मौर्य साम्राज्य
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मौर्य साम्राज्य की स्थापना का जो कार्य छठी शताब्दी ई.पू. में मगध में शुरू हुआ था। उसकी चरमोक्ति मौर्य साम्राज्य की स्थापना के साथ होती है। 25 वर्ष की उम्र में चन्द्रगुप्त मौर्य तथा विष्णुगुप्त (चाणक्य) ने अपनी योग्यता तथा कूटनीति से अंतिम नंद शासक घनानंद को हराकर मौर्य वंश की आधारशिला रखी, जो अगले 137 वर्षों तक अक्षुण्ण रही।
इस साम्राज्य के बारे में जानकारी के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं-
(1) कौटिल्य का अर्थशास्र, मैगस्थनिज की इंडिका, विशाखदत्त का मुद्राराक्षस, जैन तथा बौद्ध साहित्य, ब्राह्मण साहित्य, यूनानी लेखकों का वृतांत, पुरातात्विक साक्ष्य आदि।
मौर्यों की उत्त्पति –
इनकी उत्त्पति के विषय में कोई भी एकमत नहीं है। निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि मौर्य, मौर्या जनजाति के तथा निश्चित तौर पर निम्न जाति के थे। हालांकि उनकी जाति स्पष्ट नहीं है।
चन्द्रगुप्त मौर्य (321- 297 ई.पू.) –
चन्द्रगुप्त मौर्य 25 वर्ष की अवस्था में अपने गुरु विष्णुगुप्त (चाणक्य/कौटिल्य) की सहायता से नन्द शासक घनानंद को राजसिंहासन से हटाकर मगध के शासक बने। 305 ई.पू. में सीरिया के यूनानी शासक सेल्यूकस को पराजित किया तथा उसने सेल्यूकस की पुत्री हेलेना से विवाह किया।
सेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त को उपहार स्वरूप 500 हाथी प्रदान किए तथा चन्द्रगुप्त के दरबार में मेगस्थनीज को अपने राजदूत के रूप में भेजा। अपने शासन के अंतिम पड़ाव में राजकाज छोड़कर जैन धर्म स्वीकार कर मैसूर चले गए। चन्द्रगुप्त एक कुशल योद्धा तथा राजनीतिज्ञ थे।
बिन्दुसार (297-272 ई.पू.) –
बिन्दुसार चन्द्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी पुत्र था। उसे अमित्रघात भी कहा जाता है। अपने पिता के साम्राज्य को उसने बनाए रखा। नई विजय प्राप्त की या नहीं अनिश्चित है। विदेशों से संबंध में उसने पश्चिमी यूनानी शासकों के पिता द्वारा स्थापित मैत्री बनाए रखी।
अशोक (273-232 ई.पू.) –
बीसवीं सदी के प्रारंभ तक अशोक पुराणों में वर्णित मौर्य राजाओं में से एक था। उपलब्ध प्रमाणों से ज्ञात होता है कि बिन्दुसार की मृत्यु के पश्चात् या कुछ पहले राजकुमारों के मध्य संघर्ष हुआ। इसमें अशोक भी शामिल था। इस संघर्ष में उसने अपने 99 भाईयों की हत्या कर राजगद्दी प्राप्त की। अपने शासनकाल के चार वर्षों बाद 269 ई.पू. में राज्याभिषेक करवाया।
अशोक ने 261 ई.पू. में कलिंग पर विजय प्राप्त की। किन्तु भयानक रक्तपात व नरसंहार देखकर वह द्रवित हो उठा और उसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। उसने युद्ध त्याग कर एक भिक्षुक के समान अपनी प्रजा की नैतिक तथा आध्यात्मिक भलाई के लिए अनेक कार्य किए। समस्त मानवता के प्रति प्रेम सिखाने वाला वह पहला शासक था।
बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए भिक्षुओं को विदेश भेजा। वह स्वयं विचारों की महानता, चरित्र की उज्ज्वलता और मानव प्रेम के लिए प्रसिद्ध था। मौर्य साम्राज्य अशोक की मृत्यु के कुछ समय बाद नष्ट हो गया।
अशोक के प्रमुख शिलालेख, लघु शिलालेख, स्तम्भ लेख, लघु स्तम्भ लेखों का विवरण निम्नलिखित है –
शिलालेख
क्र.सं. | लेख | स्थल | लिपि |
1. | शाहबाजीगढ़ी | पेशावर (पाकिस्तान) | खरोष्ठी |
2. | मनसेहरा | हजारा (पाकिस्तान) | खरोष्ठी |
3. | गिरनार | गुजरात | ब्राह्मी |
4. | सोपारा | थाणे (महाराष्ट्र) | ब्राह्मी |
5. | कालसी | देहरादून (उत्तराखंड) | ब्राह्मी |
6. | जौनगढ़ | गंजाम (ओडिसा) | ब्राह्मी |
7. | धौली | पूरी (ओडिसा) | ब्राह्मी |
8. | एर्रगुड़ि | कर्नूल (आंध्रप्रदेश) | ब्राह्मी |
लघु शिलालेख
क्र.सं. | लेख | स्थल |
1. | रूपनाथ | जबलपुर (मध्यप्रदेश) |
2. | गुर्जरा | दतिया (मध्यप्रदेश) |
3. | सहसराम | बिहार |
4. | भाब्रू (बैराठ) | जयपुर (राजस्थान) |
5. | मास्की | रायचूर (कर्नाटक) |
6. | ब्रह्मगिरि | चित्रलदुर्ग (कर्नाटक) |
7. | सिद्धपुर | ब्रह्मगिरि के पास |
8. | एर्रगुड़ि | कर्नूल (आंध्रप्रदेश) |
9. | गोविमठ | कोपबल (मैसूर, कर्नाटक) |
10. | पालकिगुण्डू | मैसूर |
11. | राजुल मंडगिरि | कर्नूल (आंध्रप्रदेश) |
12. | अहरौरा | मिर्जापुरा (उत्तरप्रदेश) |
13. | जतिग रामेश्वर | ब्रह्मगिरि के पास |
स्तम्भ लेख
क्र.सं. | लेख संख्या | स्थल |
1. | 7 लेख उत्कीर्ण | दिल्ली – टोपरा |
2. | 8 लेख जिसमें 1 लेख जहाँगीर का | प्रयाग स्तम्भ लेख |
3. | 6 लेख उत्कीर्ण | दिल्ली – मेरठ |
4. | 6 लेख उत्कीर्ण | लौरिया-अरराज |
5. | 6 लेख उत्कीर्ण | लौरिया-नंदगढ़ |
6. | 6 लेख उत्कीर्ण | रामपुरवा स्तम्भ |
लघु स्तम्भ लेख –
इस लेख में बौद्ध संघ में फुट डालने वालों या अन्य किसी प्रकार से उसे क्षति पहुँचाने वाले भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के लिए दण्ड का विधान है।
(1) साँची स्तम्भ तथा (2) प्रयाग स्तम्भ
अन्य उत्कीर्ण लेख – (1) रूम्मिनदेई स्तम्भ (लुम्बिनी), (2) निगली सागर स्तम्भ। ये दोनों स्तम्भ लेख नेपाल की तराई में स्थित है।
गुहलेख –
(1) तक्षशिला अभिलेख, (2) कंधार अभिलेख तथा (3) ललमगान अभिलेख।
परवर्ती मौर्य शासक –
अशोक के उत्तराधिकारियों के विषय में प्रमाणिक जानकारी का अभाव है। लेखों में उसके केवल एक पुत्र तीवर का उल्लेख मिलता है। वृहद्रथ मौर्य साम्राज्य का अंतिम शासक था।
मौर्यकालीन सामाजिक दशा –
