबाई मन्दिर भी कहते है।
जगदीश मन्दिर –
इस मन्दिर का निर्माण 1651 ई. में महाराणा जगतसिंह प्रथम द्वारा करवाया गया। इस मन्दिर के सूत्रधार अर्जुन, भानां व पुत्र मुकुंद प्रमुख थे।
इस मन्दिर में भगवान जगदीशजी (विष्णु) की काले पत्थर से निर्मित पांच फुट ऊँची प्रतिमा है।
जगदीश जी मन्दिर को सपनों से बना मन्दिर भी कहते है, क्योंकि माना जाता है कि भगवान विष्णुजी ने जगतसिंह को मन्दिर बनाने कल इए एक सपना दिया था। यह मन्दिर पंचायतन शैली में निर्मित है।
ऋषभदेव मन्दिर –
उदयपुर के समीप कोयल नदी के तट पर धुलैव नामक स्थान पर यह विशाल मन्दिर स्थित है। सम्पूर्ण देश में ऋषभदेवजी का मन्दिर एकमात्र ऐसा मन्दिर है जिसे जैन, शैव, वैष्णव तथा आदिवासी समान रूप से पूजते हैं।
आदिवासी लोग इन्हें कालाजी देवता के नाम से जानते हैं। इस मन्दिर पर सर्वाधिक केशर चढाने के कारण या केशरियानाथजी का मन्दिर भी कहलाता है।
इस मन्दिर में ऋषभनाथजी की काले पत्थर की मूर्ति स्थित है जिसके कारण इसे कालिया बावजी भी कहते हैं।
यह मन्दिर 1100 खम्भों पर निर्मित है जिसमें चूने का प्रयोग नहीं हुआ है। इस मन्दिर पर चैत्र मास की अष्टमी को विशाल मेला भरता है।
अम्बिका मन्दिर –
उदयपुर के समीप जगत नामक स्थान पर अम्बिका देवी का प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है। यह मन्दिर 10वीं शताब्दी में नगर शैली में बना है।
इस मन्दिर को मेवाड़ का खजुराहो कहते हैं। इस मन्दिर के समीप नृत्य गणपति महाराज की विशाल प्रतिमा स्थित है।
सहस्र-बाहु मन्दिर –
यह मन्दिर मेवाड़ के बप्पा रावल के समकालीन है। यह भगवान विष्णु को समर्पित मन्दिर है। स्थानीय भाषा में इस मन्दिर को सास-बहू का मन्दिर भी कहते हैं।
सास-बहू (सहस्र-बाहू) का मन्दिर नागदा में स्थित है, यह मन्दिर गुर्जर महाशैली का नमूना है।
मछन्दरनाथ मन्दिर –
उदयपुर में इस मन्दिर को संझयाकोट मन्दिर के नाम से जाना जाता है।
चित्तौड़ जिले के मन्दिर
कुम्भ श्याम मन्दिर –
यह मन्दिर चित्तौड़ दुर्ग में स्थित है। इस मन्दिर का निर्माण 15वीं सदी में महाराणा कुम्भा ए करवाया।
वर्तमान में इस मन्दिर को मामादेव मन्दिर भी कहते है।
कालिका माता मन्दिर –
8वीं शताब्दी में चित्तौड़ दुर्ग में सूर्य के समर्पित कालिका माता मन्दिर स्थित है। इस मन्दिर का जीर्णोद्धार 15वीं शताब्दी में राणा कुम्भा ने करवाया।
समिधेश्वर मन्दिर –
मालवा के परमार राजा भोज द्वारा 11वीं शताब्दी में इस मन्दिर का निर्माण नगर शैली में हुआ।
यह मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मन्दिर का जीर्णोद्धार 1428 ई. में मेवाड़ के महाराजा मोकल ने कराया।
मातृकुण्डिया मन्दिर –
चित्तौड़ जिले में बनास नदी के किनारे राशमी के पास मातृकुण्डिया में भगवान शिव का मन्दिर स्थित है। इस स्थान को मेवाड़ का हरिद्वार कहते हैं, क्योंकि यहाँ लक्ष्मण झूला स्थित है।
सतबीस देवरी मन्दिर –
चित्तौड़ के किले में फतेह प्रकाश महल के पास 27 जैन मन्दिर स्थित हैं। जिसके कारण इसे सतबीस देवरी कहा जाता है।
श्रृंगार चंवरी मन्दिर –
यह मन्दिर चित्तौड़ दुर्ग में भगवान शांतिनाथ का जैन मन्दिर स्थित हैं। राणा कुम्भा के शासनकाल में इसका निर्माण हुआ।
बाडौली के शिव मन्दिर –
चित्तौड़ के निकट भैंसरोड़गढ़ के समीप बाडौली के शिव मन्दिर स्थित हैं।
इन मन्दिरों का निर्माण परमार राजाओं ने करवाया। इस मन्दिर को घाटेश्वर महादेव का मन्दिर भी कहते है।
मीरा मन्दिर –
चित्तौड़ दुर्ग में यह मन्दिर इंडो आर्य शैली में बना हुआ है।
सांवलिया सेठ मन्दिर –
यह मन्दिर चित्तौड़ के मण्डफिया में स्थित है।
इस मन्दिर में भगवान श्रीकृष्णजी की मूर्ति स्थित है।
यहाँ जल झूलनी एकादशी को मेला भरता है।
असावरा मन्दिर –
चित्तौड़ में यह मन्दिर उस लोकदेवी का है, लोक मान्यता है कि जो लकवाग्रस्त मरीजों का इलाज करती है।
डूंगरपुर जिले के मन्दिर
बेणेश्वर मन्दिर –
