जहाँगीर (Jahangir)
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सलीम (जहाँगीर) का जन्म 30 अगस्त, 1569 ई. को हुआ था। उसकी माता आमेर (जयपुर) के राजा भारमल की पुत्री हरखा बाई मरियम उज्जमानी थी। अकबर इसे शेबू बाबा पुकारता था। जहाँगीर (Jahangir) का प्रमुख शिक्षक बैरम खां का पुत्र अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना था।
जहाँगीर का राज्याभिषेक 3 नवम्बर, 1605 ई. को आगरा के किले में हुआ और उसने नुरुद्दीन मुहम्मद जहाँगीर बादशाह गाजी की उपाधि धारण की। बादशाह बनने के बाद उसने 12 आदेश जारी किए, जिसमें मुख्य इस प्रकार हैं –
- शराब व मादक पदार्थो के निर्माण एवं बिक्री पर रोक।
- रविवार (अकबर का जन्म दिवस) एवं बृहस्पतिवार (जहाँगीर के राज्याभिषेक का दिन) को पशु वध बंद करवाया।
- किसानों की भूमि पर जबरन अधिकार पर रोक।
खुसरो का विद्रोह –
जहाँगीर के बड़े पुत्र खुसरो ने विद्रोह किया और आगरा से भाग निकला। सिख गुरु अर्जुनसिंह ने उसकी मदद की। 1621 ई. में खुर्रम ने खुसरो को मरवा डाला। जहाँगीर ने अर्जुनसिंह को खुसरो की मदद से मरवा डाला। जहाँगीर को खुसरो की मदद करने के लिए मृत्यु दण्ड दे दिया।
जहाँगीर ने मेवाड़ के साथ युद्ध कर संधि की, जिसमें मेवाड़ के राणा अमरसिंह ने मुगलों का आधिपत्य स्वीकार किया और मेवाड़ पुनः प्राप्त किया।
दक्षिण में खुर्रम ने अहमद नगर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया। 1617 ई. में अहमदनगर और मुगलों में संधि हो गई।
जहाँगीर के काल में काँगड़ा पर मुगलों ने विजय प्राप्त की।
जहाँगीर के समय 1622 ई. में कन्धार भारत के हाथ से निकलकर और शाह अब्बास के हाथ में चला गया।
1622 ई. में शाहजहाँ तथा 1626 में महाबत खां ने जहाँगीर को झेलम नदी के किनारे बंदी बनाया था। नूरजहाँ ने महाबत खां के विद्रोह को कुचलने में अहम भूमिका निभाई।
यूरोपीय निवासियों का आगमन –
जहाँगीर के दरबार में सबसे पहले पुर्तगाली आए थे। जहाँगीर ने उन्हें स्वतंत्रता के साथ-साथ अतिरिक्त सहायता दी। वह जेसुइट पादरियों खासकर फादर जेवियर से बहुत प्रभावित था।
अंग्रज भी व्यापारिक सुविधाओं का फायदा उठाना चाहते थे और विलियम हाकिन्स, सर टॉमस रो, विलियम फिंच एवं एडवर्ड टेरी, जहाँगीर के दरबार में आए। जहाँगीर ने 1606 ई. में नौरोज (9 दिन का पारसी त्योहार) धूमधाम से मनाया।
उसने आगरा के किले से कुछ दूर तक घंटियाँ लगवाई, जिसमें एक स्वर्ण जंजीर लगी थी।
कोई भी व्यक्ति घंटी बजाकर सीधे बादशाह से संपर्क कर सकता था। जहाँगीर का सबसे बड़ा गुण उसकी न्यायप्रियता थी।
जहाँगीर ने दो अस्पा सिंह अस्पा की प्रथा चलाई।
दो में मनसबदार को अपने सवार पद के दो गुना घोड़े रखने होते थे और सिंह अम्मा में तीन गुणा अधिक।
नूरजहाँ –
नूरजहाँ के बचपन का नाम मेहरुन्निसा था।
1594 ई. में मेहरुन्निसा की शादी अलिकुलिबेग के साथ हुई।
अललीकुलिबेग की मृत्यु के बाद 1611 ई. में जहाँगीर ने उससे विवाह किया और
उसे नूरमहल व नूरजहाँ की उपाधियाँ दी।
1613 ई. में नूरजहाँ को पट्टमहिषी या बादशाह बेगम बनाया गया।
उसने नूरजहाँ गुट का निर्माण किया।
नूरजहाँ का प्रभुत्व शासन में बढ़ता गया, जिसके कारण शाहजहाँ ने विद्रोह किया।
1621 ई. में नूरजहाँ ने शेर अफगान (अलिकुलिबेग) से पैदा हुई अपनी पुत्री लाड़ली बेगम की शादी शहरयार से कर दी।
जहाँगीर की मृत्यु के बाद नूरजहाँ ने शहरयार को बादशाह घोषित कर दिया।
नूरजहाँ की माँ अस्मत बेगम उसकी मुख्य परामर्शदात्री थी और इत्र की आविष्कारक मानी जाती है।
जहाँगीर ने अपनी जीवन गाथा तुजुके जहाँगीर की रचना फारसी भाषा में की थी।
चित्रकला –
मुगलकाल में चित्रकला का चरमोत्कर्ष जहाँगीर के काल से आया।
उसके दरबार में उस्ताद मंसूर एवं अबुल हसन सबसे महत्वपूर्ण चित्रकार थे।
जहाँगीर ने अबुल हसन को नादिरूज्जमा एवं उस्ताद मंसूर को नादिल-उल-असर की उपाधि प्रदान की थी।
जहाँगीर (Jahangir) ने हेरात के चित्रकार आकारिजा के नेतृत्व में आगरा में एक चित्रणशाला की स्थापना की।
स्थापत्य कला –
जहाँगीर ने आगरा के निकट सिकंदरा में अकबर का मकबरा, लाहौर की मस्जिद बनवाई।
इसके काल में अंतिम भाग में पूरी तरह संगमरमर की इमारतें बनवाने का तथा
दीवारों को फूलदार आकृतियों में सजाने का चलन शुरू हुआ।
साज-सज्जा की यह शैली जडाऊ नक्काशी (पिएत्रा दुयुरा) कहलाती है।
नूरजहाँ द्वारा आगरा में बनवाया गया उसके पिता एत्मातुद्दौला का मकरबा पच्चीकारी और संगमरमर के पत्थर के प्रयोग के कारण अद्वितीय है।
जहाँगीर की मृत्यु 7 नवम्बर, 1627 ई. को भिमवार नामक स्थान पर हुई।
उसे लाहौर में दफनाया गया, जहाँ बाद में नूरजहाँ ने एक मकबरा बनवाया।