अध्याय 3 खनिज और शक्ति संसाधन
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खनिज और शक्ति संसाधन – प्राकृतिक रूप से प्राप्त होने वाला पदार्थ जिसका निश्चित रासायनिक संघटन हो, वह एक खनिज है। खनिज सभी स्थानों पर सामान रूप से वितरित न होकर किसी विशेष क्षेत्र में या शैल समूहों में संकेद्रित होते हैं।
कुछ खनिज ऐसे क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ हम आसानी से नहीं पहुँच सकते हैं जैसे आर्कटिका महासागर और अंटार्कटिका।
खनिज विभिन्न प्रकार के भूवैज्ञानिक परिवेश में अलग-अलग दशाओं में प्राकृतिक क्रियाओं द्वारा निर्मित होते हैं।
वे अपने भौतिक गुणों जैसे – रंग, घनत्व, कठोरता और रासायनिक गुणों यथा विलेयता के आधार पर पहचाने जा सकते हैं। आपके भोजन में नमक और आपकी पेंसिल में ग्रेफाइट भी खनिज हैं।
शैल खनिज अवयवों के अनिश्चित संघटन वाले एक या एक से अधिक खनिजों का एक समूहन है। शैल जिससे खनिजों का खनन किया जाता है, अयस्क कहे जाते हैं।
यद्यपि 2800 से अधिक खनिजों की पहचान की गई है जिनमें से केवल लगभग 100 अयस्क खनिज समझे जाते हैं।
खनिज के प्रकार–
(1) धात्विक व (2) अधात्विक खनिज
(1) धात्विक खनिजों में धातु कच्चे रूप में होती है। धातुएँ कठोर, चमकीले, आधातवर्ध, तन्य, ध्वानिक और ऊष्मा और विद्युत के सुचालक होते है। जैसे – लौह अयस्क, बोक्साइट, मैंगनीज अयस्क आदि।
धात्विक खनिज लौह या अलौह हो सकते हैं। लौह खनिजों, जैसे लौह अयस्क, मैंगनीज और क्रोमाइट में लोहा होता है। अलौह खनिज में लोहा नहीं होता है किंतु कुछ अन्य धातु, यथा सोना, चाँदी, ताँबा या सीसा हो सकती है।
(2) अधात्विक खनिजों में धातुएँ नहीं होती है। जैसे – चुना पत्थर, अभ्रक और जिप्सम आदि। खनिज ईंधन जैसे कोयला और पेट्रोलियम भी अधात्विक खनिज हैं।
खनिजों का निष्कर्षण –
(1) खनन- (विवृत खनन, कूपकी खनन), (2) प्रवेधन, (3) आखनन
पृथ्वी की सतह के अन्दर दबी शैलों से खनिजों को बाहर निकालने की प्रक्रिया खनन कहलाती है।
खनिज जो कम गहराई में स्थित हैं वे पृष्ठीय स्तर को हटाकर निकाले जाते है, इसे विवृत खनन कहते हैं।
गहन वेधन जिन्हें कूपक कहते हैं, अधिक गहराई में स्थित खनिज निक्षेपों तक पहुँचने के लिए बनाए जाते हैं। इसे कूपकी खनन कहते है।
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस धरातल के बहुत नीचे पाए जाते है। उन्हें बाहर निकालने के लिए गहन कूपों की खुदाई की जाती है, इसे प्रवेधन कहते हैं।
सतह के निकट स्थित खनिजों को जिस प्रक्रिया द्वारा आसानी से खोदकर निकाला जाता है, उसे आखनन कहते हैं।
खनिजों का वितरण –
खनिज विभिन्न प्रकार की शैलों में पाए जाते हैं।
धात्विक खनिज आग्नेय और कायांतरित शैल समूहों, जिनसे विशाल पठारों का निर्माण होता है, में पाए जाते हैं।
मैदानों और नवीन वलित पर्वतों के अवसादी शैल समूहों में अधात्विक खनिज जैसे चूना पत्थर पाए जाते हैं। खनिज ईंधन जैसे कोयला और पेट्रोलियम भी अवसादी स्तर में पाए जाते हैं। (शक्ति संसाधन)