सोम, माही, जाखम नदियों के संगम पर बेणेश्वर धाम स्थित है। यह मन्दिर भारतवर्ष में एकमात्र खण्डित शिव मन्दिर है।
इस स्थान को आदिवासियों का कुम्भ, बागड़ प्रदेश का पुष्कर तथा बागड़ का कुम्भ भी कहते हैं। संत मावजी का सम्बन्ध भी बेणेश्वर धाम से था।
विजय राज राजेश्वर मन्दिर –
डूंगरपुर में गैव सागर झील के किनारे यह मन्दिर स्थित है इस मन्दिर का निर्माण महाराजा उदयसिंह की रानी उम्मेद कंवर ने 1882 ई. में कराया, यह मन्दिर चतुर्भुजाकार व परेबा पत्थर से बना हुआ है।
गवरी बाई मन्दिर –
गवरी बाई को बागड़ की मीरा कहते हैं। इस मन्दिर का निर्माण महारावल शिवसिंह ने करवाया।
देव सोमनाथ मन्दिर –
यह मन्दिर डूंगरपुर में सोम नदी के किनारे बना हुआ है। इस मन्दिर का निर्माण चूने व सीमेंट से नहीं हुआ है इसे ईश्वरीय शक्ति का रूप प्राप्त है।
अन्य प्रमुख मन्दिर – धनमाता व काली माता मन्दिर आदि।
बाँसवाड़ा जिले के मन्दिर
अर्थुणा मन्दिर –
बाँसवाड़ा जिले में 11-12वीं शताब्दी में इन मन्दिरों का निर्माण हुआ। ये मन्दिर परमार कला के मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध हैं।
बागड़ प्रदेश में अर्थुणा परमार राजाओं की राजधानी के रूप में विख्यात था।
कलिंजरा जैन मन्दिर –
बाँसवाड़ा में हिरन नदी के किनारे कलिंजरा के जैन मन्दिर प्रसिद्ध हैं। इन मन्दिर में ऋषभनाथजी का मन्दिर अधिक प्रसिद्ध है।
त्रिपुरा सुंदरी मन्दिर –
बाँसवाड़ा में तलवाड़ा नामक स्थान पर त्रिपुरा देवी सुंदरी का प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है। इसे तुरताई माता या त्रिपुरा महालक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है।
इस मन्दिर में देवी की काले पत्थर की मूर्ति है, मूर्ति की पीठ के मध्य में श्रीयंत्र अंकित है। इस स्थान का नाम शक्तिपुर, शिवपुर और विष्णुपुर में स्थित होने के कारण त्रिपुरा सुंदरी पड़ा।
छींछ माता मन्दिर –
बाँसवाड़ा में छींछ देवी का प्राचीन मन्दिर स्थित है।
छींछ ब्रह्मा मन्दिर –
बाँसवाड़ा में छींछ ब्रह्माजी का मन्दिर स्थित है। छींछ ब्रह्माजी के मन्दिर का निर्माण जगमाल ने 12वीं शताब्दी में करवाया।
घोटिया अम्बा मन्दिर –
घोटिया अम्बा नामक स्थान महाभारत युग से संबंधित है। पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण की सहायता से 88 हजार ऋषियों को भोजन कराया था।
पांडवों ने इंद्र द्वारा प्राप्त आम की गुठली को रोपा था जिससे आज भी आम का एक विशाल वृक्ष स्थित है।
जोधपुर जिले के मन्दिर –
महामंदिर –
यह मन्दिर नाथ सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थ माना जाता है। इस मन्दिर का निर्माण जोधपुर शासक महाराजा मानसिंह ने 1812 ई. में करवाया।
यह मन्दिर 84 खम्भों पर टिका हुआ है अतः इसे चौरासी खम्भों वाला मन्दिर भी कहते हैं।
सच्चियाय माता मन्दिर –
जोधपुर के ओसियाँ में यह मन्दिर महिषासुर मर्दनी की सजीव प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है। सच्चियाय माता हिन्दुओं की पूज्य देवी तथा ओसवाल समाज की कुलदेवी हैं।
यह मन्दिर पंचायतन शैली में बना हुआ है। इस मन्दिर में विष्णु, शिव व सूर्य देव के मन्दिर भी स्थित है।
इसके अलावा जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का प्रतिहारकालीन मन्दिर भी स्थित है। राज्य में ओसिया के मन्दिर अपनी कलात्मक, भव्यता एवं गौरवपूर्ण अतीत को प्रदर्शित करते हैं।
उदय मन्दिर –
जोधपुर के महाराजा मानसिंह ने भीमनाथ के लिए यह इस मन्दिर का निर्माण करवाया।
यह मन्दिर शहर के परकोटे में आयताकार व दक्षिण शैली में बना हुआ है। इस मन्दिर में 102 खम्भे हैं।
देवताओं की साल –
मंडोर शहर में देवताओं की साल 33 करोड़ देवी देवताओं से संबंधित है।
अन्य प्रमुख मन्दिर – चामुण्डा देवी मन्दिर, मुरली मनोहर मन्दिर, आनंद घन मन्दिर, रातानाडा गणेश मन्दिर, अधरशिला महादेव मन्दिर, पंचमुखी बालाजी मन्दिर, खरानना देवी मन्दिर, रावण मन्दिर (उत्तर भारत का एकमात्र मन्दिर) ।
