विलोम-शब्द
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‘विलोम’ का अर्थ है ‘विपरीत’। शब्द भण्डार भाषा की विकसित अवस्था का सूचक होता है। किसी भाषा में एक प्रकार की स्थिति के लिए एक शब्द विशेष प्रचलित होता है, जबकि उससे विपरीत स्थिति का बोध कराने हेतु विलोम शब्द विशेष का प्रचलन होता है। इसे इस उदाहरण से समझा जा सकता है। यथा आनंद के लिए ‘हर्ष’ शब्द प्रचलित है तो इससे विपरीत स्थिति का बोध कराने हेतु ‘शोक’ शब्द प्रचलित है। जैसे-
(1) उपसर्ग लगाकर बनने वाले
(i) ‘अ’ उपसर्ग लगाकर-
चल-अचल, चेतन-अचेतन, छूत-अछूत, थाह-अथाह, ग्राह्य-अग्राह्य, क्षर-अक्षर
(ii) ‘अन्’ उपसर्ग लगाकर-
एक-अनेक, अभिज्ञ-अनभिज्ञ, अर्थ-अनर्थ, आवृत्त-अनावृत्त, आहूत-अनाहूत, आर्य-अनार्य
(iii) ‘अप’ उपसर्ग लगाकर-
यश-अपयश, कीर्ति-अपकिर्त्ति, मान-अपमान, शकुन-अपशकुन
(iv) ‘दुर्’ उपसर्ग लगाकर-
दशा-दुर्दशा, आशा-दुराशा
(v) ‘वि’उपसर्ग लगाकर-
क्रय-विक्रय, पक्ष-विपक्ष, सम-विषम,तृष्णा-वितृष्णा, देश-विदेश
(vi) ‘कु’ उपसर्ग लगाकर-
रूप-कुरूप, पुत्र-कुपुत्र
(vii) ‘पर’ उपसर्ग लगाकर-
देशी-परदेशी, लोक-परलोक
(viii) ‘अव’ उपसर्ग लगाकर-
गुण- अवगुण
(ix) ‘प्रति’ उपसर्ग लगाकर-
क्रिया-प्रतिक्रिया, घात-प्रतिघात, वादी-प्रतिवादी
(x) ‘निर्’ उपसर्ग लगाकर-
आशा-निराशा, आदर-निरादर, आमिष-निरामिष
(xi) ‘परा’ उपसर्ग लगाकर-
जय-पराजय
(xii) ‘क’ उपसर्ग लगाकर-
पूत-कपूत
(xiii) ‘निस्’ उपसर्ग लगाकर-
छल-निश्छल, फल-निष्फल, सन्देश-निस्संदेह
(2) उपसर्ग बदलने से-
(i) ‘स’ के स्थान पर ‘निर्/‘वि’/‘दुर्’/‘क’-
सजीव-निर्जीव, सदोष-निर्दोष, सार्थक-निरर्थक, सधवा-विधवा, सबल-दुर्बल, सपूत-कपूत
(ii) ‘सु’ के स्थान पर ‘कु’/’दुर्’-
सुपात्र-कुपात्र, सुयोग-कुयोग, सुरीति-कुरीति, सुबोध-दुर्बोध
(iii) ‘पूर्व’ के स्थान पर ‘पर’-
पूर्ववर्ती-परवर्ती
(iv) ‘सम्’ के स्थान पर ‘वि’/’अप’-
संकल्प-विकल्प, सम्पन्नता-विपन्नता, सम्मान-अपमान
(v) ‘अनु’ के स्थान पर ‘वि’/ ‘प्रति’-
अनुराग-विराग, अनुकूल-प्रतिकूल, अनुलोम-प्रतिलोम
(vi) ‘आ’ के स्थान पर ‘प्र’-
आदान-प्रदान
(vii) ‘उत्’ के स्थान पर ‘अप’/ ‘नि’/ ‘अव’-
उत्कर्ष-अपकर्ष, उत्कृष्ट-निकृष्ट, उन्नति-अवनति
(viii) ‘उप’ के स्थान पर ‘पर’/ ‘अप’-
उपसर्ग-परसर्ग, उपकार-अपकार, उपचय-अपचय
(ix) ‘वि’ के स्थान पर ‘परा’-
विभव-पराभव, विजय-पराजय
(x) ‘स्व’ के स्थान पर ‘पर’-
स्वार्थ-परार्थ, स्वतन्त्र-परतन्त्र
(xi) ‘आविर्’ के स्थान पर ‘तिरो’-
आविर्भाव-तिरोभाव, आविर्भूत-तिरोभूत
(xii) ‘अन्तर्’ के स्थान पर ‘बहिर्’-
