खिलजी वंश (सल्तनत काल)– अलाउद्दीन खिलजी
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भारत आने से पूर्व खिलजी जाति अफगानिस्तान में हेलमंद नदी की घाटी के प्रदेश में रहती थी। सल्तनत काल में दिल्ली के सिंहासन पर खिलजी वंश का आधिपत्य हो जाने से भारत में तुर्कों की श्रेष्ठता समाप्त हो गई। इसके साथ ही शासन में भारतीय और गैर तुर्क मुसलमानों का प्रभाव बढ़ गया।
जलालुद्दीन फिरोजशाह खिलजी (1290-1296 ई.) –
यह खिलजी वंश का संस्थापक था। उसने किलोखरी (कूलागढ़ी) को अपनी राजधानी बनाया। सुलतान बनने के समय जलालुद्दीन 70 वर्ष का था। यही कारण था की वह उदार और सहिष्णु बन गया था।
इसके शासनकाल में तीन प्रमुख विद्रोह हुए – (1) मलिक छज्जू का विद्रोह, (2) ताजुद्दीन कुची का षड्यंत्र व (3) सीदी मौला का षड्यंत्र (जिसे बाद में फाँसी दे दी गई) ।
जलालुद्दीन के समय की सबसे महत्वपूर्ण घटना अलाउद्दीन का देवगिरि का आक्रमण था। रामचंद्र देव देवगिरि का शासन था। अमीर खुसरो और हसन देहलवी जलालुद्दीन के दरबार में रहते थे।
20 जुलाई, 1296 को अलाउद्दीन के इशारे पर इख्तियारूद्दीन हूद द्वारा छलपूर्वक जलालुद्दीन का वध कर दिया गया।
अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316 ई.) –
इसका बचपन का नाम अली या गुरशप था। सुलतान बनने से पहले अलाउद्दीन अमीर-ए-तुजुक के पद पर था। 22 अक्टूबर, 1296 को अलाउद्दीन ने दिल्ली में प्रवेश किया, जहाँ बलबन के लाल महल में उसने अपना राज्याभिषेक कराया और दिल्ली का सुलतान बना और सिकन्दर सानी की उपाधि धारण की।
साम्राज्य का विस्तार –
अलाउद्दीन की आकांक्षाएँ साम्राज्यवादी थी। उत्तर भारत के राज्यों के प्रति उसकी नीति राज्य विस्तार की थी, जबकि दक्षिण भारत में वह राज्यों से अपनी अधीनता स्वीकार करवाकर और वार्षिक कर लेकर ही संतुष्ट था।
विजय अभियान –
उत्तर भारत – गुजरात-रणथम्भौर-चित्तौड़-मालवा-धार-चन्देरी-शिवाना-जालौर।
दक्षिण भारत – देवगिरि-वांगरल-द्वारसमुद्र-मालाबार।
मलिक मोहम्मद जायसी की रचना पद्मावत के अनुसार अलाउद्दीन के चित्तौड़ अभियान का कारण यहाँ के शासक राणा रतनसिंह की पत्नी पद्मिनी को प्राप्त करना था।
मलिक काफूर –
अलाउद्दीन के दक्षिण भारत की विजय का प्रमुख श्रेय उसके नायब मलिक काफूर को है। उसने 1307 ई. में सर्वप्रथम देवगिरि पर आक्रमण कर वहाँ के शासक रामचंद्र देव को पराजित किया।
इसके बाद काफूर ने तेलंगाना पर आक्रमण किया। वहाँ के शासक प्रतापरूद्र देव ने आत्मसमर्पण कर मलिक काफूर को कोहिनूर का हीरा सौंपा, जिसे मलिक ने अलाउद्दीन खिलजी को सौंप दिया।
अलाउद्दीन का राजस्व सिद्धांत –
अलाउद्दीन ने धर्म और धार्मिक वर्ग को शासन में हस्तक्षेप नहीं करने दिया। उसने खलीफा से अपने सुलतान पद की स्वीकृति लेने की आवश्यकता नहीं समझी।
इस प्रकार उसने शासन में न तो इस्लाम के सिद्धांतो का सहारा लिया, न उलेमा वर्ग की सलाह ली और न ही खलीफा के नाम का सहारा लिया। अलाउद्दीन निरंकुश राजतंत्र में विश्वास करता था।
प्रशासनिक व्यवस्था –