कोटा जिले के मन्दिर –
मथुराधीश मन्दिर –
कोटा के पाटनपोल के निकट यह मन्दिर बल्लभाचार्य सम्प्रदाय के प्रथम महाप्रभु की पीठ के रूप में स्थित है।
कंसुआ का शिव मन्दिर –
हाड़ौती क्षेत्र के गुप्तोत्तरकालीन मन्दिरों में कंसुआ का प्राचीन शिव मन्दिर प्रसिद्ध है। यह मन्दिर लगभग 738 ई. में निर्मित हुआ।
यद्यपि अब यह मन्दिर भग्नावस्था में है फिर भी इस मन्दिर में रखी शिवलिंग प्रतिभा अपने मूलरूप में विद्यमान है।
यहाँ स्थापित 1008 लिंगयुक्त शिवलिंग ना केवल अद्वितीय हैं। बल्कि शिल्प कला का एक उत्कृष्ट नमूना है। इस मन्दिर के समीप कण्व ऋषि का आश्रम स्थित है।
विभीषण मन्दिर –
कोटा के कैथून कस्बे में तीसरी से पाँचवीं शताब्दी के मध्य बना यह प्राचीन मन्दिर है। भारत में यह एकमात्र मन्दिर है।
इस मन्दिर में स्थित विशाल मूर्ति धड़ से ऊपर तक की है जिसे विभीषण की मूर्ति माना जाता है।
अन्य प्रमुख मन्दिर – मथुरेशजी मन्दिर, नीलकंठ मन्दिर, जग मन्दिर, वराह मन्दिर, चारचौमा शिवालय, बुढादीत सूर्य मन्दिर, कँवलेश्वर महादेव मन्दिर आदि।
जालौर जिले के मन्दिर
आशापुरी मन्दिर –
जालौर के मोदरा में स्थित होने के कारण महोदरी देवी के मन्दिर के नाम से जाना जाता है। आशापुरी देवी सोनगरा चौहानों की कुल देवी मानी जाती है।
सिरे मन्दिर –
जालौर की कन्यागिरी पहाड़ी पर यह मन्दिर बना हुआ है। इस मन्दिर को नाथ सम्प्रदाय की पीठ के रूप में माना जाता है।
कन्यागिरी पहाड़ी, योगी जालंधर की तपोभूमि रही है। इस कारण जालौर शहर का नाम पड़ा।
अन्य प्रमुख मन्दिर – जगन्नाथ महादेव मन्दिर, चामुण्डा माता मन्दिर, पातालेश्वर मन्दिर, आपेश्वर महादेव मन्दिर (गुर्जर प्रतिहार कालीन मन्दिर), वराह श्याम मन्दिर, क्षेमंकरी माता मन्दिर, सुंधा देवी मन्दिर (सुंधा पर्वत पर), महालक्ष्मी मन्दिर, नीलकंठ मन्दिर।
चुरू जिले के मन्दिर
सालासर मन्दिर –
यह भारत का एकमात्र दाढ़ी मूँछ युक्त हनुमानजी का मन्दिर है। इस मन्दिर के संस्थापक मोहनदासजी थे जिन्होंने इस मन्दिर का निर्माण सालासर गाँव में करवाया।
इस मन्दिर के बीच में एक विशाल जाल का पेड़ है। इस पेड़ पर भक्तजन नारियल व धागे बाँधते हैं।
इस मन्दिर में अखण्ड दीपक जलना एक अनोखी परम्परा है। प्रत्येक मंगलवार व शनिवार को भक्तों का तांता लगा रहता है।
अन्य प्रमुख मन्दिर – काली माता का मन्दिर, ददरेवा गोगाजी मन्दिर (लोक देवता गोगाजी की जन्मस्थली) ।
जैसलमेर जिले के मन्दिर
हिंगलाज माता मन्दिर –
इस देवी का मन्दिर लोद्रवा में स्थित है। मुगल सम्राट अकबर ने इस देवी की पूजा अर्चना कर अपने साम्राज्य के लिए आशीर्वाद प्राप्त किया।
पार्श्वनाथ मन्दिर –
भाटी राजपूतों की राजधानी लोद्रवा में यह मन्दिर पीले पत्थरों से निर्मित चिंतामणि पार्श्वनाथ का मन्दिर है। इस मन्दिर में भगवान पार्श्वनाथ की सहस्रफणा प्रतिमा अपनी तरह की प्राचीनतम विरल प्रतिमा है।
जो अत्यंत मनोहारी व आकर्षक है। यह प्रतिमा श्यामवर्णी व रत्न जड़ित है इसे विभिन्न कोणों से देखने पर विभिन्न देवरूपों के दर्शन होते हैं।
यह मन्दिर अपने भव्य स्तंभों पर फूल पत्तियों की बारीक खुदाई के लिए प्रसिद्ध है।
तनोट माता मन्दिर –
जैसलमेर के निकट तनोट नामक स्थान पर यह मन्दिर भारतीय सैनिकों की देवी के रूप में प्रसिद्ध है। इस मन्दिर को थार की वैष्णों तथा सैनिकों की देवी कहा जाता है।
माना जाता है कि भारत पाक युद्ध के समय (1965 – 1971) एक भी भारतीय सैनिक हताहत नहीं हुआ। इस मन्दिर के समीप ही रूमालवाला मन्दिर भी स्थित है।
तनोट से 9 किलोमीटर दूर घटियाली माता का मन्दिर भी स्थित है।
अन्य प्रमुख मन्दिर – टीकमराय मन्दिर, लक्ष्मी नाथ मन्दिर, खुशाल राज राजेश्वरी मन्दिर, गिरधारी मन्दिर, बाँके बिहारी मन्दिर, गज मन्दिर, अमरेश्वर महादेव मन्दिर, रामदेवरा मन्दिर आदि।
अलवर जिले के मन्दिर
नारायणी माता मन्दिर –
अलवर के तिजारा में यह मन्दिर नाई समाज की कुलदेवी के रूप में प्रसिद्ध है। इस मन्दिर पर वैशाख शुक्ल एकादशी को विशाल मेले का आयोजन होता है।
