भारतीय संसद – हमें संसद क्यों चाहिए?

हमें संसद क्यों चाहिए?

निर्णय प्रक्रिया में सहभागिता और लोकतान्त्रिक सरकार के लिए नागरिकों की सहमति के महत्त्व जैसे विचार भारत में एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था का निर्माण करते हैं। संसद भारतीय लोकतंत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रतीक और संविधान का केंद्रीय तत्त्व है।

लोगों को फैसला क्यों लेना चाहिए?

औपनिवेशिक शासन के समय लोग ब्रिटिश सरकार के बहुत सारे फैसलों से असहमत होते हुए भी सरकार के भय के कारण उन फैसलों की आलोचना नहीं कर पाते थे।

स्वतंत्रता आंदोलन ने के कारण इन परिस्थितियों में बदलाव आए। राष्ट्रवादी खुलेआम ब्रिटिश सरकार की आलोचना करने लगे और अपनी माँगें पेश करने लगे।

1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने माँग की कि विधायिका में निर्वाचित सदस्य होने चाहिए और उन्हें बजट पर चर्चा करने एवं प्रश्न पूछने का अधिकार मिलना चाहिए।

1909 में बने गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट ने कुछ हद तक निर्वाचित प्रतिनिधित्व की व्यवस्था को मंजूरी दे दी। लेकिन इस व्यवस्था में सभी वयस्कों को वोट डालने व निर्णय प्रक्रिया आम लोगों को हिस्सा नहीं बनाया गया।

स्वतंत्रता संघर्ष के सपनों और आकांक्षाओं ने स्वतंत्र भारत के संविधान में ठोस रूप ग्रहण किया।

इस संविधान ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के सिद्धांत को अपनाया। सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का मतलब है कि देश के सभी वयस्क नागरिकों को वोट देने का अधिकार है।

लोग और उनके प्रतिनिधि

सहमति का विचार लोकतंत्र का प्रस्थानबिंदु होता है। सहमति का मतलब है चाह, स्वीकृति और लोगों की हिस्सेदारी।

लोगों का निर्णय ही लोकतान्त्रिक सरकार का गठन करता है और उसके कामकाज के बारे में फैसला देता है।

व्यक्ति सरकार को अपनी मंजूरी कैसे देता है? लोग संसद के लिए अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। इन्हीं निर्वाचित प्रतिनिधियों में से एक समूह सरकार बनाता है।

जनता द्वारा चुने गए सभी प्रतिनिधियों के इस समूह को ही संसद कहा जाता है।

यह संसद सरकार को नियंत्रित करती है और उसका मार्गदर्शन करती है।

भारतीय संसद

1. भारतीय संसद देश की सर्वोच्च कानून निर्मात्री संस्था है। इसके दो सदन हैं – राज्य सभा और लोक सभा।

2. राज्य सभा में कुल 245 सदस्य होते हैं। देश के उपराष्ट्रपति राज्य सभा के सभापति होते हैं।

3. लोक सभा में कुल 545 सदस्य होते हैं। इसकी अध्यक्षता लोक सभा का अध्यक्ष करते हैं।

संसद की भूमिका

आजादी के बाद गठित भारतीय संसद लोकतंत्र के सिद्धांत हैं – निर्णय प्रक्रिया में जनता की हिस्सेदारी और सहमति पर आधारित शासन।

लोकसभा के लिए हर पाँच साल में चुनाव होते हैं। देश को बहुत सारे निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटा गया है और प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक व्यक्ति को संसद में भेजा जाता है।

चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार आमतौर पर विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्य होते हैं।

चुने जाने के बाद ये उम्मीदवार संसद सदस्य या सांसद (एम.पी.) कहलाते हैं। इन सांसदों को मिलाकर संसद बनती है।

चुनाव हो जाने के बाद संसद के काम –

(क) राष्ट्रीय सरकार का चुनाव करना –

भारतीय संसद में राष्ट्रपति और दो सदन होते हैं – राज्य सभा और लोक सभा।

लोक सभा के चुनावों के बाद सांसदों की एक सूचि बनाई जाती है।

जिससे राजनीतिक दलों के सांसदों की संख्या की अलग-अलग जानकारी मिलती हैं।

यदि कोई राजनीतिक दल सरकार बनाना चाहता है तो उसे निर्वाचित सांसदों में बहुमत प्राप्त होना चाहिए।

लोक सभा

लोकसभा में कुल 543 निर्वाचित सदस्य (और 2 मनोनीत सदस्य) होते हैं।

इसलिए बहुमत हासिल करने के लिए लोक सभा में किसी भी दल के पास कम से कम 272 सदस्य होने चाहिए।

संसद में बहुमत प्राप्त करने वाले दल या गठबंधन का विरोध करने वाले सभी राजनीतिक दल विपक्षी दल कहलाते हैं।