एशिया
चीन व भारत के पास विशाल लौह अयस्क भण्डार हैं। यह महाद्वीप विश्व का आधे से अधिक टिन उत्पादन करता है।
चीन, मलेशिया और इंडोनेशिया विश्व के अग्रणी टिन उत्पादकों में है। चीन सीसा, एन्टीमनी और टंगस्टन के उत्पादन में भी अग्रणी है। एशिया में मैंगनीज, बोक्साइट, निकेल, जस्ता और ताँबा के भी निक्षेप है।
यूरोप
रूस, यूक्रेन, स्वीडन और फ़्रांस लौह अयस्क के विशाल भण्डार वाले देश हैं।
ताँबा, सीसा, जस्ता, मैंगनीज और निकेल खनिजों के भण्डार पूर्वी यूरोप और यूरोपीय रूस में पाए जाते हैं।
उत्तर अमेरिका
उत्तर अमेरिका में खनिज भण्डार तीन क्षेत्रों में अवस्थित हैं – (1) ग्रेट लेक के उत्तर में कनाडियन शील्ड प्रदेश – लौह अयस्क, निकेल, सोना, यूरेनियम और ताँबा, (2) अप्लेशियन प्रदेश – कोयला और (3) पश्चिम की पर्वत श्रृंखला – ताँबा, सीसा, जस्ता, सोना और चाँदी।
दक्षिण अमेरिका
ब्राजील विश्व में उच्च कोटि के लौह अयस्क का सबसे बड़ा उत्पादक है। चिली व पेरू ताँबे के अग्रणी उत्पादक है। ब्राजील और बोलीविया विश्व में टिन के सबसे बड़े उत्पादकों में से है।
दक्षिण अमेरिका के पास सोना, चाँदी, जस्ता, क्रोमियम, मैंगनीज, बाक्साइट, अभ्रक, प्लैटिनम, एसबेस्टस और हिरा के विशाल भण्डार है। हरा हीरा एक दुर्लभतम हीरा है।
खनिज तेल वेनेजुएला, अर्जेंटीना, चिली, पेरू और कोलंबिया में पाया जाता है।
अफ्रीका
यह हीरा, सोना और प्लेटिनम का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक है। दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे और जायरे विश्व के सोने का एक बड़ा भाग उत्पादित करते हैं।
ताँबा, लौह अयस्क, क्रोमियम, युरेनियम, कोबाल्ट और बाक्साइट दक्षिण अफ्रीका में पाए जाने वाले अन्य खनिज हैं। तेल नाइजीरिया, लीबिया और अंगोला में पाया जाता है।
आस्ट्रेलिया
आस्ट्रेलिया विश्व में बाक्साइट का सबसे बड़ा उत्पादक है। यह सोना, हीरा, लौह अयस्क, टिन और निकेल का अग्रणी उत्पादक है।
यह ताँबा, सीसा, जस्ता और मैंगनीज में भी संपन्न है। पश्चिम आस्ट्रेलिया के कालगुर्ली और कूलगार्डी क्षेत्रों में सोने के सबसे बड़े भण्डार हैं।
विश्व की प्राचीनतम शैलें पश्चिमी आस्ट्रेलिया में हैं। वे 430 करोड़ वर्ष पूर्व बने, पृथ्वी के निर्माण के मात्र 30 करोड़ वर्ष पश्चात्।
अंटार्कटिका
विभिन्न खनिज निक्षेपों, पूर्वानुमान से संभवतः कुछ विशाल, के लिए अंटार्कटिका का भूविज्ञान पर्याप्त रूप से प्रसिद्ध है।
ट्रांस-अंटार्कटिका पर्वत में कोयले और पूर्वी अंटार्कटिका के प्रिंस चार्ल्स पर्वत के निकट लोहे के महत्त्वपूर्ण मात्रा में भण्डारों का पूर्वानुमान किया गया है।
खनिजों के उपयोग
खनिजों का उपयोग कई उद्योगों में होता है। रत्नों के लिए प्रयोग किए जाने वाले खनिज प्रायः कठोर होते है। इन्हें आभूषण बनाने के लिए विभिन्न शैलियों में जड़ा जाता है। ताँबा का उपयोग सिक्के बनाने से लेकर पाइप तक प्रत्येक वस्तु में किया जाता है।