इस देवी मान्यता मीणा समाज में भी है।
तिजारा जैन मन्दिर –
यह मन्दिर आठवें जैन तीर्थंकर चन्द्रप्रभु को समर्पित है। तिजारा के समीप देहरा स्थल पर चन्द्रप्रभु की प्राचीन मूर्ति उत्खनन में प्राप्त हुई।
तालवृक्ष का शिव मन्दिर –
यह मन्दिर अलवर में स्थित है। जिसके प्रत्येक पाषाण पर ‘ऊँ’ शब्द अंकित है।
नैगावां जैन मन्दिर –
अलवर दिल्ली मार्ग पर जैन मन्दिरों की एक शृंखला स्थित है। इस शृंखला में नौचोकिया मन्दिर प्रसिद्ध है, जो लोक देवता मल्लिनाथ को समर्पित है।
इस मन्दिर में मल्लिनाथजी की प्रतिमा की पीठ पर प्रशस्ति अंकित है।
अन्य प्रमुख मन्दिर – नीलकंठ महादेव मन्दिर, धौलागढ़ देवी मन्दिर, जगन्नाथपुरी मन्दिर, नृत्य गणेश की मूर्ति (सरिस्का) आदि।
टोंक जिले के मन्दिर
डिग्गी कल्याणजी मन्दिर –
टोंक के पास मालपुरा में कल्याणजी का मन्दिर स्थित है। इस मन्दिर को डिग्गी कल्याणजी के नाम से जाना जाता है।
इस विष्णु मन्दिर का निर्माण मेवाड़ के महाराणा सांगा के शासनकाल में हुआ।
मुस्लिम लोग इन्हें कलंह पीर के नाम से जानते हैं।
नोट :- कल्याणजी का एक मन्दिर जयपुर में भी बना हुआ है।
झालावाड़ जिले के मन्दिर
शीतलेश्वर महादेव मन्दिर –
झालावाड़ जिले में चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित झालरापाटन की शीतलेश्वर महादेव मन्दिर राज्य का प्रथम समयांकित मन्दिर है।
इस मन्दिर का निर्माण लगभग 689 ई. में हुआ। इस मन्दिर के निचले भाग में गंगा, यमुना की पट्टिकाओं के रूप में आकृतियाँ बनी हैं।
इस मन्दिर के भग्नावशेषों में केवल गर्भगृह और छत्र रहित अंतराल ही मिला है।
गर्भगृह के आलों में देवस्थान है। इस मन्दिर को चन्द्रमौली मन्दिर भी कहा जाता है।
सूर्य मन्दिर –
झालरापाटन में स्थित यह मन्दिर राज्य का सबसे प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर है। इस मन्दिर में सूर्य व विष्णु के सम्मिलितभाव की एक प्रतिमा मुख्य रथिका में स्थित है।
यह मन्दिर मूल रूप से 10वीं शताब्दी का बना हुआ है। इस मन्दिर में त्रिमुखी सूर्य की प्रतिमा है तथा अनेक सुन्दर प्रतिमाओं का अंकन मन्दिर को सौन्दर्य प्रदान करता है।
इस मन्दिर में घंटों की संख्या अधिक है। माना जाता है कि जब मन्दिर में एकसाथ इन घंटो को बजाया जाता है, तब 9 किलोमीटर तक इसकी गूँज सुनाई देती है।
इस कारण झालरापाटन को घंटियों का शहर (सिटी ऑफ वैल्स) भी कहते हैं।
पद्भानाभ जैन मन्दिर –
10वीं शताब्दी में निर्मित इस मन्दिर को सात सहेलियों का मन्दिर कहते है। कर्नल टॉड ने इस मन्दिर को चारभुजा मन्दिर के नाम से संबोधित किया।
यह मन्दिर कच्छपघात शैली में निर्मित हैं।
शांतिनाथ जैन मन्दिर –
10-12वीं सदी में इन मन्दिरों का निर्माण झालरापाटन में हुआ। ये मन्दिर कच्छपघात शैली में बने हुए है।
द्वारिकाधीश देवालय –
झालावाड़ जिले की वाणिज्यिक नगरी झालरापाटन के गौमती सागर जलाशय के तट पर स्थित भगवान द्वारिकाधीश का देवालय वैष्णव धर्म के वल्लभ सम्प्रदाय का प्रसिद्ध धाम है।
इस स्थान को गौमती सागर के जसवा ओढ़नी का तालाब भी कहते हैं।
बौद्ध विहार –
झालावाड़ जिले के काल्वी नामक स्थान पर अनेक बौद्ध विहार, मठ देखे जाते हैं। इस स्थान के निकट ही विनायक, हथियागौड़ एवं गुनाई स्थानों पर भी बौद्ध धर्म के रॉक कट मन्दिर एवं मठ स्थित हैं।
काल्वी की बौद्ध गुफाओं को राज्य में बोलती हुई बौद्ध गुफाएँ कहा जाता है। काल्वी को अजन्ता-एलोरा (महाराष्ट्र) के समकक्ष माना जाता है।
झुंझुनूं जिले के मन्दिर
रानी सती मन्दिर –
झुंझुनूं नगर में रानी सती का मन्दिर स्थित है, झाला परिवार से संबंधित टंडनराम की पत्नी नारायणी देवी अपने पति की मृत्यु के बाद सती हुई थी।
झाला परिवार की यह पहली सती महिला थी। इस मन्दिर को विश्व में रानी सती के रूप में प्रसिद्धि मिली।
माघ व भाद्र महीनों में यहाँ मेला भरता है। रानी सती (नारायणी देवी) का उपनाम दादीजी था।