मौर्यकालीन समाज परम्परागत चार वर्णों यथा – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र में ही विभाजित था। शूद्रों की स्थिति में सुधर हुआ था। इसके अलावा ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के साथ शूद्र भी मौर्य सेना में शामिल होते थे।चारों वर्ण आर्य जनता के अंग माने जाते थे।
स्त्रियों की स्थिति –
इस काल में नारियों की स्थिति स्मृतिकाल की अपेक्षा अधिक संतोषजनक तो थी, पर बहुत अच्छी भी नहीं थी। पुनर्विवाह, नियोग प्रथा आदि प्रचलित होने के प्रमाण हैं।
मनोरंजन –
इस काल में नाटक, गोष्ठियाँ आदि मनोरंजन के साधन थे, पर गाँवों में इन मनोरंजन के साधनों के प्रवेश पर निषेध था। कलाकार स्री- पुरुष दोनों थे।
कृषि –
मेगस्थनीज के अनुसार भारत में अकाल नहीं पड़ते थे। इसका कारण था कि मौर्य युग में सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था थी। धान, दाल, उड़द, मूंग आदि फसलों का उल्लेख मिलता है। राजकीय भूमि के अलावा ऐसी भूमि भी होती थी, जिस पर करद (भाग देने वाले) कृषक खेती करते थे।
मुद्रा –
मुद्रा विभाग लक्षणाध्यक्ष के अधीन था। मौर्यों का प्रधान सिक्का पण था, जिसे रूप्य रूप भी कहा जाता था। माषक (ताम्बे), काकणी तथा अर्धमाषक छोटे मूल्य के ताम्र सिक्के होते थे। सोने के भी सिक्के प्रचलित थे।
राजस्व व्यवस्था –
मौर्य साम्राज्य में राजस्व व्यवस्था अत्यंत सुव्यवस्थित थी। आय के प्रमुख साधन दुर्ग, राष्ट्र, खान, सेतु, वन, ब्रज तथा वाणिज्य थे। भू-राजस्व 1/6 भाग होता था।
प्रशासनिक व्यवस्था –
मौर्य काल में सम्राट की स्थिति प्रधान थी। राजा की सहायता के लिए एक स्त्री मंत्रिपरिषद होती थी। राजा के तीन प्रशासनिक कर्तव्य थे- शासन संबंधी, सैनिक तथा न्याय संबंधी। मंत्रिपरिषद के अलावा केंद्रीय प्रशासनिक व्यवस्था में विभिन्न विभागों के प्रधान होते थे, जिसे महामात्य या तीर्थ कहा जाता था। इनकी संख्या 18 थी। नगर प्रशासन, गुप्तचरी व्यवस्था तथा न्याय एवं दण्ड की समुचित व्यवस्था थी।
सेना –
मौर्यों की सेना विशाल थी। मौर्य सेना में पैदल, हस्ती, घुड़सवार, रथ सेना आदि की सुदृढ़ व्यवस्था थी।
मौर्य कला –
अशोक से पहले के भवन की लकड़ी अथवा अन्य चीजों से बने हुए थे। पत्थरों का प्रयोग अशोक के काल में प्रारम्भ हुआ। इतिहास में मौर्यकालीन कला की एक अलग पहचान है। इस काल के कलात्मक अवशेष निम्न रूपों में देखने को मिलते हैं-
स्तम्भ एवं मूर्ति, स्तूप, गुफा, महल तथा टेराकोटा वस्तुएँ आदि।
मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण –
मौर्य साम्राज्य के पतन के अनेक कारण थे। एक ओर परम्परावादी व्याख्या अशोक की नीतियों तथा उसके उत्तराधिकारी शासकों को जिम्मेदार ठहराती है, तो दूसरी ओर आधुनिक व्याख्या राजनीतिक तथा सामाजिक, आर्थिक संख्याओं में अपर्याप्तता को जिम्मेदार मानती है।