ऐलुनिमियम जिसे उसके अयस्क बाक्साइट से प्राप्त किया जाता है, का उपयोग ऑटोमोबाइल और हवाई जहाज, बोतलबंदी उद्योग, भवन निर्माण और रसोई के बर्तन तक म होता है।
खनिजों का संरक्षण
खनिज अनवीकरणीय संसाधन है। खनिजों के निर्माण और संचयन में हजारों साल लगते हैं। मानवीय उपभोग की दर की तुलना में निर्माण की दर बहुत धीमी है।
खनन की प्रक्रिया में बर्बादी को घटाना आवश्यक है।
धातुओं को पुनर्चक्रण एक अन्य तरीका है जिससे खनिज संसाधनों को संरक्षित किया जा सकता है।
शक्ति (ऊर्जा) संसाधन
शक्ति अथवा ऊर्जा हमारे जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
हमें उद्योग, कृषि, परिवहन, संचार और प्रतिरक्षा के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है।
ऊर्जा संसाधनों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है – (1) परंपरागत स्रोत व (2) गैर-परंपरागत स्रोत।
परंपरागत स्रोत
वे स्रोत जो लम्बे समय से सामान्य उपयोग में लाए जा रहे हैं, परंपरागत स्रोत कहलाते हैं।
ईंधन और जीवाश्म ईंधन परंपरागत ऊर्जा के दो मुख्य स्रोत हैं।
ईंधन –
इसका उपयोग पकाने और ऊष्मा प्राप्त करने के लिए व्यापक रूप से होता है। हमारे देश में ग्रामीणों द्वारा उपयोग की गई पचास प्रतिशत से अधिक ऊर्जा ईंधन से प्राप्त होती है।
लाभ | हानि |
सुप्राप्य | संग्रहण में अधिक समय |
बहुसंख्यक लोगों को ऊर्जा प्रदान करता है। | उपयोग प्रदुषण फैलाने वाला |
हरित गृह प्रभाव में वृद्धि करता है। | |
निर्वनीकरण |
पौधों और जानवरों के अवशेष जो लाखों वर्षो तक धरती के अन्दर दबे रहे थे, ताप और दाब के प्रभाव से जीवाश्मी ईंधनों में परिवर्तित हो गए। जैसे कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस।
इन खनिजों का भंडार सीमित हैं।
कोयला –
यह बहुतायत में पाया जाने वाला जीवाश्मी ईंधन है। इसका उपयोग घरेलू ईंधन, उद्योगों जैसे लोहा और इस्पात, वाष्प इंजनों और विद्युत उत्पादन करने में किया जाता है।
कोयले से प्राप्त विद्युत को तापीय ऊर्जा कहा जाता है। विश्व में अग्रणी कोयला उत्पादक देशों में चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, रूस, दक्षिण अफ्रीका और फ्रांस हैं।
भारत में कोयला उत्पादक क्षेत्र रानीगंज, पश्चिमी बंगाल में तथा झरिया, धनबाद और बोकारो झारखंड में है।
लाभ | हानि |
विस्तृत रूप से उपलब्ध | प्रदूषण का स्रोत |
विद्युत रूपांतरण के लिए उपयुक्त | परिवहन के लिए भारी |
पेट्रोलियम –
पेट्रोलियम शब्द लैटिन के शब्दों पेट्रा (अर्थ- शैल) व ओलियस (अर्थ- तेल) से लिया गया है। इसलिए पेट्रोलियम का अर्थ शैल तेल है।
पेट्रोल जिससे कार, मोटरसाइकिल आदि चलते है तेल जो हमारी साइकिल को चरमराने से रोकता है, दोनों की शुरुआत गाढ़े, काले द्रव से होती है जिसे पेट्रोलियम कहते हैं। इसका वेधन अपतटीय व तटीय क्षेत्रों में स्थित तेल क्षेत्रों से किया जाता है।
इसके बाद परिष्करशाला भेजा जाता है जहाँ अपरिष्कृत पेट्रोलियम के प्रक्रमण से विभिन्न तरह के उत्पाद जैसे डीजल, पेट्रोल, मिट्टी का तेल, मोम, प्लास्टिक और स्नेहक तैयार किए जाते हैं।पेट्रोलियम और इससे बने उत्पादों को काला सोना कहा जाता है।