दौसा जिले के मन्दिर
हर्षदमाता मन्दिर –
दौसा जिले के आभानेरी में हर्षदमाता का मन्दिर स्थित है। यह मन्दिर प्रतिहार कालीन महामारू शैली का अनुपम उदाहरण है।
यह वैष्णव सम्प्रदाय से संबंधित है। इस मन्दिर के गर्भगृह में चतुर्भुजी हरिसिद्धी देवी की प्रतिमा हर्षदमाता के रूप में प्रतिष्ठित है।
इसी मन्दिर के पास प्रसिद्ध आभानेरी की चाँदबावड़ी स्थित है।
मेंहदीपुर बालाजी –
दौसा के निकट दो पहाड़ियों के बीच घाटी में प्रसिद्ध हनुमानजी का मन्दिर स्थित है। इसे घाटा मेंहदीपुर के नाम से जाना जाता है।
अन्य प्रमुख मन्दिर – बैजनाथ मन्दिर, दादूदयालजी मन्दिर, सुन्दरदास मन्दिर, नीलकंठ मन्दिर, सोमनाथ मन्दिर, गुप्तेश्वर मन्दिर आदि।
नागौर जिले के मन्दिर
दधिमति माता मन्दिर –
नागौर जिले की जायल तहसील के निकट गौठ मांगलोद गाँव में दधिमाता का प्राचीन मन्दिर है। इस मन्दिर पर प्रतिवर्ष नवरात्रा में भव्य मेले का आयोजन होता है।
यह मन्दिर अपनी शिल्प उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध है। यह मन्दिर प्रतिहारकालीन महामारू शैली में निर्मित है।
दधिमति माता दाहिमा ब्राह्मणों की कुल देवी हैं।
मीराबाई मन्दिर –
नागौर के मेड़ता में इस मन्दिर का निर्माण मीराबाई के पिता रावदूदा ने करवाया। इस मन्दिर को चारभुजानाथ मन्दिर भी कहा जाता है।
इसी मन्दिर में तुलसीदास व रैदास की आदमकद प्रतिमाएं स्थित हैं।
गुसांई मन्दिर –
नागौर के जुंजाला स्थान पर गुस्से वाले अवतार गुसांईजी का मन्दिर स्थित है।
अन्य प्रमुख मन्दिर – बंशीवाले का मन्दिर, कैवास माता मन्दिर, भंवाल माता मन्दिर, तेजाजी मन्दिर आदि।
पाली जिले के मन्दिर
रणकपुर जैन मन्दिर –
पाली जिले में यह मन्दिर फालना के पास अरावली पर्वत माला की सुरम्य पहाड़ियों में अपनी अद्भुत शिल्पकला एवं भव्यता के साथ आध्यात्मिकता के लिए प्रसिद्ध है।
इन मन्दिरों का निर्माण मेवाड़ के शासक राणा कुम्भा के शासनकाल में मंत्री जैन श्रावक धरणक शाह नामक एक जियन व्यापारी ने बनवाए।
रणकपुर के यह मन्दिर 1444 स्तंभों पर टिका हुआ है। इस मन्दिर को चौमुखा मन्दिर भी कहा जाता है।
इस मन्दिर में दो विशाल घंटे हैं, जो 300 किलो वजन के धातुओं से बने हैं, जिनके बजने से नर व मादा का भेद ज्ञात होता है।
इस मन्दिर में सहस्रफणी नागराज के साथ पार्श्वनाथ की प्रतिमा है। यह मन्दिर अपनी शिल्पकला के साथ आध्यात्म एवं शांति का केंद्र हैं।
रणकपुर को खम्भों (स्तंभों) वाला नगर भी कहते हैं।
कर्नल टॉड ने इन मन्दिरों को नलिनी गुल्म (दिव्य विमान) के आकार का बताया।
मूंछाला महावीर मन्दिर –
समस्त भारत में यह एकमात्र मन्दिर है, जो मूँछों वाले महावीर स्वामी की कल्पना के रूप में निर्मित है।
सांडेराव का शांतिनाथ देवालय –
यह मन्दिर लगभग 1400 वर्ष पुराना जैन मन्दिर है।
निम्बों का नाथ मन्दिर –
मान्यता है कि पाण्डवों की माता कुन्ती ने इसी स्थान पर भगवान शिव की पूजा की थी। इस कारण इसे निम्बों का नाथ कहा जाता है।
भरतपुर जिले के मन्दिर
लक्ष्मणजी मन्दिर –
भरतपुर शहर के मध्य में यह मन्दिर स्थित है।
इसका निर्माण भरतपुर के महाराजा बलदेव सिंह ने 19वीं शताब्दी में करवाया था।
यह मन्दिर भव्य इमारत सफेद पत्थर के आकर्षक बेलबूटों व पच्चीकारी से युक्त है।
सम्प्पूर्ण राजस्थान में यह एकमात्र लक्ष्मणजी का मन्दिर है।
गंगा मन्दिर –
भरतपुर में यह मन्दिर अपनी शिल्प वैभव व बारीक नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है।
भरतपुर के शासक बलवंतसिंह के पुत्र जन्म की कामना से गंगा माता की आराधना की तथा पुत्र प्राप्ति के बाद लाल पत्थरों से भव्य गंगा महारानी की नींव रखी।
धौलपुर जिले के मन्दिर
मचकुंड मन्दिर –
धौलपुर शहर से 3 किलोमीटर दूर हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल मचकुंड गंधमादन पर्वत पर स्थित है। यह
स्थान तीर्थों का भांजा कहलाता है।