कार्यपालिका का चुनाव करना लोक सभा का एक महत्त्वपूर्ण काम होता है।

कार्यपालिका ऐसे लोगों का समूह होती है जो संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करने के लिए मिलकर काम करते हैं।

जब हम सरकार शब्द का इस्तेमाल करते हैं तो हमारे ज़ेहन में अकसर यही कार्यपालिका होती है।

भारत का प्रधानमंत्री लोक सभा में सत्ताधारी दल का मुखिया होता है।

प्रधानमंत्री अपने दल के सांसदों में से मंत्रियों का चुनाव करता है जो प्रधानमंत्री के साथ मिलकर फ़ैसलों को लागू करते हैं।

ये मंत्री स्वास्थ्य, शिक्षा, वित्त इत्यादि विभिन्न सरकारी कार्यों का जिम्मा सँभालते हैं।

पिछले कुछ लोकसभा में किसी एक राजनीतिक दल को बहुमत नहीं मिल पाया है जो कि सरकार बनाने के लिए एकदम जरुरी है।

ऐसी स्थिति में कई राजनीतिक दल मिलकर एक गठबंधन सरकार बना लेते हैं और साझा मुद्दों पर काम करते हैं।

राज्य सभा

राज्य सभा मुख्य रूप से देश के राज्यों की प्रतिनिधि के रूप में काम करती है।

राज्य सभा भी कोई कानून बनाने का प्रस्ताव पेश कर सकती है।

किसी विधेयक को कानून के रूप में लागू करने के लिए यह ज़रूरी है कि उसे राज्य सभा की भी मंजूरी मिल चुकी हो।

संसद का यह सदन लोक सभा द्वारा पारित किए गए कानूनों की समीक्षा करता है और अगर जरूरत हुई हो उसमें संशोधन करता है।

राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य करते हैं।

राज्य सभा में 233 निर्वाचित सदस्य होते हैं और 12 सदस्य राष्ट्रपति की ओर से मनोनीत किए जाते हैं।

केंद्रीय सचिवालय दो इमारतें हैं जिनमें से एक का नाम साउथ ब्लॉक और दूसरी का नाम नॉर्थ ब्लॉक है।

इनका निर्माण 1930 के दशक में किया गया था।

साउथ ब्लॉक में प्रधानमंत्री कार्यालय, रक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के दफ़्तर हैं।

नॉर्थ ब्लॉक में वित्त मंत्रालय और गृह मंत्रालय स्थित हैं।

केंद्र सरकार के अन्य मंत्रालय नई दिल्ली की विभिन्न इमारतों में स्थित हैं।

(ख) सरकार को नियंत्रित करना, मार्गदर्शन देना और जानकारी देना

जब संसद का सत्र चल रहा होता है तो उसमें सबसे पहले प्रश्नकाल होता है।

प्रश्नकाल के माध्यम से सांसद सरकार के कामकाज के बारे में जानकारियाँ हासिल करते हैं।

इसके जरिए संसद कार्यपालिका को नियंत्रित करती है।

प्रश्नों के माध्यम से सरकार को उसकी खामियों के प्रति आगाह किया जाता है।

इस प्रकार सरकार को भी जनता के प्रतिनिधियों यानी सांसदों के माध्यम से जनता की राय जानने का मौका मिलता है।

सरकार से सवाल पूछना किसी भी सांसद की बहुत महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है।

लोकतंत्र के स्वस्थ संचालन में विपक्षी दल एक अहम भूमिका अदा करते हैं।

वे सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की कमियों को सामने लाते हैं और अपनी नीतियों के लिए जनसमर्थन जुटाते हैं।

वित्त से संबंधित सभी मामलों में संसद की मंजूरी सरकार के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होती है।

(ग) कानून बनाना –

कानून बनाना भी संसद का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है।

संसद में कौन लोग होते हैं?

संसद में विभिन्न पृष्ठभूमि वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है।

जैसे – अब ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले सदस्यों की संख्या पहले से ज्यादा है।

बहुत सारे क्षेत्रीय दलों के सदस्य भी अब बढ़ गए हैं।

दलित और पिछड़े वर्गों की राजनीतिक हिस्सेदारी भी बढ़ रही है।

संसद में कुछ सीटें अनुसूचित जातियों (एस.सी.) और अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के लिए आरक्षित की गई हैं।

ऐसा इसलिए किया गया है ताकि इन चुनाव क्षेत्रों से केवल दलित और आदिवासी उम्मीदवार ही जीतें और संसद में उनकी भी उचित हिस्सेदारी हो।

उनसे उम्मीद की जाती है कि वे अपने समुदाय की जिंदगी से जुड़े मुद्दों को ज्यादा अच्छी तरह संसद में उठा सकते हैं।

जब हम इस बात पर ध्यान देते हैं कि आधी आबादी औरतों की है तो यह साफ़ हो जाता है कि संसद में उन्हें बहुत कम जगह मिल रही है।

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