विशेषण शब्द (Visheshan Shabd)
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विशेषण की परिभाषा-
संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बताने वाले शब्दों को विशेषण कहते हैं। जैसे- छोटी गेंद, नीला-आकाश, दुबली लड़की, कुछ पुस्तकें में क्रमशः छोटी, नीला, दुबली, कुछ शब्द विशेषण हैं, जो गेंद, आकाश, लड़की, पुस्तकें आदि संज्ञाओं (विशेष्य) की विशेषता का बोध कराते हैं।
जो शब्द विशेषता बताते हैं, उन्हें विशेषण कहा जाता है और जिसकी विशेषता बताई जाती है, उसे विशेष्य कहा जाता है। जैसे- पतला लड़का हँस पड़ा। यहाँ पतला विशेषण है तथा लड़का विशेष्य (संज्ञा) है।
विशेषण के भेद-
विशेषण के मुख्यतः पांच भेद होते हैं-
(1) गुणवाचक विशेषण-
जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम के गुण, दोष, रूप, रंग, आकार, स्वभाव, दशा आदि का बोध कराते हैं, उन्हें गुणवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे- काला, पुराना, भला, छोटा, मीठा, देशी आदि।
(2) संख्यावाचक विशेषण-
जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की संख्या का बोध कराते हैं, उन्हें संख्यावाचक विशेषण कहा जाता है। ये दो प्रकार के होते हैं-
(1) निश्चित संख्या वाचक- इनसे निश्चित संख्या का बोध होता है।
- गणनावाचक– एक, दो, तीन, आठ दस।
- क्रमवाचक– पहला, चौथा, दसवां, सौवां।
- आवृत्तिवाचक– दुगुना, तिगुना, चौगुना।
- समुदायवाचक– दोनों, चारों, आठों।
(2) अनिश्चित संख्यावाचक- इनसे अनिश्चित संख्या का बोध होता है। जैसे- कई, कुछ, सब, बहुत, थोड़े।
(3) परिमाण वाचक विशेषण-
जो शब्द किसी पदार्थ की निश्चित या अनिश्चित मात्रा, परिमाण, नाप या तौल का बोध कराते है, उन्हें परिमाण वाचक विशेषण कहते हैं। इसके भी दो भेद है-
(1) निश्चित परिमाणवाचक- चार मीटर, दो किलो, दो लीटर।
(2) अनिश्चित परिमाणवाचक- थोडा घी, बहुत दूध, जरा-सा नमक।
(4) संकेतवाचक विशेषण-
जो सर्वनाम शब्द विशेषण के रूप में किसी संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं, उन्हें संकेतवाचक या सार्वनामिक विशेषण कहते हैं। जैसे- (i) इस गेंद को मत फेंको। वाक्य में इस शब्द संकेतवाचक विशेषण है।
(5) व्यक्तिवाचक विशेषण-
जो शब्द व्यक्तिवाचक संज्ञाओं से बनकर अन्य संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं, उन्हें व्यक्तिवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे- जोधपुरी जूती, बनारसी साड़ी, बीकानेरी भुजिया में जोधपुरी, बनारसी, बीकानेरी शब्द व्यक्तिवाचक विशेषण है।
प्रविशेषण-
वे शब्द जो विशेषणों की विशेषता बतलाते हैं, प्रविशेषण कहलाते हैं। जैसे- वह बहुत तेज भाग रहा है। यहाँ तेज विशेषण है और बहुत प्रविशेषण है क्योंकि यह तेज की विशेषता बता रहा है।
विशेषण की अवस्थाएँ-
विशेषण की तुलनात्मक स्थिति को इसकी अवस्था अवस्था कहते हैं। अवस्था के तीन भेद माने गए हैं-
(i) मुलावस्था- जिसमें किसी संज्ञा या सर्वनाम की सामान्य स्थिति का बोध होता है जैसे- रहीम अच्छा लड़का है।
(ii) उत्तरावस्था- जिसमें दो संज्ञा या सर्वनाम की तुलना की जाती है। जैसे- अशोक रहीम से श्रेष्ठतर लड़का है।
(iii) उत्तमावस्था- जिसमें दो से अधिक संज्ञा या सर्वनामों की तुलना करके, एक को सबसे अच्छा या बुरा बतलाया जाता है वहाँ उत्तमावस्था होती है। जैसे- अकबर सबसे अच्छा लड़का है।
अवस्था परिवर्तन-
मुलावस्था के शब्दों में तर तथा तम प्रत्यय लगा कर या शब्द के पूर्व से अधिक या सबसे अधिक शब्दों का प्रयोग कर क्रमशः उत्तरावस्था एवं उत्तमावस्था में प्रयुक्त किया जाता है, जैसे-
मुलावस्था | उत्तरावस्था | उत्तमावस्था |
उच्च | उच्चतर | उच्चतम |
श्रेष्ठ | श्रेष्ठतर | श्रेष्ठतम |
तीव्र | तीव्रतर | तीव्रतम |
अच्छा | से अच्छा | सबसे अच्छा |
ऊँचा | से अधिक ऊँचा | सबसे ऊँचा |
विशेषण की रचना-
संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया तथा अव्यय शब्दों के साथ प्रत्यय के मेल से विशेषण पद बन जाता है।
(i) संज्ञा से विशेषण बनना- प्यार-प्यारा, समाज-सामाजिक, पुष्प-पुष्पित, स्वर्ण-स्वर्णिम, जयपुर-जयपुरी, धन-धनी, भारत-भारतीय, रंग-रंगीला, श्रद्धा-श्रद्धालु, चाचा-चचेरा, विष-विषैला।
(ii) सर्वनाम से विशेषण- जो-जैसा, तुम-तुम्हारा, वह-वैसा, कौन-कैसा।
(iii) क्रिया से विशेषण- भागना-भगोड़ा, लड़ना-लड़ाकू, लूटना-लुटेरा।
(iv) अव्यय से विशेषण- आगे-अगला, पीछे-पिछला, बाहर-बाहरी।