मचकुंड में प्राचीन पौराणिक हिन्दू देवी-देवताओं की अनेक प्रतिमाएं स्थित हैं। इस मन्दिर पर देवछट को विशाल मेला लगता है।
मान्यता है कि मचकुंड में स्थित एक विशाल कुण्ड में स्नान करने पर शरीर के कुष्ठ समाप्त हो जाते है।
मचकुंड के समीप बाबर का बाग व कमल के फूल का बाग़ स्थित है।
अन्य प्रमुख मन्दिर – सैपऊ महादेव मन्दिर, भूतेश्वर महादेव मन्दिर, राधा बिहारी मन्दिर, चौपड़ा मन्दिर, कैलादेवी मन्दिर, बाबू महाराज मन्दिर, विशिनागिरी मन्दिर झोरवाली माता मन्दिर, बीजासण माता मन्दिर आदि।
करौली जिले के मन्दिर
महावीरजी मन्दिर –
करौली के निकट गम्भीरी नदी के किनारे श्री महावीर जी नामक स्थान पर जैन धर्म के लोगों का प्रमुख तीर्थ स्थल हैं।
इस स्थान पर चैत्र शुक्ला त्रियोदशी को चार दिवसीय मेला लगता है।
इस मन्दिर व मेले का मुख्य आकर्षण जिनेन्द्र रथ यात्रा है। यह मन्दिर लाल पत्थर व संगमरमर के योग से चतुष्कोण के आकार का बना हुआ है तथा संगमरमर पर बारीक चित्रांकन हुआ है।
इस मन्दिर में देवी पद्मावती व क्षेत्रपाल की प्रतिमाएं स्थित हैं। महावीर जी नामक स्थान का प्राचीन नाम चान्दन गाँव था।
मदनमोहनजी मन्दिर –
मदनमोहनजी की मूर्ति ब्रजभूमि वृंदावन से मुस्लिम आक्रमणकारियों से बचाकर लाई गई थी। यह मन्दिर गौडीय सम्प्रदाय का प्रमुख मन्दिर है।
इस मन्दिर के निर्माण का श्रेय करौली के राजा गोपालसिंह को दिया जाता है। इस मन्दिर के पास कल्याणराव का मन्दिर भी स्थित है।
कैलादेवी मन्दिर –
यादव वंश की कुल देवी कैलादेवी का प्रसिद्ध मन्दिर जिला मुख्यालय करौली से 28 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत पर स्थित है।
इस मन्दिर पर चैत्र माह में विशाल लक्खी मेला आयोजित होता है जिसमें भक्त लांगुरिया गीत गाते हैं। इस मन्दिर में कैलादेवी की मूर्ति केदारगिरी द्वार स्थापित की गई बाद में खींची राजा मुकन्ददास, गोपालसिंह तथा भँवरपाल सिंह द्वारा इस मन्दिर के ठीक सामने बौहरा की छतरियाँ हैं।
इस मन्दिर के समीप हनुमानजी की माता अंजनी देवी का मन्दिर बना हुआ है। इस मन्दिर का निर्माण करौली के राजा अर्जुनदेव ने करवाया।
बीकानेर जिले के मन्दिर
करणीमाता मन्दिर –
बीकानेर के राठौड़ों की कुलदेवी करणीमाता का मन्दिर बीकानेर जिले की नोखा तहसील के देशनोक कस्बे में स्थित है।
यह मन्दिर चूहों के मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। माना जाता है कि करणीमाता ने अपने जीवन में अनेक चमत्कार दिखाए तथा स्वयं ने 1419 ई. में देशनोक की स्थापना की तथा राव बीका ने करणीमाता की कृपा से ही बीकानेर राज्य की स्थापना की।
इस स्थान पर चैत्र में आश्विन माह में मेले भरते हैं करणीमाता मन्दिर में सफेद चूहे काबा कहलाते हैं तथा भक्तजन इन चूहों के दर्शन के लिए घण्टों इंतजार करते हैं।
चारण समाज भी इस देवी को अपनी कुलदेवी मानता है।
कपिलमुनि का मन्दिर –
प्राचीन सांख्य दर्शन के प्रेरणता कपिलमुनि का मन्दिर बीकानेर के कोलायत में स्थित है इसी स्थान पर कपिलजी ने तपस्या की तथा यह स्थान कपिल आश्रम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
कार्तिक पूर्णिमा को कपिलमुनि का मेला भरता है।
भण्डासर जैन मन्दिर –
बीकानेर में यह मन्दिर जैन धर्म के चौथे तीर्थंकर सुमतिनाथ जी का है। इस मन्दिर का निर्माण भाण्डाशाह ने कराया।
इस मन्दिर को त्रिलोक दीपक प्रसाद मन्दिर भी कहा जाता है।
कहा जाता है कि इस मन्दिर के निर्माण में घी व्यवसायी भाण्डाशाह ने पानी के बजाए घी का प्रयोग किया था, अतः इसे ‘घी वाला मन्दिर’ भी कहते हैं।
हेरम्ब गणपति मन्दिर –
जूनागढ़ दुर्ग में 33 करोड़ देवी देवता मन्दिर में हेरम्ब गणपति की प्रतिमा स्थित है। यह प्रतिमा मूषक की सवारी पर ना होकर सिंह की सवारी पर स्थापित है।
लक्ष्मीनाथजी मन्दिर –
बीकानेर में स्थित यह मन्दिर अर्चक परम्परा से जुड़ा हुआ है। इस मन्दिर के चार भागों में खिड़कियाँ बनी हुई हैं जिनमें अलग-अलग मूर्ति स्थित है।
बूँदी जिले के मन्दिर
