डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 3 दिसम्बर, 1884 ई. को बिहार के एक छोटे से गाँव जीरादेई में हुआ था।
उनके पिता श्री महादेव सहाय एवं माता श्रीमती कमलेश्वरी देवी थी।
1926 ई. में वे बिहार प्रदेशीय हिंदी साहित्य सम्मलेन के और 1927 ई. में उत्तर प्रदेशीय हिंदी साहित्य सम्मलेन के सभापति थे।
हिंदी में उनकी आत्मकथा प्रसिद्ध पुस्तक है।
चम्पारन आंदोलन (1917 ई.) के दौरान राजेन्द्र प्रसाद गाँधी जी के वफादार साथी बन गए थे।
1934 ई. में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में अध्यक्ष चुने गए।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देने पर कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार उन्होंने एक बार पुनः 1939 ई. में संभाला था।
1942 ई. में भारत छोड़ो आंदोलन में इन्होंने भाग लिया, जिस दौरान वे गिरफ्तार हुए और नजर बंद रखा गया।
संविधान निर्माण में डॉ. भीमराव अम्बेडकर व डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने मुख्य भूमिका निभाई थी।
भारतीय संविधान समिति के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद चुने गए।
संविधान पर हस्ताक्षर करके डॉ. प्रसाद ने ही इसे मान्यता दी।
26 जनवरी, 1950 ई. को भारत को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के रूप में प्रथम राष्ट्रपति मिल गया।
राष्ट्रपति बनने के अलावा उन्होंने भारत के पहले मंत्रिमंडल में 1946 एवं 1947 ई. में कृषि और खाद्य मंत्री का दायित्व भी निभाया था।
12 वर्षों तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने के बाद उन्होंने सितम्बर, 1962 ई. में अपने अवकाश की घोषणा की।
सन 1962 ई. में अपने राजनैतिक और सामाजिक योगदान के लिए उन्हें भारत के सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया।
28 फरवरी, 1963 ई. को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का निधन हो गया।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें डॉक्टर ऑफ लॉ की उपाधि प्रदान की।
कृतियाँ –
- आत्मकथा (1946 ई.)
- बापू के कदमों में बाबू (1954 ई.)
- इण्डिया डिवाइडेड (1946 ई.)
- सत्याग्रह एट चम्पारण (1922 ई.)
- गाँधीजी की देन