जिला प्रशासन (District administration)
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आधुनिक राजस्थान में जिला प्रशासन का रूप हमें मौर्यकाल में देखने को मिलता है। उस समय राज्य प्रशासन को छोटी-छोटी इकाइयों में बाँटा गया था। इस प्रशासनिक इकाई के प्रमुख को ‘राजुका’ कहा जाता था और उसकी स्थिति वर्तमान जिलाधीश के समान ही थी।
सन 1772 में ब्रिटिश शासनकाल में गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स द्वारा ‘कलेक्टर’ का पद सृजित करने के साथ ही आधुनिक जिला प्रशासन का एक नया अध्याय प्रारम्भ हुआ।
राजस्थान में जिलों का गठन-
राजस्थान के गठन के समय 1949 में कुल 25 जिले बनाए गए। राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश पर 1 नवम्बर, 1956 को राज्य का पुनर्गठन किया गया और अजमेर-मेरवाड़ा क्षेत्र को राजस्थान में मिलाया गया। अजमेर राजस्थान का 26वाँ जिला बना।
इसके पश्चात् राज्य में बनाए गए जिले निम्न है-
दिनांक | नवगठित जिला | जिला गठन का क्रमांक |
15 अप्रैल, 1982 | धौलपुर | 27 वाँ |
10 अप्रैल, 1991 | बाराँ, दौसा व राजसमन्द | – |
12 जुलाई, 1994 | हनुमानगढ़ | 31वाँ |
19 जुलाई, 1997 | करौली | 32वाँ |
26 जनवरी, 2008 | प्रतापगढ़ | 33वाँ |
राजस्थान को 7 संभाग व 33 जिलों में विभाजित किया गया है। प्रशासन की सुविधा के लिए जिलों को उपखंडों में तथा उपखण्ड को तहसीलों में विभाजित किया गया है।
जिला प्रशासन के उद्देश्य-
(1) कानून और व्यवस्था लागू करना।
(2) सरकार का भू-राजस्व एकत्रित करना।
(3) जिले की शहरी और ग्रामीण जनता का कल्याण।
(4) लोकसभा, विधानसभा एवं स्थानीय निकायों के चुनाव करवाना।
राजस्थान में नए जिलों के गठन हेतु सुझाव देने के लिए राज्य सरकार ने 26 फरवरी, 2014 को श्री परमेश चन्द्र की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया।
जिलाधीश (District Collector)
जिलाधीश जिला स्तर पर प्रशासनिक प्रधान होता है। वह जिले में कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के साथ-साथ विभिन्न विकास कार्यों एवं राजस्व मामलों की देखरेख भी करता है। इनके अधीन उपखण्ड स्तर पर उपखण्ड अधिकारी एवं तहसील स्तर पर तहसीलदार प्रशासनिक नियंत्रण व क्रियान्वयन एवं राजस्व संबंधी मामलों की देखरेख के लिए जिम्मेदार होता है।
जिलाधीश भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) का सदस्य होता है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारीयों का चयन संघ लोक सेवा आयोग करता है और उसकी सिफारिश पर केन्द्र सरकार उन्हें विभिन्न राज्यों में नियुक्त करती है।
भूमिका एवं कार्य-
ब्रिटिश शासन काल में भू-राजस्व की वसूली एवं एकत्रीकरण हेतु कलेक्टर का पद सृजित किया गया था। लेकिन धीरे-धीरे इसके कार्यों में वृद्धि होती गई। बाद में कलेक्टर को जिले में शांति व्यवस्था एवं न्याय व्यवस्था संबंधित कार्यों की जिम्मेदारी सौंपी गई। वर्तमान में जिला कलेक्टर को उपर्युक्त कार्यों के अलावा कल्याण व विकास प्रशासन के समस्त कार्यों के नियंत्रण एवं निरिक्षण का कार्य भी सौंप दिया गया है।
कलेक्टर राजस्थान में जिला प्रशासन का प्रमुख होता है। जिला स्तर पर वह राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करता है तथा राज्य सरकार की आँख, कान तथा बांहों की भाँती कार्य करता है। जिलाधीश राज्य, जिला प्रशासन तथा जनता के मध्य कड़ी का काम करता है।
जिला मजिस्ट्रेट के रूप में वह अधीनस्थ न्यायालयों का पर्यवेक्षक व नियंत्रण तथा जेलों के प्रशासन का निरिक्षण करता है।
संकटकालीन प्रशासक के रूप में जिलाधीश की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है। प्राकृतिक आपदाओं में घायलों के उपचार, निवास, भोजन आदि की व्यवस्था, विस्थापितों की सहायता व उन्हें मुआवजा राशि देना आदि अनेक दायित्व जिलाधीश के है।
उपखण्ड प्रशासन एवं उपखण्ड अधिकारी
राजस्थान में सभी जिलों को उपखंडों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक उपखण्ड पर एक उपखंड अधिकारी नियुक्त किया जाता है। उपखंड अधिकारी अपने क्षेत्र के प्रशासन से संबंधित लगभग सभी महत्त्वपूर्ण कार्यों का सम्पादन जिलाधीश के निर्देशन में करते हैं।
उपखंड अधिकारी अपने उपखंड का भू-राजस्व अधिकारी होता है। उनका प्रमुख कार्य भू-अभिलेख को तैयार करना, सरकारी भूमि पर अतिक्रमण का आकलन करना, भू-राजस्व वसूली के संबंध में निर्देश प्रदान करना, राजस्व प्रशासन के पटवारी, कानूनगो तथा भू-अभिलेख निरीक्षक पर नियंत्रण एवं निरीक्षण करना आदि है।
न्यायिक अधिकारी के रूप में उपखंड अधिकारी भूमि, सीमा विवाद, चरागाह, भू-अभिलेख तथा पंजीकरण, भू-राजस्व, सम्पत्ति विभाजन आदि से संबंधित मामलों को निपटाता है।
तहसील व तहसीलदार की भूमिका व कार्य
उपखंड स्तर के बाद राजस्व प्रशासन के लिए प्रत्येक उपखंड को तहसीलों में बाँटा गया है। तहसील का प्रमुख अधिकारी तहसीलदार होता है। इनकी नियुक्ति राजस्व मंडल द्वारा की जाती है, इन पर नियंत्रण भी राजस्व मंडल का ही रहता है। अधीनस्थ सेवा के अधिकारी होते हुए भी तहसीलदार एक राजपत्रित अधिकारी होता है।
तहसीलदार अपने तहसील क्षेत्र के भू-अभिलेखों का निरूपण, संधारण व उनका सरंक्षण करता है। इसके अलावा पटवारी, कानूनगो व भूमि निरीक्षकों के कार्यों का निरिक्षण करता है।
तहसील प्रशासन में तहसीलदार द्वितीय श्रेणी के कार्यपालक दण्डनायक के रूप में कार्य करते हैं। काश्तकारी, चरागाह की भूमि, सीमा विवाद, उत्तराधिकार, भू-सम्पत्ति के विभाजन, सरकारी भूमि पर अतिक्रमण आदि से संबंधित मामलों में तहसीलदार को सुनवाई की शक्तियाँ प्राप्त है। वह जन्म-मृत्यु का पंजीयन एवं विकास कार्यक्रमों व योजनाओं का संचालन करता है।