केशवराय मन्दिर –
बूँदी में यह मन्दिर केशवराय पाटन में विष्णुतीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है इसका वर्णन स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण व वायु पुराण में है।
इस मन्दिर पर जाने के लिए 59 सीढ़ियाँ बनी हुई हैं,
इसी स्थान पर पाण्डवों द्वारा स्थापित पंचशिवलिंग दर्शनीय स्थल है।
खटकड़ महादेव मन्दिर –
यह अति प्राचीन तीर्थ बूँदी-नैनवा सड़क मार्ग पर एक दुर्गम पहाड़ी पर स्थित है। इसे पटपुर महादेव के नाम से भी जाना जाता है।
बाँसी दुगारी मन्दिर –
बूँदी में बाँसी दुगारी गाँव कलियुग के चमत्कारी देवता तेजाजी महाराज की कर्मस्थली रहा है।
यहाँ एक विशाल सरोवर है जिसके किनारे पर तेजाजी महाराज का मन्दिर व पवित्र तीर्थ स्थित है।
भीलवाड़ा जिले के मन्दिर
राजद्वारा मन्दिर –
भीलवाड़ा के शाहपुरा कस्बे में रामस्नेही सम्प्रदाय का प्रमुख पीठ स्थल रामद्वारा के नाम से प्रसिद्ध है।
इस रामद्वारे का मुख्य दरवाजा संगमरमर पत्थर से बना हुआ है तथा
दरवाजे पर सुदंर शोभायुक्त झरोखा बना हुआ है जिस पर पाँच कलश हैं।
इसी स्थान पर 12 स्तम्भ एवं 12 दरवाजे हैं जिसके अंदर कोई मूर्ति, चित्र, पादुका नहीं है केवल 34 बार रा-रा-रा और राम लिखा हुआ है।
तिलस्वां महादेव मन्दिर –
भीलवाड़ा में स्थित यह एक प्राचीन महादेव का मन्दिर है, जो अपनी अचूक शक्ति के लिए प्रसिद्ध है।
इस मन्दिर पर चर्म एवं कुष्ठ रोगी स्वस्थ हो जाते हैं।
सवाईभोज मन्दिर –
भीलवाड़ा के आसींद में खारी नदी के किनारे गुर्जर समाज का सबसे प्रसिद्ध व प्राचीन सवाईभोज मन्दिर स्थित है।
यह मन्दिर लोकदेवता देवनारायणजी के पिता सवाईभोज की स्मृति में बना हुआ है।
सवाईभोज 24 बगडावत भाइयों में से एक थे।
राजसमंद जिले के मन्दिर
श्रीनाथजी मन्दिर –
राजसमंद जिले के नाथद्वारा कस्बे में श्रीनाथजी का भव्य मन्दिर है।
यह पुष्टिमार्गीय वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थस्थल है।
वर्तमान नाथद्वारा के स्थान पर 1669 ई. से पूर्व सिंहाड़ नामक गाँव स्थित था जब औरंगजेब हिन्दू मन्दिरों को तोड़ रहा था,
तभी दाऊजी महाराज के नेतृत्व में वैष्णव भक्त श्रीनाथजी की मूर्ति के साथ सिंहाड़ पहुँचे
यहाँ मेवाड़ के महाराजा राजसिंह ने इन्हें शरण दी तथा मूर्ति को प्रतिष्ठापित किया,
तभी से सिंहाड़ गाँव नाथद्वारा के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
यहाँ श्रीनाथजी की सेवा पद्धति में सात प्रकार के दर्शन होते हैं जैसे – मंगला, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, भोग, आरती और शयन।
नाथद्वारा में विट्ठलनाथजी, नवनीत प्रियाजी, कल्याण रायजी, वनमाली लालजी, गोपाल लालजी, मदनमोहन लालजी आदि वल्लभ सम्प्रदाय के इन अनुयायियों की पूजा होती है।
यहाँ अष्ठछाप कवियों के पड़ गाए जाते हैं जिन्हें हवेली संगीत कहा जाता है।
श्रीनाथजी के मन्दिरों की प्रमुख विशेषता पिछवाई कला है, जो भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को दर्शाती है।
यहाँ का अन्नकूट महोत्सव भारतवर्ष में प्रसिद्ध है।
श्रीनाथजी मन्दिर में केले के पत्तों की सांझी प्रसिद्ध है।
यह सांझी श्राद्ध पक्ष में कृष्ण की 8 झाँकी के रूप में सजाई जाती है।
द्वारिकाधीश मन्दिर –
राजसमंद जिले के कांकरौली कस्बे में भगवान द्वारिकाधीश का भव्य मन्दिर स्थित है।
इस मन्दिर का निर्माण 1671 ई. में मेवाड़ के महाराणा रायसिंह ने करवाया।
यह मन्दिर वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थस्थल है। मन्दिर के प्रांगण में एक प्राचीन चित्रों का संग्रहालय भी है।
श्रीगंगानगर जिले के मन्दिर
गुरुद्वारा बुड्डा जोहड़ –
गंगानगर जिले के रायसिंह नगर कस्बे के पास डाबला गाँव में स्थित गुरुद्वारा बुड्डा जोहड़ राज्य का प्रमुख गुरुद्वारा है।
अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर के बाद इस गुरुद्वारे का विशेष महत्त्व माना जाता है.