पेट्रोलियम के मुख्य उत्पादक देश ईरान, इराक, सऊदी अरब, कतर, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, वेनेजुएला और अल्जीरिया हैं।
भारत में मुख्य उत्पादक क्षेत्र असम में डिग्बोई, मुंबई में बाम्बे हाई तथा कृष्णा और गोदावरी नदियों के डेल्टा हैं।
प्राकृतिक गैस –
प्राकृतिक गैस पेट्रोलियम निक्षेपों के साथ पाई जाती है और तब निर्मुक्त होती है जब अपरिष्कृत तेल को धरातल पर लाया जाता है।
इसका प्रयोग घरेलू और वाणिज्यिक ईंधनों के रूप में किया जा सकता है।
रूस, नार्वे, यू.के. और नीदरलैंड प्राकृतिक गैस के प्रमुख उत्पादक देश हैं।
भारत में जैसलमेर, कृष्णा-गोदावरी डेल्टा, त्रिपुरा और मुंबई के कुछ अपतटीय क्षेत्रों में प्राकृतिक गैस संसाधन हैं।
संपीडित प्राकृतिक गैस (CNG) एक प्रचलित पर्यावरण हितैषी ऑटोमोबाइल ईंधन है, क्योंकि यह पेट्रोलियम और डीजल की तुलना में कम प्रदूषण करती है।
लाभ – आसानी से परिवहनीय (पाइपलाइन), तेल और कोयले से अधिक स्वच्छ, तेल से सस्ता।
जल विद्युत –
बाँधों में वर्षा जल अथवा नदी जल ऊँचाई से गिराने के लिए संग्रहीत किया जाता है।
बाँध के अन्दर से पाइप के द्वारा बहता जल बाँध के नीचे स्थित टरबाइन के ऊपर गिरता है।
घूमते हुए ब्लेड जेनरेटर को विद्युत के लिए घुमाते है। यह जल विद्युत कहलाती है।
विश्व का पहला जल विद्युत उत्पन्न करने वाला देश नार्वे था।
विश्व में जल विद्युत के अग्रणी उत्पादन देश पराग्वे, नार्वे, ब्राजील और चीन है।
भारत में भाखड़ा नांगल, गाँधी सागर, नागार्जुन सागर और दामोदर नदी घाटी परियोजनाएँ प्रमुख जल विद्युत केंद्र हैं।
लाभ | हानि |
प्रदूषण मुक्त | स्थानीय समुदाय का विस्थापन |
सिंचाई और मत्सयन को बढ़ावा देता है | निम्न क्षेत्रों का जलप्लावन |
सस्ता |
गैर-परंपरागत स्रोत
गैर-परंपरागत स्रोत जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा जो कि नवीकरणीय हैं।
सौर ऊर्जा –
सूर्य से प्राप्त सौर ऊर्जा, सौर सेलों में विद्युत उत्पन्न करने के लिए प्रयोग की जा सकती हैं।
इनमें से कई सेलों को सौर पैनलों से तापन व प्रकाश के लिए शक्ति उत्पन्न करने के लिए जोड़ा जाता है।
धुप की प्रचुरता वाले उष्ण कटिबंधीय देशों के लिए सौर ऊर्जा के उपयोग की प्रौद्योगिकी बहुत लाभदायक है। सौर ऊर्जा उपयोग का सौर तापक, सौर कुकर, सोलर ड्रायर के साथ-साथ समुदाय को रोशनी देने और यातायात संकेतों में भी होता है।
विश्व का प्रथम सौर और पवन चालित बस अड्डा स्कॉटलैंड में है।
लाभ | हानि |
असमाप्य | खर्चीला |
प्रदूषण मुक्त | स्रोत के विसरित होने से ऊर्जा बर्बादी |
पवन ऊर्जा –
पवन ऊर्जा का एक असमाप्य स्रोत है। पवन चक्कियों का उपयोग अनाजों को पीसने और जल निकालने के लिए चिरकाल से चला आ रहा है।
वर्तमान पवन चक्कियों में तीव्र गति से चलती हवाएँ पवन चक्की को घुमाती है जो विद्युत उत्पादन करने के लिए जेनरेटर से जुड़ी होती हैं।
