मूल कर्तव्य (Fundamental Duties)
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भारत के मूल संविधान में मौलिक अधिकारों को रखा गया, न कि मूल कर्तव्य को।
भारतीय संविधान में मूल कर्तव्यों को पूर्व रुसी संविधान से प्रभावित होकर लिया गया है।
स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशे –
1976 ई. में कांग्रेस पार्टी ने सरदार स्वर्ण सिंह समिति का गठन किया।
जिसे राष्ट्रीय आपातकाल के (1975-77) दौरान मूल कर्तव्यों, उनकी आवश्यकता आदि के संबंध संस्तुति देनी थी।
इस समिति ने सिफारिश की कि संविधान में मूल कर्तव्यों का एक पृथक् पाठ होना चाहिए।
केन्द्र सरकार ने इन सिफारिशों को स्वीकार करते हुए 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 को लागू किया गया।
इसके माध्यम से संविधान में एक नए भाग IVक को जोड़ा गया।
इस नए भाग में केवल एक अनुच्छेद 51क था, जिसमें पहली बार नागरिकों के दस मूल कर्तव्यों को जोड़ा गया।
मूल कर्तव्यों की सूची –
अनुच्छेद 51क के अनुसार भारत के नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह –
- संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करे।
- स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को ह्रदय में संजोए रखें और उनका पालन करे।
- भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखे।
- देश की रक्षा करें और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे।
- भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी भेदभाव से परे हों, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्रियों के सम्मान के विरुद्ध है।
- हमारी संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्व समझें और उसका परिरक्षण करे।
- प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और उसका संवर्द्धन करें तथा प्राणिमात्र के प्रति दया भाव रखें।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।
- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहे।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरन्तर बढ़ते हुए प्रगति और उपलब्धि की नई ऊंचाईयों को छू ले।
- 6 से 14 वर्ष तक की उम्र के अपने बच्चों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना। यह मूल कर्तव्य 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के द्वारा जोड़ा गया।
मूल कर्तव्य के बारे में विचार –
तत्कालीन विधि मंत्री एच,आर, गोखले ने संविधान लागू होने के 26 साल बाद मूल कर्तव्यों को जोड़ने के निम्नलिखित कारण बताए –
“स्वतंत्र भारत के बाद विशेषतः जून 1975 को आपातकाल की पूर्व संध्या पर लोगों के एक वर्ग ने स्थापित विधिक व्यवस्था का सम्मान करने की अपनी मूल प्रतिबद्धता के प्रति कोई उत्सुकता नहीं दिखाई।
मूल कर्तव्यों संबंधी पीठ के प्रावधानों का आंदोलनकारी लोग, जिन्होंने विगत में राष्ट्र विरोधी आंदोलन और असंवैधानिक विद्रोह किए हों, पर संयमी प्रभाव होगा।”
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने संविधान में मूल कर्तव्य को जोड़ने को उचित ठहराया।
साथ ही यह तर्क दिया कि इससे लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी।
संसद में विपक्ष ने संविधान में कांग्रेस सरकार द्वारा मूल कर्तव्यों को जोड़े जाने का कड़ा विरोध किया।
लेकिन मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार ने आपातकाल के बाद इन मूल कर्तव्यों को समाप्त नहीं किया।