अन्तरंग-बहिरंग, अन्तर्भाव-बहिर्भाव
(3) लिंग परिवर्तन से-
लड़का-लड़की, मोर-मोरनी, सेठ-सेठानी, कवि-कवयित्री, विद्वान-विदुषी, हाथी-हथिनी, कुत्ता-कुतिया
(4) स्थायी या निश्चित-
अ
अघोष-सघोष, अतिवृष्टि-अल्पवृष्टि, अथ-इति, अग्र-पश्च, अवनि-अम्बर, अर्पण-ग्रहण, अनिवार्य-ऐच्छिक, अमृत-विष, अधम-उत्तम, अर्वाचीन-प्राचीन, अगला-पिछला, अधिक-न्यून, अनुज-अग्रज, अपना-पराया, अपराधी-निरपराध, अभ्यन्तर-बाह्य, अर्थ-अनर्थ, अभिज्ञ-अनभिज्ञ
आ
आय-व्यय, आरम्भ-अन्त, आकाश-पाताल, आजादी-गुलामी, आदर-निरादर, आधार-निराधार, आतंरिक-बाह्य, आर्द्र-शुष्क, आशीष-दुराशिष, आसक्त-अनासक्त, आस्था-अनास्था
उ
उत्थान-पतन, उग्र-सौम्य, उत्तर-दक्षिण, उचित-अनुचित, उत्तम-अधम, उदय-अस्त, उदार-अनुदार, उधार-नगद, उन्मुख-विमुख, उन्मूलन-रोपण, उन्नत-अवनत
ए
एक-अनेक
क
कदाचार- सदाचार, कोमल- कठोर, कृतज्ञ- कृतघ्न, कृपण- उदार,
ख
खण्डन- मंडन, खरा- खोटा, खल-सज्जन
ग
गुप्त- प्रकट, गुण-दोष, गरिमा- लघिमा, गौरव- लाघव, गुरु-लघु, ग्राह्य-त्याज्य, गृहस्थ-संन्यासी
घ
घाटा- मुनाफा
च
चढ़ाव- उतार, चतुर- मूढ़/मुर्ख, चिरंतन- नश्वर, चिरायु-अल्पायु, चेतन- जड़
ज
जड़- चेतन, जय- पराजय, जरा- शैशव, जाति- विजाति
झ
झगड़ालू- शान्त, झूठ-सच
त
तिरस्कार- सत्कार, तुच्छ- महान, तेजस्वी- निस्तेज, तामसिक- सात्विक, तीव्र- मंथर
द
दण्ड- पुरस्कार, दयालु- निर्दय, दरिद्र- सम्पन्न, द्वंद्व- निर्द्वंद्व, दक्षिण- वाम/उत्तर, दुर्जन- सज्जन, दुर्बल- सबल, दुराशय- सदाशय, दोष- निर्दोष, दिन- रात, दीर्घ- ह्रस्व
ध
धनि- निर्धन
न
नश्वर- अनश्वर, निडर- कायर/डरपोक, निन्दा-स्तुति, निंद्य-वंद्य, नैसर्गिक-कृत्रिम, निरपेक्ष- सापेक्ष, निर्गुण- सगुण, निर्दय- सदय, निर्मम- सह्रदय, निजी- सार्वजनिक
प
पाश्चात्य- पौर्वात्य
फ
फल- निष्फल
ब
बैर- प्रीति, बद्ध- मुक्त
म
मधुर- कटु, महात्मा- दुरात्मा, मादा- नर, मान- अपमान, मानव- दानव, मितव्ययी- अपव्ययी, मुख्य- गौण, मूक- वाचाल, मिथ्या-सत्य
य
याचक- दाता, यथार्थ-आदर्श, योगी-भोगी
र
रोगी- नीरोग, राजा-रंक
व
विधि- निषेध, विधवा- सधवा, विपन्न- सम्पन्न, विराग- अनुराग, विशिष्ट- सामान्य/साधारण, विस्तृत- संक्षिप्त, विस्मरण- स्मरण, विद्य- अज्ञ, व्यष्टि- समष्टि
श
शाश्वत- नश्वर/क्षणिक, शीत- उष्ण, शोक-हर्ष,
स
सकाम- निष्काम, सजल- निर्जल, सक्रीय- निष्क्रिय, सजातीय-विजातीय, सत्कार- तिरस्कार, सद्भावना- दुर्भावना, सज्जन- दुर्जन, सम- विषम, सम्मुख- विमुख, सरस- नीरस, समष्टि- व्यष्टि, सर्वज्ञ- अल्पज्ञ, सामान्य- विशेष, सूक्ष्म- स्थूल
ह
हर्ष- विषाद/शोक