पवन फार्म नीदरलैंड, जर्मनी, डेनमार्क, यू.के., यू.एस.ए. तथा स्पेन में जाए जाते हैं जो पवन ऊर्जा उत्पादन में उल्लेखनीय हैं।
लाभ | हानि |
प्रदूषण मुक्त | ध्वनि प्रदूषण |
एक बार स्थापित हो जाने पर विद्युत उत्पादन की कम लागत | पवन चक्कियों को स्थापित करना महँगा |
सुरक्षित और साफ | रेडियों व दूरदर्शन के प्रसारण संकेतों में व्यवधान |
पक्षियों के लिए हानिकारक |
परमाणु ऊर्जा –
परमाणु ऊर्जा प्राकृतिक तौर से प्राप्त रेडियोसक्रिय पदार्थ जैसे यूरेनियम और थोरियम के परमाणुओं के केंद्रक में संग्रहित ऊर्जा से प्राप्त की जाती है।
ये पदार्थ नाभिकीय रिऐक्टरों में नाभिकीय विखंडन से गुजरते हैं और उत्सर्जन ऊर्जा की प्राप्ति होती है। परमाणु ऊर्जा के सबसे बड़े उत्पादन संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप हैं।
भारत में राजस्थान और झारखंड के पास यूरेनियम के विशाल निक्षेप हैं।
थोरियम विशाल मात्रा मर केरल के मोनोजाडट बालू में पाए जाते हैं।
भारत में स्थित परमाणु ऊर्जा के केंद्र तमिलनाडु में कलपक्कम, महाराष्ट्र में तारापुर, राजस्थान में कोटा के निकट राणा प्रताप सागर, उत्तर प्रदेश में नरेरा और कर्नाटक में कैगा हैं।
लाभ | हानि |
बड़ी मात्रा में ऊर्जा उत्पादन | रेडियो एक्टिव व्यर्थ को उत्पन्न करना |
खर्चीला |
भूतापीय ऊर्जा –
पृथ्वी के अंदर गहराई बढ़ने के साथ तापमान में लगातार वृद्धि होती जाती है।
ताप ऊर्जा जो पृथ्वी से प्राप्त की जाती है भूतापीय ऊर्जा कहलाती है।
यू.एस.ए. विश्व का सबसे बड़ा भूतापीय ऊर्जा का सयंत्र है, इसके बाद न्यूजीलैंड, आइसलैंड, फिलीपींस आदि है
भारत में भूतापीय ऊर्जा के सयंत्र हिमाचल प्रदेश में मणिकरण और लद्दाख में पूगाघाटी में स्थित हैं।
लाभ | हानि |
स्वच्छ, पर्यावरण हितैषी व हर समय उपलब्ध | शहर से बहुत दूर अवस्थित होने के कारण विद्युत वहन खर्चीला |
ज्वारीय ऊर्जा –
ज्वार से उत्पन्न ऊर्जा को ज्वारीय ऊर्जा कहते हैं।
इस ऊर्जा का विदोहन समुद्र के सँकरे मुंहाने में बाँध के निर्माण से किया जाता है।
उच्च ज्वार के समय ज्वारों की ऊर्जा का उपयोग बाँध में स्थापित टरबाइन को घुमाने के लिए किया जाता है।
रूस, फ्रांस और भारत में कच्छ की खाड़ी में विशाल ज्वारीय मिल के क्षेत्र हैं।
लाभ | हानि |
प्रदूषण मुक्त | वन्य जीव आवास का नष्ट होना |
असमाप्य | दोहन में कठिन |
बायोगैस –
जैविक अपशिष्ट जैसे मृत पौधे और जंतुओं के अवशेष, पशुओं का गोबर, रसोई के अपशिष्ट को गैसीय ईंधन में बदला जा सकता है, इसे बायोगैस कहते हैं।
जैविक अपशिष्ट बैक्टीरिया द्वारा बायोगैस संयंत्र में अपघटित होते हैं जो कि अनिवार्य रूप से मीथेन और कार्बन डाईऑक्साइड का मिश्रण है।
बायोगैस खाना पकाने तथा विद्युत उत्पादन का सर्वोत्तम ईंधन है और इससे प्रति वर्ष बड़ी मात्रा में जैव खाद का उत्पादन होता है।
लाभ | हानि |
कम लागत | हरित गृह प्रभाव का कारण |
उपयोग में आसान | |
जैव-व्यर्थ का उपयोग और बायोगैस का उत्पादन |
खनिज और शक्ति संसाधन