आर्य समाज (Arya Samaj)
आर्य समाज (Arya Samaj) ने उत्तर भारत में हिन्दू धर्म में सुधार लाने का संकल्प लिया। इसकी स्थापना 1875 ई. में स्वामी दयानन्द (1824-1883) ने बम्बई में की। स्वामी दयानन्द सरस्वती का विचार था कि स्वार्थी और अज्ञानी पुरोहितों ने पुराणों की सहायता से हिन्दू धर्म को दूषित कर दिया है।
ब्रह्म समाज के बाद उत्तर भारत में दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित आर्य समाज ही वह आन्दोलन था
जिसे राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ।
स्वामी दयानन्द सरस्वती के गुरू स्वामी विरजानंद ने हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतियों तथा नाना प्रकार की बुराईयों से समाज को मुक्त कराने का कार्य अपने शिष्य (दयानन्द सरस्वती) से गुरू दक्षिणा के रूप में मांग लिया।
भारतीय दर्शन तथा वैदिक साहित्य का गहन अध्ययन करने के बाद स्वामी दयानन्द इस नतीजे पर पहुंचे कि आर्य श्रेष्ठ जन थे।
वेद ईश्वरीय ज्ञान तथा भारत भूमि विशिष्ट भूमि है।
आर्य समाज (Arya Samaj) की स्थापना के कुछ वर्ष बाद इसका मुख्यालय लाहौर में स्थापित किया गया।
स्वामी दयानन्द के अपने जीवन के अंतिम 8 वर्ष आर्य समाज के प्रचार-प्रसार करने व पुस्तकें लिखने में व्यतीत किए।
अपने ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश की रचना उन्होंने हिंदी भाषा में की।
आर्य समाज द्वारा जनजागरण –
आर्य समाज ने ब्राह्मणों के प्रभुत्व को को अस्वीकार करते हुए सभी धार्मिक आत्मविश्वासों के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ दिया था। ‘वेदों की ओर वापस लौटो’ के नारे ने राष्ट्रीय एकता के आलोक में सांस्कृतिक चेतना जगाने की दिशा में अभूतपूर्व योगदान दिया।
उनका विश्वास था कि हर व्यक्ति की ईश्वर तक सीधी पहुँच है।
इसके अतिरिक्त हिन्दू रूढ़िवादिता का समर्थन न करने के बाद उन्होंने उस पर प्रहार किया और उसके खिलाफ विद्रोह किया।
वे मूर्तिपूजा, कर्मकाण्ड और पुरोहिती और विशेषकर जाति-प्रथा और ब्राह्मणों द्वारा प्रचारित प्रचलित हिन्दू धर्म के विरोधी थे।
उन्होंने अपना ध्यान परलोक की बजाय इस वास्तविक संसार में रहने वाले मनुष्यों की समस्या पर दिया।
स्वामी दयानंद के कुछ अनुयायियों ने कालांतर में पाश्चात्य पद्धति के अनुसार शिक्षा देने के लिए देश में स्कूलों और कॉलेजों की एक शृंखला आरम्भ की।
मूल्यांकन की दृष्टि से आर्य समाज के दो अत्यधिक उल्लेखनीय योगदान रहे –
- इसने तत्कालीन जनता के मन में भारत के अतीत के प्रति गौरव की भावना जागृत की।
- पश्चिमी शिक्षा के प्रचार-प्रसार का कार्य किया।
सामाजिक-धार्मिक सुधार आन्दोलन के अतिरिक्त राष्ट्रीय जागरण के प्रारम्भिक चरण में आर्य समाज ने काफी प्रगतिशील भूमिका अदा करते हुए ब्राह्मणों के प्रभुत्व, धार्मिक अंधविश्वासों, छुआछूत तथा बहुदेववाद पर भयंकर प्रहार किए।
1822 ई. में आर्य समाज ने गौ-रक्षा संघ की भी स्थापना की।
आर्य समाज के शुद्धि आन्दोलन तथा गो रक्षा आन्दोलन विवादस्पद रहे।
जिन हिन्दुओं ने अपना धर्म परिवर्तित कर लिया था,
उनके लिए अपने धर्म में वापस लौटने के सभी मार्ग हिन्दू समाज ने अवरुद्ध कर दिए थे
लेकिन दयानंद सरस्वती ने अपने शुद्धि आन्दोलन के द्वारा ऐसे लोगों के लिए
अपनी शुद्धि करा के फिर हिन्दू बनने का रास्ता साफ कर दिया।
स्वामी दयानंद ने बहुत अच्छा कार्य जनता के लिए किए थे