इसका निर्माण 1954 ई. में बाबा फतेसिंह की देखरेख में हुआ. यहाँ हर माह की अमावस को मेला लगता है।
श्रावण मास की अमावस को यहाँ सबसे बड़ा मेला भरता है।
सीकर जिले के मन्दिर
जीणमाता मन्दिर –
सीकर जिले के रैवासा गाँव में हर्ष की पहाड़ियों पर जीणमाता का भव्य व प्राचीन मन्दिर स्थित है।
इस मन्दिर का निर्माण 1064 ई. में चौहान वंश के हठड़ नामक शासक द्वारा करवाए जाने का उल्लेख मिलता है।
जीणमाता चौहान वंश की इष्ट देवी हैं। इस मन्दिर में जीणमाता की अष्टभुजा प्रतिमा के सामने सदैव अखण्ड ज्योति जलती रहती है तथा चैत्र व आश्विन नवरात्रों में यहाँ मेला लगता है।
खाटूश्यामजी मन्दिर –
सीकर जिले के खाटू गाँव में श्यामजी का प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है।
1720 ई. के एक शिलालेख के अनुसार अजमेर के राज राजेश्वर अतीत सिंह सिसौदिया के पुत्र अभयसिंह ने वर्तमान खाटूश्यामजी मन्दिर की नींव रखी।
यहाँ फाल्गुन शुक्ला एकादशी व द्वादशी को मेला लगता है।
अन्य प्रमुख मन्दिर – हर्शानाथ भैरव मन्दिर, शाकम्बरी देवी मन्दिर, काला कृष्ण मन्दिर, सप्त गोमाता मन्दिर आदि।
हनुमानगढ़ जिले के मन्दिर
भद्रकाली मन्दिर –
इस मन्दिर की स्थापना बीकानेर के महाराजा रामसिंह ने अकबर के कहने पर की।
इस मन्दिर पर चैत्र शुक्ला अष्टमी व नवमी को विशाल मेला लगता है।
गोगामेड़ी मन्दिर –
हनुमानगढ़ की नोहर तहसील में गोगाजी का मन्दिर स्थित है।
यह मन्दिर साम्प्रदायिक सद्भाव का अनुपम उदाहरण है,
क्योंकि मन्दिर में एक हिन्दू व एक मुस्लिम पुजारी पूजा करते हैं तथा
इस मन्दिर के मुख्य द्वार पर बिल्मिल्लाह शब्द अंकित है।
बीकनेर के शासक गंगासिंह ने इस मन्दिर को सौन्दर्य प्रदान किया।
बारां जिले के मन्दिर
भण्डदेवरा मन्दिर –
बारां जिले के रामगढ़ में प्राचीन शैव मन्दिर वाममार्गीय कलाओं से युक्त 10वीं शताब्दी का है।
यह राजस्थान के प्रसिद्ध मन्दिर में से एक है।
इसका निर्माण मेड वंशीय राजा मलयवर्मा ने कराया।
इस मन्दिर में उत्कीर्ण मैथुन मुद्रा में बनी मूर्तियों के कारण इसका नाम भण्डदेवरा पड़ा।
इसे हाड़ौती का खजुराहो कहा जाता है।
यह मन्दिर पंचायतन शैली में बने हुए हैं तथा वायुकोण पर आधारित एक विष्णु मन्दिर भी बना हुआ है।
मामा भांजा मन्दिर –
अटरू में स्थित यह एक शिवालय है जिसे फूल देवरा कहा जाता है।
इस शिवालय में चूने पत्थर का प्रयोग नहीं हुआ है।
अन्य प्रमुख मन्दिर – सीताबड़ी तीर्थस्थल, ब्रह्माणी मन्दिर, लक्ष्मीनाथ मन्दिर, काकूनी मन्दिर आदि।
प्रतापगढ़ जिले के मन्दिर
गोमतेश्वर मन्दिर, बाणमाता मन्दिर, कालिकामाता मन्दिर आदि।
सवाई माधोपुर जिले के मन्दिर
गणेश मन्दिर, काला गोरा भैरव मन्दिर, घुश्मेश्वर महादेव मन्दिर, रणतभंवर गजानन मन्दिर,
चतुर्भुजनाथ जी का प्राचीन मन्दिर, चौथमाता मन्दिर, चमत्कार जैन मन्दिर, अमरेश्वर महादेव मन्दिर आदि।
इस प्रकार हमने इस लेख में राजस्थान के विभिन्न प्रसिद्ध मन्दिर के बारे में जानकरी प्राप्त की है.
इसके बारे में आपके कोई सुझाव है तो हमें कमेंट करके जरूर बताएँ।
FAQ राजस्थान के प्रसिद्ध मन्दिर –
उत्तर – झालावाड़ जिले के झालरापाटन में स्थित शितलेश्वर महादेव मन्दिर पर सबसे पहले समय अंकित हुआ मिला है. इस मन्दिर पर 689 ई. लिखा हुआ मिला है.
उत्तर – विजयस्तम्भ (चित्तौड़गढ़)
उत्तर – मामा भांजा मन्दिर बारां जिले की अटरू में स्थित है. इसे फूल देवरा भी कहा जाता है.