स्वामी विवेकानन्द (Svami Vivekanand)
स्वामी विवेकानन्द (Svami Vivekanand) : दक्षिणेश्वर के प्रसिद्ध संत रामकृष्ण परमहंस (1834-1886 ई.) के प्रिय शिष्य थे।
इनका बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ था।
इनका जन्म 12 जनवरी, 1863 ई. को कलकता में हुआ।
उन्होंने रामकृष्ण मठ व्यवस्था एवं मिशन की स्थापना सन 1887 ई. में की थी।
जिसका पंजीकरण 1909 ई. में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत कराया था।
रामकृष्ण परमहंस तत्व ज्ञानी संत थे जिन्होंने सन्यास, चिन्तन तथा भक्ति के परम्परागत तरीकों से धार्मिंक मुक्ति प्राप्त करने का प्रयास किया।
धार्मिक सत्य की खोज या भगवान की प्राप्ति के लिए अन्य धर्मों विशेषतः मुसलमान और ईसाई रहस्यवादियों के साथ रहे।
रामकृष्ण परमहंस के प्रिय शिष्य नरेन्द्रनाथ दत्त जो बाद में विवेकानन्द के नाम से प्रसिद्ध हुए पर उनके मानवतावाद का गहरा प्रभाव पड़ा।
अपने गुरु के संदेश का प्रचार-प्रसार करने के लिए विवेकानन्द ने अपना जीवन समर्पित करते हुए सांस्कृतिक जीवन का परित्याग कर दिया तथा देशभर में भ्रमण के लिए निकल पड़े।
तत्कालीन गरीब भारतीय जनता के दुखों को देखकर उन्होंने कहा कि मैं जिस प्रभु में विश्वास करता हूँ वह सभी आत्माओं का समुच्चय है और सर्वोपरि है।
मेरा प्रभु पतितों, पीड़ितों और सभी प्रजातियों में निर्बलों का रक्षक तथा उद्धारक है।
शिकागो की यात्रा –
सन 1893 ई. में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मलेन में वे भाग लेने गए,
वहां पर विवेकानन्द के व्याख्यान के संदर्भ में न्यूयार्क हैराल्ड ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था,
उनको सुनने के बाद हम अनुभव करते हैं कि ऐसे ज्ञान संपन्न देश में अपने धर्म प्रचारक भेजना कितना मूर्खतापूर्ण है।
उनके भाषण का सार यह था कि पृथ्वी पर हिन्दू धर्म के समान कोई भी धर्म इतने उदात्त रूप में मानव की गरिमा का प्रतिपादन नहीं करता।
वे अमेरिका महाद्वीप का भ्रमण करने के पश्चात् इंलैंड, फ्रांस, स्विटजरलैंड तथा
जर्मनी की यात्रा करते हुए बारह वर्ष के विदेश प्रवास के बाद स्वदेश वापस लौट आए।
वापस आने पर अल्मोड़ा के पास मायावती में दो प्रमुख केन्द्रों के साथ-साथ कलकत्ता के पास वैलूर में रामकृष्ण मिशन के मुख्य कार्यालय को स्थापित किया।
यहाँ रामकृष्ण मिशन की सदस्यता ग्रहण करने वाले व्यक्तियों को मिशन के धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों के लिए संन्यासियों के रूप में प्रशिक्षित किया जाता था।
मिशन के तत्वाधान में अनेक विद्यालय खोले गए तथा परोपकारी केन्द्रों की स्थापना की गई।
विवेकानन्द तत्कालीन भारतीय युवकों के लिए मसीहा थे।
उन्होंने युवकों को संबोधित करते हुए कहा कि वे उठें और जागरुक हो तथा
उन्हें चुनौती दी जब तक लाखों लोग भूखे और अज्ञानी रहेंगे
तब तक मेरी दृष्टि में प्रत्येक वह व्यक्ति देश द्रोही है
जो स्वयं शिक्षित होकर भी उनकी ओर थोड़ा सा भी ध्यान नहीं देता।
इस प्रकार मिशन ने व्यक्तिगत मुक्ति पर नहीं बल्कि सामाजिक भलाई या समाजसेवा पर जोर दिया।
महत्वपूर्ण जानकारी –
- इंग्लैंड की निवेदिता नामक महिला इनकी शिष्य बनीं।
- सुभाषचंद्र बोस ने स्वामी विवेकानन्द (Svami Vivekanand) को आधुनिक राष्ट्रीय आन्दोलन का आध्यात्मिक पिता कहा।
- शिकागो सम्मलेन में जाने से पूर्व खेतड़ी के महाराजा अजित सिंह के सुझाव पर अपना बदलकर विवेकानन्द रखा।
- इन्होंने 1896 ई. में न्यूयार्क में वेदान्त सोसायटी की स्थापना की।
- विवेकानन्द द्वारा लिखित पुस्तकें ज्ञानयोग, कर्मयोग व राजयोग हैं।