अलाउद्दीन व्यक्ति की योग्यता पर बल देता था। उसने गुप्तचर विभाग को संगठित किया। इस विभाग का मुख्य अधिकारी वरीद-ए-मुमालिक था।
अलाउद्दीन की मंत्रिपरिषद –
(1) दीवाने वजारात – वजीर (मुख्यमंत्री)
(2) दीवाने इंशा – शाही आदेशों का पालन करवाना
(3) दीवाने आरिज – सैन्य मंत्री
(4) दीवाने रसातल – विदेश विभाग
राजस्व (कर) एवं लगान व्यवस्था –
अलाउद्दीन ने लगान (खराज) पैदावार का ½ भाग निर्धारित किया। वह पहला सुलतान था, जिसने भूमि को नापकर लगान वसूल करना आरंभ किया।
इसके लिए बिस्वा को एक इकाई माना गया। वह लगान को गल्ले के रूप में लेना पसंद करता था। अलाउद्दीन ने दो नए कर लगाए-मकान कर (घरई) एवं चराई कर (चरई) ।
अपनी व्यवस्था को लागू करने के लिए उसने एक पृथक विभाग दीवान-ए-मुसतखराज स्थापित किया।
खालसा भूमि (सुलतान की भूमि) – इस भूमि से लगान राज्य द्वारा वसूला जाता था।
सैनिक व्यवस्था –
अलाउद्दीन ने केंद्र में एक बड़ी और स्थायी सेना रखी जिसे वह नगद वेतन देता था।
ऐसा करने वाला वह दिल्ली का पहला सुलतान था।
केंद्र में अनुभवी सेनानायक थे, जिन्हें कोतवाल कहा जाता था।
सेना की इकाईयों का विभाजन हजार, सौ और दस पर आधारित था,
जो खानों, मलिकों, अमीरों और सिपहसालारों के अंतर्गत थे।
दस हजार की सैनिक टुकड़ियों को तुमन कहा जाता था।
अलाउद्दीन ने सैनिकों का हुलिया लिखने और घोड़ों को दागने की नवीन प्रथा आरंभ की।
बाजार व्यवस्था –
अलाउद्दीन की बाजार व्यवस्था का मुख्य कारण सैनिकों के वेतन में कमी करना न होकर वस्तुओं के मूल्यों को बढ़ने से रोकना था।
अलाउद्दीन ने प्रत्येक वस्तु के लिए अलग-अलग बाजार निश्चित किए –
गल्ले के लिए मंडी, कपड़े के लिए सराय-ए-आदि, घोड़ा, गुलाम व मवेशी बाजार एवं सामान्य बाजार।
सभी व्यापारियों को शहना-ए-मंडी में दफ्तर में अपने को पंजीकृत करना पड़ता था।
केवल पंजीकृत व्यापारी की ही किसानों से गल्ला खरीद सकते थे।
सट्टेबाजी, चोरबाजी, कानून को भंग करने वालों को कठोर दण्ड दिया जाता था।
बाजार के नियंत्रण के लिए अधिकारी
शहना-ए-मंडी :- बाजार अधीक्षक
दीवान-ए-रियासत :- बाजार पर नियन्त्रण रखना
सराय अद्ल :- न्याय के लिए
बरीद-ए-मंडी :- बाजार निरीक्षक
मुन्हैयान :- गुप्तचर
अन्य तथ्य –
अलाउद्दीन ने कुतुबमीनार के निकट अलाई दरवाजा (कुश्क-ए-सीरी), सीरी नामक शहर, हौज-ए-अलाई तालाब तथा हजार खम्भा का निर्माण करवाया था।
उसने डाक व्यवस्था लागू की थी।
उसका अंतिम अधिनियम परवाना नवीस (परमिट देने वाले अधिकारी) की नियुक्ति थी।
अलाउद्दीन ने खम्स (युद्ध में लुट का हिस्सा) के 4/5 भाग पर राज्य का नियंत्रण एवं 1/5 भाग पर सैनिकों का नियंत्रण कर दिया।
अलाउद्दीन की मृत्यु 5 जनवरी, 1316 ई. को हुई।
कुतुबुद्दीन मुबारकशाह खिलजी (1316-1320 ई.) –
इसने स्वयं को खलीफा घोषित किया। ऐसा करने वाला वह सल्तनत काल का पहला सुलतान था।
मुबारक शाह के बाद नासीरुद्दीन खुसरवशाह (15 अप्रैल से 7 सितम्बर, 1320 ई.) शासक बना।
वह प्रथम भारतीय मुसलमान था, जो दिल्ली का शासक बना। खिलजी वंश ……