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काल समय परिभाषा भेद

काल (समय): परिभाषा, भेद

काल

काल की परिभाषा-

हिंदी व्याकरण में क्रिया के होने वाले समय को काल कहते हैं। जैसे- राकेश आज जयपुर गया। रोहित कल गाँव जायेगा। इन वाक्यों में आज, कल दोनों समय का बोध कराते है।

काल के भेद-

काल (समय) के तीन भेद होते हैं।

(1) भूतकाल-

वाक्य में प्रयुक्त क्रिया के जिस रूप से बीते समय (भूत) में क्रिया का होना या करना पाया जाता है अर्थात् क्रिया के व्यापर की समाप्ति बतलाने वाले रूप को भूतकाल कहते हैं।

भूतकाल के छः भेद हैं-

(i) सामान्य भूत –

जब क्रिया के व्यापार की समाप्ति सामान्य रूप से बीते हुए समय में होती है, किन्तु इससे यह बोध नहीं होता कि क्रिया समाप्त हुए थोड़ी देर हुई है या अधिक, वहाँ सामान्य भूत होता है।

जैसे- राधा घर गई। राम ने गाना गाया। मैंने पुस्तक पढ़ी।

(ii) आसन्न भूत –

क्रिया जिस रूप से यह प्रकट होता है कि क्रिया का व्यापार अभी-अभी कुछ समय पहले ही समाप्त हुआ है, वहाँ आसन्न भूत होता है। अतः सामान्य भूत के क्रिया रूप के साथ है/हैं के योत से आसन्न भूत का रूप बन जाता है।

जैसे- सोहन जयपुर गया है। सीता ने खाना बनाया है।

(iii) पूर्ण भूत –

क्रिया के जिस रूप से यह प्रकट होता है कि क्रिया का व्यापार बहुत समय पूर्व समाप्त हो गया था। अतः सामान्य भूत क्रिया के साथ था, थी, थे, लगने से काल पूर्ण भूत बन जाता है, किन्तु ‘थी’ के पूर्व ‘ई’ ही रहती है ‘ईं’ नहीं।

जैसे- राकेश अजमेर गया था। पूजा ने गाना गाया था।

(iv) अपूर्ण भूत –

क्रिया के जिस रूप से यह जानकारी हो कि उसका व्यापार भूतकाल में अपूर्ण रहा अर्थात् निरन्तर चल रहा था तथा उसकी समाप्ति का पता नहीं चलता है, वहाँ अपूर्ण भूत होता है। इसमें धातु (क्रिया) के साथ रहा है, रही है, रहे हैं या ता था, ती थी, ते थे, आदि आते हैं।

जैसे- पुष्कर पुस्तक पढ़ता था। वर्षा गा रही थी।

(v) संदिग्ध भूत –

क्रिया के जिस भूतकालिक रूप से उसके कार्य व्यापार होने के विषय में संदेह प्रकट हो, उसे संदिग्ध भूत कहते हैं। सामान्य भूत की क्रिया के साथ होगा, होगी, होंगे, आदि लगने से संदिग्ध भूत का रूप बन जाता है।

जैसे- संजय गया होगा।  आशा खाना वना रही होगी।

(vi) हेतुहेतुमद भूत –

भूतकालिक क्रिया का वह रूप, जिससे भूतकाल में होने वाली क्रिया का होना किसी दूसरी क्रिया के होने पर अवलम्बित हो, वहाँ हेतुहेतुमद भूत होता है। इस रूप में दो क्रियाओं का होना आवश्यक है तथा क्रिया के साथ ता, ते, ती, आदि लगता है।

जैसे- यदि रोहित पढ़ता तो उत्तीर्ण होता। युद्ध होता तो गोलियाँ चलतीं।

(2) वर्तमान काल –

क्रिया के जिस रूप से वर्तमान समय में क्रिया का होना पाया जाए, उसे वर्तमान काल कहते हैं।

इसके पांच भेद माने जाते हैं-

(i) सामान्य वर्तमान –

जब क्रिया के व्यापार के सामान्य रूप से वर्तमान समय में होना प्रकट हो, वहाँ सामान्य वर्तमान काल होता है। इसमें धातु (क्रिया) के साथ ता है, ते हैं, ती है, आदि आते हैं।

जैसे- पवन पुस्तक पढ़ता है। रीतिका गाना गाती है।

(ii) अपूर्ण वर्तमान –

जब क्रिया के व्यापार के अपूर्ण होने अर्थात् क्रिया के चलते रहने का बोध होता है, वहाँ अपूर्ण वर्तमान काल होता है। इसमें धातु (क्रिया) के साथ रहा है, रही है, रहे हैं, आदि आते हैं।

जैसे- प्रशान्त पढ़ रहा है। सरिता गीत गा रही है।

(iii) संदिग्ध वर्तमान –

जब क्रिया के वर्तमान काल में होने पर संदेह हो, वहाँ संदिग्ध वर्तमान काल होता है। इसमें क्रिया के साथ ता, ते, ती के साथ होगा, होंगे, होगी आदि का भी प्रयोग होता है।

जैसे- राहुल खेत में काम कर रहा होगा। श्याम पत्र लिख रहा होगा।

(iv) संभाव्य वर्तमान –

जिस क्रिया से वर्तमान काल की अपूर्ण क्रिया की संभावना या आशंका व्यक्त हो, वहाँ संभाव्य वर्तमान काल होता है।

जैसे- शायद आज पिताजी आते हों।

(v) आज्ञार्थ वर्तमान –

क्रिया के व्यापार के वर्तमान समय में ही चलाने की आज्ञा का बोध कराने वाला रूप आज्ञार्थ वर्तमान काल कहलाता है।

जैसे- सोनू, तू, नाच। तुम सब पढ़िए।

(3) भविष्यत् काल-

क्रिया के जिस रूप से आने वाले समय में (भविष्य में) होना पाया जाता है, उसे भविष्यत् काल कहते हैं।

इसके तीन भेद होते हैं-

(i) सामान्य भविष्यत् –

क्रिया के जिस रूप से उसके भविष्य में, सामान्य रूप में होने का बोध हो, उसे सामान्य भविष्यत् काल कहते हैं। इसमें क्रिया (धातु) के अंत में एगा, एगी, एंगे, आदि लगते हैं।

जैसे- संगीता नृत्य प्रतियोगिता में भाग लेगी।

(ii) संभाव्य भविष्यत् –

क्रिया के जिस रूप से उसके भविष्य में होने की संभावना का पता चले, वहाँ सम्भाव्य भविष्यत् काल होता है।

इसमें क्रिया के साथ ए, ऐ, ओ, ऊँ, का योग होता है।

जैसे- कदाचित् आज रोहन आए। अनिल शायद जयपुर जाएँ।

(iii) आज्ञार्थ भविष्यत् –

किसी क्रिया व्यापार के आगामी समय में पूर्ण करने की आज्ञा प्रकट करने वाले रूप को आज्ञार्थ भविष्यत् काल कहते है। इसमें क्रिया के साथ इएगा लगता है।

जैसे- तुम वहाँ जरुर जाइएगा।

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